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Breaking News 3 September 2025

1.) क्या राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं?

राहुल गांधी की नागरिकता का मामला भारतीय राजनीति का वो पुराना किस्सा है, जो हर कुछ सालों में एक बार फिर से उठ खड़ा होता है। शुरुआत लंदन की गलियों से होती है। साल था 2003, कंपनी का नाम Backops Limited। ब्रिटेन की इस कंपनी की फाइलिंग में राहुल गांधी का नाम तो दर्ज था, लेकिन राष्ट्रीयता के कॉलम में लिखा मिला British। यहीं से पूरी बहस ने जन्म लिया। विरोधियों ने इसे हथियार बनाया और सवाल पूछा “क्या देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का वारिस भारतीय नागरिक भी है या नहीं?”

ब्रिटिश अथॉरिटी ने बाद में साफ़ कहा कि यह “फाइलिंग एरर” भी हो सकता है। लेकिन राजनीति में आरोप की उम्र लंबी होती है और उसका असर ज़्यादा। यही वजह है कि यह विवाद संसद तक पहुँचा, मीडिया की सुर्खियों में छाया और अदालतों की चौखट तक गया। 2015 में सुप्रीम कोर्ट पहुँची याचिका को जस्टिसों ने दो टूक कहकर खारिज कर दिया “कंपनी के कागज़ात में दर्ज एक एंट्री से किसी भारतीय की नागरिकता नहीं बदल जाती।” 2019 में गृह मंत्रालय ने राहुल गांधी को नोटिस जारी किया और जवाब माँगा। राहुल गांधी ने खुद को भारतीय नागरिक बताते हुए इसे सिरे से नकारा। उसी साल सुप्रीम कोर्ट में फिर PIL गई, लेकिन कोर्ट ने एक बार फिर साफ़ कहा “कागज़ात में ‘ब्रिटिश’ लिख देने से कोई ब्रिटिश नहीं हो जाता।” 2024–25 में यह मुद्दा हाई कोर्ट्स में पहुँचा। इलाहाबाद हाई कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया। केंद्र ने कहा “मामला गृह मंत्रालय में विचाराधीन है।” मार्च और मई 2025 में PIL खारिज हुई, लेकिन विवाद इतना संवेदनशील बना दिया गया कि लखनऊ बेंच को 30 अगस्त 2025 को याचिकाकर्ता को सुरक्षा तक देनी पड़ी। और अब आते हैं 3 सितंबर 2025 पर। आज सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता पर टिप्पणी की, लेकिन वह आधार कार्ड से जुड़ा मसला था। राहुल गांधी की नागरिकता पर कोई नया फैसला नहीं आया। यानी आज भी स्थिति वही है 2003 के एक कंपनी रिकॉर्ड से शुरू हुआ विवाद, सुप्रीम कोर्ट के बार-बार खारिज करने के बावजूद राजनीति में जिंदा रखा गया मुद्दा। असल में यह विवाद कानूनी से ज़्यादा राजनीतिक है। अदालतों ने बार-बार क्लीन चिट दी, लेकिन सियासत ने इसे बार-बार पुनर्जीवित किया। क्योंकि राहुल गांधी सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक बड़ा प्रतीक हैं और प्रतीकों पर सवाल उठाना राजनीति की पुरानी रणनीति रही है। ऐसे ही तड़कती भड़कती लेकिन सच्ची न्यूज के लिए सब्सक्राइब करे ग्रेट पोस्ट न्यूज़।

 

2.) Most Wanted Criminal Arrest: आखिर कौन है ये?

एक हाथ में परोल का ऑर्डर, दूसरे हाथ में फरारी का प्लान। एक पाँव जेल में, दूसरा विदेश में। और चेहरा हरियाणा का सबसे खतरनाक गैंगस्टर। नाम है मैनपाल बादली, वो अपराधी जिसने कानून को सालों तक मुंह चिढ़ाया। एक वक्त था जब यह ट्रैक्टर रिपेयर करता था। लेकिन 2000 में अपने चाचा की हत्या के बाद इसने ज़िंदगी की दिशा ही बदल दी। उसी दिन से यह अपराध की दुनिया में कूद पड़ा और धीरे-धीरे हरियाणा का सबसे खतरनाक गैंगस्टर बन गया। मैनपाल बादली का अपराध रिकॉर्ड छोटा-मोटा नहीं, बल्कि हत्या, हत्या की कोशिश, एक्सटॉर्शन, गैंगवार और फरारी से भरा पड़ा है। 2013 में बहादुरगढ़ के एक मामले में इसे आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई। सोचा गया था कि अब यह सलाखों के पीछे ही सड़ेगा। लेकिन जेल भी इसे रोक नहीं पाई। 2014 में भोंडसी जेल के अंदर खून की नदियाँ बहीं, और उस गैंगवार के पीछे भी मैनपाल का नाम सामने आया। पुलिस रिकॉर्ड्स ने इसे “बादली गैंग” का सरगना घोषित कर दिया। यह गैंग हरियाणा और आसपास के इलाकों में आतंक का पर्याय बन चुका था। जेल की चारदीवारी इसके लिए मज़ाक बन गई थी। अंदर बैठकर भी मर्डर प्लान करता रहा। और फिर 2018 में अदालत से परोल मिली। वापसी की उम्मीद थी, लेकिन मैनपाल बादली फरार हो गया। नाम बदल लिया “सोनू कुमार”। नकली पहचान बनाई और सीधे विदेश जा पहुंचा। कंबोडिया में बैठकर मैनपाल बादली ने अपना गैंग चलाना शुरू कर दिया। फोन और नेटवर्किंग के जरिए हरियाणा में मर्डर, धमकी और वसूली के ऑर्डर देता रहा। यह आजीवन कारावास भुगतने वाला अपराधी खुलेआम मज़े ले रहा था, और भारतीय सिस्टम मुंह ताक रहा था। पुलिस ने उसके ऊपर ₹7 लाख का इनाम रखा। उसकी संपत्ति कुर्क करने की कोशिश हुई, नीलामी का एलान हुआ। लेकिन उसके डर से कोई खरीदार तक सामने नहीं आया। एक अपराधी का खौफ इतना गहरा था कि लोग बोली लगाने से भी डर गए।2018 से फरार यह अपराधी 2024 तक पुलिस की पकड़ से बाहर रहा। तब भारत ने इंटरपोल से मदद ली और उसके खिलाफ रेड नोटिस जारी हुआ। जांच ने बताया कि यह कंबोडिया में छिपा बैठा है। वहीं से अपना गैंग ऑपरेट कर रहा था।  जुलाई 2025 में कंबोडिया की पुलिस ने आखिरकार इसे पकड़ लिया। दस दिन तक वह विदेशी पुलिस की हिरासत में रहा। फिर कागज़ी कार्यवाही, कानूनी औपचारिकताएँ और राजनयिक दबाव के बाद 3 सितंबर 2025 को उसे भारत लाया गया। और जैसे ही उसके पाँव भारतीय ज़मीन पर पड़े, STF ने उसकी गिरफ्तारी दर्ज कर ली। आज जब यह फिर से सलाखों के पीछे है, तो साफ़ है मैनपाल बादली कोई डॉन नहीं, कोई "वर्ल्ड लेवल गैंगस्टर" नहीं। यह सिर्फ और सिर्फ एक खूनी अपराधी है। एक ऐसा गुंडा, जिसने हरियाणा की सड़कों को खून से रंगा, जेल की दीवारों को गवाह बनाया और सालों तक फरार रहकर सिस्टम का मज़ाक उड़ाया। नतीजा मैनपाल बादली की गिरफ्तारी इस बात का सबूत है कि अपराध कितना भी बड़ा हो, और अपराधी कितनी भी दूर भाग जाए, क़ानून की पकड़ से बचना नामुमकिन है।