धर्म अगर जनता की पीड़ा को समझने में असमर्थ हो जाए, तो वह आध्यात्मिकता नहीं, बल्कि एक राजनीतिक औजार बन जाता है। मौनी अमावस्या पर हुए दर्दनाक हादसे में कई निर्दोष लोगों की जान चली गई। देशभर में इस घटना को लेकर शोक और आक्रोश का माहौल था, लेकिन इस बीच बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र शास्त्री का बयान सामने आया "मरना तो एक दिन सबको है, और जो यहाँ मरे उन्हें मोक्ष प्राप्त हो गया।" इस बयान के वायरल होते ही बवाल मच गया। लेकिन सवाल उठाने के बजाय मीडिया एक खास नैरेटिव सेट करने में लगा है, जिसमें धर्म को एक ‘टच-मी-नॉट’ मुद्दा बना दिया गया है। धीरेंद्र शास्त्री के इस बयान से कई सवाल खड़े होते हैं। क्या एक धार्मिक नेता के लिए यह उचित है कि वह एक त्रासदी को इस तरह से तर्कसंगत ठहराए? शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस बयान पर नाराजगी जताते हुए तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि अगर यही तर्क है, तो धीरेंद्र शास्त्री स्वयं मोक्ष प्राप्त करने के लिए तैयार क्यों नहीं होते? लोक गायिका नेहा सिंह राठौर ने भी धीरेंद्र शास्त्री को आड़े हाथों लिया और उनके बयान को ‘शासन-प्रेरित संवेदनहीनता’ करार दिया। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर गंगा किनारे भगदड़ में मरने से मोक्ष मिलता है, तो VIP लोग और स्वयं धीरेंद्र शास्त्री उस भीड़ में क्यों नहीं गए? धीरेंद्र शास्त्री के बयान पर हो रहे विवाद को जिस तरह से मीडिया हैंडल कर रहा है, वह भी चिंता का विषय है। कुछ मीडिया संस्थानों ने इसे ‘धर्म पर हमला’ करार दिया, जबकि कुछ ने इसे शंकराचार्य और धीरेंद्र शास्त्री के बीच का ‘पर्सनल विवाद’ बना दिया। इस हादसे में जिन लोगों की जान गई, उनकी मौत को ‘मोक्ष’ बताकर सरकार की ज़िम्मेदारी से ध्यान हटाने की कोशिश की गई। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जब शंकराचार्य या अन्य धर्मगुरु धीरेंद्र शास्त्री के बयान का विरोध करते हैं, तब उनके समर्थक इसे ‘सनातन पर हमला’ कहकर प्रोपेगेंडा खड़ा करने लगते हैं।
आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री रविशंकर ने इस मुद्दे पर संत समाज को बचाने की कोशिश करते हुए कहा कि "संतों की भावनाओं को समझें, उनके शब्दों पर न जाएं।" धीरेंद्र शास्त्री को लेकर एक और विवाद खड़ा हो गया, जब एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी ने उनकी ‘महामंडलेश्वर’ बनने की संभावनाओं पर सवाल उठाए। ममता कुलकर्णी ने हाल ही में सन्यास लिया है और किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर बनी हैं। उन्होंने कहा कि जितनी धीरेंद्र शास्त्री की उम्र है, उन्होंने उतने साल तपस्या की है। यह बयान बताता है कि खुद संत समाज में भी धीरेंद्र शास्त्री की योग्यता को लेकर संदेह है।
मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर प्रयागराज में लाखों श्रद्धालु संगम स्नान के लिए उमड़े, लेकिन यह आध्यात्मिक अनुष्ठान अचानक एक भयावह हादसे में बदल गया। संगम नोज पर मची भगदड़ में 30 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई, जबकि 60 से अधिक लोग घायल हो गए। सरकार ने इस घटना की गंभीरता को देखते हुए तीन सदस्यीय जांच आयोग गठित किया है, जिसने प्रयागराज पहुंचकर घटनास्थल का निरीक्षण किया और अस्पताल में भर्ती घायलों से मुलाकात की।
त्रासदी के बाद प्रशासन ने अपनी सफाई में यह दावा किया कि श्रद्धालुओं की अत्यधिक भीड़ और अव्यवस्थित व्यवस्था के कारण भगदड़ मची, लेकिन क्या यह तर्क सही है? हर साल मौनी अमावस्या पर लाखों श्रद्धालु संगम स्नान के लिए आते हैं। अगर सरकार को यह पहले से पता था, तो क्या पर्याप्त सुरक्षा इंतज़ाम किए गए थे? मीडिया रिपोर्ट के अनुसार ये घटना कई कारण से हुई संगम तट पर श्रद्धालुओं के प्रवेश और निकास के लिए उचित मार्गदर्शन नहीं था। पुलिस और सुरक्षाबल भीड़ को नियंत्रित करने में असफल रहे। VIP दर्शन व्यवस्था के कारण आम श्रद्धालुओं को धक्का-मुक्की का सामना करना पड़ा। हादसे के तुरंत बाद राहत कार्य शुरू करने में प्रशासन को 45 मिनट से अधिक का समय लगा। घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए पर्याप्त एंबुलेंस नहीं थीं।संगम तट पर प्राथमिक चिकित्सा सुविधा न होने के कारण कई घायलों की हालत बिगड़ गई।
लोकसभा में सोमवार को कांग्रेस नेता और विपक्ष के नेता राहुल गांधी के एक बयान ने राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया। राहुल गांधी ने सदन में सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में क्यों आमंत्रित नहीं किया गया था? राहुल गांधी ने दावा किया कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर को कई बार अमेरिका भेजा गया ताकि वे अमेरिका को पीएम मोदी को आमंत्रित करने के लिए मना सकें। उन्होंने कहा, "अगर भारत में एक मजबूत उत्पादन व्यवस्था होती, तो अमेरिका के राष्ट्रपति खुद भारत के प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने के लिए आते।"
राहुल गांधी के इस बयान पर केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने तुरंत आपत्ति जताई और इसे "अप्रमाणित और ग़लत जानकारी पर आधारित" करार दिया। उन्होंने कहा, "विपक्ष के नेता इतने गंभीर विषय पर इस तरह की बयानबाजी नहीं कर सकते। यह दो देशों के बीच संबंधों से जुड़ा विषय है।" इसपर राहुल गांधी ने व्यंग्यात्मक लहजे में जवाब दिया, "अगर मेरे सवाल से आपकी मानसिक शांति में खलल पड़ा हो, तो मैं माफी चाहता हूं।" बाद में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राहुल गांधी के बयान को "जानबूझकर फैलाया गया झूठ" बताया और कहा कि इससे भारत की वैश्विक छवि को नुकसान पहुंच सकता है। जयशंकर ने अपने एक X पोस्ट में लिखा, "विपक्ष के नेता ने दिसंबर 2024 में मेरी अमेरिका यात्रा के बारे में झूठ बोला। मैं बाइडेन प्रशासन के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट और एनएसए से मिलने गया था। साथ ही, हमारे महावाणिज्य दूत के साथ एक बैठक की अध्यक्षता भी करनी थी। मेरे प्रवास के दौरान नए नामित एनएसए ने मुझसे मुलाकात की।" जयशंकर ने आगे कहा कि राहुल गांधी के इस तरह के बयानों का राजनीतिक मकसद हो सकता है, लेकिन इसका असर भारत की विदेश नीति पर पड़ सकता है।
यह विवाद ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी और व्यापारिक संबंधों को नई मजबूती देने की कोशिशें हो रही हैं। राहुल गांधी के बयान को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह भारत की विदेश नीति से जुड़े बड़े सवाल खड़े करता है, लेकिन इसे घरेलू राजनीति के चश्मे से देखना खतरनाक हो सकता है। इस घटना के बाद यह भी स्पष्ट हो गया है कि विदेश नीति अब पूरी तरह से राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन चुकी है और सत्ताधारी दल तथा विपक्ष के बीच इस पर तीखी बहस जारी रहेगी।