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Breaking News 4 February 2025

1 )  फलोदी सट्टा बाजार तय करेगा दिल्ली चुनाव के नतीजे ! 

 

दिल्ली विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ गई है, लेकिन चुनावी भविष्यवाणी का असली खेल राजस्थान के फलोदी सट्टा बाजार में चल रहा है। चुनावी विश्लेषकों से पहले, यह सट्टा बाजार ही बता रहा है कि दिल्ली की सत्ता की चाबी किसके हाथ में होगी। राजस्थान के फलोदी में चलने वाला यह बाजार सिर्फ एक सट्टेबाजी का अड्डा नहीं, बल्कि राजनीतिक भविष्यवाणी का गढ़ बन चुका है। 1 फरवरी को जारी हुए सट्टा बाजार के नए आंकड़ों के मुताबिक, आम आदमी पार्टी (AAP) 37-39 सीटों के साथ सरकार बना सकती है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) 31-33 सीटों पर सिमट सकती है। कांग्रेस को तो इस बार सट्टा बाजार ने नकार ही दिया है। क्या यह महज संयोग है, या फिर राजनीतिक दलों की अंदरूनी रणनीतियों और वोटिंग पैटर्न पर किसी अदृश्य ताकत का नियंत्रण है?

किसकी बनेगी दिल्ली में सरकार ? 

नई दिल्ली सीट जहां से अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे हैं, वहां मुकाबला भाजपा के प्रवेश वर्मा से है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि सट्टा बाजार में केजरीवाल का भाव 65 पैसे से 85 पैसे के बीच तय किया गया है। यानी 10,000 रुपये लगाने पर केवल 6,500 रुपये की वापसी होगी। दूसरी ओर, प्रवेश वर्मा पर दांव लगाने वाले को 8,500 रुपये मिलेंगे। दिल्ली की दूसरी हॉट सीट कालकाजी से आम आदमी पार्टी की आतिशी मैदान में हैं। भाजपा से रमेश बिधूड़ी और कांग्रेस से अलका लांबा उनके सामने हैं। आतिशी पर सट्टा बाजार का भाव 25 पैसे से 33 पैसे तक है। अगर कोई आतिशी पर 10,000 रुपये लगाता है, तो उसे सिर्फ 2,500 रुपये की कमाई होगी। भाजपा के रमेश बिधूड़ी पर 10,000 लगाने वाले को 3,300 रुपये मिलेंगे। यानी यहां भी सट्टा बाजार आम आदमी पार्टी की बढ़त को दिखा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि बाजार में भी केजरीवाल की जीत लगभग तय मानी जा रही है। सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि चुनावी नतीजों का पूर्वानुमान सट्टा बाजार को इतनी सटीकता से कैसे होता है? क्या यह महज अनुमान हैं, या फिर चुनावी मशीनरी पर किसी अदृश्य शक्ति का नियंत्रण है? क्या राजनीतिक दलों के भीतर की गोपनीय जानकारी पहले से ही सट्टा बाजार तक पहुंचा दी जाती है? अगर ऐसा है, तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है। कानूनी रूप से सट्टा बाजार प्रतिबंधित है, लेकिन फिर भी फलोदी का यह गढ़ दिन-रात सक्रिय रहता है। फलोदी सट्टा बाजार सिर्फ चुनावों तक सीमित नहीं है। यहां पर बारिश होगी या नहीं, स्टॉक मार्केट में गिरावट आएगी या उछाल, यहां तक कि सड़क पर लड़ रहे दो सांडों में कौन जीतेगा इस पर भी करोड़ों रुपये का दांव लगता है। अगर यह सट्टा बाजार चुनावी भविष्यवाणी के नाम पर किसी गहरे राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है, तो यह भारत के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता है। इस पूरी सट्टेबाजी ने चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगर यह बाजार वास्तव में चुनावी रुझानों को इतनी सटीकता से भांप सकता है, तो इसका मतलब यह है कि या तो चुनाव पहले से ही तय हैं, या फिर जनता के वोट का कोई मोल नहीं बचा। यह सिर्फ दिल्ली चुनाव की बात नहीं, बल्कि पूरे देश के लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। अब देखना यह है कि 5 फरवरी को वोटिंग और 8 फरवरी को नतीजों के बाद क्या वास्तव में लोकतंत्र की जीत होगी, या फिर फलोदी सट्टा बाजार की।