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Breaking News 4 January 2024

1. चीन में कोविड के बाद नया वायरस HMPV बरपा रहा कहर

चीन में कोविड के बाद अब ह्यूमन मेटान्यूमोवायरस (HMPV) ने मचाया हाहाकार। सोशल मीडिया और रिपोर्ट्स के अनुसार, अस्पतालों में हालात बेकाबू हो गए हैं। छोटे बच्चे, बुजुर्ग और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग तेजी से इस वायरस की चपेट में आ रहे हैं। चीन से कई वायरल वीडियोस से पता चल रहा है की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि श्मशान घाटों पर भी भीड़ बढ़ गई है। विशेषज्ञों की मानें तो यह वायरस कोविड की तरह खतरनाक बन सकता है। HMPV वायरस में इन्फ्लूएंजा ए, माइकोप्लाज्मा न्यूमोनिया और कोविड के साथ वायरस का खतरनाक कॉम्बिनेशन बताया जा रहा है। 

HMPV: कोविड पार्ट 2?

HMPV एक RNA वायरस है, जो न्युमोवायरिडे फैमिली के मेटापन्यूमोवायरस क्लास से संबंधित है। 2001 में पहली बार डच रिसर्चर्स ने इसे खोजा था। यह वायरस उन्हीं वायरस की फैमिली से आता है, जो निमोनिया जैसी गंभीर बीमारियां पैदा करते हैं। छोटे बच्चे, बुजुर्ग और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगो को इस वायरस से ज्यादा खतरा है। यह वायरस अपर और लोअर रेस्पिरेटरी डिजीज का कारण बन सकता है। इससे निमोनिया और ब्रोंकाइटिस होने का खतरा रहता है। 

क्या हैं लक्षण और फैलाव ? 

HMPV के लक्षण कोविड-19 और फ्लू से मिलते-जुलते हैं जैसे बुखार आना, सूखी या लगातार खांसी होना, तेज सिरदर्द होना, मांसपेशियों और बदन में दर्द होना, थकान, कमजोरी होना और मतली, उल्टी होना। यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने, हाथ मिलाने या दूषित वस्तु को छूने से भी फैल रहा है। 
संक्रमित होने के 3-5 दिनों के भीतर लक्षण दिख रहे हैं। सर्दियों में इसका प्रभाव और ज्यादा बढ़ जाता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि चीन में यह वायरस 2023 में भी देखा गया था, लेकिन इस बार यह ज्यादा गंभीर रूप में सामने आ रहा है।

चीन में भयावह स्थिति: वायरल वीडियो और मौतों में इजाफा

इसे अक्सर "साइलेंट किलर" कहा जाता है। यह वायरस अगर म्यूटेशन करता है, तो यह बड़ा खतरा बन सकता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चीन का "जीरो कोविड" पॉलिसी हटने के बाद स्वास्थ्य प्रणाली पर पहले से ही दबाव था, और अब यह नया वायरस स्थिति को और बिगाड़ रहा है। चीन में HMPV वायरस के तेजी से फैलने के बाद विशेषज्ञ भारत समेत दुनिया के अन्य देशों को सतर्क रहने की सलाह दे रहे हैं। डर इस बात का है कि यह वायरस कोविड की तरह अपनी शक्ल बदलकर और खतरनाक न बन जाए। सवाल ये उठ रहे है की क्या HMPV दुनिया के लिए अगला बड़ा खतरा बनेगा ?

2. मुकेश चंद्राकर की हत्या के पीछे साजिश की गहरी परतें

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 28 वर्षीय युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या से क्षेत्र में शोक और गुस्से की लहर दौड़ गई है। मुकेश, जो अपने साहस और निडर रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते थे। मुकेश चंद्राकर 1 जनवरी की शाम अचानक लापता हो गए। दो दिनों की बेचैन तलाश के बाद उनका शव एक ठेकेदार सुरेश चंद्राकर की संपत्ति पर बने सेप्टिक टैंक से बरामद हुआ। पुलिस ने इस मामले में मुख्य आरोपी ठेकेदार सुरेश चंद्राकर और उसके भाई रितेश समेत तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। बताया जा रहा है कि हत्या के बाद सुरेश ने सेप्टिक टैंक को कंक्रीट से बंद कर दिया था, ताकि सबूत मिटाए जा सकें। पुलिस आरोपियों से पूछताछ कर रही है और जल्द ही बड़े खुलासे की उम्मीद जताई जा रही है। अब सवाल सभी पत्रकारों से ये है कि क्या आप सेफ हो और उससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या अब पत्रकारिता जानलेवा हो गया है ? 

मुकेश की बहादुरी का सफर और पत्रकारिता में योगदान

मुकेश चंद्राकर सिर्फ एक पत्रकार नहीं थे, बल्कि नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र में लोगों की आवाज बन चुके थे। 2021 में जब माओवादियों ने CRPF के जवानों को अगवा किया था, तब मुकेश ने उनकी रिहाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी रिपोर्टिंग ने नक्सल मुठभेड़ों और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर देश का ध्यान खींचा। उनके यूट्यूब चैनल के 1.59 लाख सब्सक्राइबर थे, और वे एक राष्ट्रीय समाचार चैनल के स्ट्रिंगर के रूप में भी काम करते थे।

पत्रकार बिरादरी का आक्रोश

बस्तर के पत्रकारों ने नेशनल हाईवे पर चक्का जाम कर विरोध प्रदर्शन किया। उनकी मांग है कि आरोपियों की वैध-अवैध संपत्तियां कुर्क की जाएं। सुरेश चंद्राकर के सभी टेंडर रद्द किए जाएं। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो 5 जनवरी से बीजापुर में अनिश्चितकालीन चक्का जाम शुरू किया जाएगा। मुकेश चंद्राकर की हत्या बस्तर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में पत्रकारों के सामने आने वाले खतरों को उजागर करती है। स्थानीय संपादक अनुराग द्वारी ने कहा, यह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। हम मुकेश के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे और न्याय के लिए लड़ाई जारी रखेंगे।

3. BJP की पहली लिस्ट से AAP-कांग्रेस में हड़कंप

दिल्ली की राजनीति में हलचल तेज़ हो गयी है ! भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 29 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। इस सूची में ऐसे नाम शामिल हैं, जो आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को चुनौती देने के लिए तैयार हैं। बीजेपी की तरफ से नई दिल्ली सीट पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा को मैदान में उतारा गया है। वहीँ कालकाजी सीट से मुख्यमंत्री आतिशी को घेरने के लिए BJP ने रमेश विधूड़ी को उतारा है। AAP ने इन दोनों सीटों पर जीत का दावा किया था, लेकिन BJP की एंट्री से तस्वीर बदल गई है। वहीं, कांग्रेस ने भी इन सीटों पर अपने दिग्गज नेता संदीप दीक्षित (नई दिल्ली) और अलका लांबा (कालकाजी) को उतारकर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है।

BJP की रणनीति और बड़े चेहरे

आदर्श नगर से राजकुमार भाटिया को उतारा गया है। वहीँ बादली सीट पर दीपक चौधरी को टिकट मिला है। इसके अलावा रिठाला से कुलवंत राणा चुनावी मैदान में हैं। नांगलोई जाट सीट पर मनोज शौकीन को उतारा गया है। इसके अलावा मंगोलपुरी सीट पर BJP ने राजकुमार चौहान को मौका दिया है।
रोहिणी सीट से विजेंद्र गुप्ता को, मॉडल टाउन से रेखा गुप्ता को, करोल बाग सीट से दुष्यंत कुमार गौतम को और राजौरी गार्डन सीट से सरदार मनजिंदर सिंह को उतारा गया है। वहीँ जनकपुरी सीट से BJP ने आशीष सूद को उतरा है। वहीँ भाजपा के तरफ से दिल्ली BJP के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने दावा किया, "इस बार दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल और आतिशी को करारा जवाब देगी। BJP के सभी 29 उम्मीदवार प्रचंड जीत दर्ज करेंगे और दिल्ली में एक नई राजनीतिक दिशा तय होगी।"

विचारधारा और नीतियों की लड़ाई

 AAP अपने मुफ्त बिजली-पानी और शिक्षा मॉडल को लेकर जनता के बीच है। वहीँ BJP ने केंद्रीय योजनाओं और दिल्ली को "गर्वित राजधानी" बनाने का वादा किया है। इन दोनों के बीच कांग्रेस ने अनुभव और जमीनी पकड़ के जरिए अपनी वापसी का दावा ठोंका है। अब यह देखना होगा कि इस बार जनता किसके पक्ष में फैसला देती है। क्या केजरीवाल फिर से CM बनेंगे? या BJP और कांग्रेस में से कोई दिल्ली की राजनीति में इतिहास रचेगा? ताज किसके सिर सजेगा, ये तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे। लेकिन इस बार दिल्ली का फैसला भारत की राजनीति में बड़ा असर डाल सकता है। दिल्ली का यह चुनाव सिर्फ नेताओं की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधाराओं का महासंग्राम है। BJP ने जहां दमदार चेहरे उतारे हैं, वहीं AAP ने अपनी नीतियों और काम का भरोसा जताया है। अब सवाल ये है कि दिल्ली का ताज किसके सिर सजेगा? दिल्ली बोलेगी, लेकिन इस बार किसके साथ?

4. भारत के गांवों में गरीबी की ऐतिहासिक गिरावट

भारत के गांवों में गरीबी अब बीते कल की बात बनती जा रही है। एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि देश के ग्रामीण इलाकों में गरीबी तेजी से घट रही है। पहली बार पावर्टी रेश्यो 5% से नीचे गिरकर 4.86% पर पहुंच गया है। केवल गांव ही नहीं, शहरी क्षेत्रों में भी गरीबी का स्तर घटा है। शहरों में पावर्टी रेश्यो 4.6% से गिरकर 4.09% पर आ गया है। यह संकेत देता है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब अपने सभी नागरिकों तक समृद्धि पहुंचाने में सफल हो रही है।

गांवों में गरीबी क्यों घट रही है?

इसका पहला कारण है बढ़ता हुआ उपभोग।  ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च बढ़ा है। 2011-12 में यह खर्च ₹816 था, जो अब ₹1,632 तक पहुंच गया है। यह दर्शाता है कि लोग अपनी ज़रूरतों के लिए पहले से ज्यादा खर्च कर पा रहे हैं। वहीँ Direct Benefit Transfer (DBT) जैसी योजनाओं ने लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे उनके बैंक खातों में पहुंचाया। इससे गरीबों को सीधा फायदा हुआ। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में बेहतर सड़कों, बिजली, और इंटरनेट जैसी सुविधाओं ने गांव और शहर के बीच की दूरी कम कर दी है। इससे रोजगार और आय के अवसर बढ़े हैं। गांवों में औद्योगिक गतिविधियां और छोटे उद्योग बढ़ने से लोगों की आय में सुधार हुआ है।

गांव और शहरों में खर्च का अंतर घटा

एसबीआई रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च अब करीब-करीब बराबरी पर आ गया है। गांवों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च ₹1,632 वहीँ शहरों में प्रति व्यक्ति मासिक खर्च ₹1,944 हो गया है। 2011-12 में यह खर्च ₹816 और ₹1,000 था। SBI की रिपोर्ट बताती है कि भारत की कुल गरीबी दर अब काफी तेज़ी से निचे गिर रही है। 

क्या कहता है यह बदलाव?

गांव और शहर के बीच आय का अंतर अब तेजी से घट रहा है। लोग बेहतर जीवन जीने की ओर बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, और किसानों के लिए आय सहायता जैसी योजनाओं ने गरीबी घटाने में बड़ी भूमिका निभाई है। लोग ज्यादा खर्च कर पा रहे हैं, जिससे जीवन स्तर में सुधार हुआ है।
गांवों में आर्थिक सुधार ने शहरों पर निर्भरता कम की है। तो क्या यह बदलाव भारत को विश्व में एक नई पहचान दिलाएगा? यह सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि उन करोड़ों चेहरों की मुस्कान है जो गरीबी की रेखा के बाहर आ चुके हैं। यह बदलाव देश के भविष्य की नई कहानी लिखने वाला है।