गाज़ा की तंग गलियों और टूटी-फूटी इमारतों के बीच आज सिर्फ़ मलबा नहीं, बल्कि 64 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनियों की जानों का हिसाब छिपा है। यह आंकड़ा गाज़ा स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट में दर्ज है, जिसे संयुक्त राष्ट्र और तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं विश्वसनीय मानती हैं। लेकिन क्या ये सिर्फ़ गिनती है? नहीं। हर संख्या के पीछे एक कहानी है बिखरे हुए परिवारों की, अनाथ हुए बच्चों की और उस समाज की जो धीरे-धीरे मौत और भूख दोनों से जूझ रहा है। यह संघर्ष अचानक पैदा नहीं हुआ। इसकी जड़ें 1947 में हैं, जब संयुक्त राष्ट्र ने भूमि का विभाजन सुझाया और 1948 में इज़रायल अस्तित्व में आया। उस समय लाखों फ़िलिस्तीनी बेघर हुए जिसे “नक़बा” कहा जाता है। 1967 के युद्ध ने गाज़ा और वेस्ट बैंक को भी इज़रायल के नियंत्रण में पहुँचा दिया। आधी सदी से अधिक समय बीत गया, लेकिन “दो राष्ट्र” का सपना अब भी राजनीतिक बहस और बंदूक के साए में दबा हुआ है। सवाल यह है कि अगर ज़मीन कभी इंसाफ़ नहीं देख पाई, तो इंसानियत कब देखेगी?
1987 में जन्मा हामास, शुरू में एक राजनीतिक और धार्मिक आंदोलन था, लेकिन जल्दी ही इज़रायल के खिलाफ़ सशस्त्र संघर्ष की राह पकड़ ली। 2007 तक उसने गाज़ा पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया। तब से गाज़ा एक बंद पट्टी बन गया बाहर से नाकाबंदी और अंदर से हामास का शासन। इस “कैदखाने” ने पीढ़ियों को जन्म दिया, जिनकी पहचान अब सिर्फ़ युद्ध और प्रतिरोध से जुड़ चुकी है। 7 अक्टूबर 2023 वह सुबह जिसने सब बदल दिया सुबह का वक्त, लोग अपनी दिनचर्या में थे, और तभी हामास ने “ऑपरेशन अल-अक्सा फ्लड” शुरू किया। हज़ारों रॉकेट छोड़े गए, सीमा पार कर हमले हुए और 1,195 लोगों की जान चली गई। इज़रायल के लिए यह दिन उसके सुरक्षा तंत्र की सबसे बड़ी नाकामी था। बंधक बनाए गए सैकड़ों लोग आज भी हामास की कैद में हैं। इसके बाद इज़रायल ने पूरे गाज़ा पर युद्ध छेड़ दिया एक ऐसा युद्ध जो अब दो साल से ज़्यादा समय से जारी है। इज़रायल की सैन्य ताक़त ने गाज़ा को खंडहर में बदल दिया। अस्पतालों पर हमले, स्कूलों का ढहना, मस्जिदों की तबाही इन सबका तर्क इज़रायल यह देता है कि यह “हामास को खत्म करने की कार्रवाई” है। लेकिन हकीकत यह है कि हर हमले के साथ न सिर्फ़ इमारतें गिर रही हैं, बल्कि नई पीढ़ी में और गहरी नफ़रत पनप रही है। युद्ध सिर्फ़ हामास को मिटा रहा है, या फ़िलिस्तीन की पूरी पीढ़ी को? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है।
आज गाज़ा की लगभग 40% ज़मीन इज़रायल के सैन्य नियंत्रण में है। 10 लाख से ज़्यादा लोग अपने घर छोड़ चुके हैं। न दवा है, न पानी, न खाना लोग भूख से मर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इसे “जनसंहार” कह रही हैं, जबकि इज़रायल इसे अपनी सुरक्षा की लड़ाई बताता है। यही वह धुंधली रेखा है, जहाँ क़ानून, राजनीति और इंसानियत सब एक-दूसरे से टकरा रहे है । दुनिया हर रोज़ टीवी स्क्रीन पर बम गिरते देखती है, नए आँकड़े सुनती है और फिर चुप हो जाती है। लेकिन क्या चुप्पी से यह युद्ध रुकेगा? इज़रायल सुरक्षा चाहता है, फ़िलिस्तीनी सम्मान और ज़मीन। पर जिस बिसात पर यह खेल खेला जा रहा है, वहाँ मोहरे इंसान हैं और हर चाल के साथ इंसानियत हार रही है। ऐसे ही लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।
कल्पना कीजिए सुबह उठते ही आप फोन का लॉक खोलते हैं, और स्क्रीन पर लिखा आता है Error! Gmail not found न मेल भेज सकते, न Play Store खुलता, न UPI बजता। अचानक आपको लगता है कि पूरा देश घुटनों पर आ गया है। अब ये कोई हॉलीवुड की टेक्नो-थ्रिलर फिल्म का सीन नहीं, बल्कि पटना के मशहूर खान सर का बयान है। उनका कहना है अगर गूगल ने Gmail बंद कर दिया, तो भारत रुक जाएगा। UPI, फोन, व्हाट्सऐप सब ठप बयान सुनते ही इंटरनेट गरम हो गया। किसी ने कहा यह चेतावनी है, किसी ने इसे मजाक बताया और सोशल मीडिया ने इसे मीमों का महाभोज बना डाला। लेकिन सवाल यही है क्या वाकई भारत Gmail पर इतना निर्भर है?
UPI और Gmail: कनेक्शन या कन्फ्यूजन?
खान सर का सबसे बड़ा दावा था “Gmail बंद हुआ तो UPI बंद हो जाएगा।” सुनने में डरावना लगता है, पर हकीकत यह है कि UPI का इंफ्रास्ट्रक्चर NPCI (नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) के अपने सर्वरों पर चलता है। ट्रांज़ैक्शन वहीं प्रोसेस होते हैं और उसका Google की मेल सर्विस से कोई नाता नहीं। मतलब, चाहे Gmail बंद हो जाए, लेकिन जब आप चाय वाले का QR कोड स्कैन करेंगे तो वही आवाज बजेगा“Transaction Successful.” सच है कि स्मार्टफोन सेटअप करते वक्त ज़्यादातर लोग Gmail का इस्तेमाल करते हैं। Gmail अकाउंट से Play Store खुलता है, ऐप्स डाउनलोड होते हैं। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि Gmail बंद हुआ तो फोन बंद हो जाएगा? बिलकुल नहीं। फोन Gmail से नहीं, सिम कार्ड और नेटवर्क से चलता है। और Play Store ही दुनिया का आखिरी विकल्प नहीं है। चीन, रूस जैसे देशों में पहले से ही लोकल ऐप स्टोर चलते हैं। भारत चाहे तो कल को अपना “देसी स्टोर” लॉन्च कर देगा। हाँ, दिक्कत जरूर होगी, लेकिन देश घुटनों पर नहीं आएगा। खान सर ने व्हाट्सऐप का नाम भी जोड़ा “Gmail बंद, तो WhatsApp भी खत्म।” लेकिन हकीकत यह है कि WhatsApp सिर्फ मोबाइल नंबर और OTP पर चलता है। Gmail का यहाँ कोई रोल ही नहीं। मतलब, Gmail बंद हो भी जाए तो भी आपकी माँ का “सुप्रभात ” वाला मैसेज जरूर आएगा। हाँ, दिक्कत सिर्फ यही होगी कि वो मैसेज Gmail की वजह से नहीं, आपके नंबर की वजह से आता है। तो क्या अमेरिका सच में Gmail बंद कर सकता है? खान सर ने कहा कि अमेरिका अगर चाहे तो Gmail बंद कर देगा। ये सुनकर टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स हँस पड़े। Gmail Google का प्राइवेट प्रोडक्ट है, और Google चाहे तो बंद कर सकता है, लेकिन अमेरिका या ट्रंप नहीं। ये ऐसा है जैसे मोहल्ले का चौकीदार कह दे “कल से सूरज निकलना मना है।” सूरज की अपनी ड्यूटी है, वैसे ही Gmail का अपना सिस्टम। बयान के बाद सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का तूफान आ गया। किसी ने लिखा “UPI doesn’t run on Gmail.” किसी ने मीम बनाया गोलगप्पे का WiFi से कनेक्शन ज्यादा है, Gmail से UPI का नहीं।” एक मीम में दिखाया गया कि Gmail बंद होते ही चाय वाला QR कोड दिखाकर बोला “आज से कैश ही लाओ।” लोगों ने खान सर के बयान को Fear-Mongering और Fact-Free Theory बताया। हालांकि कुछ महीने पहले अफवाह उड़ी थी कि Gmail 2025 से बंद हो जाएगा। इतना हंगामा हुआ कि Google को ट्वीट करना पड़ा “Gmail is here to stay.” तो सच्चाई साफ है Gmail बंद होने की कोई योजना नहीं है। लेकिन मान लो कि किसी दिन Gmail बंद हो भी जाए कंपनियाँ Outlook, Yahoo, ProtonMail पर शिफ्ट हो जाएँगी। भारत में लोकल ईमेल सर्विस उभर आएँगी। और आम लोग दो दिन हँसकर नए ईमेल बना लेंगे। यानी Gmail बंद होना देश की “डिजिटल प्रलय” नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी का ट्रांज़िशन होगा। खान सर का मकसद क्या था? अब सवाल है खान सर ने ऐसा बयान क्यों दिया? संभव है कि वो स्टूडेंट्स को यह समझाना चाहते थे कि भारत विदेशी टेक्नोलॉजी पर निर्भर है और हमें आत्मनिर्भर बनना चाहिए। लेकिन बात समझाने के जोश में उन्होंने उदाहरण इतना ड्रामेटिक बना दिया कि सोशल मीडिया ने उसी को पकड़ लिया। उनकी मंशा गलत नहीं, लेकिन तरीका इतना ओवरसिंप्लिफाइड और भावनात्मक था कि टेक्निकल फैक्ट्स वहीं धरी रह गईं। निष्कर्ष: भारत Gmail पर नहीं, अपनी मेहनत पर खड़ा है पूरे विवाद का सार यही है भारत का डिजिटल इकोसिस्टम Gmail पर निर्भर नहीं है। UPI अपने पैरों पर खड़ा है। WhatsApp नंबर पर चलता है। फोन नेटवर्क पर चलता है। Gmail बंद हो जाए तो थोड़ी असुविधा होगी, लेकिन भारत घुटनों पर नहीं आएगा। खान सर का बयान क्लासरूम की उस लाइन जैसा है जो बच्चों को जगाने के लिए बोली जाती है। लेकिन देश क्लासरूम नहीं है और सोशल मीडिया बच्चा नहीं, जो हर बात बिना सोचे मान ले। ऐसे ही लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करे ग्रेट पोस्ट न्यूज़।