गुरुवार के सत्र से पहले ही घरेलू शेयर बाजार पर दबाव के स्पष्ट संकेत देखने को मिले। Gift Nifty में लगभग 179 अंकों की गिरावट के साथ 24,675 पर कारोबार हुआ, जो बाजार की कमजोर शुरुआत का संकेतक रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट केवल तकनीकी कारणों से नहीं, बल्कि वैश्विक घटनाक्रमों के प्रभाव से प्रेरित है। Volatility Index (India VIX) भी बुधवार को 2.8% की तेजी के साथ 11.20 के स्तर पर बंद हुआ, जो बाजार में बढ़ते अस्थिरता के माहौल को दर्शाता है। यह स्तर बताता है कि निवेशकों के बीच अनिश्चितता बढ़ रही है, और ट्रेडर्स फिलहाल सतर्क रुख अपना रहे हैं।
टेक्सटाइल सेक्टर को इस घटनाक्रम से सबसे अधिक दबाव झेलना पड़ सकता है। Gokaldas Exports, Welspun Living, Indo Count Industries और Pearl Global जैसी कंपनियां अमेरिका को बड़े स्तर पर निर्यात करती हैं, और नई शर्तों के चलते इनके मार्जिन पर दबाव बढ़ने की आशंका है। Automobile और Auto Components से जुड़ी कंपनियां भी प्रभावित हो सकती हैं, क्योंकि अमेरिका भारत के लिए एक प्रमुख निर्यात बाजार है। Agri Products और Marine Exports (Seafood) को लेकर भी जोखिम सामने हैं, क्योंकि अमेरिका को इन श्रेणियों में भारत से बड़ी मात्रा में आपूर्ति होती है। Pharmaceutical कंपनियों, विशेषकर Sun Pharma, Lupin, और Dr. Reddy’s Laboratories पर भी असर देखने को मिल सकता है, क्योंकि regulatory और pricing structure अब और जटिल हो सकता है। साथ ही, Electronics, Machinery, और Gems & Jewellery जैसे कैपिटल गूड्स और लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स से जुड़े क्षेत्रों पर भी दबाव बन सकता है।
बुधवार को अमेरिकी शेयर बाजार भी दबाव में रहे। Dow Jones करीब 0.38%, जबकि S&P 500 लगभग 0.12% की गिरावट के साथ बंद हुआ। इस गिरावट की दो प्रमुख वजहें रहीं एक, फेडरल रिजर्व के चेयरमैन Jerome Powell द्वारा ब्याज दरों में जल्द कटौती की संभावनाओं को कमतर करना; और दूसरी, भारत के खिलाफ एक अप्रत्याशित ट्रेड पॉलिसी निर्णय।
इस पूरी वित्तीय उथल-पुथल के केंद्र में है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा ऐलान, जिसमें उन्होंने भारत से आयात होने वाले कई उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की। यह निर्णय भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस टैरिफ का दीर्घकालिक असर भारतीय निर्यात सेक्टर पर पड़ेगा, खासकर उन क्षेत्रों पर जो अमेरिका पर निर्भर हैं। अल्पकाल में बाजारों में अस्थिरता और सेक्टोरल करेक्शन की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
29 सितंबर 2008 की शाम मालेगांव की गलियां रोज़े के बाद इफ्तार की तैयारी में डूबी थीं। लेकिन तभी भिक्खू चौक पर एक ज़ोरदार धमाका हुआ, जिसने सब कुछ बदल दिया। रमज़ान के महीने में हुए इन Serial Blasts ने 6 लोगों की जान ले ली और 100 से ज़्यादा लोग घायल हो गए। शुरुआती जांच में शक जिहादी संगठनों पर गया, लेकिन एक टू-व्हीलर ने पूरी केस डायरेक्शन ही बदल दी। दरअसल, बम जिस बाइक में रखा गया था, वह बाइक साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर रजिस्टर्ड पाई गई। इसके बाद Maharashtra ATS की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, कुछ ऐसे नाम सामने आने लगे, जिनकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। जांच में सामने आया कि इस धमाके में RDX का इस्तेमाल हुआ था और एक सुनियोजित साजिश के तहत इसे अंजाम दिया गया। ATS ने Pragya Singh Thakur के साथ-साथ लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधाकर धर द्विवेदी और समीर कुलकर्णी को आरोपी बनाया। इन सभी पर Section 302 (Murder), 120B (Criminal Conspiracy), और UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) जैसी गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया। साल 2011 में जांच की कमान ATS से हटाकर National Investigation Agency (NIA) को सौंप दी गई। फिर घटनाएं तेजी से बदलीं। 2017 में साध्वी प्रज्ञा को जमानत मिली और 2019 में वे Bhopal से BJP की सांसद चुनी गईं। लेकिन कोर्ट में मामला धीमा चलता रहा, और गवाहों ने एक-एक करके अपने बयान बदल दिए। कई ने कोर्ट में जाकर कहा कि उन्होंने दबाव में बयान दिए थे। Prosecution की कहानी इसी वजह से कमजोर होती चली गई।
अब, 31 जुलाई 2025 को मुंबई की एक विशेष NIA कोर्ट ने इस बहुचर्चित केस में अपना फैसला सुनाते हुए सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि Prosecution यह साबित नहीं कर पाया कि धमाकों के पीछे इन लोगों का सीधा हाथ था। यानी 17 साल बाद केस वहीं आकर खड़ा हो गया, जहां से शुरू हुआ था — अनिश्चितता और निराशा। लेकिन इस फैसले के बाद सबसे ज्यादा पीड़ा उन परिवारों को हुई, जिन्होंने इस धमाके में अपने अपनों को खोया था। मृतकों में फरहीन उर्फ शगुफ्ता शेख लियाकत, शेख मुश्ताक यूसुफ, शेख रफीक मुस्तफा, इरफान जियाउल्लाह खान, सैयद अजहर सैयद निसार और हारून शाह मोहम्मद शाह शामिल थे। सैयद अजहर के पिता ने कहा, “17 साल तक हमने इंतज़ार किया कि शायद न्याय मिलेगा, लेकिन सारे सबूतों को दरकिनार करके आरोपियों को छोड़ दिया गया। हम अब Supreme Court का रुख करेंगे।”
यह फैसला भारत की न्यायिक प्रणाली, जांच एजेंसियों की कार्यशैली और आतंकवाद जैसे गंभीर मामलों में राजनीतिक दखल की परतें भी खोलता है।
बारिश... जो कभी सौगात मानी जाती थी, अब आफत बनकर टूटी है। राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और दिल्ली तक पानी ऐसा बरसा कि सड़कें दरिया बन गईं और गांवों की रफ्तार थम गई। हालात ये कि स्कूल बंद, लोग घरों में कैद और प्रशासन अलर्ट पर। मौसम विभाग की चेतावनी हकीकत में तब्दील हो चुकी है – और इस बार, तस्वीरें नहीं, सैलाब बोल रहा है। रातभर की मूसलाधार बारिश ने दिल्ली को पानी-पानी कर दिया। सफदरजंग अस्पताल, जिसे राजधानी का प्रमुख हेल्थ सेंटर कहा जाता है, उसकी गैलरी तक पानी से भर गई। मरीज और डॉक्टर एक ही सवाल में डूबे नज़र आए – इलाज दें या नाव चलाएं? गैलरी में पानी, कमरों में गीलापन और बाहर अफरातफरी। सवाल वही पुराना है – क्या दिल्ली हर बार यूं ही बहती रहेगी? राजस्थान: जहां अलर्ट रूटीन बन चुका है सवाई माधोपुर, जयपुर, बूंदी और धौलपुर जैसे जिलों में बारिश ने जमीन छोड़ दी और आसमान से बाढ़ उतर आई। चंबल नदी, जो पहले ही बदनाम है अपने तेवरों के लिए, इस बार पूरे 11 मीटर ऊपर बह रही है। गांवों में 10 से 15 फीट तक पानी घुस गया है, लोग अपने ही घरों को नाव से देख रहे हैं। कुछ गांव तो ऐसे वीरान हुए कि इंसानी आवाजें तक सुनाई नहीं दे रहीं जैसे पूरा कस्बा पानी में घुल गया हो। मध्य प्रदेश में नदियों का कहर और सिस्टम की हार । यहां कहानी सिर्फ पानी की नहीं, बल्कि सिस्टम की भी है। शिवपुरी, सागर, गुना, विदिशा हर ज़िले से एक ही साउंड इफेक्ट आ रहा है ‘गुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र’। चंबल, सिंध, नर्मदा और उनकी नन्ही-सी नदियां अब बड़े शहरों की रफ्तार रोक रही हैं। बुंदेलखंड रीजन में हालात ये हैं कि नदियां अपने किनारे नहीं पहचान रही हैं, और गांव अपनी ज़मीन नहीं। डिंडोरी, अलीराजपुर, बैतूल जैसे दूर-दराज के जिलों से खबरें आ रही हैं कि सेना को बुलाना पड़ा। अब तक करीब 2,900 लोगों को सुरक्षित निकाला गया, जिनमें 27 स्कूली बच्चे भी शामिल हैं। लेकिन सवाल फिर वहीं हर बार ऐसा क्यों होता है? कहीं बाढ़, कहीं बर्बादी और हर जगह बेबसी बात सिर्फ आंकड़ों की नहीं है ये तस्वीरें हैं उन बच्चों की जो बाढ़ में अपनी किताबें खो बैठे हैं। ये वो आवाजें हैं जो प्रशासन को पुकार रही हैं, पर जवाब में बस सन्नाटा मिल रहा है। राजस्थान के 16 जिलों में बारिश का रेड अलर्ट है। एमपी के 13 जिले पूरी तरह से बाढ़ से घिरे हैं। और दिल्ली... दिल्ली बस भीग रही है छतें टपक रही हैं और सड़कें डूब रही हैं। आखिर में... ये कोई फिल्म का ट्रेलर नहीं, रियलिटी है जिसे हर साल हम देखते हैं, झेलते हैं, और फिर भूल जाते हैं। पर इस बार पानी सिर्फ ज़मीन पर नहीं, आंखों में भी चढ़ गया है। कभी दिल्ली डूबती है, तो कभी बुंदेलखंड। लेकिन बुनियादी सवाल वहीं ठहरा है क्या हमारी तैयारी सिर्फ चेतावनी तक सीमित रह जाएगी? या हम सुनामी जैसे बड़े खतरे के लिए तैयार भी है कि नहीं ।