क्या भारत का सबसे बड़ा पहचान पत्र "आधार" अब जन्म-तिथि साबित नहीं कर सकता? क्या सरकार यह मान रही है कि आधार में लिखी गई डेट ऑफ बर्थ पर भरोसा ही नहीं किया जा सकता? और क्या लाखों लोगों को अब नए सिरे से अपना जन्म प्रमाण पत्र बनवाना पड़ेगा? यही वो सवाल हैं जो उत्तर प्रदेश सरकार के नए आदेश के बाद अचानक पूरे राज्य में उठने लगे हैं। आदेश साफ कहता है अब आधार कार्ड को जन्म-तिथि प्रमाण के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक कदम उठाते हुए आधार कार्ड को जन्म-तिथि के प्रमाण के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है। नियोजन विभाग की ओर से जारी इस आदेश में सभी विभागों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि अब किसी भी भर्ती, प्रमोशन, सेवा-पुस्तिका, पेंशन प्रक्रिया या सरकारी दस्तावेज़ में आधार कार्ड को जन्म तिथि के आधिकारिक प्रमाण की श्रेणी में शामिल न किया जाए। सरकार ने अपने आदेश में UIDAI के उस पत्र का हवाला दिया है जिसमें आधार को “self-declared” दस्तावेज़ बताया गया है यानी आधार में दर्ज DOB किसी प्रमाणित जन्म-रिकॉर्ड पर आधारित नहीं होती, बल्कि नागरिक द्वारा दी गई जानकारी पर निर्भर रहती है। इसीलिए इसे प्रमाणिक जन्म-तिथि मानना उचित नहीं है। सरकार ने यह भी संकेत दिया है कि जन्म-तिथि की पुष्टि के लिए अब केवल वही दस्तावेज़ मान्य होंगे जो आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज हों, जैसे जन्म प्रमाणपत्र, हाई-स्कूल की अंकपत्रिका या नगरपालिका/स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी प्रमाण पत्र। इस निर्णय से साफ है कि सरकार फर्जी जन्म-तिथि, मनमाने बदलाव और उम्र में हेरफेर जैसे जोखिमों को खत्म करना चाहती है, लेकिन इसके साथ ही बड़ी संख्या में वे लोग भी प्रभावित होंगे जिनकी आधिकारिक डेट ऑफ बर्थ सिर्फ आधार में ही दर्ज है। ऐसे लोगों को अब नए सिरे से अपना जन्म प्रमाण तैयार करवाना पड़ेगा। यह निर्णय एक प्रशासनिक सुधार है या नई जटिलता यह बहस अब तेजी पकड़ चुकी है।
हॉन्गकॉन्ग के ताई पो इलाके में स्थित Wang Fuk Court नाम के विशाल रिहायशी कॉम्प्लेक्स में 26 नवंबर 2025 को दोपहर करीब 2:50 बजे लगी आग ने शहर की दशकों पुरानी सुरक्षा व्यवस्था पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। करीब दो हजार फ्लैट्स और 4,600 से ज़्यादा निवासियों वाले इस कॉम्प्लेक्स में लगी आग देखते ही देखते फैल गई और आठ में से सात ऊँची इमारतें इसकी चपेट में आ गईं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अब तक कम से कम 128 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें एक फायरफाइटर भी शामिल है। लगभग 79 लोग घायल हुए हैं और करीब 200 निवासियों की स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं, जो इस त्रासदी की गंभीरता को कई गुना बढ़ा देता है।
जांच में यह साफ़ होता दिखाई देता है कि आग शुरुआत में Block F के बांस के स्कैफ़ोल्डिंग और उस पर लगी हरी प्लास्टिक नेटिंग से भड़की, जो रेनोवेशन का हिस्सा थीं। इन ज्वलनशील सामग्रियों स्टायरोफोम, फोम बोर्ड, प्लास्टिक शीट ने आग को ऐसी रफ्तार दी कि यह इमारतों की बाहरी दीवारों से होती हुई सीधी ऊपर की मंज़िलों तक फैल गई। विशेषज्ञ इसे “वर्टिकल फायर हाईवे” बता रहे हैं। शुरुआती जांच इस ओर भी संकेत देती है कि रेनोवेशन में सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई, जिसके चलते छोटी लपटें महाकाल बन गईं। अंदर की स्थिति और भयावह रही धुआँ, 500°C से ऊपर तापमान, सामान से भरे संकरे कॉरिडोर और कई फ्लैट्स में फायर अलार्म का निष्क्रिय रहना, रेस्क्यू को लगभग असंभव बना रहे थे। फायर डिपार्टमेंट ने इस आपदा को “फाइव-अलार्म फायर” घोषित किया हॉन्गकॉन्ग की सबसे ऊँची गंभीरता की श्रेणियों में से एक। 304 से ज्यादा फायर इंजन और रेस्क्यू यूनिट्स को लगाया गया; कई मंज़िलों पर फ्रंट-डोर को तोड़कर फ्लैट-दर-फ्लैट सर्च करना पड़ा। आग पर काबू पाने और फैलाव रोकने में करीब 40 घंटे लगे, जबकि शवों की रिकवरी और पहचान की प्रक्रिया अभी जारी है। 89 शव ऐसे हैं जिनकी पहचान नहीं हो सकी है। कई परिवार मॉल, पब्लिक हॉल और अस्थायी शेल्टरों में ठहरे हुए हैं क्योंकि उनके घर पूरी तरह राख में बदल चुके हैं। इस पूरी त्रासदी के बीच सबसे बड़ा सवाल यही है जिम्मेदार कौन? पुलिस ने रेनोवेशन से जुड़ी Prestige Construction के दो अधिकारियों और एक इंजीनियरिंग कंसल्टेंट को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि उन्होंने खिड़कियों और बाहरी हिस्सों पर अत्यधिक ज्वलनशील सामग्री का इस्तेमाल किया और सुरक्षा नियमों की अनदेखी की। हॉन्गकॉन्ग की एंटी-करप्शन एजेंसी ICAC ने भी निर्माण कार्य में संभावित भ्रष्टाचार की जांच शुरू कर दी है। सरकार ने एक विशेष टास्क फोर्स बनाई है और पब्लिक हाउसिंग प्रोजेक्ट्स की सुरक्षा जांच का आदेश दिया है। यह हादसा सिर्फ एक आग नहीं, बल्कि हॉन्गकॉन्ग की शहरी योजना, रेनोवेशन सिस्टम और सुरक्षा मानकों में मौजूद गहरी खामियों का कठोर उद्घाटन है। जब तक जिम्मेदारी तय नहीं होती और खामियों को सुधारा नहीं जाता, यह सवाल गूंजता रहेगा क्या यह सिर्फ एक दुर्घटना थी, या एक ऐसी विफलता जिसकी कीमत 128 ज़िंदगियों ने चुका दी?