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Breaking News 9 October 2025

1 )  असल में बिहार की राजनीति में कौन जीतेगा जाने यहां! 

बिहार की राजनीति फिर से अपने उसी पुराने मोड़ पर खड़ी है, जहाँ वादे नए हैं, लेकिन चेहरे पुराने। सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह एक ही सवाल घूम रहा है “इस बार कौन?” क्या नीतीश फिर लौटेंगे या तेजस्वी को जनता ‘नया मौका’ देगी? और सच कहें तो, इस सवाल के जवाब में जितनी रायें हैं, उतनी ही जिदें भी। ताज़ा ओपिनियन पोल्स की मानें तो NDA की नाव फिलहाल हवा के रुख़ में तैर रही है। कई सर्वे बता रहे हैं कि बीजेपी-जेडीयू गठबंधन 150 से 160 सीटों के दायरे में खेल सकता है। यह आंकड़ा सीधे इशारा करता है कि जनता ने अभी भी नीतीश को पूरी तरह नकारा नहीं है।
वो वही नीतीश हैं जिन्होंने राजनीति में यू-टर्न लेना कला बना दी ह है कभी लालू के साथ, कभी मोदी के साथ, और बीच-बीच में जनता के साथ “कथित” विकास के नाम पर। कहते हैं, नीतीश की राजनीति पानी की तरह है रंग किसी और का नहीं, बर्तन का लेती है। दूसरी तरफ़ तेजस्वी यादव, युवा चेहरा, विरोध का चेहरा और उम्मीदों का चेहरा, जो अब 30 की उम्र पार कर चुके हैं, लेकिन अभी भी जनता की नज़रों में “लालू का बेटा” ही ज़्यादा हैं उनकी सभाओं में भीड़ है, नारों में जोश है, लेकिन सवाल यही कि भीड़ वोट में बदलेगी या नहीं? महागठबंधन की रैली में ताली बजाने वाले कई हैं, पर वोट डालने वाले के दिल में संदेह है  क्या तेजस्वी वाकई बिहार को बदल सकते हैं, या यह भी एक और वादों का मौसम होगा? राजनीतिक समीकरण के लिहाज़ से देखें तो NDA का खेल मजबूत है, चेहरा तय है, और संदेश सीधा “नीतीश फिर से।” महागठबंधन में कहानी उलझी हुई है,
सीट बंटवारा अभी तक पटरी पर नहीं, और अंदरूनी मतभेद का असर दिख भी रहा है। तेजस्वी को भले ही लोगों का प्यार मिले,
पर राजनीति में सिर्फ़ प्यार नहीं, गणित जीतता है।
और बिहार की इस बार की गणित कहती है  अगर कुछ बड़ा उलटफेर न हुआ तो फिर से नीतीश कुमार। लेकिन बिहार में राजनीति का मौसम किसी भी वक्त बदल सकता है। प्रशांत किशोर की ‘जनसुराज’ यात्रा और चिराग पासवान की वापसी जैसे फैक्टर इस चुनाव को त्रिकोणीय बना सकते हैं।
मतलब अगर थोड़ा भी वोट-कटवा समीकरण हिला,
तो तेजस्वी के लिए दरवाज़ा फिर खुल सकता है।
ऐसे में बिहार की यह लड़ाई सिर्फ़ कुर्सी की नहीं,
बल्कि कथाओं की जंग है “पुराने वादे बनाम नई उम्मीदें।”
कई गांवों और कस्बों में लोगों का मूड अजीब है “नीतीश ठीक हैं, लेकिन अब थकान सी है।” “तेजस्वी ठीक लगते हैं, पर भरोसा नहीं।” यानी जनता दुविधा में है, और दुविधा ही इस चुनाव का सबसे बड़ा फैक्टर है। मतलब साफ़ है, अगर कोई लहर नहीं चली, तो परिणाम जोड़-तोड़ से ही बनेगा। 6 और 11 नवंबर को बिहार वोट डालेगा, और 14 नवंबर को नतीजे आएंगे।
उस दिन तय होगा कि नीतीश की राजनीति की यह पारी “एडिशन” होगी या “एंड।” और अगर जनता ने दिशा बदली, तो बिहार को शायद एक नया चेहरा मिलेगा  तेजस्वी यादव, जो अब खुद को “नेक्स्ट जनरेशन” का नेता बताने में पीछे नहीं हैं।  राजनीति को चेहरा नहीं, चरित्र बदलने की ज़रूरत है। क्योंकि अगर चेहरा वही रहेगा, और जनता फिर भी उम्मीद लगाए बैठेगी, तो बिहार का विकास बस पोस्टर पर ही दिखेगा ज़मीन पर नहीं। सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।