भारत सरकार ने WhatsApp के जरिए बढ़ते डिजिटल फ्रॉड पर बड़ा कदम उठाया है। Ministry of Electronics and Information Technology ने WhatsApp की पैरेंट कंपनी Meta को नोटिस भेजकर कहा है कि वह WhatsApp पर हो रहे स्कैम्स को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए। गृह मंत्रालय की साइबर सिक्योरिटी विंग I4C ने हाल ही में 59,000 से ज्यादा WhatsApp अकाउंट्स को बैन कर दिया था, जो डिजिटल फ्रॉड से जुड़े थे। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार ने यह जानकारी दी कि यह अकाउंट्स धोखाधड़ी, फर्जी लिंक, और अन्य डिजिटल स्कैम्स के जरिए लोगों से पैसे निकालने के काम में थे। I4C ने इन अकाउंट्स को सक्रिय रूप से ट्रैक किया और बैन कर दिया, जिससे फ्रॉड की घटनाओं में कमी आई। सरकार ने Meta से इस बारे में जवाब मांगा है कि वे इस समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठा रहे हैं और इन स्कैम्स को रोकने के लिए वे किस तरह की तकनीकी और प्रबंधकीय नीतियों को लागू करेंगे। इसके अलावा, सरकार ने चेतावनी दी है कि अगर Meta इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तो भविष्य में और सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। इससे पहले, Meta ने दावा किया था कि वह अपने प्लेटफॉर्म्स पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। लेकिन सरकार ने इसे पर्याप्त नहीं माना और अब Meta से जवाब तलब किया है। यह कदम सरकार की लगातार बढ़ रही चिंता का हिस्सा है, क्योंकि डिजिटल फ्रॉड की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हो रही है, खासकर WhatsApp जैसे प्लेटफॉर्म्स पर। अब यह देखना होगा कि Meta किस तरह से इस मामले को हल करता है।
Meta का WhatsApp पर होने वाली धोखाधड़ी गतिविधियों को लेकर एक्शन जारी है। मेटा अपने प्लेटफॉर्म्स पर धोखाधड़ी के मामलों से निपटने के लिए गंभीर कदम उठा रही है। Meta ने हाल ही में साइबर अपराधियों के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। जिन्होंने फेसबुक, इंस्टाग्राम, और WhatsApp पर फिशिंग (phishing) स्कैम किए थे। Meta का कहना है कि उसने 39,000 से अधिक फर्जी वेबसाइट्स को हटाया है, जिनका उपयोग धोखाधड़ी के लिए किया जा रहा था। यह कार्रवाई तब की गई जब ये साइट्स उपयोगकर्ताओं से उनका लॉगिन डेटा चुराने का प्रयास कर रही थीं। हालांकि, सरकार की ओर से Meta को नोटिस भेजे जाने के बाद, कंपनी ने यह भी बताया कि वह अपने प्लेटफॉर्म की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए लगातार काम कर रही है और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सहयोग कर रही है। ताकि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सके।
मध्य प्रदेश के दमोह जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां 11वीं कक्षा की छात्रा के साथ उसके सहपाठियों ने गैंगरेप किया और वीडियो बनाकर उसे ब्लैकमेल किया। मानसिक प्रताड़ना और शर्मिंदगी के चलते छात्रा ने गुरुवार शाम फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पथरिया थाना क्षेत्र की इस घटना में पीड़िता के पिता का कहना है कि स्कूल के चार छात्रों ने उनकी बेटी के साथ दुष्कर्म किया और वीडियो बनाकर उसे धमकाने लगे। घटना का पता तब चला जब उन्होंने अपने बेटे को मामले की जानकारी जुटाने के लिए आरोपियों के पास भेजा। आरोपी रवि सेन और राकेश पटेल ने वीडियो बनाने से इनकार किया। मामले की गंभीरता समझते हुए परिजन पुलिस में शिकायत दर्ज करवाने की सोच रहे थे, लेकिन इसी बीच उनकी बेटी ने अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। पीड़िता के पिता की शिकायत के आधार पर पुलिस ने आरोपियों रवि सेन और राकेश पटेल के खिलाफ पॉक्सो एक्ट और अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया है। थाना प्रभारी सुधीर बेगी ने बताया कि जांच शुरू हो चुकी है। आरोपी रवि सेन और राकेश पटेल के खिलाफ केस दर्ज हो गया है।
हमारे देश में legal system इतना धीमा है कि कई बार तो केस खत्म होते-होते पीड़िता या उसके परिवार वाले पूरी जिंदगी गुजार देते हैं। Nirbhaya case इसका बड़ा उदाहरण है, जिसमें दोषियों को सजा मिलने में करीब 7 साल लगे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में भारत में 28,000 से ज्यादा रेप मामले दर्ज किए गए। लेकिन इनमें से केवल 34% मामले में ही दोषियों को सजा मिली। 2019 में एक अध्ययन में सामने आया कि करीब 70% रेप के मामलों में तत्काल जमानत मिल जाती है, जिसका मतलब है कि आरोपियों को गिरफ्तार करने और कार्रवाई करने में पुलिस को देर होती है। भारत में court cases का औसत समय 5-10 साल होता है, और रेप जैसे मामलों में यह समय और बढ़ जाता है। पॉलीटिकल इंफ्लुएंस, corruption, और backlog of cases इस देरी के प्रमुख कारण हैं।
इंडिया में यौन शिक्षा को अभी भी एक taboo माना जाता है। स्कूलों में इसे शामिल करने पर विरोध होता है, जिससे बच्चे और युवा सही जानकारी से वंचित रहते हैं। इंटरनेट पर मौजूद pornography और गलत जानकारी भी युवाओं को प्रभावित कर रही है, जिससे उनका मानसिकता और व्यवहार बिगड़ता जा रहा है।NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में रेप केस में 7% की बढ़ोतरी हुई है। 18-30 साल के बीच के लोग ज्यादातर अपराधों में शामिल पाए गए हैं।Countries with sex education में यौन अपराधों की दर भारत से कम है, ये हमें एक उदाहरण देता है कि शिक्षा कितनी अहम है।
रेप जैसे गंभीर मामलों को fast-track courts में भेजा जाना चाहिए ताकि जल्दी से फैसला हो। पीड़िता को सही न्याय मिलने तक उसे मानसिक और शारीरिक सपोर्ट मिलना चाहिए। कानून में बदलाव जरूरी है। जब तक सिस्टम जल्दी से एक्शन नहीं लेगा, तब तक इन घटनाओं पर कंट्रोल करना मुश्किल होगा। Nirbhaya case हमें ये सिखाता है कि रेप जैसे मामलों में तत्काल एक्शन की जरूरत है। जब तक हम कानून के सिस्टम को सुधारने की कोशिश नहीं करेंगे, तब तक ऐसे अपराधों का निवारण नहीं हो पाएगा। Justice delayed is justice denied, और इस पर हमें सख्त कदम उठाने होंगे।
बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया के विरोध में पटना में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया। छात्रों का कहना है कि परीक्षा पहले की तरह एक ही शिफ्ट और एक ही पेपर में होनी चाहिए। उनके अनुसार, नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया में जो परीक्षा अलग-अलग टाइम स्लॉट्स में होती है, उनके अंकों को बराबर करने की कोशिश की जाती है, लेकिन ये तरीका पूरी तरह से ठीक नहीं है और इससे छात्रों के बीच भेदभाव हो सकता है।
इस विरोध में मशहूर शिक्षक और यूट्यूबर खान सर ने भी छात्रों का समर्थन किया। वह प्रदर्शन स्थल पर पहुंचे और छात्रों के साथ धरने पर बैठ गए। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि बीपीएससी अध्यक्ष को तत्काल एक बयान जारी करना चाहिए जिसमें यह स्पष्ट किया जाए कि नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया का उपयोग इस परीक्षा में नहीं किया जाएगा। साथ ही, उन्होंने यह भी मांग की कि परीक्षा की तारीख को बढ़ाया जाए, क्योंकि कई उम्मीदवार तकनीकी समस्याओं के कारण आवेदन नहीं कर सके थे। खान सर ने यह भी कहा कि जब तक बीपीएससी के अध्यक्ष इस मामले पर स्पष्टता नहीं देते, तब तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा। उनका यह कदम छात्रों के लिए एक समर्थन का प्रतीक बन गया और वे उनके साथ और अधिक मजबूती से खड़े हो गए।
प्रदर्शनकारियों की संख्या जब बढ़ गई और उन्होंने बेली रोड को जाम कर दिया, तो पुलिस ने हस्तक्षेप किया और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए हल्का लाठीचार्ज किया। इस दौरान कई छात्र घायल भी हुए। प्रदर्शन में शामिल होने के कारण खान सर को भी पुलिस ने हिरासत में लेने की कोशिश की, लेकिन पुलिस का कहना है कि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया। पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) राजीव मिश्रा ने स्पष्ट किया कि खान सर को न तो गिरफ्तार किया गया था और न ही हिरासत में लिया गया था। उन्हें पुलिस वैन में बिठाकर गर्दनीबाग थाना ले जाया गया था। पुलिस का दावा है कि खान सर खुद ही वहां गए थे ताकि वे उन छात्रों के साथ संपर्क कर सकें जिन्हें हिरासत में लिया गया था। पुलिस का यह भी कहना था कि यह सब अफवाहों के कारण हुआ और खान सर की गिरफ्तारी की खबर गलत थी। खान सर के समर्थन में सोशल मीडिया पर भी कई संदेश और ट्वीट्स सामने आए, लेकिन पटना पुलिस ने इन्हें खारिज कर दिया।
बीपीएससी के सचिव सत्य प्रकाश शर्मा ने भी इस मुद्दे पर बयान जारी किया और कहा कि आयोग किसी भी परिस्थिति में नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया का उपयोग नहीं करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यह अफवाह फैलाई जा रही है कि आयोग की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए जानबूझकर भ्रम की स्थिति बनाई जा रही है। उन्होंने छात्रों से अपील की कि वे आयोग के निर्णय का सम्मान करें और शांतिपूर्ण तरीके से अपनी परीक्षा की तैयारी करें। बीपीएससी की 70वीं प्रारंभिक परीक्षा 13 दिसंबर को आयोजित होनी है और छात्र आंदोलन को लेकर अब स्थिति और गंभीर होती दिख रही है। छात्रों का कहना है कि अगर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया तो वे अपनी गतिविधियों को और तेज करेंगे। इस समय पुलिस प्रशासन भी सतर्क है और स्थिति पर कड़ी नजर बनाए हुए है। यह विरोध केवल एक परीक्षा से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि छात्रों के बीच निष्पक्षता और समानता के अधिकार की भी एक लड़ाई बन गया है। देखने की बात यह होगी कि बीपीएससी इस मामले में किस दिशा में आगे बढ़ता है और छात्रों की यह मांग किस हद तक मानी जाती है।