भारतीय सिनेमा का परिदृश्य लगातार बदल रहा है। कभी दर्शक हॉलीवुड के बड़े सेट-पीस और VFX के दीवाने होते थे, तो कभी मसाला फिल्मों के। लेकिन 2022 में आई कांतारा ने साबित कर दिया कि असली ताक़त उन्हीं कहानियों में है जो अपनी जड़ों से जुड़ी हों। लोककथा, परंपरा और आस्था का ऐसा मिश्रण पहले कम ही देखने को मिला था। उस फिल्म ने न सिर्फ़ कन्नड़ सिनेमा को, बल्कि पूरे भारतीय फ़िल्म उद्योग को नई पहचान दी। अब, तीन साल बाद, Rishab Shetty उसी दुनिया में लौटे हैं। “Kantara: Chapter 1”, जो पहली फिल्म का प्रीक्वल है, 2 अक्टूबर 2025 को रिलीज़ हुई। फिल्म की शुरुआत से ही साफ हो गया कि यह सिर्फ़ एक और रिलीज़ नहीं है, बल्कि एक ऐसा सिनेमाई इवेंट है जिस पर पूरे देश की नज़र टिकी है ,रिलीज़ के पहले ही दिन फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया। शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक, फिल्म ने ₹61.85 करोड़ नेट (India) कमाए। दूसरे दिन यह कलेक्शन गिरकर भी ₹45 करोड़ के आसपास रहा। नतीजतन, दो दिनों में कुल नेट कलेक्शन ₹106.85 करोड़ पर पहुँच गया।सिर्फ़ घरेलू स्तर पर ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भी फिल्म का प्रदर्शन शानदार रहा। पहले दिन का वर्ल्डवाइड कलेक्शन ₹89 करोड़ के आसपास दर्ज किया गया। फिल्म का अनुमानित बजट लगभग ₹125 करोड़ है, और महज़ 48 घंटों में यह फिल्म उस आंकड़े को छूने लगी। इस तरह कांतारा: अध्याय 1 2025 की सबसे बड़ी कन्नड़ फिल्म का तमगा अपने नाम कर चुकी है। दर्शकों की प्रतिक्रिया इस फिल्म की असली पूंजी है। सोशल मीडिया पर #DivineBlockbusterKantara जैसे हैशटैग लगातार ट्रेंड कर रहे हैं। थिएटरों से निकलते दर्शक फिल्म के क्लाइमेक्स को “mind-blowing” और “theatre-erupting” मोमेंट कह रहे हैं। फिल्म के VFX, खासतौर पर जानवरों वाले सीक्वेंस, को लोग “next-level” बता रहे हैं। Rishab Shetty के अभिनय और स्क्रीन प्रेज़ेंस को “mass और class का परफेक्ट मिश्रण” कहा गया है। लेकिन हर बड़े प्रोजेक्ट की तरह, यहाँ भी आलोचना मौजूद है। कुछ समीक्षक मानते हैं कि फिल्म की कहानी अपेक्षित गहराई तक नहीं पहुँच पाई। बैकग्राउंड स्कोर भी पहली फिल्म जैसा असरदार नहीं रहा। और कुछ लोगों का कहना है कि फिल्म को लेकर बनी हाइप कहानी से ज़्यादा बड़ी थी। फिर भी, जनता का मूड स्पष्ट है फिल्म थिएटर का ऐसा अनुभव देती है, जिसे मिस नहीं किया जा सकता।
सफलता की कुंजी: क्यों मचा इतना शोर ? आइये पॉइंट्स में समझते हैं
दवा का असली मतलब है ज़िंदगी बचाना। लेकिन जब वही दवा मौत का कारण बन जाए, तो सवाल सिर्फ मेडिकल कंपनियों पर नहीं, पूरे सिस्टम पर खड़ा होता है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में बच्चों की मौतों के बाद अब एक बार फिर वही सवाल गूँज रहा है क्या हमारी दवा सुरक्षित है? मामला शुरू हुआ मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से। यहाँ 9 बच्चों की हालत अचानक बिगड़ी। लक्षण एक जैसे थे उल्टी, पेशाब में कमी और तेज़ कमजोरी। इन बच्चों को पहले खांसी-जुकाम में Coldrif Cough Syrup दिया गया था। हालत इतनी खराब हुई कि 9 में से 7 बच्चों की जान नहीं बच सकी। इसी तरह की रिपोर्ट राजस्थान से भी आई। वहाँ भी Coldrif पीने के बाद बच्चों की मौतें हुईं। अब तक दोनों राज्यों में मिलाकर 10 से 12 मासूम जानें जा चुकी हैं। जाँच के लिए सिरप के सैंपल लैब भेजे गए। रिपोर्ट में चौंकाने वाला सच सामने आया Coldrif के अंदर Diethylene Glycol (DEG) मौजूद था। यह वही केमिकल है जिसे कई देशों में "साइलेंट किलर" कहा जाता है। DEG एक इंडस्ट्रियल सॉल्वेंट है, जो शरीर में पहुँचते ही किडनी और लिवर को नुकसान पहुँचाता है और बच्चों में तो यह असर कई गुना तेज़ होता है। ये पहला मामला नहीं है। गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और कई अफ्रीकी देशों में भी पिछले कुछ सालों में ऐसे ही दूषित कफ सिरप ने सैकड़ों बच्चों की जान ली है। भारत के लिए ये चेतावनी नई नहीं थी, लेकिन फिर भी Coldrif जैसी दवा बाजार में बेची जाती रही। बच्चों की मौत की खबर जैसे ही सामने आई, राज्यों में हड़कंप मच गया। तमिलनाडु सबसे पहले हरकत में आया। यहाँ Coldrif के सैंपल जाँच में "adulterated" पाए गए। सरकार ने तुरंत इस सिरप की बिक्री पर बैन लगाया और बाजार से बोतलें जब्त करवाईं। मध्य प्रदेश ने 4 अक्टूबर को Coldrif पर पूरे राज्य में प्रतिबंध लगा दिया। स्वास्थ्य विभाग ने इस सिरप की सारी खेप जब्त करने का आदेश दिया। राजस्थान में सप्लाई रोक दी गई और मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य औषधि नियंत्रक को निलंबित कर दिया गया।
केंद्र सरकार को भी दखल देना पड़ा। स्वास्थ्य मंत्रालय और DGHS ने डॉक्टरों और माता-पिता के लिए एडवायज़री जारी की बच्चों में कफ सिरप का इस्तेमाल बेहद सावधानी से करें, खासकर 0–4 साल के बच्चों में।
Coldrif Cough Syrup का मुख्य घटक है Dextromethorphan Hydrobromide। ये एक आम दवा है, जिसका इस्तेमाल खांसी दबाने के लिए किया जाता है। लेकिन जिन बैचों से ये मौतें जुड़ी हैं, उनमें DEG की मौजूदगी ने इस दवा को ज़हर में बदल दिया। कंपनी का नाम लेकर सरकारों ने अभी तक आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ये सिरप तमिलनाडु स्थित एक कंपनी द्वारा बनाया गया था, और सप्लाई राजस्थान, मध्य प्रदेश, पुदुच्चेरी जैसे राज्यों तक पहुँची थी। अब सबसे बड़ा सवाल है ये बोतलें बाजार तक पहुँची कैसे? अगर लैब टेस्ट में दवा पहले ही फेल हो चुकी थी, तो निगरानी तंत्र सो क्यों रहा था? अगर राज्य औषधि विभाग अलर्ट रहते तो शायद इतनी मासूम जानें न जातीं। ये सिर्फ एक कंपनी या एक दवा की गलती नहीं है, ये पूरे सिस्टम की लापरवाही का आईना है। जनता के लिए चेतावनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने साफ कहा है बच्चों (खासकर 0 से 2 साल, और कई जगहों पर 0 से 4 साल) में बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी कफ सिरप न दें।अगर घर में Coldrif की बोतल है, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ और स्थानीय ड्रग्स कंट्रोल विभाग को रिपोर्ट करें। अगर बच्चे को खांसी-जुकाम है, तो घरेलू इलाज या डॉक्टर की पर्ची वाले दवा का ही इस्तेमाल करें। Coldrif सिरप पर बैन लग चुका है, मौतें दर्ज हो चुकी हैं, सरकारें सफाई दे रही हैं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल अभी भी अनुत्तरित है बच्चों की मौत की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा? दवा के नाम पर ज़हर कैसे बिक गया? क्यों हर बार हादसा होने के बाद ही हमारी एजेंसियाँ जागती हैं । ऐसे ही लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।