आखिर कब तक राष्ट्र को मज़हब के नाम पर रौंदा जाएगा? अगर करेंसी पर वही शेर सही है, संसद में वही शेर गर्व है, पासपोर्ट पर वही शेर इज़्ज़त है… तो हज़रतबल मस्जिद में वही शेर गुनाह क्यों? कब से आस्था इतनी भारी हो गई कि उसने राष्ट्र की रीढ़ तोड़ दी? श्रीनगर के हज़रतबल श्राइन में, नमाज़ के बाद भीड़ ने पत्थर उठाए और हमारे राष्ट्रीय स्तंभ प्रतीक को तोड़ दिया। हाँ, वही प्रतीक जो हर हिंदुस्तानी के सीने में गर्व का निशान है। 5-6 सितंबर 2025 को वक़्फ़ बोर्ड ने हज़रतबल श्राइन पर एक शिलापट्ट लगाया। उस पर लिखा था कि यहाँ रेनोवेशन हुआ है और ऊपर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक, अशोक स्तंभ। नमाज़ के बाद भीड़ भड़क गई। कुछ ने कहा “यह इस्लाम के खिलाफ है।” फिर पत्थर उठे और शिलापट्ट पर बरसने लगे। नतीजा राष्ट्रीय प्रतीक को तोड़कर मिटा दिया गया। विरोधियों का तर्क है कि इस्लाम में आकृति, मूर्ति या प्रतीक धार्मिक स्थल पर नहीं होना चाहिए। लेकिन सवाल है क्या राष्ट्रीय प्रतीक कोई साधारण आकृति है? नहीं! यह प्रतीक उस अशोक महान की विरासत है, जिसने हिंसा छोड़कर करुणा और न्याय का मार्ग चुना। यह चार शेर सिर्फ पत्थर की नक्काशी नहीं, बल्कि सत्य, अहिंसा और राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक हैं। यह किसी एक धर्म का नहीं, यह पूरे भारत का है। अगर आस्था इतनी नाज़ुक है कि वह राष्ट्रीय प्रतीक को सहन नहीं कर सकती, तो क्या कल को कोई कहेगा कि तिरंगा मेरे धर्म से मेल नहीं खाता, इसे उतारो? क्या कोई कहेगा कि करेंसी पर अशोक का स्तंभ ग़लत है, इसे हटाओ? क्या हम तब भी झुकेंगे? घटना के बाद राजनीति ने आग को और हवा दी। वक़्फ़ बोर्ड की चेयरपर्सन दरख़शान अंद्राबी ने इसे “राष्ट्र का अपमान” कहा और आरोपियों पर Public Safety Act (PSA) लगाने की माँग की। बीजेपी नेताओं ने इसे राष्ट्रविरोधी कृत्य बताते हुए सख़्त कार्रवाई की माँग की। वहीं ओमर अब्दुल्ला ने पलटकर सवाल किया “धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाया ही क्यों गया?” यानी विवाद आस्था और राष्ट्र के बीच था, लेकिन नेताओं ने इसे अपने-अपने एजेंडे के तवे पर सेंकना शुरू कर दिया।
सोशल मीडिया पर जंग छिड़ गई। कोई कह रहा है “अशोक चिह्न तुम्हारे धर्म से पुराना है।” कोई कह रहा है “मुस्लिम स्थलों पर किसी प्रतीक की गुंजाइश नहीं।” और कुछ ने इसे हिंदू बनाम मुस्लिम का मुद्दा बना दिया। लेकिन असली सच यही है कि अशोक का स्तंभ किसी धर्म का नहीं है। यह भारत की मिट्टी का है। इसे तोड़ना किसी धर्म पर हमला नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की गरिमा पर हमला है। अब सबसे ज़रूरी सवाल क्या सच में कोई कानून कहता है कि राष्ट्रीय प्रतीक धार्मिक स्थलों पर इस्तेमाल नहीं होना चाहिए?
The State Emblem of India (Prohibition of Improper Use) Act, 2005 कहता है कि राष्ट्रीय प्रतीक का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। गलत इस्तेमाल का मतलब है बिज़नेस या विज्ञापन में प्रयोग, प्राइवेट लोगो या ब्रांड में इस्तेमाल, या इस तरह प्रयोग जिससे प्रतीक की गरिमा घटे। लेकिन इस कानून में यह साफ़-साफ़ नहीं लिखा कि धार्मिक स्थल पर लगाना ग़लत है। हाँ, परंपरा और आचार संहिता कहती है कि यह प्रतीक सिर्फ़ सरकारी कामकाज के लिए है जैसे संसद, सुप्रीम कोर्ट, करेंसी, पासपोर्ट, मंत्रालय की इमारतें। धार्मिक स्थलों पर इसका कोई उदाहरण नहीं मिलता। संविधान धर्मनिरपेक्ष है। यानी राज्य का कोई धर्म नहीं और राज्य किसी एक आस्था को प्राथमिकता नहीं देगा। इसलिए धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाना संविधान की भावना के खिलाफ़ माना जा सकता है, भले ही यह सीधे क़ानून तोड़ना न हो। यानी वक़्फ़ बोर्ड ने गलती की कि इसे धार्मिक स्थल पर लगाया, और भीड़ ने उससे बड़ी गलती की कि प्रतीक को तोड़कर अपमानित कर दिया।
हज़रतबल श्राइन पहले भी विवादों का अड्डा रहा है। 1963: जब यहाँ से “पवित्र बाल” ग़ायब हुआ, तो पूरे कश्मीर में बग़ावत मच गई थी। 1993: यहाँ घेराबंदी हुई, सेना और जनता आमने-सामने आ गई। और अब, 2025 में, राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान करके फिर यह जगह पूरे देश को हिला रही है। इतिहास हमें बताता है कि जब भी इस श्राइन पर विवाद हुआ, उसने आग सिर्फ़ कश्मीर में नहीं, बल्कि पूरे भारत में फैलाई। अब सवाल यह नहीं कि “किसने तोड़ा” या “क्यों लगाया गया।” सवाल यह है क्या मज़हब इतना बड़ा हो गया है कि उसके आगे राष्ट्र छोटा पड़ जाए? क्या हमारे प्रतीक, हमारा झंडा, हमारा संविधान सिर्फ़ किताबों और सरकारी दीवारों में रह गए हैं? क्या हर बार आस्था के नाम पर हमारी अस्मिता रौंदी जाएगी और हम चुप रहेंगे? आज यह प्रतीक टूटा है, कल तिरंगा झुकाया जाएगा, परसों संविधान की धज्जियाँ उड़ेंगी। अगर आज आवाज़ नहीं उठी, तो कल हमारी खामोशी हमारी पहचान को निगल जाएगी। यह लड़ाई किसी एक धर्म और दूसरे धर्म की नहीं है। यह लड़ाई है राष्ट्र बनाम कट्टर सोच की। अशोक का स्तंभ टूटा है, लेकिन दरार सिर्फ़ पत्थर में नहीं, दरार हमारी एकता और विश्वास में पड़ी है। ऐसे ही लेटेस्ट ख़बरों के लिए सब्सक्राइब करे ग्रेट पोस्ट न्यूज़।