जब से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बुखार दुनिया पर चढ़ा है, तब से हर कोई अपने-अपने एआई मॉडल को सुपरस्टार बनाने की होड़ में लगा हुआ है। इसी बीच चीन ने भी अपना नया एआई मॉडल "डीपसीक" उतारकर मैदान में ताल ठोक दी है। खबरों की मानें तो डीपसीक ने अमेरिकी ऐपल ऐप स्टोर पर धूम मचा दी है और डाउनलोड चार्ट में चैटजीपीटी को पीछे छोड़ दिया है। अब ओपनएआई वालों की परेशानी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चीन ने टेक्नोलॉजी की तलवार तान दी। सवाल उठता है क्या डीपसीक, चैटजीपीटी की नींद उड़ाने आया है, या सिर्फ एक और शोर मचाने वाला खिलाड़ी है?
डीपसीक को चीन की एक क्वांटिटेटिव हेज फंड कंपनी हाई-फ्लायर की डीप-लर्निंग विंग "फायर-फ्लायर" ने विकसित किया है। दिलचस्प बात यह है कि यह न तो अलीबाबा के साथ जुड़ा है, न ही बाइडू के इशारों पर नाच रहा है। इसके निर्माता लियांग वेनफेंग का दावा है कि डीपसीक को सिर्फ 6 मिलियन डॉलर (लगभग 50 करोड़ रुपये) में ट्रेन किया गया है, जो ओपनएआई और गूगल की फंडिंग के मुकाबले मूँगफली जैसा लगता है। डीपसीक का नया मॉडल DeepSeek-V3 ओपन-सोर्स है और काफी हद तक ओपनएआई के मॉडल से मिलता-जुलता है। हालाँकि, इसने अपना एक अलग रास्ता अपनाने का दावा किया है। जहाँ बाकी एआई मॉडल्स सुपरवाइज़्ड लर्निंग पर निर्भर होते हैं, वहीं डीपसीक "रिइन्फोर्समेंट लर्निंग" के ज़रिए खुद को समझदार बनाने की कोशिश कर रहा है। मतलब, यह अपनी ही गलतियों से सीखने का दावा करता है वैसे ही जैसे सरकारी बजट हर साल अपनी गलतियों से कुछ नया सीखने की कोशिश करता है।
डीपसीक ने अमेरिका और चीन में तकनीकी विशेषज्ञों के बीच हलचल मचा दी है, लेकिन उसके जवाबों की सटीकता पर अब भी संदेह है। सोशल मीडिया पर लोग इसके जवाबों का मज़ाक बना रहे हैं, और कुछ देशों ने इसे "फेक इनफॉर्मेशन" देने के आरोप में प्रतिबंधित भी कर दिया है। दूसरी तरफ, ओपनएआई ने भी डीपसीक की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चैटजीपीटी की तरह डीपसीक भी "गूगल सर्च" की तरह काम करता है, लेकिन ज्यादा गहराई तक जाने का दावा करता है। हालाँकि, इसके जवाब देने में 5 से 30 मिनट तक का समय लग सकता है। यानी अगर आपने इसे कोई रिपोर्ट बनाने के लिए कहा, तो आप तब तक चाय पीकर आ सकते हैं, थोड़ा टहल सकते हैं, और हो सकता है कि तब तक यह जवाब देकर आपका इंतजार कर रहा हो। चीन का यह नया एआई अमेरिका में ज़ोर पकड़ रहा है, लेकिन इसका भविष्य अब भी धुंधला है। तकनीकी हलकों में इसे लेकर चर्चाएँ तो हो रही हैं, मगर यह ओपनएआई और गूगल जैसी कंपनियों के लिए गंभीर चुनौती बनेगा या सिर्फ़ एक और हाइप रह जाएगा, यह देखना बाकी है। भारतीय मीडिया कंपनियों की मुकदमेबाज़ी से परेशान ओपनएआई अब चीन के नए खिलाड़ी से टकराने को तैयार है।
आज का दिन सिर्फ एक चुनावी प्रक्रिया नहीं, बल्कि राजधानी की राजनीति के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है। मतदाता अपने वोट डालकर लोकतंत्र की इस जंग में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। वोटिंग खत्म होते ही मीडिया चैनलों पर एग्जिट पोल की बाढ़ आ जाएगी, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये आंकड़े हकीकत के करीब होंगे या फिर किसी और राजनीतिक एजेंडे के हिसाब से तैयार किए गए होंगे? दिल्ली विधानसभा चुनाव में 1.56 करोड़ मतदाता अपने वोट डाल चुके हैं। 83.76 लाख पुरुष और 72.36 लाख महिलाएं इस चुनाव में वोटिंग कर चुकी हैं, जबकि 1,267 ट्रांसजेंडर वोटर्स ने भी अपनी भागीदारी दर्ज कराई है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस सभी 70 सीटों पर लड़ रही हैं। बीजेपी ने 68 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं और 2 सीटें (देवली और बुराड़ी) अपने सहयोगी दलों (एलजेपी और जेडीयू) के लिए छोड़ी हैं। AIMIM ने मुस्तफाबाद और ओखला से चुनाव लड़ा है। एनसीपी 30 सीटों पर मैदान में है, लेफ्ट पार्टियों ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। दिल्ली का सियासी समीकरण इस बार उलझा हुआ है। कुछ सीटों पर मुकाबला इतना करीबी है कि जीत-हार का अंतर कुछ सौ वोटों का हो सकता है। हर चुनाव में आम जनता यही सोचती है कि उसका वोट उसकी सरकार बनाएगा, लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? या फिर कुछ ताकतें पहले से ही यह तय कर चुकी होती हैं कि अगली सरकार किसकी होगी?
इस बार का चुनाव कई मायनों में दिलचस्प और खतरनाक है। आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस अपनी पूरी ताकत झोंक चुकी हैं। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM और एनसीपी भी अपनी किस्मत आजमा रही हैं, तो लेफ्ट पार्टियां भी कुछ सीटों पर अपना दम दिखा रही हैं। मगर सच्चाई यह है कि इस बार किसी भी पार्टी की कोई लहर नहीं दिख रही। हर सीट पर अलग-अलग समीकरण बन चुके हैं। कई मीडिया हाउस एग्जिट पोल के आंकड़े जारी करेंगे, लेकिन इन आंकड़ों पर आंख मूंदकर भरोसा करना कितना सही है? एग्जिट पोल किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया का नतीजा नहीं होते, बल्कि यह अनुमान होते हैं, जो कुछ चुनिंदा मतदाताओं की राय के आधार पर तैयार किए जाते हैं। इतिहास गवाह है कि कई बार एग्जिट पोल हकीकत से बिल्कुल उलट साबित हुए हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में भी मीडिया ने बीजेपी के लिए शानदार जीत की भविष्यवाणी की थी, लेकिन नतीजे चौंकाने वाले निकले। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या एग्जिट पोल जनता की राय को प्रभावित करने का एक नया तरीका बन चुके हैं।
1 फरवरी 2025 को पेश हुए आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई बड़े ऐलान किए। मिडल क्लास के लिए इनकम टैक्स की सीमा 12 लाख रुपये तक बढ़ाकर सरकार ने राहत जरूर दी, लेकिन महिलाओं के लिए चलाई गई ‘महिला सम्मान सेविंग्स सर्टिफिकेट’ (MSSC) योजना को आगे बढ़ाने की कोई घोषणा नहीं की। इससे देशभर की करोड़ों महिलाओं को बड़ा झटका लगा है। 2023 में लॉन्च की गई MSSC योजना सिर्फ 2 साल के लिए थी और इसकी डेडलाइन 31 मार्च 2025 को खत्म हो रही है। सरकार ने बजट में इस योजना की समय सीमा बढ़ाने की कोई घोषणा नहीं की, जिसका मतलब है कि 1 अप्रैल 2025 के बाद इस योजना में कोई भी नया निवेश नहीं किया जा सकेगा।
यह महिलाओं के लिए एक विशेष बचत योजना थी, जिसमें 7.5% सालाना ब्याज मिल रहा था। इस योजना में 1000 रुपये से लेकर 2 लाख रुपये तक का निवेश किया जा सकता था। यह स्कीम सिर्फ 2 साल में मैच्योर हो जाती थी, जिससे महिलाओं को जल्द रिटर्न मिलता था। नाबालिग बच्चियों के नाम पर भी इस योजना में निवेश किया जा सकता था, जिससे यह माता-पिता के लिए भी एक बेहतरीन बचत विकल्प थी। अगर सरकार इस योजना को आगे नहीं बढ़ाती है, तो महिलाओं के पास 31 मार्च 2025 तक का ही समय है, इस स्कीम में निवेश करने का। इसके बाद MSSC पूरी तरह बंद हो जाएगी। सवाल यह भी उठता है कि सरकार ने इस योजना को आगे क्यों नहीं बढ़ाया? क्या महिलाओं के लिए सरकार के पास कोई नया वित्तीय प्लान है या फिर यह फैसला महज सरकारी नीति का एक हिस्सा था? अगर किसी को जरूरत होती, तो इस खाते को 6 महीने बाद बंद किया जा सकता था, लेकिन ऐसे में 7.5% की जगह सिर्फ 5.5% ब्याज मिलता। इसके अलावा 1 साल बाद महिलाएं अपनी कुल जमा राशि का 40% निकाल सकती थीं।
एक तरफ सरकार महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की बात करती है, तो दूसरी तरफ एक बेहद फायदेमंद योजना को खत्म करने जा रही है। MSSC कम आय वाली महिलाओं, गृहिणियों और बेटियों के भविष्य के लिए एक सुरक्षित निवेश योजना थी। अब इसके बंद होने से उन महिलाओं के पास निवेश का क्या विकल्प बचेगा? सरकार ने भले ही बजट में मिडल क्लास को राहत दी हो, लेकिन महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा की दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में सरकार इस स्कीम को लेकर कोई नया फैसला लेती है या नहीं। फिलहाल, जो महिलाएं इस योजना का लाभ उठाना चाहती हैं, उनके पास सिर्फ 31 मार्च 2025 तक का समय बचा है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव जारी है, लेकिन मतदान के बीच चुनावी जंग का तापमान आसमान छू रहा है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, दोपहर 3 बजे तक दिल्ली में औसतन 50% से ज्यादा वोटिंग हो चुकी थी, लेकिन कुछ क्षेत्रों में वोटिंग प्रतिशत काफी अलग रहा जैसे सबसे ज्यादा मतदान – मुस्तफाबाद (56.12%), सबसे कम मतदान – करोल बाग (39.05%), जिलेवार सबसे ज्यादा मतदान – उत्तर-पूर्वी दिल्ली (52.73%) ,जिलेवार सबसे कम मतदान – नई दिल्ली (43.10%) | जहां जनता वोटिंग के लिए कतारों में खड़ी है, वहीं नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप ने चुनाव को हाईवोल्टेज ड्रामा में बदल दिया है। भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच मतदाताओं को रिझाने के लिए अब एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाने की होड़ मच गई है।
जंगपुरा सीट से AAP उम्मीदवार मनीष सिसोदिया ने बड़ा दावा किया कि भाजपा मतदाताओं को रिश्वत देकर वोट खरीद रही है। उनका कहना था कि "बीजेपी के कार्यकर्ता बूथ के पास वाली बिल्डिंग में मतदाताओं को पैसे दे रहे हैं।" वहीं, ग्रेटर कैलाश सीट से AAP उम्मीदवार सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली पुलिस को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। उनका आरोप है कि पुलिस "मतदाताओं को वोट डालने से रोक रही है।" उन्होंने सीधे सवाल उठाए "मतदान केंद्र के पास बैरिकेड्स क्यों लगाए गए हैं?" "कौन सा वरिष्ठ अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार है? "यह सब गरीब मतदाताओं को डराने के लिए किया जा रहा है।"
जहां AAP भाजपा पर पैसे बांटने का आरोप लगा रही है, वहीं भाजपा ने आम आदमी पार्टी पर फर्जी वोट डलवाने का आरोप जड़ दिया है। सीलमपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा और आप कार्यकर्ताओं के बीच तीखी झड़प हुई। भाजपा का दावा है कि AAP ने बुर्के में बाहरी महिलाओं को बुलाकर फर्जी वोट डलवाए। भाजपा का कहना है कि इन महिलाओं ने कई जगहों पर दोबारा वोटिंग की, जिससे मतदान की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो गए हैं। सीलमपुर में माहौल इतना गर्म हो गया कि दोनों पार्टियों के समर्थकों के बीच धक्का-मुक्की और झड़पें तक हो गईं। चुनाव आयोग ने इस पर संज्ञान लिया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। अब बड़ा सवाल यह है कि मतदान का यह ट्रेंड किस पार्टी के पक्ष में जाएगा? क्या ज्यादा वोटिंग से AAP को फायदा होगा या BJP को।
AAP नेता दुर्गेश पाठक ने दावा किया है कि उनकी पार्टी को इस बार 55 से ज्यादा सीटें मिल रही हैं। उन्होंने कहा, "दिल्ली की जनता हमारे साथ है, खासतौर पर गरीब और मध्यम वर्ग। बीजेपी लाख कोशिशें कर ले, लेकिन जनता हमें ही वोट देगी।" वहीं, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कहा कि उनकी सरकार की योजनाओं पर जनता ने मोहर लगा दी है और परिणामों में यह साफ नजर आएगा। वहीँ भाजपा के नेता और दिल्ली अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने AAP के दावों को खारिज करते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी झूठी जीत का प्रचार कर रही है। उन्होंने कहा, "AAP की सरकार ने दिल्ली को सिर्फ भ्रष्टाचार और झूठ दिए हैं। इस बार जनता उन्हें सबक सिखाने वाली है।" भाजपा इस बार दिल्ली में मजबूत वापसी का दावा कर रही है, जबकि आम आदमी पार्टी अपने काम के दम पर दोबारा सरकार बनाने का भरोसा जता रही है।
चुनावी दंगल में हंगामे, आरोपों और धांधली की खबरों के बीच असली फैसला जनता के हाथ में है। अब सवाल यह है कि क्या दिल्ली में फिर से "केजरीवाल मॉडल" की सरकार बनेगी? या फिर मोदी लहर में बहकर दिल्ली भगवा रंग में रंग जाएगी? क्या चुनावी आरोपों का असर जनता के वोटिंग पैटर्न पर पड़ेगा?अब सबकी नजर मतदान और शुरुआती रुझानों पर टिकी है। दिल्ली का सियासी भविष्य कुछ ही घंटों में तय होने वाला है।