कौन हैं वो? जो संसद में कभी ऊंची आवाज में नहीं बोले, लेकिन उनके फैसलों ने देश को बदल दिया? डॉ. मनमोहन सिंह! वही मनमोहन सिंह, जो भारत के प्रधानमंत्री रहे। वही मनमोहन सिंह, जिनका नाम लेते ही याद आता है 1991 का आर्थिक संकट और उससे बाहर निकलने की कहानी। और वही मनमोहन सिंह, जिनके बारे में लोग कहते हैं, "वो तो बस चुपचाप बैठे रहते हैं!" लेकिन, उनके फैसलों की गूंज दशकों तक सुनाई दी। अब सवाल उठता है, मनमोहन सिंह आखिर आए कहां से? और उन्होंने ऐसा क्या कर दिया जो आज भी उनकी मिसाल दी जाती है?
1970 के दशक में मनमोहन सिंह ने भारत सरकार के लिए काम करना शुरू किया। वे रिजर्व बैंक के गवर्नर बने। फिर योजना आयोग के उपाध्यक्ष। लेकिन असली पहचान मिली 1991 में, जब भारत आर्थिक संकट में डूब रहा था। उस वक्त भारत पर इतना कर्ज था कि विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 15 दिन का बचा था। ऐसे में एक शख्स आया और उसने देश को संकट से बाहर निकाला। ये थे मनमोहन सिंह। नरसिम्हा राव के सरकार में वित्त मंत्री। उन्होंने भारत को आर्थिक उदारीकरण का रास्ता दिखाया। इसका मतलब? लाइसेंस राज खत्म हुआ। विदेशी निवेश का दरवाजा खुला। निजीकरण को बढ़ावा मिला। और भारत की अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ी। इसके बाद 2004 में जब कांग्रेस ने उन्हें प्रधानमंत्री बनाया। मनरेगा, जिससे गांवों में रोजगार मिला, और परमाणु समझौता, जिसने भारत को ऊर्जा के लिए नई राह दिखाई ये सब उन्हीं के कार्यकाल में हुआ। लेकिन, एक सवाल फिर भी रहता है क्या मनमोहन सिंह वाकई में बस 'रिमोट कंट्रोल' प्रधानमंत्री थे?
डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने पूरे राजनीतिक करियर में एक भी लोकसभा चुनाव नहीं जीता। वे राज्यसभा से सांसद बने। इसके अलावा प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनके पास न कोई प्राइवेट बंगला था, न गाड़ी। उनके पास एक पुरानी मारुति 800 थी, जिसे वे खुद चलाते थे। संसद में उन्हें शायद ही कभी गुस्से में देखा गया हो। मनमोहन सिंह दुनिया के बेस्ट फाइनेंस मिनिस्टर साबित हुए। 1993 में Euromoney Magazine ने उन्हें ‘वर्ल्ड का बेस्ट फाइनेंस मिनिस्टर’ कहा। कहानी ये है कि डॉ. मनमोहन सिंह सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि भारत के आर्थिक बदलाव के आर्किटेक्ट थे। उनकी सादगी, उनका ज्ञान और उनका दृष्टिकोण आज भी भारत के लिए मिसाल है। और आखिर में सवाल ! क्या हम कभी उनकी चुप्पी के पीछे की ताकत को समझ पाएंगे?
बिहार में एक बार फिर राजनीतिक हलचल का बाजार गरम है। प्रदेश की राजनीती में उठती इस हलचल पर अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अगले कदम को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है। बता दें, जनता दल यूनाइटेड (JDU) के प्रमुख और राज्य के मुखिया नीतीश कुमार पहले भी अपने राजनीतिक पाले बदलने के लिए चर्चा में रहे हैं और अब एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) को लेकर कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में मुश्किल से 7-8 महीने का समय बचा है। खबरों में इस राजनीतिक चर्चा की शुरुआत तब हुई जब एक कॉन्क्लेव के दौरान गृहमंत्री अमित शाह से पूछा गया कि बिहार में बीजेपी की रणनीति क्या होगी और नेता कौन होगा? इस सवाल पर अमित शाह ने कहा कि इस पर फैसला बीजेपी का पार्लियामेंट बोर्ड करेगा। उनका यह बयान चौंकाने वाला इसलिए भी था क्योंकि इससे पहले NDA और बीजेपी के नेता बार-बार यह कहते आ रहे थे कि बिहार में NDA के नेता नीतीश कुमार ही रहेंगे, लेकिन अमित शाह के इस बयान के बाद अब JDU और उनके नेताओं में संशय पैदा हो गया। JDU के नेताओं ने इस मुद्दे पर सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन पार्टी के भीतर इस बात को लेकर चर्चाएं तेज हैं और माना जा रहा है कि पार्टी में कुछ नेताओं को इस बात का शक है कि बीजेपी कहीं न कहीं अपने नेतृत्व को लेकर नए समीकरण तैयार कर रही है। हालांकि, अमित शाह के बयान के बाद बीजेपी की ओर से एक के बाद एक कई बयान सामने आए, जिनमें कहा गया कि बिहार में NDA का नेतृत्व नीतीश कुमार ही करेंगे और आगामी विधानसभा चुनाव उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, लेकिन अमित शाह के बयान के बाद उठे सवालों ने जेडीयू खेमे में चिंता बढ़ा दी है। बता दें, JDU और बीजेपी का रिश्ता अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने से चला आ रहा है। साल 1998 में NDA की स्थापना के समय से ही यह गठबंधन अस्तित्व में है और उस समय JDU, जो पहले समता पार्टी के नाम से जानी जाती थी, बीजेपी के साथ गठबंधन में थी और जॉर्ज फर्नांडिस को NDA का संयोजक भी बनाया गया था।
बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो JDU ने बीजेपी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन चुनाव में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा और यही वजह थी JDU को काफी कम सीटें भी मिली। जबकि बीजेपी का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा था, बीजेपी का स्ट्राइक रेट हमेशा की तरह शानदार रहा और चुनाव के नतीजों के बाद वह नंबर दो की पार्टी बनकर उभरी थी। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कम सीटें जीतने के बाद भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद देने का निर्णय लिया था। यह निर्णय NDA गठबंधन की मजबूती और बीजेपी-JDU के रिश्तों की गहराई को दर्शाता था, लेकिन अब चर्चाएं इसलिए तेज हो रही हैं क्योंकि महाराष्ट्र में हाल ही में कुछ ऐसा हुआ, जिसने बिहार की राजनीति में संभावनाओं को जन्म दिया है। बता दें कि महाराष्ट्र में जब शिवसेना के एकनाथ शिंदे ने पार्टी तोड़कर बीजेपी के साथ गठबंधन किया, तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, भले ही उनकी पार्टी के पास बीजेपी से कम सीटें थीं, लेकिन बीते दिन हुए विधानसभा चुनाव के बाद, जब बीजेपी ने अपने दम पर 130 से अधिक सीटें जीतकर मजबूत स्थिति हासिल की, तो पार्टी ने दवेंद्र फडणवीस के रूप में अपना खुद का मुख्यमंत्री स्थापित किया, एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद से हटाकर उपमुख्यमंत्री बना दिया गया। महाराष्ट्र में हुए इस राजनीतिक घटनाक्रम के बाद अब बिहार में भी यही सवाल उठने लगा है की पिछले चुनाव में बीजेपी का स्ट्राइक रेट काफी बेहतर था और पार्टी मजबूत स्थिति में थी, तब भी उसने गठबंधन धर्म निभाते हुए नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन अब सवाल यह है कि अगर इस बार भी बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर रहता है, तो क्या वह जेJDU को मुख्यमंत्री पद देने का निर्णय दोबारा लेगी, या फिर महाराष्ट्र का मॉडल अपनाकर खुद नेतृत्व की बागडोर संभालेगी। बता दें, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों राज्य में अपनी विकास यात्रा पर निकले हुए हैं और उनकी इस यात्रा का उद्देश्य सरकारी योजनाओं की जमीनी हकीकत जानना और जनता से संवाद स्थापित करना है। बड़ी बात यह है की उनकी इस यात्रा के दौरान बीजेपी नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का कार्यक्रम में शामिल होना सियासी विश्लेषकों के लिए आश्चर्य का विषय बना हुआ है।
महाकुंभ 2025 के निमंत्रण अभियान के तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार, 29 दिसंबर 2024 को नई दिल्ली में भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से शिष्टाचार भेंट की। ये मुलाकात महज औपचारिकता नहीं थी, बल्कि योगी आदित्यनाथ के लिए अपने संकल्प को धरातल पर उतारने का एक बड़ा कदम थी। प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 के बीच होने वाले महाकुंभ के लिए उपराष्ट्रपति को न्योता देना इस अभियान का हिस्सा था। सीएम योगी ने उपराष्ट्रपति को भेंटस्वरूप महाकुंभ का प्रतीक चिह्न, एक सजावटी कलश, महाकुंभ से संबंधित साहित्य, नववर्ष का टेबल कैलेंडर और डायरी सौंपी। यह केवल उपहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की एक झलक और महाकुंभ के महत्व का परिचायक था। योगी जी ने इस दौरान उपराष्ट्रपति को निमंत्रण पत्र सौंपते हुए महाकुंभ के धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर चर्चा की। बातचीत में गंगा के महत्व, भारत की आध्यात्मिक परंपरा और महाकुंभ के आयोजन से जुड़े भावनात्मक पहलुओं को साझा किया।
सीएम योगी ने सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा कीं। अपने 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) हैंडल पर लिखा “माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ जी से आज नई दिल्ली में शिष्टाचार भेंट की। अपना अमूल्य समय प्रदान करने हेतु आपका हार्दिक आभार, मा. उपराष्ट्रपति जी!” तस्वीरों में योगी आदित्यनाथ उपराष्ट्रपति से हाथ मिलाते और भेंट देते नजर आए। उनके चेहरे पर आत्मीयता और संकल्प का भाव साफ झलक रहा था। मुख्यमंत्री ने माननीय उपराष्ट्रपति से बताया कि कैसे महाकुंभ हजारों साल पुरानी परंपरा है और हर 12 साल बाद होने वाला यह आयोजन भारतीय संस्कृति की अखंडता और आध्यात्मिकता को प्रदर्शित करता है। यह आयोजन न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व के श्रद्धालुओं के लिए एक अद्भुत अनुभव है। योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ के दौरान गंगा की स्वच्छता और प्लास्टिक मुक्त प्रयागराज की अपनी योजनाओं के बारे में भी उपराष्ट्रपति को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि महाकुंभ केवल एक आस्था का पर्व नहीं, बल्कि गंगा के प्रति हमारे दायित्व का भी प्रतीक है महाकुंभ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए विशेष सुविधाओं और व्यवस्थाओं पर भी चर्चा की गई। योगी ने बताया कि आयोजन के दौरान तकनीकी और पर्यावरणीय पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
दिल्ली दौरे की शुरुआत शनिवार को हुई। योगी आदित्यनाथ ने पहले दिन पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, और मिजोरम के राज्यपाल जनरल वीके सिंह से मुलाकात की। इन सभी को महाकुंभ में शामिल होने का निमंत्रण दिया। सीएम ने हर बार की तरह यहां भी निमंत्रण पत्र के साथ महाकुंभ से जुड़ी सांस्कृतिक भेंटें दीं। दिल्ली के अपने दूसरे दिन यानी रविवार को उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, और दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना से भेंट की।
क्या किसी महिला की जिंदगी, इतनी सस्ती है कि उसे सिर्फ एक बेटे के लिए जलाकर मार दिया जाए? यही वो सवाल हैं जो परभणी जिले की इस दिल दहला देने वाली घटना के बाद हर इंसान के मन में गूंज रहे हैं। गुरुवार रात, परभणी (महाराष्ट्र) के गंगाखेड़ नाका इलाके में कुंडलिक उत्तम काले नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी, मैना काले, की बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी, क्योंकि उसने तीसरी बेटी को जन्म दिया था। यह घटना उस समय घटी जब मैना काले ने तीसरी बेटी को जन्म दिया। कुंडलिक ने पहले भी अपनी पत्नी के साथ मारपीट की थी, लेकिन उस दिन उसकी गुस्से की आग ने उसे और भी भयंकर बना दिया। उसने अपनी पत्नी पर पेट्रोल छिड़ककर उसे आग के हवाले कर दिया। जलते हुए मैना अपने जीवन की जंग लड़ते हुए घर से बाहर भागी, दर्द और यातना में, जलते हुए शरीर के साथ, वह किसी तरह पास की दुकान में घुसने की कोशिश करती है। इस दर्दनाक दृश्य को सीसीटीवी कैमरे में कैद किया गया, जिसमें वह जलती हुई हालत में तड़पती हुई दिखाई दी। हालांकि, कई लोगो ने आग बुझाने की कोशिस की पर उसकी जान बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। गंभीर रूप से जलने के बाद, उसे इलाज के लिए परभणी जिला अस्पताल में भर्ती किया गया, लेकिन उसकी हालत इतनी गंभीर थी कि वह वहां भी बच नहीं सकी और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इस जघन्य कृत्य ने फिर से यह सवाल खड़ा किया है कि हमारे समाज की मानसिकता कब बदलेगी?
मैना की दर्दनाक मौत ने हमारे समाज की उस कड़ी सच्चाई को सामने रखा है, जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। यह घटनाएं तब तक नहीं रुक सकतीं, जब तक हम अपनी सोच और मानसिकता में बदलाव नहीं लाते। क्या हम तैयार हैं? यह घटना एक ऐसी कहानी बन गई है, जिसमें समाज की नजरों में औरत के लिए जो अत्याचार और भेदभाव छिपा होता है, वह एक खौ़फनाक तरीके से बाहर आ गया है। मैना काले की दर्दनाक मौत सिर्फ उसकी व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि एक गंभीर सामाजिक मुद्दे का प्रतिनिधित्व करती है। यह घटना उन लाखों महिलाओं के लिए एक चेतावनी है जो घरेलू हिंसा और भेदभाव का सामना करती हैं, और यह सवाल उठाती है कि क्या समाज में महिलाओं की स्थिति कभी सुधरेगी?