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Breaking News 5 June 2025

1.)  RCB की जीत के जश्न में मौत का साया

चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर बुधवार की दोपहर क्रिकेट इतिहास की सबसे काली तस्वीर बनकर उभरी। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) की 18 साल बाद मिली पहली ट्रॉफी का जश्न मनाने जुटे लाखों फैंस के बीच जोश ऐसा उफन पड़ा कि वो जश्न मौत की भीड़ में बदल गया। विजय जुलूस के दौरान भीड़ नियंत्रण की असफलता के चलते भगदड़ मची, जिसमें 11 निर्दोष लोगों की जान चली गई और 30 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। यह घटना न केवल राज्य प्रशासन की भारी चूक का आईना है, बल्कि पूरे देश के लिए एक कड़ा संदेश भी है कि खेल की जीत के जश्न के पीछे सुरक्षा और नियोजन का कर्तव्य कितना महत्वपूर्ण होता है। चिन्नास्वामी स्टेडियम की आधिकारिक क्षमता लगभग 35,000 दर्शकों की है। लेकिन विजय जश्न के लिए बुलाई गई परेड में अनुमानित तीन लाख से ज्यादा लोग जमा हो गए, जो स्टेडियम और उसके आसपास के क्षेत्र के लिए एक भारी बोझ था। यह जनसैलाब अचानक बढ़ी और नियंत्रण से बाहर हो गई। कर्नाटक सरकार द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम को एक भव्य आयोजन माना गया था, जिसमें खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाना था। लेकिन आयोजन की तैयारी और सुरक्षा प्रबंध इतने व्यापक जनसमूह को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं थे।

भगदड़ के कारण और प्रशासनिक चूक

विजय जुलूस के दौरान बड़ी संख्या में लोग स्टेडियम के गेटों पर इकट्ठा हो गए। पुलिस और सुरक्षा कर्मियों की संख्या जश्न के इस पैमाने को संभालने के लिए अपर्याप्त साबित हुई। एक चश्मदीद ने बताया कि 600 से 700 लोगों ने मिलकर गेट तोड़ने की कोशिश की, जिससे भगदड़ भड़की। भीड़ की बढ़ती घबराहट और भगदड़ की वजह से कई लोग नीचे गिर गए और उनके ऊपर भीड़ के अन्य सदस्य आ गए, जिससे कई लोग दब कर घायल हो गए। कुछ ने दम तोड़ दिया, जबकि कुछ को समय पर अस्पताल पहुंचा कर बचाया जा सका। पुलिस ने लोगों से बार-बार अपील की कि वे तितर-बितर हों क्योंकि स्टेडियम की क्षमता पूरी हो चुकी थी। लेकिन उत्साह और खुशी के नशे में चूर फैंस ने इन अपीलों को नजरअंदाज कर दिया। भगदड़ में जिन 11 लोगों की मौत हुई, उनमें बच्चे, युवा और परिवार के मुखिया शामिल हैं। 13 साल की दिव्यांशी, 19 साल की साहना, 20 वर्षीय भौमिक और 21 वर्षीय श्रवण जैसे नाम हर परिवार के लिए एक कहानी हैं — सपने जो अधूरे रह गए। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस त्रासदी पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए मृतकों के परिवारों को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने और घायलों का मुफ्त इलाज सुनिश्चित करने का ऐलान किया। उन्होंने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश भी जारी किए हैं।

राजनीतिक तूफान: प्रशासन पर कटाक्ष

इस दुर्घटना ने राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप को जन्म दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमित मालवीय ने राज्य सरकार की व्यवस्था को पूरी तरह विफल करार देते हुए कहा कि यह दुर्घटना लापरवाही का परिणाम है, जिसे टाला जा सकता था।
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "बुनियादी प्रशासनिक दूरदर्शिता की कमी और भीड़ नियंत्रण में विफलता ने इस हादसे को जन्म दिया। जवाबदेही तय होनी चाहिए। यह संयोग नहीं, बल्कि जानलेवा लापरवाही है।" बीसीसीआई सचिव देवजीत सैकिया ने इस दुखद घटना पर गहरी संवेदना व्यक्त की और कहा, "यह लोकप्रियता का नकारात्मक पहलू है। जब लोग अपने क्रिकेटरों के लिए पागल हो जाते हैं, तो आयोजकों को बेहतर योजना बनानी होती है।" आईपीएल चेयरमैन अरुण धूमल ने कहा कि जैसे ही उन्हें घटना की जानकारी मिली, उन्होंने आयोजन समिति से संपर्क कर समारोह को तुरंत खत्म करने का आदेश दिया। उन्होंने यह भी बताया कि स्टेडियम के अंदर बैठे अधिकारी इस हादसे के बारे में अनजान थे।

खेल और जश्न की खुशी में छिपा मानवीय संकट

यह त्रासदी केवल एक घटना नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक असावधानी की परिणति है। खेल की खुशी जब ऐसी बड़ी भीड़ में तब्दील हो, तो सुरक्षा, व्यवस्थापन और इमरजेंसी प्रतिक्रिया की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह भी याद रखने की बात है कि यह भगदड़ न किसी धार्मिक जुलूस में हुई, न किसी राजनीतिक रैली में, बल्कि एक खेल टीम की जीत के जश्न के दौरान। यह दर्शाता है कि जब उत्साह सीमा से बाहर हो जाता है, तो कौन-कौन सी जिंदगी प्रभावित हो सकती हैं।आरसीबी की जीत एक ऐतिहासिक पल थी, लेकिन इसके जश्न ने एक कड़वी सच्चाई भी उजागर की — हमारी व्यवस्थाएं बड़े पैमाने पर उत्सव को संभालने में अभी भी कमजोर हैं।
यह दुखद घटना प्रशासन, आयोजकों और हम सभी के लिए एक सीख है कि उत्सव मनाना खूबसूरत है, लेकिन सुरक्षा के बिना वह जश्न अधूरा और खतरनाक साबित होता है। अब वक्त है कि कर्नाटक सरकार और संबंधित प्राधिकरण पूरी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों को समझें, दोषियों को चिन्हित करें और ऐसी कोई भी चूक न हो इसके लिए ठोस कदम उठाएं। ताकि भविष्य में किसी खेल के जश्न में इस तरह की त्रासदी दोबारा न हो।

 

2.)  पर्यावरण दिवस पर एक आईना: जो दिखता है, वो ही सच नहीं होता

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस आता है। टीवी पर बहस होती है, स्कूलों में भाषण होते हैं, सोशल मीडिया पर #GreenPledge की सेल्फियां पोस्ट होती हैं—और हम खुद को पर्यावरण का ‘वॉरियर’ समझकर सो जाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या पर्यावरण सिर्फ स्लोगन है? क्या यह सिर्फ एक दिन का इवेंट है? या फिर ये हमारी आंखों के सामने होते विनाश की कहानी है, जिसे हम एस्थेटिक्स का नाम देकर महिमामंडित कर रहे हैं? आपने ‘राजस्थान का स्विट्जरलैंड’ सुना है? मत खोजिए नक्शे में। ये कोई हिल स्टेशन नहीं है, बल्कि किशनगढ़ के पास एक जगह है—नाम है ‘स्नो यार्ड’। दिखने में बर्फ जैसी सफेद, लेकिन असल में यह 30 मिलियन टन मार्बल स्लरी का ढेर है—एक जहरीला, रासायनिक, जानलेवा कचरा, जो हमारे 'एस्थेटिक सेंसेस' को इतना लुभाता है कि हम उसमें प्यार के प्री-वेडिंग शूट करवाने चले जाते हैं। 2008 में राजस्थान सरकार ने किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन को एक खाली ज़मीन दी थी, ताकि वहाँ स्लरी डाली जा सके। कुछ साल यह ज़मीन वीरान रही, लेकिन फिर 2014 में सब बदल गया। एक वायरल फोटोशूट ने इस जगह की तकदीर बदल दी। बर्फ सी सफेदी, DSLR का बोके इफेक्ट और प्यार में रंगी जोड़ी—लोग इसे देखने लगे नैचुरल वंडर के रूप में, जबकि यह था इंडस्ट्रियल वेस्ट का कब्रिस्तान।
आज DSLR कैमरा लेकर इस 'स्नो यार्ड' में जाने पर आपको 500 रुपये देने होंगे। प्री-वेडिंग शूट का रेट 5,100 है। म्यूजिक वीडियो के लिए 21,000 तक। नोरा फतेही से लेकर टाइगर श्रॉफ तक—हर कोई यहाँ शूट कर चुका है। इंस्टाग्राम रील्स की चमक के पीछे जो जहर छुपा है, वह हमारी आँखें अब भी नहीं देख पा रहीं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि यह चमक-दमक किनकी ज़िंदगी की कीमत पर आती है? राजस्थान के केंद्रीय विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट बताती है कि 84% मार्बल श्रमिकों को गले में समस्या है, और 70% को सांस लेने में कठिनाई होती है। सिलिकोसिस नाम की एक बीमारी यहाँ आम है, जो धूल के महीन कणों को सांस के साथ अंदर खींचने से होती है। यह बीमारी धीमी मौत देती है—जैसे हमारी संवेदना मर रही है। पानी के रास्ते बदल चुके हैं। भूजल ज़हरीला हो चुका है। सूखी स्लरी हवा में उड़ती है और पूरे इलाके को प्रदूषित करती है। लेकिन हमें फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हमने यह मान लिया है कि 'दृश्य सुंदर है तो सब कुछ ठीक है'। यह सिर्फ पर्यावरण का संकट नहीं है—यह संवाद का संकट है। जब नीतियों और व्यवहार में अंतर हो, नारों और समझ में दूरी हो, तो ऐसे 'स्नो यार्ड' बनते हैं—जहाँ हम फ़ोटो तो खिंचवाते हैं, लेकिन सवाल नहीं करते।

 

3.) छोटे आंकड़ों में छिपा बड़ा खतरा: फिर से पांव पसारता कोरोना 

देश एक बार फिर कोरोना के खतरे की परछाई में आता दिख रहा है। पिछले 24 घंटों में कोविड-19 के कम से कम 276 नए मामले दर्ज किए गए हैं, जिससे भारत में कुल सक्रिय मामलों की संख्या 4,302 पर पहुँच गई है। केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, केरल में सबसे अधिक 1,373 सक्रिय केस हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में 510, गुजरात में 461, और पश्चिम बंगाल में 432 मामले सामने आए हैं। दिल्ली में भी स्थिति गंभीर होती दिख रही है, जहाँ कम से कम 457 संक्रमण दर्ज किए गए।

मौतों का आंकड़ा डराने लगा है

अब तक कोविड से संबंधित कुल 44 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 14 मौतें हुईं। पिछले 24 घंटों में सात मौतों की पुष्टि हुई है, जिनमें से चार अकेले महाराष्ट्र में, जबकि गुजरात और दिल्ली में एक-एक मौत हुई है। इन आंकड़ों ने एक बार फिर आमजन और प्रशासन को सतर्क कर दिया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि वे ऑक्सीजन, आइसोलेशन बेड, वेंटिलेटर और आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करें। यह निर्देश ऐसे समय आया है, जब देश फिर से महामारी के पुराने डर से गुजरने लगा है। सूत्रों के मुताबिक, दो और तीन जून को डीजीएचएस डॉ. सुनीता शर्मा की अध्यक्षता में तकनीकी समीक्षा बैठकें आयोजित की गईं। इनमें एनसीडीसी, आईसीएमआर, आईडीएसपी, ईएमआर, आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ और दिल्ली के केंद्र सरकार के अस्पतालों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।

निगरानी पर ज़ोर, लेकिन सावधानी अब भी जरूरी

इन बैठकों का मकसद कोविड की वर्तमान स्थिति और राज्यों की तैयारियों का आकलन करना था। साथ ही, इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारियों और गंभीर श्वसन संक्रमणों पर विशेष निगरानी के निर्देश दिए गए हैं। राज्य और जिला स्तरीय निगरानी टीमें फील्ड में सक्रिय कर दी गई है कोरोना के नए मामलों की यह चुपचाप वापसी चिंता का विषय है। भले ही आंकड़े उतने बड़े न लगें, लेकिन संक्रमण की रफ्तार और मौतों की संख्या इस बात का संकेत हैं कि लापरवाही फिर भारी पड़ सकती है। मास्क, हाथ की सफाई और भीड़ से बचाव जैसे मूलभूत उपाय आज भी उतने ही जरूरी हैं।