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Breaking News 30 April 2025

1.) दिल्ली में स्कूल फीस एक्ट को कैबिनेट की मंजूरी 

दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सामने आया है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की अगुवाई में दिल्ली कैबिनेट ने 'दिल्ली स्कूल एजुकेशन ट्रांसपेरेंसी इन फिक्सेशन एंड रेगुलेशन ऑफ फीस एक्ट 2025' को मंजूरी दे दी है। यह कानून अब प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि पर नकेल कसेगा, जो वर्षों से पेरेंट्स की सबसे बड़ी चिंताओं में शुमार रहा है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने प्रेस ब्रीफिंग में कहा, “लोगों के मन में बेचैनी थी कि स्कूल अपनी मर्जी से फीस बढ़ा देते हैं। हमने जांच करवाई तो पाया कि पिछली सरकारों ने इसे लेकर कभी कोई ठोस कानून नहीं बनाया। हमने तय किया कि अब और नहीं अब सरकार जवाबदेह भी होगी और स्कूलों को जवाबदेह बनाएगी।” कैबिनेट से पास हुआ यह विधेयक अब विधानसभा के अर्जेंट सत्र में लाया जाएगा और पास होते ही पूरे दिल्ली में लागू कर दिया जाएगा।

क्या है नए कानून की खास बातें?

त्रिस्तरीय समिति का गठन , इस एक्ट के तहत फीस तय करने के लिए एक स्कूल लेवल, एक डिस्ट्रिक्ट लेवल और एक स्टेट लेवल समिति बनाई जाएगी। हर समिति में अभिभावकों की भागीदारी अनिवार्य होगी स्कूल स्तर की समिति में एक SC/ST और दो महिला सदस्य अनिवार्य होंगे। स्कूल समिति को 30 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी होगी। यदि ऐसा नहीं होता तो मामला डिस्ट्रिक्ट समिति के पास जाएगा, जिसे 30-45 दिन में फैसला देना होगा। अंतिम फैसला न होने की स्थिति में मामला स्टेट लेवल समिति को सौंपा जाएगा। यदि पेरेंट्स स्कूल समिति के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं तो सिर्फ 15% पेरेंट्स की सहमति से वे अपनी शिकायत डिस्ट्रिक्ट समिति के पास दर्ज करा सकते हैं। बिना समिति की अनुमति के अगर कोई स्कूल फीस बढ़ाता है तो उस पर 1 लाख से लेकर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, जरूरत पड़ने पर सरकार ऐसे स्कूलों को टेकओवर भी कर सकती है। बीजेपी नेता आशीष सूद ने इस फैसले को "जनता के लिए राहत" बताते हुए कहा, "सीएम ने ना सिर्फ पेरेंट्स की बात सुनी बल्कि कार्रवाई भी की। यह एक्ट शिक्षा में पारदर्शिता और जवाबदेही की नई मिसाल बनेगा।" मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानून सिर्फ प्राइवेट स्कूलों की फीस नियंत्रण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि एक व्यापक निगरानी तंत्र स्थापित करेगा जो आने वाले वर्षों में शिक्षा व्यवस्था को और अधिक संतुलित और जवाबदेह बनाएगा। जहाँ एक तरफ अभिभावकों को इस कानून से राहत की उम्मीद है, वहीं विपक्षी दलों और शिक्षा विशेषज्ञों की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह कानून वास्तव में जमीनी स्तर पर प्रभावी होगा या सिर्फ एक राजनीतिक घोषणापत्र तक सीमित रह जाएगा। लेकिन इस बार जनता की उम्मीदें सरकार से ऊँची हैं क्योंकि सवाल सिर्फ फीस का नहीं, बच्चों के भविष्य का है।

 

2.)  बीजेपी के कई विधायकों को जेल की सजा .....पर क्यों ? 

22 साल पहले विधान परिषद चुनाव की मतगणना के दौरान हुए बवाल का फैसला अब आया है। बस्ती की एमपीएमएल कोर्ट ने सोमवार को इस बहुचर्चित मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए पूर्व विधायक संजय जायसवाल समेत पांच आरोपियों को तीन साल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने सभी को दोषी करार देते हुए जेल भेजने का आदेश दिया है। हालांकि, मामले की मुख्य आरोपी समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी कांचना सिंह की पहले ही मौत हो चुकी है, जबकि उनके पति और पूर्व विधायक आदित्य विक्रम सिंह पैरालिसिस के कारण अस्पताल में भर्ती हैं।

क्या था मामला?

3 दिसंबर 2003 को विधान परिषद चुनाव की मतगणना चल रही थी। इसी दौरान सपा प्रत्याशी कांचना सिंह और उनके समर्थकों ने तत्कालीन जिलाधिकारी अनिल कुमार द्वितीय पर गड़बड़ी के आरोप लगाए और मतगणना स्थल पर हंगामा किया। आरोप है कि समर्थकों ने न सिर्फ डीएम से अभद्रता की, बल्कि एडीएम श्रीश दुबे के साथ मारपीट भी की। प्रशासन ने इस मामले में छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसकी सुनवाई लोवर कोर्ट में चल रही थी। लोवर कोर्ट ने सभी छह आरोपियों को दोषी मानते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ सभी आरोपी एमपीएमएल कोर्ट पहुंचे, लेकिन कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए सभी को जेल भेजने का आदेश दिया। पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए पांच आरोपियों को हिरासत में ले लिया और जेल भेज दिया।

किसका क्या रहा राजनीतिक सफर?

इस मामले में दोषी ठहराए गए संजय जायसवाल राजनीति के अनुभवी चेहरे हैं। 2003 में वे सपा प्रत्याशी कांचना सिंह के समर्थक थे, फिर कांग्रेस से विधायक बने और बाद में बीजेपी में शामिल होकर रूधौली से विधायक चुने गए। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में वे बीजेपी टिकट पर हार गए। वहीं, त्र्यंबक नाथ पाठक ने हर्रैया से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। महेश सिंह गौर ब्लॉक के प्रमुख रहे हैं। अब तीन साल की सजा मिलने के बाद इन नेताओं के चुनाव लड़ने पर कानूनी रोक लग गई है, जिससे इनके राजनीतिक करियर पर बड़ा ब्रेक लग गया है। सरकारी अधिवक्ता देवानंद सिंह के अनुसार, एमपीएमएल कोर्ट का फैसला अंतिम नहीं है। दोषी ठहराए गए नेता हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं और जमानत की गुहार लगा सकते हैं। लेकिन फिलहाल उन्हें जेल की सजा भुगतनी होगी।

 

3.) मोदी की 5 बड़ी बैठकें, क्या पाकिस्तान पर होगा निर्णायक वार?

देश की राजधानी दिल्ली में इन दिनों कड़ाके की गर्मी से ज्यादा तपिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठकों से महसूस की जा रही है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर दिया है, और अब केंद्र सरकार पूरे एक्शन मोड में आ चुकी है। पीएम मोदी लगातार उच्चस्तरीय बैठकों की अध्यक्षता कर रहे हैं, जहां एक ओर सुरक्षा का रोडमैप तैयार हो रहा है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान को लेकर एक के बाद एक सख्त फैसले लिए जा रहे हैं।

सुबह 11 बजे से बैठकें, तीन घंटे में 5 बड़े मंथन

बुधवार को पीएम मोदी का शेड्यूल बेहद व्यस्त रहा। सुबह 11 बजे से बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ और दोपहर 2 बजे तक वे कुल 5 हाई-लेवल बैठकों की अध्यक्षता कर चुके थे। सबसे पहले कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की अहम बैठक हुई, जो करीब 20 मिनट चली। इसके तुरंत बाद कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति (CCPA) की बैठक हुई। फिर केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में पीएम ने अगुवाई की और इसके बाद उन्होंने अलग-अलग स्तरों पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ भी अलग-अलग बैठकें कीं।

CCS बैठक में जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा पर मंथन

CCS की बैठक में पहलगाम हमले के बाद जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की गई। यह बैठक उस वक्त हुई जब पूरे देश में पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई को लेकर चर्चा तेज़ है। बैठक में शामिल रक्षा मंत्री, गृह मंत्री और विदेश मंत्री के साथ प्रधानमंत्री ने संभावित रणनीति पर गहन विमर्श किया। 22 अप्रैल को हुए इस नृशंस हमले में 26 लोगों की जान गई थी। आतंकियों ने नाम और धर्म पूछकर निर्दोष पर्यटकों को निशाना बनाया। 23 अप्रैल को हुई पहली CCS बैठक में ही भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए — सिंधु जल समझौता स्थगित किया गया, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द कर दिए गए और राजनयिक संबंधों में कटौती की गई। अब दूसरी बैठक में इन कदमों को और आगे बढ़ाने की रणनीति पर बात हुई। CCPA यानी कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक भी बेहद अहम मानी जा रही है। यह समिति राजनीतिक और रणनीतिक मामलों की धुरी होती है, और इसकी बैठक कई साल बाद हुई है ।