तमिलनाडु में हुए हादसे का सबसे बड़ा दोषी कोई और नहीं, बल्कि खुद Vijay Thalapathi हैं। क्योंकि वो मंच पर “हीरो” बनने का नाटक करते रहे और नीचे उनकी भीड़ मौत के तले दबती रही। तमिलनाडु के करूर जिले का Veluswamypuram। तारीख थी 27 सितंबर 2025। Vijay Thalapathi की पार्टी Tamilaga Vettri Kazhagam की पहली बड़ी रैली। जिसे विजय और उनकी टीम "ऐतिहासिक" कह रहे थे, वो रैली इतिहास में दर्ज तो हुई, लेकिन वजह बनी 41 इंसानों की मौत और 124 से ज़्यादा घायल।
अनुमति थी महज़ 10 हज़ार लोगों की, लेकिन विजय के नाम का जुनून ऐसा था कि भीड़ उमड़ पड़ी 20–25 हज़ार तक। और जब भीड़ सीमा तोड़ती है, तो उसे संभालने के लिए डबल सुरक्षा चाहिए। लेकिन यहाँ? सुरक्षा का नाम तक नहीं।
रास्ते संकरे, रोशनी अचानक चली गई, भीड़ ने धक्का दिया और फिर शुरू हुआ इंसानी ज़िंदगियों का सबसे बड़ा कत्लेआम। बच्चे कुचले गए, औरतें गिरकर दब गईं, बुज़ुर्ग दम घुटने से मर गए। मंच पर नारे लग रहे थे, “थलापति विजय जिंदाबाद”, लेकिन ज़मीन पर वही भीड़ चीख-चीखकर मर रही थी। ये हादसा किसी प्राकृतिक आपदा का नतीजा नहीं था। ये Vijay की हीरोगीरी और उनकी पार्टी के मिसमैनेजमेंट का परिणाम था। विजय ने इस रैली को फिल्मी शो बना दिया। ऊपर स्टेज पर हीरो वाली एंट्री, नीचे इंसानों की जिंदगी की कोई परवाह नहीं। यही Vijay की सबसे बड़ी गलती है। याद करो IPL में RCB फैन इवेंट की भगदड़। लोग सोशल मीडिया पर Virat Kohli तक को जिम्मेदार ठहराने लगे थे। कहा गया था कि जब स्टार भीड़ खींचता है, तो भीड़ की सुरक्षा भी उसी की जिम्मेदारी है। तो फिर करूर की इस रैली में, जहाँ 41 लोग मारे गए, Vijay कैसे निर्दोष हो सकते हैं? भीड़ उनके नाम पर आई, मौतें उसी शो में हुईं तो जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। पुलिस ने FIR तो दर्ज की, लेकिन किस पर? Vijay पर नहीं। FIR हुई उनके तीन नेताओं पर Bussy Anand, Nirmal Kumar और V.P. Mathiyalagan। आरोप ये कि इन्होंने अनुमति की शर्तों का उल्लंघन किया और सुरक्षा इंतज़ाम नहीं किए। लेकिन सवाल ये है क्या भीड़ इन तीन नेताओं के लिए आई थी? नहीं। भीड़ सिर्फ़ और सिर्फ़ Vijay Thalapathi के लिए आई थी। तो फिर जिम्मेदारी उन पर क्यों नहीं डाली जा रही? तमिलनाडु सरकार ने “जिम्मेदारी” दिखाने के लिए न्यायिक जांच आयोग बना दिया। केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया भी आ गई । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस त्रासदी पर संवेदना जताई और PMNRF से मृतकों के परिजनों को ₹2 लाख व घायलों को ₹50,000 देने का ऐलान किया । मुख्यमंत्री M.K. Stalin ने मुआवज़े का ऐलान किया: मृतकों के परिवारों को ₹10 लाख, घायलों को ₹2 लाख। Vijay ने अपनी तरफ से ₹20 लाख देने की बात कही। Vijay कैमरे पर आए और बोले: “मेरा दिल टूट गया, शब्द नहीं हैं।” लेकिन जनता पूछ रही है: दिल टूटा है या इमेज बचाई जा रही है? क्योंकि अगर वाकई दिल टूटा होता तो Vijay ये बताते कि भीड़ दोगुनी क्यों बुलाई? बिजली जाने के बाद बैकअप प्लान कहाँ था? सिक्योरिटी इंतज़ाम क्यों ध्वस्त हुए? इन सवालों का कोई जवाब नहीं।
Vijay को शायद अभी भी समझ नहीं आया कि राजनीति और सिनेमा में फर्क होता है। सिनेमा में crowd-scenes होते हैं तो पीछे 200 सिक्योरिटी गार्ड खड़े रहते हैं, एडिटिंग होती है और सबसे बड़ी बात “कट” बोलने का ऑप्शन होता है।
लेकिन राजनीति में कट नहीं होता। यहाँ हर गलती, हर चूक इंसान की जान ले लेती है। करूर की रैली ने यही साबित कर दिया कि Vijay राजनीति को भी फिल्म का सेट समझ रहे हैं। फर्क बस इतना है कि फिल्मों में हीरो बचा लिया जाता है, लेकिन यहाँ 41 लोग बच नहीं पाए। करूर की ये त्रासदी सिर्फ़ एक “भगदड़” नहीं, ये Vijay Thalapathi की “हीरोगीरी” और TVK की लापरवाही का नतीजा है। ये जनता की जान से खेला गया सबसे बड़ा खेल है। ऐसे ही देश दुनिया की खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।
दुबई में कल की रात ने क्रिकेट इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। भारत ने पाकिस्तान को हराकर एशिया कप 2025 का खिताब तो जीत लिया, लेकिन जब ट्रॉफी उठाने का समय आया तो पूरा दृश्य बदल गया। स्टेडियम खचाखच भरा था, करोड़ों लोग टीवी पर निगाहें गड़ाए हुए थे और भारतीय टीम फाइनल जीतकर जश्न मनाने को तैयार थी। लेकिन जैसे ही ट्रॉफी प्रस्तुति का मंच सजा, भारतीय खिलाड़ी चुपचाप खड़े रह गए। मंच पर मौजूद थे पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड और एशियन क्रिकेट काउंसिल के अध्यक्ष मोहसिन नक़वी। परंपरा के अनुसार, ट्रॉफी उन्हीं को विजेता टीम को सौंपनी थी। लेकिन भारतीय खिलाड़ियों और बोर्ड का रुख साफ था वे नक़वी से ट्रॉफी नहीं लेंगे। भारत का तर्क था कि टूर्नामेंट का विजेता खिताब किसी न्यूट्रल अधिकारी, जैसे UAE क्रिकेट बोर्ड के प्रतिनिधि, से मिलना चाहिए। लेकिन आयोजकों ने यह मांग ठुकरा दी। नतीजा यह हुआ कि मंच पर रखी ट्रॉफी को अचानक हटा लिया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नक़वी खुद ट्रॉफी उठाकर मंच से चले गए। मैदान में अजीब सन्नाटा छा गया। जीतने वाली टीम के हाथ में कप नहीं था। खिलाड़ी केवल मेडल पहने खड़े रहे। कप्तान सूर्यकुमार यादव ने गुस्से और निराशा में कहा “हमने टूर्नामेंट जीता, लेकिन हमें ट्रॉफी थामने का गौरव नहीं मिला। यह पल हमसे छीन लिया गया।” बीसीसीआई ने इस घटना को गंभीरता से लिया और कहा कि वे इसे आईसीसी और एसीसी में उठाएँगे। BCCI का आरोप है कि खेल का मंच राजनीति का प्रचार बनाने की कोशिश हुई। सोशल मीडिया पर मामला आग की तरह फैल गया। #WhereIsTheTrophy पूरे दिन ट्रेंड करता रहा। लोग लिखने लगे “मैदान इंडिया ने जीता, ट्रॉफी नक़वी ले गए।” तस्वीरों में भारतीय खिलाड़ी खाली हाथ खड़े दिखे और यहीं से यह फाइनल इतिहास का सबसे विवादित मुकाबला बन गया।
यह पहला मौका था जब भारत और पाकिस्तान सीधे एशिया कप फाइनल में भिड़े जीत के बाद भी ट्रॉफी न लेना क्रिकेट इतिहास में दर्ज हो गया। खेल और राजनीति का टकराव, जिसने जश्न को विवाद में बदल दिया। अगर ट्रॉफी विवाद को अलग रखें तो खुद मैच भी उतना ही रोमांचक था। पाकिस्तान ने टॉस हारकर पहले बल्लेबाज़ी की। शुरुआत मजबूत रही। ओपनर और टॉप ऑर्डर ने तेजी से रन जोड़े। एक समय स्कोर था 113/1 और लग रहा था कि वे 180-190 तक पहुँच जाएंगे। लेकिन भारतीय गेंदबाज़ों ने शानदार वापसी की। पारी अचानक ढह गई और पूरी पाकिस्तानी टीम 19.1 ओवर में 146 रन पर ऑल आउट हो गई। भारत के सामने लक्ष्य था 147 रन। शुरुआत विनाशकारी रही। टीम इंडिया ने सिर्फ 20 रन पर तीन बड़े विकेट गंवा दिए। तभी तिलक वर्मा क्रीज़ पर डटे। उन्होंने एक छोर संभाला, स्ट्राइक रोटेट की और मौका मिलने पर बड़े शॉट लगाए। उन्होंने नाबाद 69 रन की पारी खेली। आखिरी ओवर में स्कोर बराबरी पर था और रिंकू सिंह ने चौका लगाकर जीत दिलाई। भारत ने 19.4 ओवर में 150/5 बनाकर 5 विकेट से मुकाबला जीत लिया। इस जीत के साथ भारत ने नौवीं बार एशिया कप पर कब्ज़ा जमाया और एशिया कप का सबसे सफल देश बना। मैन ऑफ द मैच बने तिलक वर्मा । ऐसे ही देश-दुनिया की खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।