पाकिस्तान की लगातार जिद के बाद अब खुद इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने उसकी अक्ल ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया है। रिपोर्ट से मिल रही खबरों के अनुसार भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के चैंपियंस ट्रॉफी को हाइब्रिड मॉडल में कराने को ICC समेत टूर्नामेंट खेलने वाले तमाम देशों की हरी झंडी मिल चुकी है। आपको बता दें, ICC ने चैंपियंस ट्रॉफी के आयोजन को लेकर पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) के अड़ियल रुख पर कड़ा रवैया अपनाया है। बोर्ड की तरफ से कहा गया है पकिस्तान या तो भारत द्वारा पेश किये गए हाइब्रिड मॉडल को अपनाए या फिर इस प्रतियोगिता से बाहर होने के लिए तैयार रहे। आपको बताते चलें बीते शुक्रवार को दुबई में PCB ने ICC कार्यकारी बोर्ड की आपात बैठक में हाइब्रिड मॉडल के अनुसार चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी करने से साफ इनकार कर दिया था। इस बैठक का उद्देश्य अगले साल यानि 2025 के फरवरी-मार्च में होने वाले चैंपियंस ट्रॉफी की रूपरेखा तय करना था। बता दें, भारत ने पकिस्तान द्वारा भारत में आतंकवादी गतिविधियों में सम्मिलित होने और पकिस्तान की धरती पर अपने खिलाडियों की सुरक्षा चिंताओं के कारण पाकिस्तान की यात्रा करने से इनकार कर चूका है, लेकिन इसके बावजूद PCB ने एक बार फिर ICC कार्यकारी बोर्ड की आपात बैठक में ‘हाइब्रिड’ मॉडल को खारिज कर दिया, जिसके बाद इस मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन सकी। अब ICC की ओर से PCB प्रमुख मोहसिन नकवी को मौजूदा विवाद के लिए हाइब्रिड मॉडल को एकमात्र समाधान के तौर पर स्वीकार करने की सलाह दी है। अब ऐसे में यदि पाकिस्तान हाइब्रिड मॉडल के लिए मान जाता है, तो भारत चैंपियंस ट्रॉफी के अपने सभी मैच संयुक्त अरब अमीरात में खेलेगा।
इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) के सूत्रों की मैंने तो चैंपियंस ट्रॉफी के मुकाबलों का प्रसारण करने वाली कंपनी ICC की ऐसी किसी भी टूर्नामेंट के लिए पैसा नहीं देगा जिसमें भारतीय टीम ना खेल रही हो और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को भी यह बात अच्छे से पता है। अब ऐसे में पाकिस्तान के हाइब्रिड मॉडल को मानने से मना करने के बाद आज यानि शनिवार को एक बार फिर ICC की बैठक होगी और अगर पाकिस्तान आज होने वाली इस बैठक में हाइब्रिड मॉडल को स्वीकार नहीं करता है तो चैंपियंस ट्रॉफी का आयोजन किसी दूसरे देश में कराया जा सकता है और उसमें पाकिस्तान की टीम शामिल नहीं होगी। बता दें, इससे पहले हुए कार्यकारी बोर्ड की बैठक संक्षिप्त रही, जिसमें पकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड ने अपना अड़ियल रुख दिखते हुए ICC के प्रस्ताव को मानने से मना कर दिया, PCB के अध्यक्ष मोहसिन नकवी ने बैठक में कहा कि भारतीय टीम को पाकिस्तान दौरे के लिए अपनी सरकार से मंजूरी नहीं मिलने के बावजूद उन्हें ‘हाइब्रिड मॉडल’ मंजूर नहीं है। बैठक के बाद ICC के अधिकारी और बोर्ड के सदस्य ने कहा था कि कार्यकारी बोर्ड की संक्षिप्त बैठक हुई, सभी पक्ष 2025 में होने वाली चैंपियंस ट्रॉफी के सकारात्मक समाधान के लिए काम कर रहे हैं और उम्मीद है कि बोर्ड शनिवार को फिर से बैठक करेगा और समाधान निकलने तक इसे जारी रखेगा।
ICC चैंपियंस ट्रॉफी को लेकर चल रहा विवाद लगता है आज खत्म होने वाला है। पाकिस्तान को इस अंतर्राष्ट्रीय मेगा टू्र्नामेंट की मेजबानी का जिम्मा दिया गया था, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि उसके हाथ से ना सिर्फ मेजबानी जाएगी बल्कि वह टूर्नामेंट से भी बाहर हो सकता है। ICC ने चैंपियंस ट्रॉफी के शेड्यूल को फाइनल करने के लिए बीते दिन शुक्रवार, 29 नवंबर को बैठक बुलाई थी जो बेनतीजा रही। BCCI ने अपनी टीम को सुरक्षा कारणों से पाकिस्तान भेजने से मना करते हुए टूर्नामेंट हाइब्रिड मॉडल में कराने की मांग की थी, जिसके लिए ICC समेत सभी टीमें मान भी गई थी, लेकिन पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड इसे मानने से इनकार कर रहा है। एक बार फिर 30 नवंबर को ICC की बैठक होगी और इसमें आखिरी फैसला लिया जाएगा। वहीं, इस पूरे मुद्दे पर दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के रुख को दोहराया और कहा कि भारतीय टीम सुरक्षा कारणों से पाकिस्तान की यात्रा नहीं करगी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से जब रोज होने वाली नियमित संवाददाता सम्मेलन में भारतीय टीम के चैंपियंस ट्रॉफी में भाग लेने की संभावना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, BCCI इस मुद्दे पर अपना बयान जारी कर चूका है। उन्होंने कहा है कि हमारी पकिस्तान के बिगड़ते अंदरूनी हालत और सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं हैं और इसलिए यह संभावना बिलकुल नहीं है कि भारतीय टीम वहां जाएगी।
आज एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण कार्यक्रम में, भारत के माननीय उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति श्री जगदीप धनखड़ ने संसद भवन में केंद्रीय मंत्रियों के एक सम्मानित प्रतिनिधिमंडल की मेजबानी की। विशिष्ट उपस्थित लोगों में श्री शिवराज सिंह चौहान, माननीय केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री; डॉ. वीरेंद्र कुमार, माननीय केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री; श्री किरेन रिजिजू, माननीय केंद्रीय संसदीय कार्य और अल्पसंख्यक कार्य मंत्री; डॉ. एल. मुरुगन, माननीय संसदीय कार्य और सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री; श्री अर्जुन राम मेघवाल, माननीय कानून एवं न्याय और संसदीय कार्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); और श्री जितिन प्रसाद, माननीय वाणिज्य एवं उद्योग तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री शामिल रहे। केंद्रीय मंत्रियों का यह द्वारा इस लिए भी अहम हो जाता है क्यूंकि मौजूदा समय में संसद का सत्र जारी है और राजनीतिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सीटें न मिलने से केन्द्री की मोदी सरकार को नए बिल लाने में और उन्हें सदन से पास करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन हाल ही में भारतीय जनता पार्टी को हरियाणा और महाराष्ट्र में मिली ऐतिहसिल जीत के बाद सरकार और पार्टी का मनोबल बढ़ा है और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस सत्र में मोदी सरकार कई अहम बिल ला सकती है और उन्हें सदन से पास भी करा सकती है।
केंद्रीय मत्रियों की इस बैठक में भारत के नेतृत्व की सहयोगात्मक भावना को रेखांकित किया गया और बैठक में गणमान्य व्यक्तियों ने उपराष्ट्रपति के साथ विचारशील चर्चा की। आज की बैठक में उपस्थित केंद्रीय मंत्रियों द्वारा भारत सरकार की देश की प्रगति के दृष्टिकोण के साथ कृषि सुधार, सामाजिक सशक्तिकरण, प्रौद्योगिकी में प्रगति, विधायी प्राथमिकताएं और संसदीय समन्वय जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया। माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने देश के सभी नागरिकों के लिए समावेशी वृद्धि और विकास सुनिश्चित करने के लिए मंत्रालयों में एकीकृत प्रयासों के महत्व पर जोर दिया और साथ ही देश के लिए मोदी सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यों की सराहना भी की। आज की बातचीत में संसदीय प्रक्रियाओं की प्रभावकारिता बढ़ाने और विधायिका और कार्यपालिका के बीच बेहतर संचार को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया। श्री किरेन रिजिजू और श्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा संसदीय और विधायी मामलों पर अपने दृष्टिकोण साझा करने के साथ, सभा ने आपसी समझ को बढ़ावा देने और आगामी संसदीय सत्रों के लिए एजेंडा निर्धारित करने के लिए एक मंच प्रदान किया।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों को सशक्त बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए नवीन समाधानों पर प्रकाश डाला, जबकि वाणिज्य एवं उद्योग तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री श्री जितिन प्रसाद ने भारत के औद्योगिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी और डिजिटल बुनियादी ढांचे का लाभ उठाने के महत्व पर जोर दिया। उनकी चर्चाओं से कृषि, उद्योग और प्रौद्योगिकी में टिकाऊ और लचीले क्षेत्र बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता प्रतिबिंबित हुई। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार का सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण पर ध्यान और सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन की सूचना प्रसार पर अंतर्दृष्टि ने शासन के व्यापक दृष्टिकोण को उजागर किया - प्रत्येक नागरिक के लिए समानता, न्याय और सूचना तक पहुंच सुनिश्चित करना। उपराष्ट्रपति के कार्यालय में नेताओं के इस सम्मेलन ने एक उज्जवल और मजबूत राष्ट्र के निर्माण के प्रति भारत के राजनीतिक नेतृत्व के सामूहिक समर्पण को प्रदर्शित किया। आज की यह उल्लेखनीय बैठक लोकतंत्र की भावना को लगातार संवाद के द्वारा मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो राष्ट्रीय प्रगति और एकता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती है। आज संसद भवन में ऐसे सम्मानित नेताओं की उपस्थिति नेतृत्व, सहयोग और साझा दृष्टिकोण के आदर्शों का उदाहरण है जो भारत के लोकतंत्र का हिस्सा है।
महाराष्ट्र के चुनावी जंग को बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन, महायुति ने ऐतिहासिक सीटों से जीत लिया है। प्रदेश में मिली इस ऐतिहासिक जीत के बाद अब तय करना है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा। बता दें, मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर जारी है। मुख्यमंत्री पद पर एकमत होने के लिए बीजेपी, शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) के बीच बातचीत चल रही है। भाजपा सूत्रों की माने तो महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हो सकते हैं, अजित पवार भी फडणवीस के समर्थन में माने जा रहे हैं, अब एकनाथ शिंदे को मनाया जा रहा है. सूत्रों की मानें तो महाराष्ट्र में BJP ने शिंदे को 'ना' कहने का मन बना लिया है। महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी सबसे ज्यादा सीटें जीतकर आई है, चुवाव में बीजेपी को अकेले 132 सीटें मिली हैं, वहीं एकनाथ शिंदे की शिवसेना को 57 सीटें मिली हैं और अजित पवार की एनसीपी को 41 सीटें मिली हैं। आपको बताते चलें कि हाल ही में दिल्ली में हुई बैठक के बाद भी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को लेकर सस्पेंस कायम है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ हुई बैठक के बाद एकनाथ शिंदे ने अच्छी और सकारात्मक बात का दावा किया। उन्होंने कहा कि अगले मुख्यमंत्री को लेकर एक या दो दिन में मुंबई में महायुति गठबंधन की बैठक होगी, जिसमें इसपर अंतिम फैसला लिया जायेगा। दिल्ली में बैठक के बाद शिंदे मुंबई आ चुके हैं, लेकिन शुक्रवार, 29 नवंबर को अचानक दोपहर को वह सतारा स्थित अपने गांव चले गए। शिंदे के करीबियों का कहना है कि वो बीजेपी के रवैये से वे चिंतित हैं, उनका कहना है कि इतने बड़े बहुमत के बाद भी सरकार बनाने में हो रही देरी का कोई कारण नहीं है, फिर भी देरी हो रही है।
दिल्ली में गृहमंत्री के निवास पर क्या बात हुई?
महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी की अगुवाई वाली महायुति के 232 सीटें जीतने के बाद देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने मुख्यमंत्री पद और सत्ता बंटवारे पर चर्चा करने के लिए गुरुवार रात केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, यह बैठक दिल्ली में हुई थी। सूत्रों की माने तो बैठक में गृहमंत्री अमित शाह के साथ एकनाथ शिंदे की जो बातचीत फाइनल हुई वह सामने आ रही है, जिसके अनुसार महाराष्ट्र के कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को एक समझौते के फार्मूले की पेशकश की है। बता दें कि उन्होंने तीन रास्ते बताए हैं, जिसमें से बीजेपी को एक चुनना है। एकनाथ शिंदे ने कहा कि चूंकि विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया था, इसलिए महिला मतदाताओं, मराठों और अन्य पिछड़ा वर्ग ने महायुति को वोट किया। उन्होंने लाडली बहन योजना, आरक्षण निर्णय और विभिन्न समुदायों के लिए गठित सहकारी बोर्डों के कारण भी महायुति की जीत का जिक्र किया। शिंदे ने कहा कि लोगों ने इस उम्मीद के साथ मतदान किया कि वह महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री होंगे, उन्होंने कहा कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो समाज के इन वर्गों को गलत संदेश जाएगा। उन्होंने कुछ सर्वेक्षण भी दिखाए जहां वे मुख्यमंत्री के रूप में लोगों की मुख्य पसंद थे।' वहीं बीजेपी नेतृत्व ने कहा कि उनकी पार्टी ने 132 सीटें जीती हैं और ऐसे में अगर अगला मुख्यमंत्री बीजेपी से नहीं होता है तो इससे पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल डाउन होगा। इसके बाद एकनाथ शिंदे ने दूसरी शर्त रखी कि अगर उन्हें सीएम नहीं बनाया जाता है तो उन्हें गृह, वित्त और राजस्व विभाग दिए जाएं। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें ये विभाग दिए जाते हैं और फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो राज्य में सत्ता को संतुलन बना रहेगा। अपनी तीसरी शर्त में शिंदे ने आगे कहा कि अगर ये तीनों विभाग शिवसेना को नहीं दिए गए तो उनकी पार्टी सरकार का हिस्सा नहीं होगी, शिवसेना सरकार को बाहर से समर्थन देगी और पार्टी के सात लोकसभा सांसद भी व्यापक हिंदुत्व के मुद्दे पर मोदी सरकार का बाहर से समर्थन करेंगे। सभी को सुनने के बाद अमित शाह ने महायुति के तीनों नेताओं को मुंबई में फिर से मिलने का निर्देश दिया।
महाराष्ट्र में सीएम पद पर बना हुआ है सस्पेंस?
राज्य में गठबंधन को मिली ऐतिहासिक जीत के बाद मुख्यमंत्री के पद को लेकर लगातार सस्पेंस बना हुआ है। कभी पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस का नाम चल रहा है, तो कभी किसी और का। दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर हुई बैठक के बाद चर्चा थी कि गठबंधन के बीच 'सब ठीक है' और मुख्यमंत्री के नाम की घोसना मुंबई में जल्द महायुति की बैठक में की जाएगी। दिल्ली में अमित शाह के साथ बैठक के बाद शिंदे ने कहा था कि सरकार गठन पर महायुति गठबंधन की अगली बैठक शुक्रवार को मुंबई में होगी, लेकिन दोपहर अचानक ही शिंदे अपने गांव निकल गए, जिसकी वजह से ये बैठक नहीं हो सकी। अब अटकलें ये है कि मंत्री पद के बंटवारे को लेकर शिंदे नाराज हैं इसलिए वे गांव चले गए। इसी बीच अब केंद्रीय राज्यमंत्री और बीजेपी सांसद मुरलीधर का नाम भी चर्चा में आ गया है। बता दें, सोशल मीडिया पर मुरलीधर मोहोल से जुड़ी पोस्ट सामने आई हैं, जिसमें दावा किया गया है कि अगर देवेंद्र फडणवीस राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बनते हैं तो ऐसी स्थिति में मुरलीधर मोहोल विकल्प हो सकते हैं, हालांकि इस पर पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है। आपकी जानकारी के लिए बता दें, मुरलीधर मोहोल के पुणे से सांसद हैं। वह मोदी 3.0 में सिविल एविएशन और सहकारिता राज्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। मोहोल पुणे के मेयर भी रह चुके हैं और वो महाराष्ट्र के प्रभावी मराठा समुदाय से आते हैं। उन्हें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का विश्वासपात्र भी माना जाता है। अटकलें हैं कि अगर फडणवीस को बीजेपी अगर कोई और बड़ी भूमिका देती है तो ऐसे में हो सकता है कि मुरलीधर मोहोल मुख्यमंत्री बने।
अजमेर के मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है, जिसके बाद अब इस मामले में कोर्ट आगे भी सुनवाई करेगी। बता दें कि कोर्ट ने इस याचिका का संज्ञान लेते हुए इसे सुनवाई के योग्य माना है। इस याचिका को हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर किया गया था, जिसके बाद इस केस में बुधवार, 27 नवंबर को न्यायालय श्रीमान न्यायिक एवम सिविल न्यायाधीश संख्या दो के जज मनमोहन चंदेल ने मस्जिद पक्ष को नोटिस जारी किया है। दिल्ली के रहने वाले हिंदू राष्ट्र सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अधिवक्ता ईश्वर सिंह और रामस्वरूप विश्नोई के द्वारा दरगाह कमेटी के कथित अनाधिकृत कब्जा हटाने संबंधी वाद दो महीने पहले याचिका दायर की थी। बता दें कि मंदिर पक्ष की ओर से अजमेर पर लिखी गई एक किताब का जिक्र किया गया है, जो दरगाह से पहले के हिस्टोरिकल फैक्ट को बताती है। किताब के चैप्टर-8 के पेज 82 से 89 तक इसमें अजमेर की दरगाह का इतिहास बताया गया है। वहीं, इसी किताब में दरगाह की जगह एक मंदिर होने की बात भी कही गई है, साथ ही मंदिर में पूजा अर्चना किए जाने की भी बात लिखी गई है। इसके अलावा किताब में इस बात का जिक्र भी है कि यहां एक ब्राह्मण दंपती रहा करते थे, वो दरगाह स्थल पर बने महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे। इसके अलावा भी कई अन्य तथ्य हैं, जो साबित करते हैं कि दरगाह से पहले यहां शिव मंदिर हुआ करता था। बता दें, ये किताब हिंदू सेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से न्यायाधीश मनमोहन चंदेल के समक्ष पेश की गई है। इस मामले पर अब AIMIM के नेता और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है, सोशल मीडिया प्लेटफार्म 'एक्स' पर एक पोस्ट में ओवैसी ने लिखा, सुल्तान-ए-हिन्द ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारत के मुसलमानों के सबसे अहम औलिया इकराम में से एक हैं। उनके आस्तान पर सदियों से लोग जा रहे हैं और जाते रहेंगे इंशाअल्लाह। कई राजा, महाराजा, शहंशाह, आए और चले गये, लेकिन ख्वाजा अजमेरी का आस्तान आज भी आबाद है।
अजमेर दरगाह का मुद्दा अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक और मुद्दे ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। इस बार मामला 'अढ़ाई दिन के झोंपड़े को लेकर उठा है, जहां नमाज पर पाबंदी की बात कही जा रही है। वैसे तो अढ़ाई दिन का झोपड़ा के पीछे ढेर सारे विवाद हैं, लेकिन इस बार विवाद नमाज को लेकर उठा है। दरअसल, पिछले दिनों से हिंदू और जैन संत यहां आकर जबरन नमाज पढ़ने का विरोध जता चुके हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां के गर्भगृह और बाहर की दिवारों के खंभों पर साफ-साफ हिंदू-जैन मंदिर शैली को देखे जा सकता हैं। इस साल की शुरुआत में जब एक जैन साधु अढ़ाई दिन के झोपड़े को देखने के लिए जा रहे थे, तब उनको समुदाय विशेष के लोगों ने रोक दिया था और इसके बाद विवाद बढ़ा, क्योंकि अढ़ाई दिन का झोपड़ा एक पर्यटन स्थल है, जिसकी देखरेख की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व विभाग यानि ASI की है। इस घटना के बाद अजमेर सहित देश भर के जैन समुदाय ने प्रशासन के सामने अपनी अपत्ति को दर्ज कराया था। बता दें, 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' को 1192 ईंस्वीं में अफगान आक्रांता मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। असल में इस जगह पर एक बहुत बड़ा प्राचीन संस्कृत विद्यालय और मंदिर था, जिन्हें तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था। अढ़ाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है, जिसपर संस्कृत में उस विद्यालय का जिक्र किया गया है। इस मस्जिद में कुल 70 स्तंभ हैं और ये सभी स्तंभ उन मंदिरों के हैं, जिन्हें धवस्त कर दिया गया था, लेकिन स्तंभों को वैसे ही रहने दिया गया। इन स्तंभों की ऊंचाई करीब 25 फीट है और हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। 90 के दशक में यहां कई प्राचीन मूर्तियां ऐसे ही बिखरी पड़ी थीं, जिन्हें बाद में पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया।
संसद का सत्र चल रहा हो और विपक्ष किसी मुद्दे पर हंगामा करता न दिखे ऐसा हो नहीं सकता। पता नहीं ये संयोग है या कोई प्रयोग है कि हर बार संसद सत्र के प्रारंभ होने से पहले देखा गया है कि विदेश से कोई खबर उड़ती हुए आती है और इसे विपक्ष, खासकर कांग्रेस पार्टी और उसके नेता राहुल गाँधी मुद्दा बनाकर लपक लेता है और फिर हर बार की तरह पूरा सत्र हंगामे की भेट चढ़ जाता है। कभी राफेल विमान, तो कभी हिंडनबर्ग और इस बार अडानी मुद्दे पर लगातार चौथे दिन कांग्रेस पार्टी ने संसद में सत्र को बाधित किया। राहुल गांधी केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी को हर रोज संसद में घेर रहे हैं पर अब यह ज्यादा दिन और नहीं चलने वाला है, क्योंकि अब वो सदन में अकेले पड़ते जा रहे हैं। इंडि गठबंधन के दो प्रमुख दलों तृणमूल कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का तो उन्हें अब बिल्कुल साथ नहीं मिलने वाला है। समाजवादी पार्टी का रुख भी इस संबंध में बहुत पॉजिटिव नहीं है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार TMC (पश्चिम बंगाल) और माकपा (केरला) को अपने राज्यों के विकास की चिंता है तो वहीं समाजवादी पार्टी का फोकस संभल हिंसा जैसे मुद्दों पर है। बता दें, तृणमूल कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सिस्ट ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वे अडानी के मामले में राहुल गांधी के साथ नहीं हैं। तृणमूल कांग्रेस ने तो यहां तक फैसला ले लिया है कि वो शीतकालीन सत्र के दौरान ऐसे किसी भी मुद्दे को प्राथमिकता नहीं देगी जिसे कांग्रेस की ओर से उठाया जाएगा। TMC ने फैसला लिया है कि वह विभिन्न योजनाओं के लिए केंद्र से बंगाल सरकार को फंड देने को लेकर संसद में अपनी आवाज उठाएगी। वहीं, माकपा नेतृत्व वाली केरल सरकार ने बंदरगाह के विकास के लिए अडानी ग्रुप के साथ एक समझौता किया है, इसलिए माकपा को भी राजनीति के लिए अडानी विरोध समझ में नहीं आ रहा है। इस बीच सवाल यह उठता है कि राहुल गांधी आखिर क्यों और किसके इसारे पर अडानी के खिलाफ जबरन माहौल बनाना चाहते हैं?
इस बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अडानी मुद्दे पर न तो जनता से और न ही विपक्ष के उनके साथी दलों का समर्थन मिल रहा है, वैसे तो इसके पीछे कई कारण हैं पर विपक्ष भी जनता है हर बार विदेशों से आई किसी खबर के नाम पर अपने ही देश के उद्योगपतियों को निशाना बनाना और फिर संसद के सत्र के खत्म होते ही गायब हो जाना जनता के बीच सही सन्देश नहीं दे रहा है। आम लोग हों या राजनीतिक दलों के नेता सभी को लगता है कि राहुल गांधी तो अडानी के खिलाफ आरोप लगाते रहते हैं जबकि उनकी पार्टी के नेता उसी अडानी का स्वागत करते नहीं थकते हैं। दूसरी बात अडानी पर आज तक कोई ऐसा आरोप नहीं लगा है जिससे ये पता चले कि उससे देश या जनता का नुकसान हुआ है। देश में अमेरिका के आरोपों को वैसे भी कोई गंभीरता से नहीं लेता, क्यूंकि सब जानते हैं कि अमेरिका दुनिया भर में इस तरह से सरकारों को अस्थिर करता रहता है। दूसरा इस मामले में अधिकतर कांग्रेस नेता और उनकी सरकारें ही फंस रहे हैं इसलिए लोग राहुल की बात पर भरोसा नहीं कर रहे हैं और सायद यही कारण है कि अडानी की गिरफ्तारी की मांग जनता के बीच कोई मुद्दा नहीं बन पा रहा है। जब जब अडानी पर कोई आरोप लगता है भारत के मिडिल क्लास की कमर टूट जाती है। अडानी के शेयर गिरने से कम से कम 3 करोड़ लोगों का नुकसान हुआ है। अब सोचिए कि अगर अडानी की गिरफ्तारी होती है तो भारत की इकॉनमी पर क्या प्रभाव पड़ेगा, कितने लाख करोड़ का नुकसान भारतीय इकॉनमी को हो सकता है। भारत की पूरी अर्थव्यवस्था के हिलने के खतरा बढ़ जाएगा? कई साल तक की मंदी को क्या देश बर्दाश्त कर पाएगा? हो सकता है कि इसे राहुल गांधी न समझ रहें हो पर भारत के नागरिक जरूर समझ रहे हैं।