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Breaking News 5 September 2025

1.)  The Mysterious Philosophy Of The Teacher

आज टीचर्स डे है। हम सब वही बातें दोहराते हैं गुरु बिना जीवन अधूरा है, गुरु ही भगवान है। पर अगर थोड़ा गहराई से देखें, तो शिक्षा की दुनिया उतनी सीधी नहीं है जितनी किताब में लिखी पंक्तियाँ। इसमें अंक हैं, ग्रह हैं, अंधविश्वास हैं, और ऐसे रहस्य हैं जिनका जवाब आज तक किसी के पास नहीं। सवाल यह भी है कि गुरु आखिर कौन है? वो जो हमें क्लासरूम में पढ़ाता है या वो जो ब्रह्मांड की भाषा समझाता है?

भारत में हमेशा से सात का जादू रहा है। सात रंग, सात सुर, सात जन्म, सात फेरों का वचन। कहते हैं कि शिक्षा के भी सात स्तर होते हैं शुरुआत अक्षर ज्ञान से और अंत आत्मज्ञान तक। और गुरु वही है जो इन सात सीढ़ियों पर आपको एक-एक कदम ऊपर चढ़ाए। लेकिन अगर आप गौर से देखेंगे तो यही सात कहीं न कहीं जीवन के चक्र में भी छिपे हैं। क्या ये सिर्फ संयोग है या फिर ब्रह्मांड की कोई अदृश्य योजना? गुरु और ग्रहों का रिश्ता भी उतना ही दिलचस्प है। बृहस्पति यानी गुरु का ग्रह, जिसे अंकज्योतिष में तीन माना जाता है। कहा जाता है कि जिन बच्चों के जीवन में तीन का प्रभाव होता है, वे अच्छे गुरु की छाया में फलते-फूलते हैं। पर यहाँ भी रहस्य यही है कि क्या सचमुच ग्रह हमारे टीचर और स्टूडेंट के रिश्ते तय करते हैं, या ये सब सिर्फ दिमाग का खेल है? सोचिए, अगर शनि की दशा में बच्चा ज़्यादा डाँट खाता है तो क्या ये गुरु की सख़्ती है या ग्रह की छाया?
अंधविश्वास भी इस पूरी कहानी का हिस्सा है। गाँवों में आज भी यह माना जाता है कि अगर किताब या कलम पैरों से छू जाए तो ज्ञान रूठ जाता है। क्या ज्ञान सचमुच रूठता है, या यह बस एक प्रतीक है कि हमें पढ़ाई का सम्मान करना चाहिए? एकलव्य की कहानी में भी यही उलझन है। द्रोणाचार्य ने उससे अंगूठा क्यों माँगा? क्या वह गुरु-भक्ति की परीक्षा थी या एक संदेश कि ज्ञान पर नियंत्रण रखने वाले ही सत्ता के असली खिलाड़ी हैं? इतिहासकार अब भी बहस करते हैं, पर जवाब किसी के पास नहीं। और फिर आते हैं शिक्षा के वो रहस्य जो कभी सुलझे ही नहीं। नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय क्यों अचानक खत्म हो गए? क्या वे सिर्फ आक्रमणकारियों के शिकार बने, या फिर वहाँ की शिक्षा-ऊर्जा खुद ही कमजोर पड़ गई थी? क्या ये संस्थान खुद अपने गुरुओं और शिष्यों की टूटन से बिखर गए? सोचिए, अगर इतने बड़े ज्ञान केंद्र पल भर में राख हो सकते हैं, तो आज के हमारे स्कूल-कॉलेज कितने सुरक्षित हैं? चाणक्य का नाम हम सब जानते हैं। उनके "अर्थशास्त्र" की बातें हम सुनते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि उनकी असली शिक्षा पद्धति कहीं दर्ज ही नहीं है? क्यों? क्या वह इतना गुप्त था कि उसे छिपा दिया गया, या फिर वह पद्धति जानबूझकर मिटा दी गई ताकि सिर्फ सत्ता के खास लोग ही उसका इस्तेमाल कर सकें? इतिहास का यह रहस्य अब भी अनसुलझा है। फिलॉसफी कहती है कि गुरु सिर्फ वो नहीं जो किताबें पढ़ाए। गुरु वो भी है जो जीवन के रहस्य समझाए। कभी-कभी वह गुरु किताब में छिपी लाइन बन जाता है, कभी माँ की फटकार, कभी दोस्त की सलाह, और कभी किसी अजनबी की कही गई एक लाइन। सवाल ये है कि क्या हम सिर्फ क्लासरूम वाले गुरु को पहचानते हैं या जीवन में बिखरे हुए इन अदृश्य गुरुओं को भी मानते हैं? तो टीचर्स डे पर यह याद रखना ज़रूरी है कि शिक्षा सिर्फ पाठ्यक्रम नहीं है। यह अंक का रहस्य है, यह ग्रहों की चाल है, यह अंधविश्वास की परंपरा है और यह इतिहास के रहस्य हैं। गुरु ही वो पुल है जो हमें साधारण से असाधारण तक ले जाता है। लेकिन असली ट्विस्ट यही है कि यह पुल हमेशा साफ़ नहीं दिखता। कभी यह पुल किताब बन जाता है, कभी कहानी, कभी डाँट, और कभी रहस्य। ऐसे ही यूनिक खबरों को देखने के लिए सब्सक्राइब करे ग्रेट पोस्ट न्यूज़।

 

2. Politics on Fire !  PM Modi vs Priyanka Gandhi

बिहार की एक रैली में हुआ एक बयान अब पूरे देश की सियासत का मुद्दा बन चुका है। ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी दिवंगत मां पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। वीडियो वायरल हुआ और देखते ही देखते राजनीतिक गलियारे से लेकर सोशल मीडिया तक हलचल मच गई। मामला इतना संवेदनशील था कि पीएम मोदी खुद सामने आए और भावुक अंदाज़ में बोले। उधर कांग्रेस और प्रियंका गांधी ने इसे “इमोशनल ड्रामा” करार देते हुए प्रधानमंत्री पर पलटवार किया। यानी खेल अब निजी टिप्पणी से निकलकर राजनीतिक दांवपेंच में बदल चुका है। पीएम मोदी ने इस विवाद पर पहली बार चुप्पी तोड़ते हुए कहा “मेरी मां का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। वो अब इस दुनिया में भी नहीं हैं, फिर भी उन्हें गालियां दी जा रही हैं। ये सिर्फ मेरी मां का अपमान नहीं है, बल्कि देश की हर मां-बहन-बेटी का अपमान है।” मोदी जी का लहजा भावुक था और संदेश सीधा व्यक्तिगत जीवन को राजनीति में घसीटना किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं। उनके बयान के बाद बीजेपी ने विपक्ष पर जोरदार हमला बोला और कहा कि ये लोकतंत्र में मर्यादा की सभी हदें पार करने जैसा है। अब आते हैं कांग्रेस की प्रतिक्रिया पर। प्रियंका गांधी ने अपने भाषण में इस पूरे विवाद को लेकर सीधे प्रधानमंत्री पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री हर बार भावनात्मक बातें करके जनता का ध्यान असली मुद्दों से हटाना चाहते हैं। देश की महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, बेरोज़गारी चरम पर है, महंगाई आम आदमी की कमर तोड़ रही है। इन पर बात होनी चाहिए, न कि मां पर गालियों की राजनीति पर।” कांग्रेस का कहना था कि पीएम इस विवाद को अपनी ढाल बना रहे हैं और जनता से जुड़े सवालों को दरकिनार कर रहे हैं। इस पूरे मामले पर जनता भी बंटी हुई दिखी। पहला तबका पीएम मोदी के साथ खड़ा दिखा। लोगों ने कहा कि मां पर टिप्पणी किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं की जा सकती, ये राजनीति नहीं इंसानियत का मामला है। दूसरा तबका कांग्रेस की लाइन पर था। उनका कहना था कि हर बार भावनात्मक मुद्दे उठाकर असली समस्याओं से ध्यान हटाया जाता है। “मां पर गाली देना गलत है, लेकिन बेरोज़गारी और महंगाई पर भी तो जवाब दो।” सोशल मीडिया पर यही बहस चलती रही—#RespectMothers बनाम #TalkAboutIssues आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी मामले पर सफाई दी। उन्होंने व्यक्तिगत हमलों की निंदा की और कहा कि राजनीति में मर्यादा बनी रहनी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी जोड़ा कि “देश में असली मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए, निजी जीवन को इसमें नहीं घसीटना चाहिए।” तो अब सवाल वही पुराना है क्या राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि नेता एक-दूसरे के परिवारों तक पहुंच जाएं? मां-बहन को गालियों में घसीटना क्या किसी भी बहस का हिस्सा होना चाहिए? और क्या वाकई हर विवाद को भावनात्मक रंग देकर असली मुद्दों से जनता का ध्यान हटाया जा सकता है? ऐसे ही राजनीति के लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़ ।