बिहार में चुनाव का मौसम है जहाँ भीड़, नारों और जातीय समीकरणों के बीच हवा का रुख़ हर घंटे बदलता है। इस बार भी वही नज़ारा है। सड़कों से लेकर चौपालों तक हर जगह बस एक सवाल है “अबकी बार कौन?” 2025 के विधानसभा चुनाव दो चरणों में हो रहे हैं 6 और 11 नवंबर, जबकि मतगणना होगी 14 नवंबर 2025 को। 243 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सीटों की ज़रूरत है। एक तरफ़ है एनडीए, जिसमें बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी(रामविलास), एचएएम और आरएलएसपी जैसी पार्टियाँ हैं। सीट बँटवारे का गणित भी तय हो चुका है बीजेपी 101, जेडीयू 101, एलजेपी (रामविलास) 29, एचएएम 6 और आरएलएसपी 6 सीटों पर मैदान में। दूसरी तरफ़ है महागठबंधन या INDIA ब्लॉक, जिसकी कमान तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के हाथ में है। कांग्रेस और वाम दल इसमें साथ हैं। बीते हफ़्ते से तेजस्वी और राहुल की संयुक्त रैलियों ने विपक्ष के कैंपेन में नई जान फूंक दी है।
कौन आगे? कौन पीछे?
अगर अभी की राजनीतिक हवा की बात करें तो एनडीए थोड़ी आगे दिख रही है। IANS–Matrize और CVoter जैसे ओपिनियन पोल्स में एनडीए को 5 से 7% तक की बढ़त दिखाई गई है। बीजेपी और जेडीयू के बीच तालमेल भी पहले से मज़बूत लगता है। अमित शाह और चिराग पासवान दोनों ने साफ़ कर दिया है कि “सीएम फेस नीतीश कुमार ही होंगे।” विपक्ष की तरफ़ से तेजस्वी यादव बेरोज़गारी, पलायन और भ्रष्टाचार के मुद्दों को उठाकर माहौल गरमाने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल गांधी ने बिहार के युवाओं को लेकर कहा “नौकरी बिहार की पहचान बनेगी, मज़दूरी नहीं।” लेकिन अब तक जनता का रुझान थोड़ा संतुलित ही दिखता है शोर दोनों तरफ़ है, भरोसा थोड़ा ज़्यादा एनडीए पर । नीतीश कुमार भारतीय राजनीति के सबसे ‘टिकाऊ’ खिलाड़ियों में से एक हैं। नौवीं बार शपथ लेने वाले ये नेता, गठबंधनों के बदलते दौर में भी सत्ता के केंद्र में बने हुए हैं। उनके पास काम हैं, और विरोधियों के पास सवाल। उन्होंने बिहार को ‘जंगलराज’ की छवि से निकालने का श्रेय पाया। सड़कों, बिजली और कानून-व्यवस्था में सुधार किया। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए पंचायतों में 50% आरक्षण और स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल योजना जैसे कदमों ने नीतीश को ‘महिला मतदाताओं का मुख्यमंत्री’ बना दिया। 2016 की शराबबंदी नीति को भी महिलाओं ने खुले तौर पर समर्थन दिया हालांकि ग्राउंड पर इसका दुरुपयोग और शराब की तस्करी आज भी विपक्ष के लिए हथियार है। 2023 में कराए गए जाति आधारित सर्वे को नीतीश का सबसे बड़ा राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक माना गया। इससे अति पिछड़ों (EBC) और ओबीसी वोट बैंक को जोड़ने में उन्हें बढ़त मिली। हालांकि, 2024 में जब बिहार सरकार ने 75% तक आरक्षण बढ़ाने का निर्णय लिया, तो पटना हाई कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी और यहीं से विपक्ष को एक नया हमला करने का मौका मिला। तेजस्वी यादव इस सर्वे को ‘जनता का डेटा जनता के पास’ वाला मुद्दा बनाकर पेश कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या जाति से ऊपर उठकर बेरोज़गारी और शिक्षा जैसे मुद्दे इस बार निर्णायक भूमिका निभाएँगे? एनडीए के लिए इस बार दो बातें सबसे फ़ायदेमंद हैं पहली, सीएम फेस की स्पष्टता।
दूसरी, गठबंधन का एकजुट दिखना। जहाँ विपक्ष अभी भी कई सीटों पर सहमति बनाने में जुटा है, वहीं एनडीए का चुनावी प्रबंधन पूरी तरह सेट है। बीजेपी के पास कैडर, जेडीयू के पास शासन का अनुभव और एलजेपी के पास युवा जोश का तड़का ये कॉम्बिनेशन एनडीए को “अर्ली एज” देता है।
विपक्ष की उम्मीदें
तेजस्वी यादव इस बार अकेले नहीं हैं। राहुल गांधी के साथ मिलकर उन्होंने “बेरोज़गारी हटाओ, बदलाव लाओ” का नारा बुलंद किया है। महागठबंधन ने युवाओं के लिए नौकरी, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और गरीबों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवाओं को मुख्य एजेंडा बनाया है। लेकिन विपक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती वोटों का ट्रांसफर है। यानी कांग्रेस का वोट क्या आरजेडी को मिलेगा? और वाम दलों का वोट क्या कांग्रेस को ट्रांसफर होगा? यही समीकरण अंतिम नतीजे तय करेंगे। अब बात उस हिस्से की जहाँ एनडीए थोड़ी कमज़ोर पड़ती दिखती है।
युवाओं में निराशा, बेरोज़गारी का ग्राफ़, और पलायन जैसे मुद्दे अब भी बड़े हैं। बिहार में आज भी 70% से ज़्यादा युवा राज्य के बाहर रोज़गार की तलाश में हैं। नीतीश की “एक करोड़ नौकरी” की घोषणा अभी वादे के स्तर पर है। विपक्ष इसी पर सवाल उठा रहा है कि “इतने सालों में बिहार में नौकरी क्यों नहीं बनी?” देखते है आगे क्या क्या होता है बने रहिए और सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।
आज 30 अक्टूबर 2025 जब पूरा इंटरनेट, और खगोलशास्त्रियों की नींद, दोनों एक नाम पर टिकी है 3I/ATLAS। एक ऐसा इंटरस्टेलर (अंतरतारकीय) ऑब्जेक्ट, जो हमारी आकाशगंगा से नहीं, बल्कि किसी दूसरी दुनिया से आया है। कहते हैं, जब कोई यात्री दूर के ग्रह से आता है, तो वो अपने साथ सिर्फ धूल नहीं, बल्कि रहस्य भी लाता है। और 3I/ATLAS वही रहस्य है, जिसे समझने की कोशिश आज पूरी मानवता कर रही है।
ATLAS कौन है और ये आया कहां से?
ये “एटलस” नाम किसी ग्रीक मिथक से नहीं, बल्कि ATLAS टेलीस्कोप सिस्टम से आया है एक ऐसा स्पेस सर्विलांस प्रोजेक्ट जो आसमान पर हर उस चीज़ पर नज़र रखता है,
जो पृथ्वी के आसपास से “कुछ ज़्यादा तेज़” गुज़र जाए। 1 जुलाई 2025, चिली के एक टेलीस्कोप ने अचानक एक चमकता हुआ धुंधला धब्बा देखा। पहले सबने सोचा शायद कोई साधारण धूमकेतु होगा। लेकिन नहीं। जैसे-जैसे डेटा आया, ऑर्बिट निकाली गई, पता चला इसकी गति इतनी अधिक है कि ये सूरज की गुरुत्वाकर्षण से “बंध” नहीं सकता। मतलब? ये हमारे सौरमंडल का हिस्सा ही नहीं है। यह अब तक दर्ज हुए सिर्फ तीसरे इंटरस्टेलर ऑब्जेक्ट में से एक है। पहला था 2017 में आया ‘ओउमुआमुआ’ जिसके बारे में कहा गया कि वो शायद एलियन प्रोब था। दूसरा था 2019 में देखा गया ‘बोरिसोव’। और अब, तीसरा नाम जुड़ चुका है 3I/ATLAS, यानी “थर्ड इंटरस्टेलर ऑब्जेक्ट: एटलस।” पिछले दो दिनों से यह “कॉस्मिक ट्रैवलर” सूरज के सबसे करीब था लगभग 1.35 AU की दूरी पर, यानी पृथ्वी और सूर्य के बीच जितनी दूरी होती है, उससे थोड़ी ज़्यादा पर। वैज्ञानिकों के लिए ये एक दुर्लभ मौका था, क्योंकि किसी भी इंटरस्टेलर ऑब्जेक्ट को इतनी स्पष्टता से देख पाना लगभग असंभव है। NASA के डाटा के मुताबिक, इसकी रफ्तार कई दर्जन किलोमीटर प्रति सेकंड थी। मतलब, अगर आपने अपनी कार की हेडलाइट्स ऑन कीं, तो ये उससे भी तेज़ निकल जाएगा “ब्लिंक करो और मिस कर दो” वाली गति। लेकिन जो बात सबसे दिलचस्प है, वो ये कि इसने एक ‘टेल’ विकसित की है। यानी गैस और धूल की लंबी पूंछ, जैसे किसी धूमकेतु की होती है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स (जैसे NYPost, LiveScience) में दावा किया गया कि हार्वर्ड के प्रोफेसर Avi Loeb ने इस पर कहा “इसकी दिशा और गति सामान्य नहीं है। हो सकता है कि यह किसी ‘कृत्रिम नियंत्रण’ के अधीन हो।”अब यह बात सुनते ही इंटरनेट फट पड़ा “क्या एलियन शिप आ गई?” “क्या यह कोई इंटरस्टेलर सैटेलाइट है?”क्या कुछ होने वाला है?” पर सच्चाई थोड़ी ठंडी है और उतनी ही सुंदर भी। खतरा नहीं, लेकिन आश्चर्य ज़रूर है
NASA और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के अनुसार,एटलस पृथ्वी से 1.8 AU दूर है मतलब लगभग 270 मिलियन किलोमीटर और हमारी दिशा में नहीं बढ़ रहा। तो डर की कोई बात नहीं। पर fascination की बहुत है। क्योंकि इस ऑब्जेक्ट में कुछ ऐसे रासायनिक कंपाउंड मिले हैं जो हमारे सौरमंडल में कम पाए जाते हैं। वैज्ञानिक इसे “कॉस्मिक टाइम कैप्सूल” मान रहे हैं एक ऐसा टुकड़ा जो किसी दूर के तारे के चारों ओर बना था, और अब अरबों साल की यात्रा के बाद हमारे पड़ोस में आ निकला है।
क्यों यह इतना “वायरल” हुआ?
क्योंकि, सच कहो हम इंसानों को डर और रहस्य दोनों ही आकर्षित करते हैं। “इंटरस्टेलर” शब्द में ही एक रोमांच छिपा है। हर बार जब कोई ऐसी चीज़ आती है, हम अपने भीतर झाँकने लगते हैं क्या कहीं सच में कोई और भी है वहाँ बाहर?
क्या हमारी टेक्नोलॉजी उतनी ही “छोटी” है, जितनी वो हमें महसूस कराना चाहता है? या शायद… हम खुद ही वो एलियन्स हैं, जिन्हें कोई और देख रहा है? अगर ब्रह्मांड को एक किताब माना जाए, तो 3I/ATLAS उसका वो पन्ना है जो गलती से हमारे पन्ने में फँस गया है। हम उसे पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, पर उसकी भाषा हमारी समझ से कहीं आगे है। ये ऑब्जेक्ट चाहे किसी तारे से टूटकर आया हो या किसी सभ्यता की पुरानी तकनीक का अवशेष हो इसने एक बात साफ़ कर दी है हमारा सौरमंडल अकेला नहीं है। और शायद हम भी नहीं।
सच बनाम फसाना
दावा सच्चाई “एटलस धरती से टकराने वाला है”ये झूठ है असल में ये पृथ्वी से बहुत दूर गुजर रहा है“ये एलियन शिप नहीं है” कोई प्रमाण नहीं, बस थ्योरी है “ये अब तक का सबसे बड़ा इंटरस्टेलर ऑब्जेक्ट है” हाँ, अब तक का सबसे विशाल इंटरस्टेलर धूमकेतु है “इसे आंखों से देखा जा सकता है” नहीं, यह सूर्य के बहुत पास है सिर्फ टेलीस्कोप से दिखेगा“वैज्ञानिक इसे लेकर हैरान हैं” बिल्कुल क्योंकि इसकी संरचना और गति दोनों ही असामान्य हैं यानी 3I/ATLAS आज, 30 अक्टूबर 2025 को सूरज के सबसे करीब से गुजर चुका है यह पृथ्वी के पास नहीं आया, बल्कि लगभग 1.8 AU (करीब 27 करोड़ किमी) दूर से सुरक्षित रूप से गुज़र गया है। ऐसे ही लेटेस्ट खबरों को देखने के लिए आप सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।