केरल से निकली एक खतरनाक खबर ने देश भर के स्वास्थ्य तंत्र की नींद उड़ा दी है। ‘ब्रेन-ईटिंग अमीबा’ यानी Naegleria fowleri नामक सूक्ष्म जीव अब सिर्फ मेडिकल किताबों का विषय नहीं रह गया है, बल्कि ज़मीनी हकीकत बन चुका है। यह वही जीव है जो अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस का कारण बनता है। नाम लंबा है लेकिन असर छोटा नहीं नाक से शरीर में दाख़िल होकर यह सीधे इंसान के दिमाग तक पहुँच जाता है और मरीज को बेहद कम समय में मौत के करीब पहुँचा देता है। दुनिया भर में इस बीमारी की मौत की दर लगभग 97% है, यानी बचने की संभावना बहुत ही कम।
केरल में स्थिति क्या है? आँकड़े डराने वाले हैं। 2016 से 2023 तक केरल में केवल 8 केस दर्ज हुए थे। लेकिन 2024 में अचानक उछाल आया और 36 केस मिले, जिनमें 9 मौतें हुईं। इसके बाद केरल सरकार को मजबूर होकर देश की पहली आधिकारिक गाइडलाइन जारी करनी पड़ी। और अब 2025 में हालात और बिगड़ चुके हैं। अगस्त 2025 तक 40 से ज़्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें करीब 18–19 मरीज अभी भी इलाज के अधीन हैं। कोझिकोड, मलप्पुरम और वायनाड जैसे जिलों में यह बीमारी लगातार सामने आ रही है। यही वजह है कि राज्य सरकार ने “Water is Life” नाम से एक बड़ा अभियान चलाया है जिसमें कुओं, टैंकों और स्विमिंग पूलों की अनिवार्य सफाई व क्लोरीनेशन, जल-स्रोतों की जांच और स्कूलों में अवेयरनेस कैंपेन चलाए जा रहे हैं। पड़ोसी तमिलनाडु सरकार ने भी एडवाइजरी जारी कर दी है, ताकि संक्रमण सीमावर्ती इलाकों में न फैले।
यह बीमारी फैलती कैसे है? आम भ्रम है कि यह पानी पीने से फैलती है। सच बिल्कुल उलट है। Naegleria fowleri अमीबा नाक के रास्ते शरीर में जाता है, सीधे olfactory nerves से होकर दिमाग तक पहुँचता है। यह संक्रमण ज़्यादातर गरम या गुनगुने मीठे पानी (तालाब, झील, नदी, क्लोरीन-रहित स्विमिंग पूल) में होता है। अगर कोई व्यक्ति पानी में सिर डुबोए और वह पानी नाक में चला जाए तो अमीबा को मौका मिल जाता है। खारे पानी यानी समुद्र में यह जीव जीवित नहीं रहता। न ही यह बीमारी इंसान से इंसान में फैलती है। लक्षण कैसे दिखते हैं? संक्रमण के बाद 1 से 12 दिनों के भीतर लक्षण शुरू हो जाते हैं। शुरुआत में यह बैक्टीरियल मेनिन्जाइटिस जैसा लगता है तेज़ सिरदर्द, बुखार, उल्टी, मतली। लेकिन धीरे-धीरे हालात बिगड़ने लगते हैं गर्दन अकड़ना, कन्फ्यूज़न, बैलेंस बिगड़ना, दौरे और अंत में कोमा। CDC के मुताबिक़, लक्षण शुरू होने के बाद औसतन 5 दिनों में ही मरीज की मौत हो जाती है। इसलिए पहचान में ज़रा-सी देरी भी जानलेवा साबित हो सकती है। इलाज क्या है? सच यह है कि कोई भी निश्चित इलाज अभी तक नहीं है। केरल सरकार की 2024 की गाइडलाइंस में सलाह दी गई है कि डॉक्टरों को हर संदिग्ध केस में तुरंत अम्फोटेरिसिन-B, मिल्टेफोसिन, फ्लुकोनाज़ोल, रिफैम्पिसिन, एजिथ्रोमाइसिन जैसी दवाओं का कॉम्बिनेशन थैरेपी शुरू करना चाहिए। कुछ मामलों में मरीजों की जान बची है, लेकिन वे गिने-चुने अपवाद हैं। बचाव ही सबसे बड़ा हथियार है।
सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? “Water is Life” मिशन के तहत केरल सरकार ने हर सार्वजनिक और निजी जलस्रोत की जांच और क्लोरीनेशन को अनिवार्य कर दिया है। स्कूलों में बच्चों को सावधानी सिखाई जा रही है। स्थानीय निकायों को आदेश है कि कुओं और टैंकों की सफाई लगातार की जाए। तमिलनाडु की तरह दूसरे राज्यों को भी सतर्क रहने की सलाह दी गई है। जनता क्या करे? डॉक्टर साफ कह रहे हैं तालाब, झील या खराब स्विमिंग पूल में नाक से पानी जाने से बचें। नेति पॉट या नाक की सफाई करते समय केवल उबला-ठंडा या डिस्टिल्ड पानी इस्तेमाल करें। बच्चों को नालों, गड्ढों या तालाबों में खेलने से रोकें। अगर हाल ही में तैराकी या तालाब में स्नान करने के बाद सिरदर्द, बुखार, गर्दन अकड़ना या उल्टियाँ जैसी दिक्कतें हों तो डॉक्टर को तुरंत बताइए कि यह अमीबा संक्रमण हो सकता है। यह सिर्फ केरल तक सीमित नहीं है। बिहार, बंगाल, कर्नाटक, आंध्र-प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में भी अमीबा पाया गया है। मानसून और गर्मियों में उथले, गंदे, क्लोरीन-रहित तालाब-कुएँ सबसे बड़े रिस्क ज़ोन हैं।बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे
बिहार की ज़मीन पर इन दिनों सिर्फ़ चुनावी कदमों की आहट नहीं है, बल्कि शब्दों की तलवार भी तेज़ हो चुकी है। कांग्रेस और राजद की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ जहाँ मतदाताओं के हक़ की आवाज़ उठाने निकली थी, वहीं इस यात्रा से जुड़े एक मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी दिवंगत मां हीराबेन के लिए अभद्र शब्दों का इस्तेमाल हुआ। जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, राजनीति की ज़मीन काँप गई और माहौल मर्यादा बनाम नैरेटिव की लड़ाई में बदल गया।
वीडियो दरभंगा-मोतिहारी रूट पर हुई सभा का है। मंच से कुछ समर्थकों ने अभद्र टिप्पणियाँ कर दीं। कांग्रेस ने तुरंत माफी माँग ली, लेकिन आग लग चुकी थी। भाजपा ने आरोप लगाया कि ये सिर्फ़ कुछ कार्यकर्ताओं की आवाज़ नहीं, बल्कि उस राजनीतिक संस्कृति का परिचायक है जिसे राहुल गांधी और INDIA ब्लॉक बढ़ावा दे रहे हैं। कांग्रेस ने सफाई दी राहुल उस वक्त मंच पर मौजूद नहीं थे और पार्टी इस भाषा का समर्थन नहीं करती। लेकिन सवाल उठ गया क्या मंच से कही गई हर बात की नैतिक ज़िम्मेदारी उस नेता पर भी जाती है जो उस मंच का चेहरा है?
भाजपा ने इस घटना को चुनावी हथियार बना लिया है। पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक, सभी नेताओं ने राहुल गांधी पर निशाना साधा। अमित शाह ने कहा “यह लोकतांत्रिक मर्यादा का सवाल है, राहुल गांधी को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।” भाजपा के मुताबिक, यह सिर्फ़ प्रधानमंत्री पर हमला नहीं बल्कि देश की राजनीति की मर्यादा का अपमान है। भाजपा का इशारा साफ है मंच आपका है, यात्रा आपकी है, जिम्मेदारी भी आपकी है। राहुल गांधी ने सीधे-सीधे माफी तो नहीं मांगी, लेकिन इशारों में जवाब ज़रूर दिया। उन्होंने कहा “सच जीतेगा।” कांग्रेस का कहना है कि भाजपा इस पूरे विवाद को मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए हवा दे रही है। पार्टी लगातार यह नैरेटिव बनाने में जुटी है कि असली सवाल महंगाई, बेरोजगारी और किसानों का संकट है, लेकिन भाजपा इन्हें दबाने के लिए भावनात्मक मुद्दों को उछाल रही है। यानी कांग्रेस बचाव की मुद्रा में है, मगर सीधे तौर पर झुकना नहीं चाहती। दिलचस्प बात ये है कि इस विवाद ने सिर्फ़ सत्ता पक्ष बनाम विपक्ष की लड़ाई को ही नहीं जन्म दिया, बल्कि विपक्षी खेमे के भीतर भी असहजता पैदा कर दी है। बसपा प्रमुख मायावती ने इस बयान को अमर्यादित और असंसदीय बताते हुए कांग्रेस को घेरा। उन्होंने कहा “राजनीति का स्तर लगातार गिर रहा है, सभी दलों को संयम बरतना चाहिए।” वहीं ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने भी इसे भारतीय संस्कृति और राजनीतिक शुचिता का अपमान बताया। इन बयानों से साफ है कि राहुल गांधी पर दबाव केवल भाजपा ही नहीं, बल्कि विपक्ष के भीतर से भी बढ़ रहा है। राजनीतिक बयानबाज़ी से इतर प्रशासन ने भी तुरंत कार्रवाई की। रिपोर्ट्स के मुताबिक़, अभद्र टिप्पणी करने वाले व्यक्ति को हिरासत में ले लिया गया है। राज्य प्रशासन का संदेश साफ है राजनीतिक मंच पर भले ही नारों की गूंज तेज़ हो, लेकिन व्यक्तिगत और पारिवारिक गरिमा पर हमला किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह विवाद अब केवल एक बयान का नहीं रह गया है, बल्कि इसे राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।
1. भाजपा इसे नैतिक जिम्मेदारी और माफी का मुद्दा बनाकर जनता के बीच ले जाएगी।
2. कांग्रेस इसे भटकाव की राजनीति बताकर अपने चुनावी नैरेटिव रोज़गार, महंगाई और ‘वोट चोरी’—पर केंद्रित रहने की कोशिश करेगी।
3. विपक्षी दलों की निंदा से राहुल गांधी की चुनौती और बड़ी हो गई है उन्हें न सिर्फ़ भाजपा से लड़ना है, बल्कि अपने ही खेमे में इमेज मैनेजमेंट भी करना है। इस पूरे प्रकरण का सबसे बड़ा सबक यही है कि चुनावी राजनीति में सिर्फ़ मुद्दे ही नहीं, भाषा भी मायने रखती है। मंच पर बोले गए शब्द चुनावी लहर को बदलने की ताक़त रखते हैं। बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे