दिल्ली की हवा एक बार फिर गला घोंटने वाली हो गई है। सर्दियों की दस्तक के साथ-साथ स्मॉग ने राजधानी को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया है। इसी बीच आज, 28 अक्टूबर, को राजधानी के आसमान में कुछ अलग चल रहा है, IIT Kanpur की टीम और दिल्ली सरकार ने मिलकर क्लाउड-सीडिंग का ऑपरेशन शुरू किया है। उम्मीद यही कि अगर बादल साथ दें, तो इस बार बारिश “मौसम की मेहरबानी” नहीं, बल्कि “विज्ञान का कमाल” बने
तो आखिर क्यों किया जा रहा है ये प्रयोग?
दिल्ली-NCR की हवा फिलहाल “बहुत खराब” श्रेणी में है औसत AQI 280–300 या 304 के बीच झूल रहा है। यह वही वक्त है जब राजधानी में स्कूलों में छुट्टियां बढ़ती हैं, दफ्तरों में एयर-प्यूरिफायर की बिक्री बढ़ती है ऐसे में दिल्ली सरकार और IIT Kanpur की टीम ने मिलकर फैसला किया कि अब हवा के ज़रिए हवा साफ़ करने की कोशिश की जाएगी यानी क्लाउड-सीडिंग। सरल भाषा में कहें तो यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विमान बादलों में silver iodide या sodium chloride जैसे सूक्ष्मकण छोड़ते हैं ताकि उनमें नमी जमकर बूंदें बनें और बारिश हो सके।
क्या है क्लाउड-सीडिंग?
यह कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं, बल्कि 1950 के दशक से चला आ रहा मौसम संशोधन प्रयोग है। पूर्व में दिल्ली में 1957 और 1971-72 में सीमित प्रयोग होने का भी उल्लेख मिलता है, हालांकि इससे संबंधित स्रोत पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं। लेकिन 53 साल बाद, यह ऑपरेशन फिर से दोहराया जा रहा है इस बार राजधानी के आसमान में Cessna विमान उड़ रहे हैं और IIT Kanpur के वैज्ञानिक वास्तविक-समय डेटा मॉनिटर कर रहे हैं। तकनीकी रूप से यह प्रयोग तभी सफल होता है जब बादलों में पर्याप्त नमी (कम से कम 40–50%) और सही तापमान हो। फिलहाल नमी सिर्फ 15% से 20% दर्ज की गई है, इसलिए टीम ने कहा है कि “बारिश की संभावना फिलहाल सीमित है।”
कितना खर्च और क्या नतीजा?
अब तक तीन उड़ानों पर करीब ₹1.9 करोड़ तक का खर्च बताया गया है। उद्देश्य है स्मॉग को धुलवाना, AQI कम करना और हवा में मौजूद PM 2.5 कणों को नीचे गिराना। वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर बारिश हो जाती है तो AQI में अस्थायी रूप से 30–50% तक सुधार आ सकता है। लेकिन आज (28 अक्टूबर) दोपहर तक स्थिति यह रही कि बारिश नहीं हुई, और ऑपरेशन को “अगले उपयुक्त मौसम-विंडो” तक होल्ड पर रखा गया है।
कौन क्या कह रहा है?
IIT Kanpur टीम ने कहा “क्लाउड-सीडिंग कोई मैजिक नहीं, बल्कि SOS-उपाय है। यह तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक बादलों में पर्याप्त नमी न हो।”
पर्यावरण मंत्री (दिल्ली सरकार) ने कहा “यह एक वैज्ञानिक प्रयोग है; जैसे ही बादलों की स्थिति अनुकूल होगी, हम फिर प्रयास करेंगे। दिल्ली की जनता को राहत देने का हर कदम उठाया जाएगा।”
विपक्षी दलों का बयान: कि “बारिश नहीं हुई, लेकिन करोड़ों उड़ गए। यह ‘वेदर-स्टंट’ है, सॉल्यूशन नहीं।”
स्वतंत्र वैज्ञानिक (IIT Delhi) ने कहा “क्लाउड-सीडिंग का प्रभाव सीमित और मापना मुश्किल है। असली समाधान है उत्सर्जन-कंट्रोल, न कि आकाश में प्रयोग।”
तो आखिर जनता को कितना फायदा?
अगर बारिश हो जाती तो हवा थोड़ी साफ महसूस होती कण नीचे बैठ जाते, स्मॉग कुछ दिन के लिए छंट जाता। लेकिन मूल समस्या वही रहती वाहनों का धुआं, उद्योगों का उत्सर्जन और पराली का धुआं। यानी राहत अस्थायी है, जड़ अब भी वहीं है। फिर भी इस पहल को वैज्ञानिक दृष्टि से “पहला कदम” माना जा रहा है, जो भविष्य में बड़े-पैमाने पर मौसम-संशोधन की राह दिखा सकता है। 28 अक्टूबर 2025 की शाम तक: बारिश नहीं हुई। नमी अपर्याप्त। विमान ने उड़ानें भरीं, कण छोड़े गए, लेकिन बादलों ने साथ नहीं दिया। IIT Kanpur की रिपोर्ट के अनुसार, अगर आने वाले 24–48 घंटों में नमी 40% से ऊपर गई तो ऑपरेशन फिर शुरू किया जाएगा।