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Breaking News 4 August 2025

1.) ओवल टेस्ट में रोमांच चरम पर: भारत जीतेगा या इतिहास दोहराएगा?

ओवल में खेला जा रहा भारत-इंग्लैंड का पांचवां और आखिरी टेस्ट मुकाबला अब अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। चौथे दिन के आखिरी सेशन में मौसम ने मैच की रफ्तार को रोकने की नाकाम कोशिश की। करीब डेढ़ घंटे तक बारिश और खराब रोशनी ने खेल को टाल दिया। जब खेल रुका, तब स्कोरबोर्ड पर नज़र डालिए—इंग्लैंड को जीत के लिए सिर्फ 35 रन चाहिए थे और भारत को उसकी जीत की राह में बस 4 विकेट की ज़रूरत थी। दिखने में भले ही ये आंकड़े छोटे लगें, लेकिन यकीन मानिए, इन चंद रनों और विकेटों के बीच में इतिहास का एक बेहद भारी दरवाज़ा खड़ा है जिसे खोलना आसान नहीं। अब आप पूछेंगे कि टीम इंडिया के लिए इसमें मुसीबत क्या है? जीत तो बस चार विकेट दूर है। पर असली कहानी यहीं से शुरू होती है। ये सिर्फ ओवल टेस्ट नहीं है, बल्कि Team India के 93 साल के टेस्ट इतिहास का वो पन्ना है, जो आज तक कोरा पड़ा है। भारत ने अब तक विदेशी ज़मीन पर जितनी भी 5 मैचों की टेस्ट सीरीज खेली हैं, उनमें एक बार भी आखिरी यानी पांचवां टेस्ट मैच नहीं जीता। कभी नहीं। ज़ीरो। निल। यानी ये 5th टेस्ट, हर बार एक कांटा बना रहा, एक अधूरा किस्सा, एक ऐसा ज़ख्म जो हर दौरे के अंत में हरा हो जाता था। और इस बार ये 5वां टेस्ट ओवल के मैदान पर हो रहा है, वो भी ऐसे हालात में जहां भारत इतिहास की दहलीज़ पर खड़ा है या तो वो इतिहास बदलेगा, या इतिहास फिर उसे दोहराएगा। लेकिन इस बार कहानी में ट्विस्ट है। क्योंकि सिर्फ भारत ही नहीं, इंग्लैंड भी इतिहास बनाने की कगार पर है। ओवल के 123 सालों में आज तक किसी भी टीम ने 374 रन का टारगेट चेज़ नहीं किया। यानि अगर इंग्लैंड ये रन बना लेता है, तो वो ओवल पर सबसे बड़ा सफल रन चेज़ दर्ज करेगा, और अगर भारत इस टारगेट को डिफेंड कर लेता है, तो न सिर्फ ये टेस्ट जीतेगा, बल्कि वो 'पांचवां टेस्ट कभी नहीं जीतने' का कलंक भी धो डालेगा। सीधा मतलब: जो भी टीम जीतेगी, इतिहास की किताबों में मोटे अक्षरों में नाम दर्ज करवाएगी।

अब बात करते हैं मैदान की सच्चाई की। पांचवें दिन का खेल शुरू होने वाला है और दोनों टीमों को अपनी-अपनी जंग जीतने के लिए एक निर्णायक कदम भर उठाना है। इंग्लैंड को अपने खाते में 35 रन जोड़ने हैं, जबकि भारत को गेंद से 4 विकेट चटकाने हैं। लेकिन टेस्ट क्रिकेट में कभी भी चीज़ें इतनी सीधी नहीं होतीं। दबाव, पिच की चाल, मौसम की भूमिका और खिलाड़ियों की मानसिकता ये सब मिलकर आखिरी घंटे को युद्ध का मैदान बना देते हैं।

ऐसे में टीम इंडिया के कप्तान शुभमन गिल का एक डायलॉग अचानक टीम का मंत्र बन गया है। चौथे दिन के खेल के बाद उन्होंने ड्रेसिंग रूम में कहा—“एक घंटा और ज़ोर लगाएंगे, फिर साथ में आराम करेंगे।” ये लाइन अब महज़ एक जुमला नहीं रही, बल्कि पूरे ओवल टेस्ट की धड़कन बन गई है। गिल का ये भरोसा, टीम इंडिया की मानसिक तैयारी को दर्शाता है। अगर बुमराह की धार, सिराज की रफ्तार और अश्विन की चतुराई ने पहले घंटे में रंग दिखा दिया, तो इतिहास सिर्फ लिखा नहीं जाएगा, बल्कि चिल्ला-चिल्ला कर सुनाया जाएगा।

Team India के लिए ये मुकाबला सिर्फ एक जीत नहीं, बल्कि एक दफ़न पड़ी उम्मीद को फिर से ज़िंदा करने जैसा है। ये मैच सिर्फ खिलाड़ियों की परीक्षा नहीं, बल्कि राहुल द्रविड़ जैसे कोच के करियर की भी आखिरी विदेशी चुनौती है। रोहित शर्मा के लिए ये redemption है, गिल के लिए leadership का baptism है, और बुमराह-अश्विन-जडेजा के लिए clutch heroes बनने का मौका। यानी ये टेस्ट एक टीम का सफ़र नहीं, एक पूरी पीढ़ी की प्रतीक्षा है।

अगर भारत ये मैच जीतता है, तो अगली सुबह अखबारों की हेडलाइन्स कुछ यूं होंगी: “93 साल का इंतजार खत्म, भारत ने 5वां टेस्ट जीतकर इतिहास रचा”, “ओवल में इंग्लैंड ढेर, भारत का दबदबा कायम”। और अगर इंग्लैंड जीतता है, तो शायद: “Bazball का चमत्कार”, “ओवल में रिकॉर्ड चेज़, भारत के हाथ से फिसली जीत”। तो अब सवाल ये नहीं कि कौन जीतेगा। सवाल ये है कौन इतिहास बदलेगा? कौन अपनी किस्मत की स्क्रिप्ट खुद लिखेगा? कौन उस ‘एक घंटे की कोशिश’ से 93 साल के रिकॉर्ड को मिट्टी में मिला देगा? आज ओवल में सिर्फ क्रिकेट नहीं खेला जाएगा। आज एक टीम अपने डर से लड़ेगी, और एक टीम अपने जूनून से। बस एक घंटा चाहिए... एक घंटा जो पूरी सदी का चेहरा बदल सकता है।

 

2.) अमरनाथ यात्रा समय से पहले हुआ सम्पन्न! जाने क्यों 

ऊंचे पहाड़ों के बीच, बर्फ की चादर ओढ़े वो गुफा... जहां हर साल करोड़ों दिलों की धड़कन बसती है  बाबा बर्फानी का दरबार। अमरनाथ यात्रा एक तीर्थ एक अनुभव है। ठंडी हवा, ऊबड़-खाबड़ रास्ते, कांवड़ियों की हर हर महादेव की गूंज और उन आंखों में बसी आस्था ये सब मिलकर बनाते हैं उस यात्रा को जो सिर्फ शरीर से नहीं, मन और आत्मा से पूरी होती है। इस साल यात्रा शुरू हुई थी 3 जुलाई को, और योजना थी 9 अगस्त तक चलने की। लेकिन मौसम ने करवट ली, बादल गरजे, बारिश बर्फ से भी तेज़ निकली और ट्रैक की हालत देख प्रशासन को ये यात्रा 3 अगस्त को ही समाप्त करनी पड़ी। फैसला अचानक नहीं था, ज़िम्मेदारी के साथ लिया गया था ताकि कोई अनहोनी न हो।

लेकिन जब तक यात्रा चली, भक्ति का ज्वार कम नहीं हुआ। कुल 4 लाख 14 हज़ार श्रद्धालुओं ने बाबा के दर्शन किए। और अंतिम दिन भी आंकड़े दिल छू लेने वाले रहे 4,586 पुरुष, 1,299 महिलाएं, 62 बच्चे, 51 साधु, 5 साध्वियां और 494 सुरक्षाकर्मी  सबने गुफा के भीतर जाकर ‘जय शिव शंभू’ कहा और आंखों में शांति लेकर लौटे। पिछले साल के मुकाबले इस बार संख्या थोड़ी कम रही, लेकिन भक्ति की तादाद कभी आंकड़ों में मापी नहीं जाती। इस बार जो आया, वो दिल से आया। जिसने नहीं आ पाया, वो अगले साल की आस में है। और जो गुफा तक पहुंच गया, वो शिव के करीब पहुंच गया। इस यात्रा की सबसे बड़ी बात ये रही कि हर विभाग ने मिलकर इसे सुरक्षित और शांतिपूर्ण बनाए रखा। सुरक्षाबल, प्रशासन, हेल्थ वॉलंटियर्स, लंगर वाले, हेलीकॉप्टर सेवा — सबने मिलकर ये भरोसा कायम किया कि चाहे मौसम बिगड़ जाए, बाबा की कृपा में कोई खलल न आए।
यात्रा से लौट रहे कई श्रद्धालुओं ने कहा, “बर्फानी बाबा ने बुलाया, दर्शन भी कराए और अब जल्दी विदा भी कर दिया। शायद अगले साल और जल्दी बुलाएंगे।” इस एक लाइन में वो अपनापन छुपा है, जो हर कांवड़िए, हर यात्री को बाबा से जोड़ता है एक भक्त और भगवान का रिश्ता, जो ट्रैक नहीं, दिल से बनता है। अब जब यात्रा समय से पहले समाप्त हुई है, तो निगाहें अगले साल पर हैं। उम्मीद है कि मौसम मेहरबान रहेगा, इंफ्रास्ट्रक्चर और मजबूत होगा, और बाबा बर्फानी फिर से अपने भक्तों की कतार देख मुस्कुराएंगे। अंत में यात्रा भले समय से पहले खत्म हुई हो, पर श्रद्धा अपने पूरे शिखर पर थी। बाबा ने बुलाया था, दर्शन दिए और फिर कहा "अब विश्राम करो, अगले साल फिर आना… मैं यहीं मिलूंगा।"

 

3.) कौन सस्पेंड हुआ, कौन पकड़ा गया? बालासोर आत्महत्या केस में बड़ा अपडेट

ओडिशा के बालासोर में एक छात्रा की आत्मदाह की घटना के मामले में पुलिस ने अब तक चार लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें कॉलेज के छात्र ज्योति प्रकाश बिस्वाल और ABVP के राज्य संयुक्त सचिव शुभ्र संबैत नायक शामिल हैं। दोनों को रविवार रात बालासोर के एसडीजेएम (SDJM) कोर्ट में पेश किया गया, जहाँ जमानत याचिका खारिज हो गई। अब दोनों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। इससे पहले, कॉलेज के प्रिंसिपल और एचओडी समीर रंजन साहू को भी गिरफ्तार किया जा चुका है। चारों पर आरोप है कि उन्होंने या तो लड़की का उत्पीड़न किया, या फिर उसके द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत को दबाने की कोशिश की। यहाँ तक कि कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ छात्रों को भी कथित रूप से लड़की के खिलाफ उकसाया गया। अब सवाल है ये गिरफ्तारी इंसाफ की शुरुआत है या सिस्टम की देरी से आई ‘औपचारिक लीपापोती’? 12 जुलाई को फकीर मोहन (स्वायत्त) कॉलेज की एक 20 वर्षीय छात्रा ने खुद को कॉलेज प्रिंसिपल के ऑफिस के सामने आग लगा ली। छात्रा 90 फीसदी तक जल चुकी थी और 15 जुलाई को अस्पताल में उसकी मौत हो गई। मरने से पहले उसने अपने बयान में बताया कि वो एचओडी समीर रंजन साहू के यौन उत्पीड़न से परेशान थी। उसने कॉलेज की ICC (आंतरिक शिकायत समिति) में शिकायत दी, लेकिन वहां उसे तवज्जो नहीं मिली। छात्रा के परिजनों का आरोप है कि शिकायत वापस लेने के लिए उस पर लगातार दबाव डाला गया। यहाँ तक कि कॉलेज के प्रिंसिपल ने भी समझाने की जगह शिकायत वापस लेने को कहा। पर लड़की झुकी नहीं। जब हर सिस्टम, हर कुर्सी, हर संगठन ने आँखें मूंद लीं, तो उसने एक रास्ता चुना जिसने पूरे कॉलेज को शर्म से झुका दिया।

प्रशासन का व्यवहार निष्क्रियता या मिलीभगत?

पुलिस की जांच में सामने आया है कि छात्रा की शिकायत को कॉलेज प्रशासन ने दबा दिया। यहाँ तक कि एचओडी साहू ने उसके खिलाफ छात्रों का ग्रुप बनवाया ताकि लड़की का चरित्र खराब किया जा सके। ABVP नेता और छात्र भी इस कथित दबाव में शामिल थे। जो लोग उसे सुरक्षा दे सकते थे,
वो उसे ही संदिग्ध बनाने में जुट गए। यह घटना न सिर्फ शिक्षण संस्थानों की व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, बल्कि 'बेटी पढ़ाओ' के नारे की खोखली सच्चाई भी दिखाती है।