आज यानी 6 नवंबर 2025 को सुबह 7 बजे से बिहार के 18 जिलों में फैले 121 विधानसभा सीटों पर पहला चरण का मतदान शुरू हुआ। इस चरण में लगभग 3.75 करोड़ मतदाता पंजीकृत हैं, जो इस मतदान-मुहिम की बड़ी पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। यह सिर्फ संख्या नहीं इस चुनाव में प्रमुख चेहरे, गठबन्धन, राजनीतिक संघर्ष और विचारों की लड़ाई शामिल मतदान आरंभ के तुरंत बाद ही रुझान नजर आने लगे। सुबह 9 बजे तक टर्न-आउट लगभग 13.13% दर्ज हुआ। दो घंटे बाद, यानी 11 बजे तक यह बढ़कर लगभग 27.65% हो गया। इन आंकड़ों का अर्थ यह है कि शुरुआत में धीमी शुरुआत के बाद मतदाता भागीदारी में गति आई है लेकिन साथ ही यह संकेत भी मिलता है कि उत्साह या जन-लहर जितनी व्यापक अपेक्षित थी, वो अभी तक नहीं दिखी है। इस पहले चरण में कई बड़े नाम खेमा में हैं जैसे कि Tejashwi Yadav, Samrat Choudhary, Vijay Kumar Sinha और अन्य। यह दलों, गठबन्धनों और राजनीतिक गतिशीलता का मुकाबला है न कि सिर्फ सीट-सीट का। राजनीति की व्यस्त पटकथा में वोटर-भागीदारी एक अहम रोल निभा रही है जो तय करेगी कि किसका गठबंधन आगे बनेगा, किसकी रणनीति सफल होगी, और किसका पाठ प्रभावित , यदि अब तक लगभग 27.65 % वोटिंग हुई है, तो सवाल यह उठता है क्या ये संख्या शाम तक 50 % या उससे ऊपर जा पाएगी? पिछले चुनावों में यह दर लगभग 57 % रही है। इसका मतलब है संख्या में बढ़ोतरी हुई है, धीमी शुरुआत के बाद गति आई है। चुनौती अभी व्यापक जन-भागीदारी का स्तर नहीं बन पाया उस ‘समर्थ लहर’ का संकेत नहीं है जिसे राजनीतिक दल चाहते होंगे। संभावना यदि शाम-अँधेरा तक यह प्रतिशत बेहतर होता है, तो यह संकेत बनेगा कि राज्य-स्तर पर बदलाव की दिशा में कदम उठे हैं। शाम तक जब अंतिम टर्न-आउट सामने आएगा, तब यह स्पष्ट होगा कि यह सिर्फ एक शुरुआत रही या वास्तव में जनता ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया है। इसलिए आज का दिन “बोथ प्रारंभ” और “देखा जाना बाकी” की स्थिति में है।
न्यूयॉर्क सिटी में इस बार इतिहास लिखा गया है। 33 वर्षीय जोहरान ममदानी ने मेयर चुनाव जीतकर न केवल सदी में पहली बार दक्षिण एशियाई और मुस्लिम मूल के नेता के रूप में कमान संभाली, बल्कि यह भी दिखाया कि जमीनी स्तर से चलने वाला आंदोलन जब विचार और संवेदना से जुड़ता है, तो सत्ता के समीकरण बदल जाते हैं। ममदानी, जो उगांडा में जन्मे और क्वीन्स की गलियों से उभरे, ने अपनी पूरी कैंपेन “किफ़ायत और बराबरी” के मुद्दों पर केंद्रित रखी। सस्ती बस सेवा, यूनिवर्सल चाइल्डकेयर और किरायेदारों के हक़ जैसे लोकल मसले ही उनकी असली ताकत बने। यही वजह रही कि उन्होंने एंड्रू कूमो जैसे स्थापित नाम को करीब 8 प्वाइंट्स के अंतर से हराकर न्यूयॉर्क में एक नई राजनीतिक धारा की नींव रखी।
अपनी जीत के बाद ममदानी ने जो भाषण दिया, उसने इस राजनीतिक जीत को वैचारिक ऊँचाई दे दी। उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रसिद्ध भाषण “Tryst with Destiny” का उल्लेख करते हुए कहा कि “कभी-कभी इतिहास ऐसे मोड़ पर आता है, जब एक नई दिशा तय होती है।” यह बयान प्रतीकात्मक था जैसे उन्होंने अमेरिका में एक ऐसी राजनीति की घोषणा की जो समानता, सामाजिक न्याय और जनभागीदारी पर टिकी हो। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उन्होंने सीधे कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन उनकी विचारधारा का अप्रत्यक्ष विरोध स्पष्ट रूप से महसूस किया गया। ट्रंप प्रशासन की नीतियों पर तंज़ कसते हुए उन्होंने कहा कि “राजनीति अब ब्रांड्स नहीं, लोगों की होनी चाहिए।” ममदानी की यह जीत सिर्फ एक चुनावी परिणाम नहीं, बल्कि इस बात का संकेत है कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली शहर में भी आवाज़ अब आम लोगों की सुनी जा रही है। सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।
बिहार के पहले चरण की वोटिंग ने पूरे देश का ध्यान खींच लिया है। दोपहर 3 बजे तक 53.7% मतदान दर्ज हो चुका है और यह आंकड़ा अभी बढ़ ही रहा है। 18 जिलों की 121 सीटों पर वोट पड़े हैं और दिलचस्प ये कि इस बार महिलाओं ने वोटिंग का मोर्चा संभाल लिया है। कई जगहों पर महिलाओं की लाइनें पुरुषों से लंबी दिखीं। गोपालगंज और लखीसराय जैसे जिलों में तो मतदान रिकॉर्ड तोड़ रफ्तार से हो रहा है।
लेकिन बिहार का चुनाव सिर्फ वोटिंग नहीं, राजनीतिक मंथन बन चुका है। क्योंकि इससे पहले जो हुआ, उसने इस लोकतंत्र की नब्ज हिला दी 65 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए, और विपक्ष ने इसे “लोकतंत्र की डिलीट पॉलिसी” कह दिया। चुनाव आयोग ने कहा कि यह स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) का हिस्सा है, जिसमें 21.53 लाख नए वोटर जोड़े गए और 3.66 लाख नाम काटे गए। नतीजा यह कि बिहार में अब कुल 7.42 करोड़ वोटर हैं पर सवाल वही: “क्या ये सिर्फ डेटा अपडेट था या सियासी सर्जरी? ड्राफ्ट चरण में बड़े पैमाने पर डिलीशन की खबरें आईं फाइनल रोल में 7.42 करोड़ मतदाता हैं; सुप्रीम कोर्ट ने 65 लाख डिलीशंस की डिटेल्स पब्लिश करने को कहा।इस बार के चुनाव में तकनीक और सुविधा भी खबर में है। आयोग ने ‘मोबाइल डिपॉज़िट सुविधा’ शुरू की है ताकि वोटिंग केंद्रों पर भीड़ घटे और प्रक्रिया स्मूद हो। पर जनता का मूड साफ है “सुविधा नहीं, सुधार चाहिए।फोन बूथ के अंदर ले जाना मना है; बाहर काउंटर पर जमा करके वोट डालें। अब आते हैं सियासत की असल कहानी पर कौन क्या लेकर मैदान में है। तेजस्वी यादव बेरोज़गारी और जातीय असमानता पर हमला बोल रहे हैं, वहीं BJP–JDU गठबंधन “विकास और स्थिरता” के बात को आगे कर रहे है इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ हफ्ते पहले 7.5 मिलियन महिलाओं के खातों में ₹10,000 ट्रांसफर कर दिए इसे NDA का “महिला कार्ड” कहा जा रहा है। उधर, वाम दलों ने 35 सीटों की मांग करते हुए तेजस्वी यादव को CM उम्मीदवार घोषित करने का दबाव बढ़ा दिया है। यानी महागठबंधन के भीतर भी समीकरण तले से ऊपर तक खदबदा रहे हैं। उम्मीदवारों की प्रोफाइल देखो तो बिहार की पुरानी सियासी बीमारी अब भी जस की तस है 32% उम्मीदवार आपराधिक रिकॉर्ड वाले और 562 उम्मीदवार करोड़पति। सबसे अमीर उम्मीदवार की संपत्ति ₹373 करोड़ तक पहुंच गई है। लोकतंत्र फिर वही करिश्मा दिखा रहा है गरीब जनता, अमीर उम्मीदवार। इन सबके बीच बिहार की जनता इस बार कुछ बदली-बदली लग रही है। गांव-कस्बों में लोग अब जात नहीं, काम की बात कर रहे हैं। शहरों में पहली बार वोट डाल रहे युवाओं का कहना है “अब कोई भी मुख्यमंत्री बने, बस बिहार न भागे।” सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।