अब तक आपने बीजेपी में सिर्फ पुरुष अध्यक्षों के नाम सुने होंगे … लेकिन अब जो ख़बरें सियासी गलियारों से छनकर बाहर आ रही हैं, वो सीधे दिल पर लगती हैं। अंदरखाने कुछ ऐसा खदबदा रहा है जो शायद पार्टी के इतिहास में कभी नहीं हुआ। भारतीय जनता पार्टी को जल्द ही उसका पहला महिला अध्यक्ष मिल सकता है। और ये बात अब फुसफुसाहट नहीं रही, बल्कि कई बड़े नामचीन नेताओं के दफ्तरों में गर्म चाय के साथ पक्की गॉसिप बन चुकी है।
दिल्ली के सत्ता गलियारों में अचानक हलचल बढ़ गई है। तीन महिलाओं का नाम अध्यक्ष पद के लिए काफी शोर में है । पार्टी मुख्यालय में हाल ही में कई अहम मुलाकातें हुईं, जिनमें एक नाम सबसे ज़्यादा गूंजा – निर्मला सीतारमण। देश की वित्त मंत्री, जिनका काम बोलता है और जिनकी चुप्पी सबसे बड़ा बयान होती है। उन्होंने जेपी नड्डा और संगठन महामंत्री बीएल संतोष से जो मुलाकात की, वो रूटीन मीटिंग नहीं थी। अंदरूनी सूत्र मान रहे हैं कि निर्मला का नाम सबसे आगे चल रहा है, और अगर ऐसा होता है तो ये एक नहीं कई राजनीतिक समीकरणों को साधने वाली चाल होगी।
निर्मला सीतारमण की नियुक्ति से बीजेपी को दक्षिण भारत में संगठनात्मक मज़बूती मिलेगी, जो अब तक पार्टी की सबसे कमजोर कड़ी मानी जाती रही है। इसके साथ ही मोदी सरकार के महिला सशक्तिकरण अभियान को असल 'लीडरशिप लेवल' पर बल मिलेगा। निर्मला न केवल भारत की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री रही हैं, बल्कि उन्होंने रक्षा मंत्रालय जैसे संवेदनशील विभाग को भी बड़ी सख्ती और निपुणता से संभाला है। उनकी छवि साफ-सुथरी है और पार्टी में अंदर तक जमी हुई हैं। यानी कोई दिखावटी महिला चेहरा नहीं, बल्कि दमदार निर्णय लेने वाली एक फुल-पॉवर नेता।
लेकिन खेल में एक और नाम दमदारी से उभर रहा है — डी. पुरंदेश्वरी। आंध्र प्रदेश की राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाली ये नेता, पूर्व राष्ट्रपति वेंकट रमण की बेटी हैं और खुद भी एक अनुभवी सांसद रही हैं। वो आंध्र में बीजेपी की प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं और विभिन्न देशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। सुषमा स्वराज के बाद कोई महिला नेता अगर इंटरनेशनल डिप्लोमेसी और भाषण में फिट बैठती हैं तो वो पुरंदेश्वरी हैं। उनकी बहुभाषी क्षमता (तेलुगु, तमिल, हिंदी, इंग्लिश, फ्रेंच) और वैचारिक स्पष्टता उन्हें इस रेस में मजबूत उम्मीदवार बनाती है।
और अब बात करते हैं तीसरे नाम की – वनथी श्रीनिवासन। एक जमीनी नेता, जो वकील से राजनेता बनीं और आज तमिलनाडु बीजेपी की एकमात्र विधायक हैं। वनथी का राजनीतिक सफर किसी मोटिवेशनल बुक से कम नहीं है। उन्होंने पार्टी में हर स्तर पर काम किया – राज्य सचिव, महासचिव, उपाध्यक्ष, महिला मोर्चा अध्यक्ष और फिर राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बनीं। ये सब तब हुआ जब पार्टी तमिलनाडु जैसे राज्य में अपना नाम भर दर्ज कराने में लगी थी। उनका अध्यक्ष बनना न सिर्फ एक महिला नेतृत्व का उदाहरण होगा, बल्कि तमिलनाडु और दक्षिण भारत में बीजेपी के विस्तार का संकेत भी।
अब सवाल ये नहीं है कि इनमें से कौन अध्यक्ष बनेगा, असली सवाल ये है कि क्या बीजेपी अपने अब तक के इतिहास को पीछे छोड़कर एक नई राजनीतिक परंपरा की शुरुआत करने जा रही है? क्या बीजेपी 2029 की तैयारी महिला अध्यक्ष के नेतृत्व में करेगी? और क्या ये एक सीधा जवाब होगा कांग्रेस की प्रियंका गांधी नीति, ममता की महिला राजनीति और केजरीवाल की फ्री स्कीम फॉर वुमेन कैम्पेन को?
अगर बीजेपी ये कदम उठाती है, तो यह सिर्फ एक नियुक्ति नहीं होगी, बल्कि पूरे राजनीतिक विमर्श का नक्शा बदल देगा। मोदी-शाह की जोड़ी को हमेशा से मास्टरस्ट्रोक्स के लिए जाना गया है — नोटबंदी, अनुच्छेद 370, राम मंदिर, G20… और अब शायद बारी है एक महिला अध्यक्ष के उस मास्टरस्ट्रोक की, जो पार्टी को एक नई दिशा, नई पहचान और नया इमोशनल कनेक्शन देगा।
भारत के मार्केट रेगुलेटर SEBI ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने सिर्फ एक विदेशी फर्म को नहीं, बल्कि पूरी ग्लोबल फाइनेंशियल कम्युनिटी को झटका दे दिया है। अमेरिका की मशहूर हाई-फ्रिक्वेंसी ट्रेडिंग फर्म Jane Street को भारतीय शेयर बाजार से बैन कर दिया गया है। कारण? नियमों की अनदेखी, मार्केट के साथ हेरफेर और लगभग 4843 करोड़ रुपये की अवैध कमाई। SEBI के अनुसार, Jane Street ने भारत में unfair trade practices के जरिए ये कमाई की, जो कि पूरी तरह non-compliant और regulatory violations से भरी हुई थी। अब कंपनी पर न सिर्फ बैन लगाया गया है, बल्कि उसकी इस कमाई को भी जब्त करने का ऑर्डर पास किया गया है।
SEBI के पब्लिक नोटिस में साफ कहा गया है कि Jane Street ने भारतीय मार्केट में manipulative trades और irregular participation के जरिए गैरकानूनी रूप से मुनाफा कमाया। इसके बाद रेगुलेटर ने तगड़ा एक्शन लेते हुए ये आदेश दिया:
Jane Street अब भारतीय मार्केट में किसी भी तरह की खरीद-बिक्री या ट्रेडिंग एक्टिविटी में शामिल नहीं हो सकेगी — न डायरेक्ट, न इनडायरेक्ट। कंपनी की कमाई के 4843.57 करोड़ रुपये को impound किया जा रहा है। भारत के बैंकों को निर्देश दिया गया है कि Jane Street अपने अकाउंट से बिना SEBI की परमिशन के एक भी रुपये की निकासी नहीं कर सकती।
ये पहली बार नहीं है जब SEBI ने किसी फॉरेन फर्म पर कार्रवाई की हो, लेकिन इस बार स्केल बड़ा है और इशारा साफ है — no matter how big you are, Indian markets will not tolerate violations. Jane Street कोई छोटी-मोटी फर्म नहीं है। ये दुनिया की सबसे बड़ी proprietary trading firms में से एक है, जो ग्लोबल लेवल पर equities, bonds, ETFs और derivatives जैसे सेगमेंट्स में एक्टिव रहती है। Bloomberg की रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में इस फर्म ने अकेले भारत से 2.3 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का ट्रेड वॉल्यूम जनरेट किया। लेकिन इस गड़बड़ी के बाद, अब इसका भारत में सफर यहीं थमता नज़र आ रहा है।
इस पूरे मामले को एक isolated घटना की तरह देखना भूल होगी। SEBI का यह एक्शन बताता है कि भारत अब compliance-driven market बन चुका है। चाहे वो विदेशी निवेशक हो या घरेलू ट्रेडर, अब "aggressive strategy" की जगह regulatory alignment ज़रूरी है। यह एक साफ संकेत है उन सभी ग्लोबल फर्मों के लिए, जो algorithmic trading, high-frequency models और loophole exploitation जैसे तरीकों से मुनाफा कमाने की सोच रही हैं — कि अगर ट्रांसपेरेंसी नहीं है, तो इंडिया आपके लिए खुला मार्केट नहीं है।
विदेशी फर्म के खिलाफ 4800+ करोड़ की जब्ती, वो भी बिना किसी अदालत के फैसले का इंतज़ार किए — ये SEBI की executive power और जवाबदेही को दिखाता है। यह कदम भारत को एक serious investment destination की तरह पेश करता है, जो सिर्फ पैसे को नहीं, नियमों को भी वैल्यू देता है।
आने वाले समय में SEBI के इस एक्शन से compliance tech, risk audits और automated surveillance tools का रोल और बढ़ेगा। SEBI का ये फैसला साफ तौर पर एक regulatory milestone है। ये न सिर्फ मार्केट की सफाई का काम करेगा, बल्कि उन छोटे भारतीय रिटेल इन्वेस्टर्स को भी भरोसा देगा जो आज के डिजिटल दौर में पहली बार स्टॉक्स में पैसा लगा रहे हैं।
बॉलीवुड के नवाब कहे जाने वाले सैफ अली खान इन दिनों किसी फिल्म को लेकर नहीं, बल्कि अपनी पुश्तैनी विरासत को लेकर सुर्खियों में हैं। मामला सिर्फ एक रॉयल पैलेस या कुछ जमीनों का नहीं, बल्कि कुल 15,000 करोड़ रुपये की नवाबी संपत्ति का है और अब इस पर से सैफ का दावा खतरे में पड़ता नजर आ रहा है। सैफ अली खान को जबलपुर हाईकोर्ट से बड़ा झटका मिला है। हाईकोर्ट ने भोपाल ट्रायल कोर्ट के 25 साल पुराने फैसले को रद्द कर दिया है और मामले की दोबारा सुनवाई का आदेश दिया है। यही नहीं, कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि एक साल के अंदर इस मामले की पूरी सुनवाई कर इसे निपटाया जाए। इस फैसले के बाद सवाल उठने लगे हैं क्या सैफ अली खान इस संपत्ति से हाथ धो बैठेंगे? क्या नवाब पटौदी की तीसरी पीढ़ी इस रॉयल विरासत को अब खो देगी?
यह संपत्ति विवाद भोपाल के अंतिम नवाब हाफिज सर हमीदुल्लाह खान की पैतृक जमीन और महलों को लेकर है। नवाब साहब ने दो विवाह किए थे। उनकी मृत्यु के बाद भारत सरकार ने उनकी बड़ी बेगम की बेटी साजिदा सुल्तान को 1961 में संपत्ति का कानूनी वारिस घोषित किया। यही साजिदा सुल्तान सैफ अली खान की परदादी थीं। उनकी शादी पटौदी रियासत के नवाब इफ्तिखार अली खान से हुई थी। उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी और फिर उनके बेटे सैफ अली खान तक यह संपत्ति उत्तराधिकार के जरिए आई। लेकिन कहानी यहीं पर नहीं रुकी।
साजिदा को उत्तराधिकारी घोषित किए जाने के बाद अन्य वारिसों ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। उन्होंने तर्क दिया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत संपत्ति का न्यायसंगत बंटवारा होना चाहिए था। इसके चलते भोपाल ट्रायल कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई और करीब 25 साल पहले फैसला साजिदा के हक़ में आया। लेकिन असंतुष्ट अन्य वारिसों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, और अब जबलपुर हाईकोर्ट ने पुराने फैसले को अमान्य ठहराते हुए मामले की दोबारा सुनवाई का आदेश दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस नवाबी संपत्ति की अनुमानित कीमत 15,000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा बताई जाती है। इसमें शामिल हैं: भोपाल का मशहूर अहमदाबाद पैलेस फ्लैग स्टाफ हाउस, जो एक ऐतिहासिक इमारत है और भोपाल व आसपास के इलाकों में हज़ारों करोड़ की ज़मीनें । यह संपत्ति न सिर्फ आर्थिक रूप से, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बेहद मूल्यवान है। सैफ अली खान के लिए यह कानूनी लड़ाई कोई नई नहीं है। वह लंबे समय से इस संपत्ति को लेकर कोर्ट में मुकदमा लड़ते आ रहे हैं। लेकिन अब जब हाईकोर्ट ने पुराने फैसले को पलट दिया है, तो मामला और भी पेचीदा हो गया है।
मुंबई के मीरा रोड इलाके में हाल ही में जो घटना घटी, उसने एक बार फिर language rights और regional politics के सवाल को ज़ोरदार ढंग से सामने ला दिया है। आरोप है कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कुछ कार्यकर्ताओं ने एक मिठाई दुकानदार को केवल इसलिए निशाना बनाया क्योंकि वह Marathi भाषा नहीं बोल सका। कार्यकर्ताओं ने उससे ज़बरदस्ती Marathi में बात करने को कहा और जब उसने हिंदी में जवाब दिया, तो उसे थप्पड़ मारे गए और डराया-धमकाया गया। इस घटना के बाद से इलाके में तनाव और दहशत का माहौल है, और सोशल मीडिया से लेकर स्थानीय गलियों तक एक ही सवाल गूंज रहा है — क्या अब भाषा को भी लाठी से मनवाया जाएगा? क्या अब किसी राज्य की official language को लोगों पर जबरन थोपा जाएगा?
इस पूरे घटनाक्रम ने एक गंभीर बहस को जन्म दे दिया है कि क्या भारत जैसे multilingual देश में कोई एक भाषा किसी दूसरी भाषा की अभिव्यक्ति को दबा सकती है? क्या linguistic freedom को अब राजनीतिक ताकतें अपने एजेंडे के तहत नियंत्रित करेंगी? यह सच है कि Marathi महाराष्ट्र की आत्मा है, उसकी पहचान है — लेकिन जब उसी भाषा को हिंसा और ज़बरदस्ती का माध्यम बना दिया जाए, तो यह न केवल भाषा की गरिमा का हनन है, बल्कि संविधान के मूल विचारों का भी अपमान है।
Marathi भाषा भारत की सबसे पुरानी और समृद्ध भाषाओं में गिनी जाती है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र में बोली जाती है और 1966 से इसे राज्य की official language का दर्जा प्राप्त है। भाषावैज्ञानिक दृष्टि से यह Indo-European language family की Indo-Aryan branch से संबंधित है। इसकी जड़ें वैदिक Sanskrit में मिलती हैं, और यह Prakrit तथा Apabhramsha भाषाओं के माध्यम से विकसित हुई। Marathi का सबसे पुराना रूप Maharashtri Prakrit में दिखाई देता है, जो उस समय आम लोगों की बोली थी। इसके बाद इसका स्वरूप Jain Apabhramsha में विकसित हुआ और वहीं से Ancient Marathi (1000–1300 AD) का उदय हुआ।
1300 से 1800 ईस्वी के बीच का दौर Middle Marathi का माना जाता है, जिसमें संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव और एकनाथ जैसे महान संतों ने Marathi भाषा को धार्मिक और सामाजिक चेतना से जोड़ा। उन्होंने इसे सिर्फ एक बोली नहीं, बल्कि एक विचारधारा का माध्यम बना दिया। इसके बाद Modern Marathi (1800 AD से वर्तमान तक) के कालखंड में यह भाषा एक पूर्ण विकसित रूप में उभरी, जिसमें अपनी स्वतंत्र grammar, syntax, और समृद्ध literary tradition है। आज Marathi न केवल साहित्य, शिक्षा और पत्रकारिता का आधार है, बल्कि यह रंगमंच और सिनेमा के ज़रिए महाराष्ट्र की सांस्कृतिक आत्मा को भी प्रकट करती है।
लेकिन जब इसी महान भाषा को राजनीतिक दबाव और हिंसा के ज़रिए लोगों पर थोपा जाता है, तो वह linguistic pride नहीं बल्कि cultural imposition बन जाती है। कोई भी भाषा प्रेम और संवाद से पनपती है, न कि डर और ज़बरदस्ती से। मीरा रोड की घटना यह बताती है कि यदि भाषा को जबरन मनवाने का ट्रेंड जारी रहा, तो यह समाज में linguistic intolerance को जन्म देगा, जो न केवल लोगों के बीच दरार पैदा करेगा, बल्कि महाराष्ट्र जैसे विविधतापूर्ण राज्य की आत्मा को भी चोट पहुंचाएगा।
इसलिए ज़रूरत है कि Marathi सहित हर भारतीय भाषा को उसका सम्मान दिया जाए — लेकिन वह सम्मान शिक्षण, प्रोत्साहन और संवाद से आए, न कि थप्पड़ों और धमकियों से।