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Breaking News 28 February 2025

1) M.K Stalin Vs Narendra Modi

 

भारत में चुनावी मुद्दे जितनी तेजी से बदलते हैं, भाषा से जुड़े विवाद उतनी ही मजबूती से टिके रहते हैं। ताज़ा बवाल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के त्रिभाषा फॉर्मूले पर छिड़ा है। नीति कहती है कि हर छात्र तीन भाषाएं सीखेगा दो भारतीय भाषाएं (एक क्षेत्रीय) और एक इंग्लिश। मगर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन को इसमें ‘हिंदी थोपने की साजिश’ दिख रही है। स्टालिन का कहना है कि “हिंदी पिछले कुछ सालों में 25 उत्तर भारतीय भाषाओं को निगल चुकी है”।  स्टालिन यहीं नहीं रुके। उन्होंने X पर एक पोस्ट में कहा "एक ही हिंदी भाषा को थोपने की कोशिश से प्राचीन भाषाएं मरती हैं। यूपी और बिहार कभी ‘हिंदी भाषी क्षेत्र’ नहीं थे। उनकी असली भाषाएं अब इतिहास बन चुकी हैं।” यानि हिंदी अब सिर्फ एक भाषा नहीं, ‘भाषाई सम्राट’ बन चुकी है, जो धीरे-धीरे बाकी भाषाओं को अपना उपनिवेश बना रही है। स्टालिन का मानना है कि हिंदी इस खेल में सिर्फ एक मुखौटा है, असली एजेंडा संस्कृत को आगे बढ़ाने का है। उनके मुताबिक, "संस्कृत के नाम पर एक नई ‘शुद्ध’ भाषा को बढ़ावा दिया जा रहा है और बाकी भाषाओं को धीरे-धीरे दरकिनार किया जा रहा है।” स्टालिन ने कुछ ‘लुप्तप्राय भाषाओं’ की लिस्ट भी गिना दी भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खड़िया, खोरठा, कुड़माली, कुरुख... और यह लिस्ट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही! उनके अनुसार, इन भाषाओं को ‘दबंग हिंदी-संस्कृत’ का आक्रमण लील चुका है। अब यह तर्क कितना दमदार है, यह तो भाषाविद तय करेंगे, लेकिन इस बीच सोशल मीडिया पर ‘भाषा को बचाओ’ Vs ‘हिंदी पर गर्व करो’ की बहस छिड़ चुकी है।

त्रिभाषा नीति: भाषा सिखाने का प्लान या हिंदी मिशन?

अब जरा इस त्रिभाषा नीति के इतिहास को देखें। 1948-49 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन आयोग ने कहा था कि अंग्रेज़ी को अचानक हटाना सही नहीं होगा, लेकिन हिंदी को धीरे-धीरे संघीय भाषा बनाना चाहिए। इसके बाद 1964-66 में कोठारी आयोग ने इस नीति को सपोर्ट किया और 1968 में इंदिरा गांधी सरकार ने इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल कर दिया। 1986 में राजीव गांधी सरकार ने इसे जारी रखा और फिर 2020 में मोदी सरकार ने इसे अपनी नई शिक्षा नीति (NEP) में दोहरा दिया। अब इस हिसाब से देखें तो त्रिभाषा नीति कोई ‘हिंदी मिशन 2024’ नहीं, बल्कि 1968 से चला आ रहा सरकारी भजन है, जिसे हर सरकार अपने-अपने सुर में गा रही है। लेकिन तमिलनाडु की डीएमके सरकार इसे ‘हिंदी के नाम पर भाषाई विविधता खत्म करने की चाल’ मान रही है।स्टालिन ने इस बहस को वित्तीय मुद्दे से भी जोड़ दिया है। उन्होंने पीएम मोदी को एक चिट्ठी लिखकर 2,152 करोड़ रुपये की मांग कर डाली, जो शिक्षा का अधिकार (RTE) लागू करने के लिए जारी किए जाने थे। स्टालिन का आरोप है कि केंद्र सरकार शिक्षा सुधारों के नाम पर सिर्फ हिंदी थोपने में जुटी है, लेकिन असल में राज्यों को जरूरी फंड भी नहीं दिया जा रहा। अब देखते है इस विवाद पर आगे कौन से फैसले लिए जायेंगे।