आईआईटी खड़गपुर, एक प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान, वर्तमान में प्रशासन और फैकल्टी के बीच एक गंभीर विवाद का सामना कर रहा है। इस विवाद का केंद्र संस्थान के निदेशक, प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार तिवारी हैं, जिन पर प्रोफेसरों ने गंभीर आरोप लगाए हैं। आरोपों में 'परिवारवाद' (नेपोटिज्म), प्रशासनिक नाकामियां और मनमाने तरीके से नियुक्तियां करने का आरोप शामिल है। इन आरोपों के बाद, संस्थान ने 80 से अधिक फैकल्टी मेंबर्स को कारण बताओ नोटिस भेजे हैं, और तीन विभागाध्यक्षों को उनके पद से हटा दिया गया है। इस मामले ने संस्थान के आंतरिक विवादों को उजागर किया है। जिसके कारण शैक्षिक और प्रशासनिक माहौल में गहरी असहमति उत्पन्न हो गई है।
यह विवाद सितंबर 2024 में उस समय शुरू हुआ जब आईआईटी टीचर्स एसोसिएशन (आईआईटीटीए) ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को एक पत्र लिखा। इस पत्र में कई गंभीर आरोप लगाए गए थे। आईआईटीटीए ने यह दावा किया कि पिछले पांच वर्षों में संस्थान में अहम पदों पर नियुक्तियां भाई-भतीजावाद के आधार पर की गईं, और चयन प्रक्रिया में शैक्षणिक योगदान और मूल्यांकन मानदंडों को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया। इसके अलावा, संस्थान के द्वारा किए गए फैसलों में पारदर्शिता की कमी और नियमों की अवहेलना की भी बात की गई। पत्र में यह भी आरोप लगाया गया कि संस्थान ने मल्टी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल शुरू करने और कैंपस का विस्तार करने में पूरी तरह से नाकामी दिखाई। इसके अलावा, फैकल्टी को किए गए अतिरिक्त भुगतान की गैर-कानूनी वसूली के आरोप भी लगाए गए थे। पत्र में यह भी कहा गया कि निदेशक प्रोफेसर तिवारी ने डीन, विभागाध्यक्ष और विभिन्न समितियों के अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों का चयन बिना किसी स्पष्ट प्रक्रिया के किया, जो संस्थान के नियमों के खिलाफ था।
इन आरोपों के बाद, 12 नवंबर को संस्थान ने आईआईटीटीए के चार प्रमुख पदाधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया। इन चार पदाधिकारियों में अध्यक्ष अमिताभ भट्टाचार्य, महासचिव अमाल दास, उपाध्यक्ष पार्थ प्रतिम बंदोपाध्याय और कोषाध्यक्ष ऋतोब्रत गोस्वामी शामिल थे। संस्थान ने उन्हें सात दिन के भीतर लिखित स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया और चेतावनी दी कि अगर संतोषजनक जवाब नहीं मिलता तो अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद, टीचर्स एसोसिएशन के अधिकारियों ने 28 नवंबर को एक सामूहिक याचिका पर हस्ताक्षर किए, जिसमें नोटिसों को वापस लेने की मांग की गई। इस याचिका में 80 से अधिक फैकल्टी मेंबर्स और आईआईटीटीए के सदस्य शामिल थे। सामूहिक याचिका में यह कहा गया कि संस्थान के इस कदम से संस्थान की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए जा रहे हैं और इसके परिणामस्वरूप शैक्षिक माहौल में असहमति बढ़ेगी।
29 नवंबर को संस्थान ने तीन प्रमुख विभागाध्यक्षों को उनके पद से हटा दिया, जिन्होंने सामूहिक याचिका पर हस्ताक्षर किए थे। ये विभागाध्यक्ष थे- अद्रितजी गोस्वामी, निलॉय गांगुली और निहार रंजन जना। इस फैसले ने संस्थान में और विवाद पैदा किया। इन विभागाध्यक्षों ने मीडिया से बातचीत में कहा कि आचार संहिता के तहत उन्हें अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार नहीं था, लेकिन वे संस्थान की आंतरिक कार्यप्रणाली में सुधार की दिशा में काम करने के पक्षधर थे।
इस फैसले के खिलाफ टीचर्स एसोसिएशन ने 3 दिसंबर को एक बैठक आयोजित की, जिसमें लगभग 100 फैकल्टी मेंबर्स ने विरोध स्वरूप मार्च निकाला। फैकल्टी ने संस्थान के प्रशासन की निंदा करते हुए कहा कि यह कदम संस्थान के भीतर की स्वतंत्रता और अकादमिक स्वतंत्रता पर हमला है।
राहुल गांधी ने आज X पर एक ट्वीट किया है, जिसमें उन्होंने मोदी सरकार पर जीएसटी को लेकर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अब आम लोगों से और अधिक टैक्स वसूलने की तैयारी कर रही है। उन्होंने इस पोस्ट में यह दावा किया कि सरकार एक नया टैक्स स्लैब पेश करने जा रही है, जिसके तहत जीएसटी को बढ़ाकर आम लोगों की जरूरत की चीजों पर और अधिक वसूली की योजना बनाई जा रही है। राहुल गांधी ने विशेष रूप से 1500 रुपये से ऊपर के कपड़ों पर जीएसटी को 12% से बढ़ाकर 18% करने की बात कही और इसे गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों के लिए 'घोर अन्याय' बताया। उन्होंने लिखा कि इस नए टैक्स स्लैब से सरकार आम लोगों की मेहनत की कमाई को और अधिक लूटने की योजना बना रही है, जबकि अरबपतियों को टैक्स में छूट और उनके कर्ज माफ करने के उदाहरण दिए जा रहे हैं। राहुल गांधी ने अपने ट्वीट में आरोप लगाया कि मोदी सरकार का यह कदम आम जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ाने वाला है, खासकर शादियों के सीजन में, जब लोग पैसे जोड़ने के लिए बहुत समय से संघर्ष कर रहे हैं। कांग्रेस नेता ने आगे लिखा कि यह 'गब्बर सिंह टैक्स' (जो जीएसटी का जिक्र करते हुए उन्होंने उपयोग किया) के नाम पर और अधिक वसूली करने का एक तरीका है। उनका कहना था कि सरकार ने अब तक बड़े कॉरपोरेशन्स और अमीरों को कई प्रकार की छूट दी हैं, लेकिन गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को टैक्स के बोझ तले दबा दिया है। राहुल गांधी ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी इस अन्याय के खिलाफ मजबूत आवाज उठाएगी और इस लूट को रोकने के लिए सरकार पर दबाव बनाएगी। उन्होंने अपनी लड़ाई को आम जनता के हक में बताया और कहा कि यह समय है जब सरकार को इस अन्याय का जवाब देना होगा। राहुल गांधी के इस ट्वीट के बाद एक बार फिर से जीएसटी को लेकर देशभर में चर्चा शुरू हो गई है। खासकर उन नए टैक्स स्लैब्स और उनके प्रभावों को लेकर जो सरकार पेश करने जा रही है। यह मुद्दा आने वाले समय में और राजनीतिक चर्चाओं का हिस्सा बन सकता है, खासकर आगामी चुनावों के मद्देनजर को रखकर।
राहुल गांधी ने पहले भी भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और मोदी सरकार पर कई बार निशाना साधा है, खासकर जीएसटी और आर्थिक नीतियों को लेकर। वे कई बार यह आरोप लगा चुके हैं कि मोदी सरकार की नीतियों से केवल बड़े उद्योगपति और अमीर वर्ग को फायदा हो रहा है, जबकि गरीब और मध्यवर्गीय वर्ग पर लगातार टैक्स का बोझ बढ़ता जा रहा है। उदाहरण के लिए, उन्होंने जीएसटी को "गब्बर सिंह टैक्स" बताया था, जिससे आम जनता पर वसूली का दबाव बढ़ रहा है। उनका कहना था कि यह टैक्स नीति सिर्फ और सिर्फ गरीबों और मध्यमवर्गीय परिवारों को नुकसान पहुंचाती है, जबकि कॉर्पोरेट्स और अमीरों को इसमें छूट मिलती है। राहुल गांधी ने इससे पहले भी कई ट्वीट किए हैं, जिनमें वे सरकार के टैक्स नीति, बेरोजगारी, और महंगाई पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने मोदी सरकार पर यह आरोप लगाया है कि वह बड़े कारोबारी घरानों को छूट देने के नाम पर आम जनता से लगातार वसूली कर रही है। इसके अलावा, उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद की आर्थिक स्थिति पर भी सरकार को घेरा है। राहुल गांधी जो बात ज़ाहिर करना चाहते हैं, वह यही है कि सरकार की नीतियां गरीबों और मध्यमवर्गीय परिवारों के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार को आम जनता की परेशानियों का कोई ख्याल नहीं है, और यह नया जीएसटी स्लैब उसी का एक उदाहरण है। वे यह जताना चाहते हैं कि सरकार पूरी तरह से अमीरों के पक्ष में खड़ी है और गरीबों को शोषण का शिकार बना रही है। राहुल गांधी की यह कोशिश इस बात को स्थापित करना है कि उनकी पार्टी गरीबों और मध्यमवर्गीय वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रही है। राहुल गांधी सरकार से इस लूट को रोकने का आह्वान कर रहे हैं और अपने समर्थकों को यह संदेश दे रहे हैं कि वे इस अन्याय के खिलाफ खड़े हैं। वे यह चाहते हैं कि आम जनता, खासकर शादी जैसे व्यक्तिगत और महत्वपूर्ण अवसरों पर, इस नए टैक्स स्लैब से प्रभावित न हो और सरकार को अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़े।