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Breaking News 29 May 2025

 

1 ) मनीष कश्यप की आलोचना: क्या उनका बीजेपी विरोध सिर्फ राजनीतिक पब्लिसिटी है?

भारतीय जनता पार्टी में जोर-शोर से शामिल होकर अचानक ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी पर मोर्चा खोलने वाले चर्चित यूट्यूबर मनीष कश्यप ने हाल ही में कई विवादित बयान दिए हैं, जिनसे सवाल उठ रहे हैं कि क्या वे वास्तव में बिहार और देश के हित में बोल रहे हैं या यह केवल राजनीतिक पब्लिसिटी पाने का प्रयास है। मनीष कश्यप ने बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों में जुटने वाली भीड़ को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों की तुलना में बिहार की रैलियों में असली भीड़ नहीं होती, बल्कि इसे पैसे देकर और बसों से लाकर बनाया जाता है। साथ ही, उन्होंने भाजपा के स्थानीय नेताओं पर भी निशाना साधा कि वे प्रशासनिक अधिकारियों से बात नहीं कर पाते। इन आरोपों का विपक्ष और आलोचक भी इंतजार कर रहे थे, लेकिन सवाल यह है कि क्या मनीष कश्यप का यह अचानक हुआ बयाना सच में बिहार के विकास को लेकर चिंता जाहिर करता है या यह उनका राजनीतिक फायदे के लिए किया गया स्टंट है। पीएम मोदी की रैलियों में बिहार की बड़ी उपस्थिति कोई नई बात नहीं है। बिहार के लोग प्रधानमंत्री की विकास और जनकल्याण योजनाओं को समझते हैं और उनका समर्थन करते हैं। बिहार में भीड़ का स्तर मोदी के काम और उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है, न कि किसी नकली भीड़ का नतीजा। गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों में भी प्रधानमंत्री की रैलियों में भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं, और यह साबित हो चुका है कि मोदी की लोकप्रियता पूरे देश में बराबर है।

मनीष कश्यप द्वारा भाजपा नेताओं को प्रशासनिक अधिकारियों से बात न करने का आरोप भी तथ्यात्मक तौर पर संदिग्ध है। बिहार में भाजपा के कई नेता प्रभावी रूप से काम कर रहे हैं और विकास के लिए लगातार प्रयासरत हैं। इस बीच, विपक्षी दलों द्वारा मनीष कश्यप के बयान को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना भी आश्चर्यजनक नहीं है। पटना एयरपोर्ट के बारे में कश्यप ने भी आरोप लगाए कि रनवे बढ़ाए बिना टर्मिनल बिल्डिंग बढ़ा दी गई है, लेकिन यह भी ध्यान देने वाली बात है कि बिहार में अवसंरचना का विकास धीरे-धीरे हो रहा है और नई योजनाओं पर काम जारी है। बिहटा एयरपोर्ट का निर्माण भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो आने वाले वर्षों में राज्य की उड्डयन सुविधा को बेहतर बनाएगा। आखिर में, मनीष कश्यप की अपील कि बिहार की प्रधानमंत्री मोदी की रैली में भीड़ न जुटाई जाए, न केवल विकास विरोधी है बल्कि जनता की आवाज़ को भी दबाने की कोशिश लगती है। बिहार में मोदी के प्रति जनता का जो विश्वास है, उसे यह बयान कमज़ोर नहीं कर पाएगा। मोदी सरकार ने देश के हर राज्य में विकास के काम किए हैं और बिहार भी इससे अलग नहीं है। यह स्पष्ट है कि मनीष कश्यप के आरोप केवल विवाद उत्पन्न करने के लिए हैं, जो बिहार की जनता की भावना के खिलाफ हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और कार्यक्षमता को नकारना यथार्थ से दूर है। बिहार के लोग समझदार हैं और वे जानते हैं कि विकास के रास्ते पर मोदी सरकार ने कितनी मेहनत की है।

 

2 )Elon Musk ने ट्रंप प्रशासन से तोड़ा नाता 

 

अरबपति टेक कारोबारी और टेस्ला-स्पेसएक्स प्रमुख एलन मस्क ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार में अपनी भूमिका से इस्तीफा दे दिया है। मस्क ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट के जरिए घोषणा की कि उनका "विशेष सरकारी कर्मचारी" (Special Government Employee - SGE) के तौर पर 130 दिनों का कार्यकाल अब पूरा हो गया है।एलन मस्क राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा स्थापित “डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी” (DOGE) के प्रमुख के रूप में नियुक्त किए गए थे, जिसका उद्देश्य सरकारी खर्च में कटौती और दक्षता को बढ़ावा देना था। लेकिन अब उनका यह कार्यकाल एक राजनीतिक मोड़ पर समाप्त हो गया है।  “मैं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने मुझे फालतू खर्च कम करने का अवसर दिया। DOGE मिशन समय के साथ और भी मजबूत बनेगा,” मस्क ने अपने X पोस्ट में लिखा।

क्या वजह बनी इस्तीफे की?

जानकारों की मानें तो एलन मस्क और डोनाल्ड ट्रंप के बीच मतभेद की दरार तब गहराई, जब ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में "बिग ब्यूटीफुल" बिल संसद में पेश किया। सरकार का दावा है कि यह बिल अनिवार्य खर्चों में 1.6 ट्रिलियन डॉलर की कटौती करेगा। लेकिन मस्क इस दावे से सहमत नहीं दिखे। मस्क ने इस बिल को “निराशाजनक” बताते हुए कहा कि यह बजट घाटा और बढ़ाएगा और DOGE टीम के कार्यों को कमजोर करेगा। यह आलोचना ट्रंप के लिए अप्रत्याशित थी—खासतौर पर तब, जब उन्होंने मस्क को ‘अपना दोस्त’ बताते हुए DOGE का नेतृत्व सौंपा था।

रिश्तों में आई खटास

मस्क का इस्तीफा यूं ही अचानक नहीं आया। यह उस खटास की परिणति है जो बीते कुछ हफ्तों से सार्वजनिक मंचों पर दिखने लगी थी। एक ओर ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद खुद को खर्च नियंत्रण का मसीहा दिखाना चाहते हैं, वहीं मस्क का मानना है कि ‘बिग ब्यूटीफुल’ जैसा बिल महज़ राजनीतिक दिखावा है।
व्हाइट हाउस ने मस्क के इस्तीफे की पुष्टि करते हुए कहा है कि DOGE विभाग का काम आगे भी जारी रहेगा। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि बिना मस्क जैसी प्रभावशाली शख्सियत के, यह विभाग कितनी “सरकारी दक्षता” दिखा पाएगा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मस्क का सरकार से अलग होना महज़ एक ‘पद का त्याग’ नहीं, बल्कि राजनीतिक मतभेद का सार्वजनिक एलान है। एलन मस्क जैसे उद्यमी जब सार्वजनिक नीति पर सवाल उठाते हैं, तो उसका प्रभाव सिर्फ राजनीतिक गलियारों तक सीमित नहीं रहता—वो बाजार और वैश्विक नेतृत्व की सोच पर भी असर डालता है।

 

3 ): इस बार का IPL खिताब RCB ही जीतेगी जानिए क्यों ? 

 

रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु—एक ऐसा नाम, जो हर IPL सीज़न में सिर्फ एक उम्मीद नहीं, बल्कि जुनून लेकर मैदान में उतरता है। 17 साल, 3 फाइनल, 7 बार प्लेऑफ... लेकिन नतीजा? एक अधूरा सपना। क्रिकेट की सबसे रंगीन लीग में RCB ने स्टार प्लेयर्स की चमक, विराट कोहली की कप्तानी और फैंस की दीवानगी सब कुछ दिया, सिवाय एक ट्रॉफी के। लेकिन IPL 2025 में कहानी कुछ अलग लग रही है। इस बार RCB न सिर्फ खेल रही है, बल्कि छा रही है। लीग स्टेज में 14 में से 9 मुकाबले जीतकर टीम ने 19 अंक के साथ दूसरा स्थान हासिल किया है। और अब वो वक्त आ गया है, जब इतिहास दोहराया नहीं, बल्कि नया इतिहास लिखा जा सकता है।

सिर्फ खेल नहीं, किस्मत भी दे रही साथ!

संयोग कहिए या संदेह से भरी उम्मीद—but आंकड़े चुप नहीं हैं। 2020 से एक दिलचस्प पैटर्न चल रहा है। एक साल नंबर-1 टीम बनती है चैंपियन, अगले साल नंबर-2। 2020 में MI (1st) बनी विजेता 2021 में CSK (2nd) ने ट्रॉफी उठाई , 2022 में GT (1st) ने खिताब जीता, 2023 में फिर से CSK (2nd) ने जलवा दिखाया। 2024 में KKR (1st) ने ट्रॉफी हासिल की । अब 2025 है—और इस बार RCB दूसरे नंबर पर है। इतिहास अगर खुद को दोहराए, तो शायद बेंगलुरु को वो पल मिल जाए, जिसकी उसके करोड़ों फैंस को सालों से तलाश है।

आँकड़े भी कह रहे हैं—अबकी बार RCB!

महज संयोग नहीं, आँकड़े भी RCB के पक्ष में खड़े हैं। IPL के पिछले 14 सीज़नों में दूसरे नंबर पर रही टीमों ने सबसे ज़्यादा 8 बार ट्रॉफी जीती है, जबकि टॉप पर रही टीम सिर्फ 5 बार ही चैंपियन बनी। और चौथे नंबर से कोई टीम अब तक विजेता नहीं बन पाई है। यानी लीग स्टेज में दूसरे स्थान पर रहना सिर्फ सम्मान नहीं, ट्रॉफी के और क़रीब जाने की एक मजबूत सीढ़ी है ।RCB के फैंस हर साल कहते हैं, "Ee Sal Cup Namde! 
लेकिन शायद इस बार ये नारा सिर्फ एक सपना नहीं, बल्कि हकीकत बन जाए। क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है, लेकिन जब मेहनत, फॉर्म और किस्मत तीनों एकसाथ चलते हैं—तो इतिहास गवाह बनता है। अब देखना ये होगा कि RCB इस सुनहरे मौके को भुना पाती है या नहीं। पर इस बार कहानी में रोमांच है, तर्क है, और उम्मीद है... और कभी-कभी, यही सबसे बड़ी ताकत होती है।