आईपीएल 2025 की ट्रॉफी भले ही रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने पहली बार अपने नाम की हो, लेकिन असली जश्न शायद स्टेडियम से मीलों दूर शेयर बाजार में मनाया गया। 18 साल का सूखा खत्म हुआ, विराट कोहली के चेहरे पर सुकून की मुस्कान थी, और बैकग्राउंड में बज रहा था—“RCB, RCB!” लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि इस एक जीत ने किसकी किस्मत चमकाई? जी हां, हम बात कर रहे हैं RCB की मालिक कंपनी यूनाइटेड स्पिरिट्स लिमिटेड (USL) की, जो देश की सबसे बड़ी शराब कंपनियों में से एक है। ट्रॉफी से पहले ही इस कंपनी ने 2200 करोड़ रुपये का मुनाफा बटोर लिया, और वो भी सिर्फ शेयर बाजार में।
आईपीएल सिर्फ क्रिकेट नहीं, एक बड़ा बिजनेस इकोसिस्टम है। मैदान में खिलाड़ी रन बटोरते हैं, तो मैदान के बाहर फ्रेंचाइज़ी मालिक हर मैच में करोड़ों की गिनती करते हैं। आईपीएल के एक-एक मुकाबले में इतने पैसे घूमते हैं, जितने में किसी शहर की म्युनिसिपलिटी सालभर चल सकती है। RCB की जीत से पहले ही USL के शेयरों में भारी उछाल देखा गया। मंगलवार को कंपनी का शेयर 2% चढ़कर 1579.05 रुपये पर बंद हुआ और दिन के दौरान 1609.60 रुपये का हाई छू गया। इससे कंपनी का मार्केट कैप महज 24 घंटे में 2,164 करोड़ रुपये बढ़ गया।
आईपीएल में एक टीम सिर्फ क्रिकेट से नहीं, बल्कि टिकट बिक्री, स्पॉन्सरशिप और मीडिया राइट्स से बंपर कमाई करती है।
उदाहरण लें: अगर नरेंद्र मोदी स्टेडियम में 1 लाख टिकट बिकें और एक टिकट की औसत कीमत 3000 रुपये हो, तो टोटल कमाई होती है करीब 30 करोड़ रुपये। इसका 80% यानी 24 करोड़ रुपये सीधे फ्रेंचाइज़ी की जेब में। अब सोचिए—14 लीग मैच, क्वालिफायर, एलिमिनेटर और फाइनल। एक सीज़न में सिर्फ टिकट से ही 300 करोड़ से ज्यादा की कमाई, और ऊपर से स्पॉन्सर और विज्ञापन तो अलग! RCB: शराब से क्रिकेट तक, अरबों का सफर RCB का मालिकाना हक यूनाइटेड स्पिरिट्स लिमिटेड के पास है, जिसकी छवि भारत की 'मैक्डॉवेल्स' जैसी सस्ती शराब से लेकर हाई-प्रोफाइल ब्रांड तक फैली है। कभी विजय माल्या ने इस टीम को IPL में खरीदा था, लेकिन बाद में ब्रिटेन की कंपनी डियाजियो (Diageo) ने इस पर कब्जा कर लिया। कह सकते हैं कि RCB अब एक 'ब्रिटिश बिजनेस ड्रामा' का हिस्सा है, जिसमें विराट कोहली जैसे चेहरे स्क्रिप्ट को हिट बना रहे हैं। RCB ने इस बार सिर्फ ट्रॉफी नहीं, इतिहास लिखा है—18 साल का इंतज़ार, और एक दिन में 2200 करोड़ की कमाई। क्रिकेट का ये बिजनेस मॉडल न सिर्फ खिलाड़ियों की किस्मत बदलता है, बल्कि कंपनियों को भी अरबपति बना देता है। और जब अगली बार आप “RCB!RCB!” चिल्लाएं, तो याद रखिए ये नारा अब सिर्फ एक टीम के लिए नहीं, एक अरबों की इंडस्ट्री के लिए गूंजता है।
2008 में जब एक दुबला-पतला नौजवान IPL की लाल जर्सी पहनकर मैदान पर उतरा, शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यही लड़का एक दिन RCB की आत्मा बन जाएगा। वक्त बदला, कप्तान बदले, खिलाड़ी आए-गए… पर एक नाम हमेशा रहा विराट । 2008 में विराट IPL से जुड़े, वो सिर्फ U-19 वर्ल्ड कप विनर थे। RCB ने उन्हें शुरुआती कुछ सीज़न में मिडिल ऑर्डर में मौका दिया, और कई बार बाहर भी किया गया। कोई रुतबा नहीं, कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं। लेकिन एक चीज़ जो कभी नहीं हिली – वो थी कोहली की आंखों में छुपी भूख। वो भूख रन बनाने की नहीं, बल्कि टीम को जिताने की थी। 2013 में जब RCB ने विराट को कप्तानी सौंपी, फैंस को लगा अब टीम उड़ान भरेगी। लेकिन जो होना चाहिए था, वो नहीं हुआ। 2016 में उन्होंने 973 रन बनाए IPL का अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड। फिर भी RCB फाइनल हार गई। इस हार ने लोगों को ट्रोल का मौका दिया – RCB कभी नहीं जीतेगी, कोहली unlucky है, tragedy king है। लेकिन विराट ने न टीम छोड़ी, न शहर। वो हर बार मैदान में उसी जज्बे के साथ उतरे, जैसे ये उनका पहला मैच हो। हर हार के बाद आलोचना होती रही।कभी उनकी कप्तानी पर सवाल उठे, कभी उनके एग्रेसन पर, कभी उनकी तकनीक पर। यहां तक कि कई बार ऐसा लगा कि विराट भी थक चुके हैं। IPL में कई साल ऐसे आए जब वो खुद भी रन नहीं बना पाए। लेकिन वो रुके नहीं। ना BCCI से लड़ाई, ना टीम बदलना, ना रिटायरमेंट की धमकी। बस चुपचाप मैदान में आकर खेलना। 18 साल के संघर्ष के बाद 2025 में वो घड़ी आई, जब RCB चैंपियन बनी। विराट कप्तान नहीं थे, लेकिन उनकी आंखों में वही आंसू थे जो एक पिता की आंखों में अपने बेटे की कामयाबी देखकर आते हैं। उन्होंने कहा अब मैं चैन से सो जाऊंगा।” ये सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं थी, ये 18 साल का हिसाब था। क्या सिखाता है विराट कोहली का संघर्ष? Consistency is bigger than Talent वो हर दिन खुद को बेहतर करते गए। Team loyalty एक भावनात्मक रिश्ता होता है फ्रैंचाइज़ी बदलना आसान होता है, लेकिन साथ निभाना मुश्किल। जब दुनिया ताली नहीं बजाती, तब भी खुद पर तालियाँ बजानी पड़ती हैं। संघर्ष से बड़ी कोई शोहरत नहीं होती। आज जब लोग कहते हैं – “विराट की Legacy अमर हो गई”, वो गलत नहीं हैं। उनके नाम IPL ट्रॉफी ,वर्ल्ड कप, टेस्ट नंबर 1। 75+ इंटरनेशनल शतक और अब – संघर्ष का ताज । विराट कोहली सिर्फ एक क्रिकेटर नहीं हैं। वो एक प्रतीक हैं उस इंसान का जो हर ठोकर खाकर भी खड़ा रहता है, जो हर हार के बाद जीत की उम्मीद नहीं, तैयारी करता है। RCB की जीत से पहले, विराट जीत चुके थे अपने संघर्ष में, अपने सपनों से वफ़ा करके।
बिहार में एक नाबालिग दलित लड़की की मौत के बाद सन्नाटा नहीं, सियासत बोल रही है। पीड़िता अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी मौत ने इस प्रदेश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, खोखली कानून-व्यवस्था और संवेदनहीन प्रशासन की असल तस्वीर को नंगा कर दिया है। मुजफ्फरपुर की इस दलित बेटी के साथ 26 मई को दरिंदगी हुई। दरिंदगी भी ऐसी कि उसकी रूह को चीर गई। उसे अस्पताल लाया गया, लेकिन अस्पताल क्या था सिस्टम की लाश पर खड़ी एक इमारत। एम्बुलेंस के भीतर वो तड़पती रही, अस्पताल के दरवाज़े बंद रहे, डॉक्टरी लापरवाही खुल कर नाचती रही और अंत में... मौत ने उसे गले लगा लिया। तीन दिन बीत चुके हैं। अब राजनीति को होश आया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार अपने दल-बल के साथ राज्यपाल के पास पहुँचे। ज्ञापन सौंपा गया। वादा किया गया कि पीड़िता की मां को नौकरी दी जाए, परिवार को मुआवज़ा मिले और भाई-बहनों को मुफ्त शिक्षा। मांगें जायज़ हैं, लेकिन क्या कभी पूरी होंगी? कांग्रेस कार्यकर्ता बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के घर तक पहुंच गए। नारों की गूंज में सिर्फ एक आवाज़ थी – "इस्तीफा दो!" लेकिन जवाब में क्या मिला? पुलिसिया धक्का, हल्का बल प्रयोग और फिर वही पुराना फार्मूला – “स्थिति नियंत्रण में है।” सरकार ने मोर्चा संभाल लिया है। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने कहा कि दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा अब तक एसकेएमसीएच के अधीक्षक को सस्पेंड किया गया, पीएमसीएच के कार्यकारी डिप्टी सुपरिटेंडेंट को हटा दिया गया। जांच चल रही है। मगर बिहार जानता है, “जांच” शब्द कब तक जनता को झुनझुना थमाता है।
ये मौत सिर्फ एक दलित बच्ची की नहीं थी। ये मौत उस भरोसे की थी जो जनता सरकार से करती है। ये मौत उस संवेदना की थी जो किसी सिस्टम में बची नहीं है। ये मौत उस लोकतंत्र की थी जिसमें इंसाफ अब कागज़ों और बयानों की जेल में बंद है।