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Breaking News 28 May 2025

1.)  क्या फिर से लॉकडाउन की आहट है? लौट आया है कोरोना का साया!

वो वायरस जो एक बार पूरी दुनिया को ठहरा चुका है, अब एक बार फिर दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है। सवाल यह नहीं कि वो आया है या नहीं, बल्कि ये है कि हमने उसके लौटने की तैयारी कितनी की है? 2020 का वह दौर भला कौन भूल सकता है, जब इंसान ने इंसान से दूरी बना ली थी, जब सड़कों पर सन्नाटा और अस्पतालों में चीखें थीं, जब हर खाँसी पर शक होता था और हर छींक पर खौफ। और अब, वही वायरस COVID-19—फिर से धीरे-धीरे अपने पैर पसार रहा है। आंकड़े छोटे हैं, लेकिन संकेत बड़े हैं। हालात काबू में हैं, लेकिन खतरा हवा में है।

स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कोविड के कुल 1,009 नए मामले दर्ज किए गए हैं। इसमें केरल सबसे ऊपर है, जहाँ 430 केस सामने आए हैं, इसके बाद महाराष्ट्र में 209 और दिल्ली में 104 नए संक्रमित मिले हैं। दिल्ली में अभी 99 एक्टिव केस हैं, और राजधानी सरकार ने तुरंत अस्पतालों के लिए एडवाइजरी जारी कर दी है। सरकार ने साफ़ तौर पर कहा है कि बेड, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, एंटीबायोटिक और वैक्सीन की उपलब्धता हर अस्पताल में सुनिश्चित होनी चाहिए। यह वही शहर है जिसने दूसरी लहर में सबसे बड़ी त्रासदी झेली थी, जहाँ श्मशानों की आग कई रातों तक बुझी नहीं थी।

ICMR (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल ने कहा है कि भारत में जो मामले सामने आ रहे हैं, वे गंभीर नहीं हैं। नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के ही सब-वेरिएंट हैं और इनमें अस्पताल में भर्ती होने या मौत की दर बेहद कम है। डॉ. बहल का ये बयान राहत तो देता है, लेकिन यह हमें लापरवाह होने की छूट नहीं देता। क्योंकि वायरस का चरित्र बदलता है, और हर वेरिएंट एक नया अध्याय होता है।

स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि मौजूदा केस NB.1.8.1, LF.7 और JN.1 जैसे नए वेरिएंट के कारण बढ़ रहे हैं। ये वेरिएंट अमेरिका, चीन, जापान और अब भारत में भी फैल चुके हैं। यह वायरस अब एशिया के अन्य देशों में भी अपने पैर पसार रहा है। यह एक संकेत है कि कोरोना का यह नया संस्करण सिर्फ सीमा पार नहीं कर रहा, बल्कि समय के साथ तेज़ और अधिक संक्रामक हो सकता है।

भले ही केस कम हों, लेकिन मौतें हो रही हैं। महाराष्ट्र में 3 मौतें, केरल में कई जानें गईं, और कर्नाटक व राजस्थान में 1-1 व्यक्ति की मौत दर्ज की गई है। ये मौतें उन जगहों पर हो रही हैं जहाँ स्वास्थ्य सुविधाएँ अपेक्षाकृत बेहतर हैं। सवाल उठता है: क्या हम दोबारा उस मौत के आंकड़े की तरफ बढ़ रहे हैं जहाँ हर घर में डर और हर परिवार में शोक था?

यहाँ कहानी एक मोड़ लेती है, जब विज्ञान के साथ-साथ भविष्यवाणियाँ भी सुर्खियाँ बनाने लगती हैं। जापान की ‘बाबा वेंगा’ कहे जाने वाली मशहूर मंगा कलाकार रियो तात्सुकी की एक पुरानी भविष्यवाणी फिर से चर्चा में है। 1999 में लिखी गई उनकी किताब "The Future As I See It" में उन्होंने कहा था: “2020 में एक अज्ञात वायरस पूरी दुनिया में तबाही मचाएगा। वह वायरस अप्रैल में चरम पर होगा और फिर शांत होगा... लेकिन दस साल बाद, यह फिर लौटेगा—और पहले से ज्यादा ख़तरनाक होगा।” 2020 में जो हुआ, वह उनके शब्दों के काफी करीब था। अब, 2030 से पहले ही कोरोना के केसों का लौटना, लोगों को उसी डर में डाल रहा है। रियो की किताब में यह भी लिखा है कि अगली बार वायरस इतना घातक होगा कि वैश्विक स्वास्थ्य तंत्र फिर से धराशायी हो जाएगा। क्या हम एक विज्ञान और भविष्यवाणी के संगम पर खड़े हैं?

रियो तात्सुकी ने एक और भविष्यवाणी की थी—जुलाई 2025 में जापान और फिलीपींस के बीच एक समुद्र के नीचे की दरार से एक विशाल सुनामी पैदा होगी, जो एशिया को बुरी तरह प्रभावित करेगी। जापान, जो भूकंप और सुनामी के इतिहास में संवेदनशील रहा है, इस भविष्यवाणी को लेकर सतर्क है। हालांकि सरकार ने कोई औपचारिक चेतावनी नहीं दी है, लेकिन आपदा प्रबंधन बल हाई अलर्ट पर हैं। क्या यह डर महज़ काल्पनिक है, या आने वाले समय का सटीक संकेत?

कोरोना की पहली लहर एक चेतावनी थी, दूसरी एक त्रासदी, और अब यदि तीसरी दस्तक दे रही है, तो यह परीक्षा है—देश के नेतृत्व की, व्यवस्था की, और हमारी सामाजिक चेतना की। हमारे पास इस बार वैक्सीन है, अनुभव है, और संसाधन भी, लेकिन यदि लापरवाही होगी, तो इतिहास फिर खुद को दोहराएगा।

कोरोना अब सिर्फ वायरस नहीं, बल्कि एक सीख है। एक अदृश्य दुश्मन जिसने सिखाया कि सबसे मजबूत वही है जो सतर्क रहता है। कोरोना की वापसी कोई अफवाह नहीं है, लेकिन यह पैनिक का कारण भी नहीं बननी चाहिए। यह एक सिग्नल है—कि हम उस भविष्य की तैयारी करें, जो पहले से ही हवा में तैर रहा है। अब ज़रूरत है मास्क की नहीं, समझदारी की; वैक्सीनेशन की नहीं, सतर्कता की; और डर की नहीं, एकजुटता की। क्योंकि अगली लड़ाई सिर्फ वायरस से नहीं, लापरवाही से है।

 

2.)  सात लोगों की मौत और एक सवाल: क्या ये आत्महत्या थी या सिस्टम की हत्या?"

हरियाणा के शांत कहे जाने वाले पंचकूला शहर में उस रात एक चीख भी नहीं गूंजी… बस एक बंद कार में सात ज़िंदगियां हमेशा के लिए खामोश हो गईं। देहरादून से आए एक ही परिवार के सात सदस्य बाबा धीरेंद्र शास्त्री की कथा में हिस्सा लेने पहुंचे थे — कथा में शांति खोजी थी, लेकिन लौटते वक़्त वे मौत के लिए तैयार हो चुके थे। कार के भीतर ज़हर पीकर एक पूरा परिवार आत्महत्या कर चुका था। यह कहानी नहीं, हकीकत है। वह हकीकत जो हमें बताती है कि आस्था, धर्म और आध्यात्मिक कथाएं भी एक भूखे पेट और टूटे मन को शांति नहीं दे सकतीं — जब तक कि पेट की आग और कर्ज़ की चक्की का कोई हल न निकले। प्रवीण मित्तल नाम का यह व्यक्ति, अपने बुज़ुर्ग माता-पिता, पत्नी और तीन मासूम बच्चों के साथ देहरादून से पंचकूला आया था। उनके चेहरों पर कथा की आस्था का सुकून था, लेकिन दिल में घना अंधेरा था — घाटे में डूबा व्यापार, बढ़ता कर्ज, खत्म होती उम्मीदें और समाज का असंवेदनशील रवैया। कथा खत्म हुई, और कथा बन गया उनका अंत। पुलिस को सोमवार रात करीब 11 बजे सूचना मिली कि सेक्टर-27 में खड़ी एक कार में कई लोग बेहोश पड़े हैं। मौके पर पहुंची टीम ने देखा कि पूरी कार मौत की चुप्पी से भरी है। अस्पताल ले जाने पर छह को मृत घोषित कर दिया गया। एक बच्चा जीवित था, लेकिन थोड़ी ही देर में वह भी चल बसा। कार में कोई खिड़की नहीं खुली थी, कोई शोर नहीं था — मानो सबने मिलकर तय किया हो कि अब जीना नहीं। पुलिस जांच में सामने आया कि मृतक प्रवीण मित्तल देहरादून में एक टूर एंड ट्रैवल्स कंपनी चलाते थे। कुछ सालों से उनका कारोबार लगातार घाटे में था। कोरोना काल ने झटका दिया, उसके बाद उबर नहीं पाए। कर्ज़ बढ़ता गया, सपने सिकुड़ते गए। कई लोगों से उधार, EMI, घर खर्च, बच्चों की फीस  और फिर वो घड़ी आई जब सब कुछ खत्म हो गया। समाज से मदद नहीं मिली, सरकार से राहत नहीं मिली, और शायद खुद से भी भरोसा उठ गया। पंचकूला को ही क्यों चुना? कई सवाल अभी बाकी हैं... पुलिस और फोरेंसिक टीमों ने सबूत जुटा लिए हैं, लेकिन सवाल अभी खुले हैं:

क्या आत्महत्या की योजना पहले से थी?

क्या बाबा की कथा में कोई ऐसी बात हुई जिसने फैसला पक्का कर दिया? जिस जगह कार खड़ी थी, क्या वह कोई जाना-पहचाना इलाका था? और सबसे बड़ा सवाल — क्या किसी ने उनकी तकलीफ महसूस की थी? डीसीपी हिमाद्री कौशिक और डीसीपी लॉ एंड ऑर्डर अमित दहिया ने कहा है कि पूरे मामले की गहराई से जांच की जा रही है। परिवार के नजदीकी लोगों से पूछताछ जारी है। क्या ये आत्महत्या है? या एक सिस्टम की विफलता, जिसमें एक आम आदमी की आवाज़ कोई नहीं सुनता? जब एक परिवार धार्मिक कथा में मुक्ति की तलाश में आता है और वहां से लौटकर जहर खा लेता है — तो सवाल कथा पर नहीं, उस व्यवस्था पर उठते हैं जो उसे इस मुकाम तक लाती है।

 

3.)  संदीप रेड्डी वांगा का क्या है नया विवाद ? 

साउथ सुपरस्टार प्रभास की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘स्पिरिट’ रिलीज़ से पहले ही गहरी साज़िशों और तंज़ों के भंवर में फंसती नज़र आ रही है। फिल्म को लेकर सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोरने वाली बात ये नहीं है कि इसमें 'एनिमल' फेम डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा हैं, बल्कि ये है कि दीपिका पादुकोण अब इस फिल्म का हिस्सा नहीं हैं और उनके जाने के बाद जो भूचाल सोशल मीडिया पर उठा है, वो किसी स्क्रिप्ट से कम नहीं। जहाँ एक तरफ तृप्ति डिमरी को फिल्म की लीड एक्ट्रेस के रूप में अनाउंस कर दिया गया है, वहीं दूसरी तरफ वांगा ने एक बेनाम लेकिन बेहद तीखा पोस्ट एक्स (Twitter) पर शेयर किया है, जिसमें बिना नाम लिए किसी एक्ट्रेस पर चरित्र, प्रोफेशनलिज्म और यहां तक कि फेमिनिज्म पर सीधा हमला बोला गया है। दिलचस्प बात ये है कि फैंस और इंडस्ट्री इस इशारे को सीधे दीपिका पादुकोण से जोड़ रहे हैं। “तुम्हारे फेमिनिज्म का असली चेहरा सामने आ गया…”

वांगा ने लिखा,
 "जब मैं एक्टर को स्टोरी नरेट करता हूं, तो मैं उस पर 100 फीसदी भरोसा करता हूं। उस दौरान हमारे बीच एक अनकहा NDA होता है, लेकिन ऐसा करके तुमने दिखा दिया कि तुम किस तरह के इंसान हो। अपने से यंग एक्टर्स को नीचा दिखाना और मेरी स्टोरी को लोगों के सामने लाना – क्या इसलिए आपका फेमिनिज्म खड़ा होता है?” ये सिर्फ एक बयान नहीं, एक सीधा वार है — एक ऐसा वार जो इंडस्ट्री के चमचमाते ग्लैमर के पीछे की टॉक्सिक राजनीति को नंगा करता है। क्या दीपिका ने फिल्म की कहानी लीक की? क्या उन्होंने अपनी स्टार पॉवर का इस्तेमाल करके प्रोजेक्ट को मोड़ने की कोशिश की? ये सवाल अब सुलगते हुए तीर बनकर इंटरनेट पर तैर रहे हैं।

खुंदक में बिल्ली खंभा नोचे”: वांगा की धमक

संदीप रेड्डी वांगा ने पोस्ट में एक और लाइन डाली, जो शायद इस पूरे विवाद का सबसे ज़हर भरा तीर था  “अगली बार पूरी कहानी लीक करना, क्योंकि अब मुझे फर्क नहीं पड़ता। मुझे ये कहावत बहुत पसंद है: खुंदक में बिल्ली खंभा नोचे।” ये लाइन दिखाती है कि मामला सिर्फ एक्ट्रेस के रिप्लेसमेंट का नहीं है बल्कि ईगो, कंट्रोल और वर्चस्व की एक जबरदस्त लड़ाई चल रही है। वांगा इस पोस्ट के जरिए केवल एक एक्ट्रेस को नहीं, बल्कि बॉलीवुड के हाईप्रोफाइल पब्लिक रिलेशन गेम्स और छद्म फेमिनिज्म पर चोट कर रहे हैं।

पिंकविला की रिपोर्ट और ‘स्पिरिट’ की कहानी

पिंकविला की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि ‘स्पिरिट’ एक तेलुगु एंटरटेनर है, जिसमें हीरोइक मोमेंट्स के साथ-साथ A-रेटेड सीन भी होंगे। हो सकता है, इन्हीं कंटेंट को लेकर किसी तरह की अनबन या असहमति दीपिका और डायरेक्टर के बीच हुई हो। लेकिन अब, कहानी सिर्फ क्रिएटिव डिफरेंस की नहीं, पर्सनल असहमतियों और पब्लिक हमलों तक पहुंच चुकी है। क्या दीपिका ने वाकई फिल्म की कहानी लीक की, या यह बस एक इंडस्ट्री के मर्दानगी के इगो क्लैश का नतीजा है? क्या फेमिनिज्म वाकई गाली बन गया है, या कुछ लोग इसका इस्तेमाल अपने पीआर बचाव कवच की तरह कर रहे हैं? "स्पिरिट" भले ही एक फिल्म हो, लेकिन इसके पीछे चल रहा यह विवाद किसी पोलिटिकल थ्रिलर से कम नहीं। अब देखना ये है कि इस कहानी का क्लाइमैक्स क्या होता है – सच सामने आएगा या फिर पीआर की चादर में सब कुछ ढक दिया जाएगा। फिल्में बनती हैं कहानियों से, लेकिन कभी-कभी, असली कहानी तो पर्दे के पीछे चलती है।”