भोपाल में पुरुष उत्पीड़न से जुड़े मामलों पर चर्चा एक बार फिर तेज़ हो गई है। शहर में सक्रिय ‘भाई हेल्पलाइन’ के मुताबिक, उनकी ओर आने वाली शिकायतों में इस साल उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। हेल्पलाइन के दावे के अनुसार, 2025 में अब तक 4,640 शिकायतें उनके पास दर्ज की गई हैं, जबकि 2024 में यह संख्या लगभग 2,125 थी। संस्था का कहना है कि यह वृद्धि घरेलू तनाव, वैवाहिक विवाद, झूठे आरोपों और मानसिक प्रताड़ना जैसे मामलों में बढ़ती शिकायतों को दर्शाती है।
‘भाई हेल्पलाइन’, जिसे स्थानीय स्तर पर भोपाल अगेंस्ट इनजस्टिस के रूप में जाना जाता है, कई वर्षों से पुरुषों को परामर्श और सहायता उपलब्ध कराने का काम कर रही है। मीडिया में छपी रिपोर्ट्स के अनुसार, इस हेल्पलाइन का संचालन करीब 2014 के आसपास शुरू हुआ था, जब शहर में ऐसे मामलों की संख्या बढ़ने लगी थी जिनमें पुरुषों को अपनी बात दर्ज कराने के लिए कोई सुरक्षित प्लेटफॉर्म उपलब्ध नहीं था। संस्था मुख्यतः काउंसलिंग, कानूनी जानकारी और मार्गदर्शन प्रदान करने का दावा करती है।
मध्य प्रदेश स्तर पर आए आंकड़ों को लेकर भी कई रिपोर्ट्स प्रकाशित हुई हैं। इन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वर्ष 2023 में पुरुष हेल्पलाइनों पर प्रदेशभर से लगभग 15,720 कॉल्स आई थीं। इनमें से अकेले भोपाल से करीब 3,859 पुरुषों ने विभिन्न विवादों, मानसिक तनाव और आरोपों से जुड़े मामलों में मदद मांगी थी। कॉल्स में सबसे आम शिकायतें मानसिक उत्पीड़न, झूठे केस दर्ज कराने की आशंका, आर्थिक विवाद, और पारिवारिक तनाव से जुड़ी बताई जाती हैं।
पटना के गांधी मैदान में आज बिहार की राजनीति का एक और निर्णायक अध्याय लिखा गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक करियर की दसवीं शपथ ली एक ऐसा रिकॉर्ड, जो न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश की राजनीति में बेहद दुर्लभ है। राज्यपाल अरिफ मोहम्मद खान ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। यह समारोह केवल सत्ता परिवर्तन नहीं था.. यह बिहार के अगले कुछ वर्षों के शासन मॉडल और राजनीतिक समीकरणों का स्पष्ट संकेतक भी साबित हुआ। मुख्यमंत्री के बाद मंच पर सबसे पहले दो उपमुख्यमंत्री पहुँचे सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा दोनों BJP से आते हैं और दोनों ने आज मंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली। इस दोहरे नेतृत्व से संदेश स्पष्ट है कि नई सरकार में BJP केवल सहयोगी दल की भूमिका में नहीं, बल्कि सह-शक्ति केंद्र के रूप में काम करेगी। ये व्यवस्था मंत्रालयों के बंटवारे से लेकर नीति-निर्माण तक सभी स्तरों पर भाजपा की निर्णायक भागीदारी का संकेत देती है।
भाजपा का बड़ा प्रतिनिधित्व
शपथ ग्रहण समारोह में BJP के कुल 14 चेहरे शामिल रहे 2 उपमुख्यमंत्री और 12 अन्य कैबिनेट मंत्री। इनमें जो प्रमुख नाम शामिल हैं: दिलीप जायसवाल, मंगल पांडेय,रामकृपाल यादव, संजय सिंह ‘टाइगर’,नितिन नबीन, अरुण शंकर प्रसाद, सुरेंद्र मेहता, नारायण प्रसाद, रमा निषाद, लखेंद्र रोशन, श्रेयसी सिंह, प्रमोद कुमार, इन चेहरों के चयन में भाजपा ने अनुभव, संगठनात्मक पकड़ और क्षेत्रीय संतुलन तीनों को ध्यान में रखा है। यह टीम पार्टी के उस राजनीतिक विस्तार का हिस्सा मानी जा रही है, जिसमें वह बिहार में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में आ चुकी है।
JDU का अनुभवी और संतुलित प्रतिनिधित्व
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी JDU के 9 सदस्य (नीतीश सहित) इस नए मंत्रिमंडल का हिस्सा हैं। शपथ लेने वाले प्रमुख नाम विजय कुमार चौधरी
बिजेंद्र प्रसाद यादव, अशोक चौधरी, श्रवण कुमार, मदन सहनी, सुनील कुमार, लेशी सिंह, मोहम्मद जमा खान इस सूची में अनुभव का भारी वज़न दिखता है। वित्त, ग्रामीण विकास, शिक्षा और प्रशासनिक प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में वर्षों की समझ रखने वाले इन नेताओं को शामिल कर JDU ने संकेत दिया है कि वह सरकार की नीति दिशा और प्रशासनिक स्थिरता में अपनी मूल भूमिका बनाए रखेगी। NDA के छोटे सहयोगी दलों को भी इस मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया है LJP (रामविलास) – 2 मंत्री, HAM(S) – 1 मंत्री, RLM – 1 मंत्री इन दलों की मौजूदगी यह सुनिश्चित करती है कि सरकार गठबंधन की भावना को औपचारिक स्तर पर मजबूती से कायम रख रही है। कुल तस्वीर: 27 सदस्यों की टीम, विभागों का इंतजार आज कुल 27 लोगों ने शपथ ली: 1 मुख्यमंत्री, 2 उपमुख्यमंत्री और 24 मंत्री विभागों का आधिकारिक वितरण अभी जारी प्रक्रिया का हिस्सा है, और अगले कुछ दिनों में इसकी अधिसूचना जारी होने की संभावना है। मंत्रालयों के आवंटन से यह साफ़ होगा कि सरकार के भीतर अंतिम शक्ति-संतुलन किस दिशा में गया है। आज के शपथ ग्रहण की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि राजनीति के तीन पहिए अनुभव (JDU), संगठनात्मक प्रभाव (BJP) और गठबंधन का विस्तार (सहयोगी दल) एक ही मंच पर दिखाई दिए। नीतीश कुमार की नेतृत्व शैली और BJP की सक्रिय भागीदारी मिलकर आने वाले समय में प्रशासनिक मॉडल को नया आकार दे सकती है। गांधी मैदान के इस समारोह ने यह साफ कर दिया कि बिहार की राजनीति में स्थिरता की उम्मीदें भी हैं और आने वाले दिनों में नए समीकरणों की संभावनाएँ भी।