सुप्रीम कोर्ट वो जगह जहाँ शब्दों की धार से फैसले लिखे जाते हैं, आज वहाँ एक जूते की उड़ान ने सबको सन्न कर दिया। सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 की सुबह, जब देश के चीफ़ जस्टिस B.R. गवाई की बेंच रोज़मर्रा की तरह मामलों की सुनवाई कर रही थी, तभी अचानक एक व्यक्ति वकील की पोशाक में उठ खड़ा हुआ और मंच की ओर कुछ फेंकने की कोशिश की। कुछ ने कहा कि वह जूता था, कुछ ने कहा कागज़ का रोल लेकिन जो था, उसने देश की सबसे ऊँची अदालत की मर्यादा को झकझोर दिया। सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत हरकत में आकर उस व्यक्ति को पकड़ लिया। अदालत की कार्यवाही कुछ मिनटों के लिए रुकी, माहौल भारी था। लेकिन तभी CJI गवाई की आवाज़ आई “इन चीज़ों से मुझे फर्क नहीं पड़ता।” बस इतना कहकर उन्होंने सुनवाई आगे बढ़ा दी। जैसे बता दिया हो अदालत की कुर्सी किसी डर से नहीं, संविधान से चलती है। अब सवाल उठता है आखिर यह हुआ क्यों? प्रारंभिक जांच में पता चला कि जिसने यह करतूत की, वह खुद को वकील बताता है। उसने नारे लगाए “सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान।” बताया जा रहा है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में भगवान विष्णु की मूर्ति पुनर्स्थापना से जुड़े एक मामले में सीजेआई गवाई की कुछ टिप्पणियों को लेकर कुछ समूहों में नाराजगी थी। माना जा रहा है कि इसी भावनात्मक उबाल ने उस व्यक्ति को अदालत जैसी संवैधानिक जगह पर भी उग्र बना दिया। मगर मामला सिर्फ एक नाराज व्यक्ति का नहीं है ये उस ध्रुवीकरण की झलक है, जो आज समाज के हर कोने में फैल चुकी है। जहाँ अदालत के अंदर भी धर्म और आस्था की चिंगारियाँ पहुँचने लगी हैं। पुलिस ने आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। यह भी जांच होगी कि वह सुप्रीम कोर्ट के अंदर तक कैसे पहुँचा, उसने क्या फेंकने की कोशिश की, और क्या किसी संगठन से उसका संबंध है। सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा का आदेश दे दिया है। लेकिन इस पूरे हंगामे के बीच, एक बात साफ़ दिखती है हमारे समय में गुस्सा सबसे आसान रास्ता बन चुका है। चाहे सोशल मीडिया हो या संसद, और अब तो अदालत भी। सवाल सिर्फ ये नहीं कि “जूता किसने फेंका?” बल्कि ये कि हमारे समाज ने असहमति को इतना कमजोर क्यों बना दिया कि उसे अब जूते से जताना पड़ता है? ऐसे ही लेटेस्ट खबरों को देखने के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।