ग्रेटर नोएडा का निक्की भाटिया हत्याकांड अब एक साधारण घरेलू विवाद से कहीं ज्यादा सनसनीखेज और उलझा हुआ केस बन चुका है। शुरूआत में इसे परिवार ने साफ तौर पर दहेज हत्या बताया और परिजनों के आंसुओं के बीच FIR दर्ज हुई। लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, वैसे-वैसे यह मामला रहस्य और साज़िश की भूलभुलैया में बदलता चला गया। सबसे चौंकाने वाला खुलासा अस्पताल से आया जहां निक्की ने अपने आखिरी पलों में डॉक्टरों को बताया कि वह गैस सिलेंडर ब्लास्ट में झुलसी है। यानी वह बयान जो इस पूरे केस की दिशा बदल सकता है। लेकिन सवाल यह है कि अगर यह सिलेंडर ब्लास्ट था, तो घरवालों ने इसे हत्या क्यों बताया? और अगर यह हत्या थी, तो फिर निक्की ने सिलेंडर ब्लास्ट वाली बात क्यों कही? इस बीच पुलिस को कई CCTV फुटेज मिले। इनमें पति विपिन भाटिया को घर से बाहर भागते और लौटते हुए देखा गया। फुटेज में यह भी कैद है कि निक्की और विपिन के बीच तीखी झड़प हो रही थी और सास ने बीच-बचाव करने की कोशिश की। लेकिन सबसे बड़ा रहस्य यह है कि घटना के वक्त घर और बेडरूम के CCTV कैमरे अचानक बंद थे। यह महज तकनीकी खराबी थी या किसी ने जानबूझकर कैमरे ऑफ किए? यही सवाल अब जांच का सबसे अहम हिस्सा है। परिवार का आरोप है कि ससुरालवालों ने दहेज की मांग को लेकर निक्की को जला दिया। पिता और बहनें रो-रोकर कह रही हैं कि निक्की की हत्या हुई है और इसे हादसा दिखाने की कोशिश हो रही है। लेकिन दूसरी तरफ, निक्की की भाभी और ससुराल पक्ष का दावा है कि कभी दहेज की मांग नहीं हुई, और वे पूरी तरह निर्दोष हैं। इतना ही नहीं, गांव के कुछ लोग और स्थानीय समर्थन समूह यह कहकर नया विवाद खड़ा कर रहे हैं कि शायद यह हत्या नहीं बल्कि आत्महत्या का मामला है।
कहानी यहीं नहीं रुकती। दरअसल, ग्रेटर नोएडा में सिर्फ निक्की ही नहीं, बल्कि पिछले सात दिनों में पांच महिलाएं दहेज की आग में झुलसकर जान गंवा चुकी हैं। इन मामलों में पुलिस ने पाँच गिरफ्तारियाँ भी की हैं। यानी निक्की का केस अब सिर्फ एक परिवार या मोहल्ले का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि पूरे समाज की सोच और सिस्टम की नाकामी पर सवाल खड़ा कर रहा है। बढ़ते विवाद और जनदबाव को देखते हुए अब उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग भी मैदान में उतर आया है। आयोग की उपाध्यक्ष अपर्णा यादव ने DM और CP से सीधे कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है और साफ चेतावनी दी है कि अगर न्याय में ढिलाई हुई तो यह केस आंदोलन का रूप ले सकता है।
गाज़ा और इजरायल का संघर्ष एक बार फिर दुनिया के सबसे बड़े मंच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक पहुँच चुका है। 27 अगस्त की बैठक में माहौल बेहद तनावपूर्ण था, क्योंकि चर्चा सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं थी बल्कि उन खौफनाक तस्वीरों से जुड़ी थी जो गाज़ा से आ रही थीं। इजरायल ने इस हफ्ते गाज़ा शहर में सैन्य अभियान तेज कर दिया और नासर अस्पताल को भी निशाना बना डाला। इस हमले में लगभग 20 लोगों की मौत हो गई, जिनमें पाँच पत्रकार भी शामिल थे। ये पत्रकार वहाँ केवल सच दिखाने के लिए गए थे, लेकिन बमों और गोलियों की राजनीति ने उनकी जान छीन ली। अस्पताल और पत्रकारों पर हमला किसी भी जंग का हिस्सा नहीं हो सकता यही बात संयुक्त राष्ट्र ने भी उठाई और इसे संभावित युद्ध अपराध बताया। अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने साफ कहा कि गाज़ा में बुनियादी ज़रूरतों खाना, पानी और दवाइयाँ पहुंचाना अब सबसे अहम है और इजरायल को तुरंत हमले रोकने होंगे।
दूसरी तरफ मुस्लिम देशों का संगठन (OIC) और भी सख्त बयान लेकर सामने आया। उन्होंने इजरायल की संयुक्त राष्ट्र सदस्यता ही रद्द करने की मांग कर डाली। उनका सवाल सीधा था अगर अंतरराष्ट्रीय कानून अस्पताल और पत्रकारों तक की रक्षा नहीं कर सकता, तो फिर ऐसे कानून का मतलब ही क्या है? इस मांग ने बहस को और गर्म कर दिया और संयुक्त राष्ट्र के गलियारों में बेचैनी साफ दिखाई दी।
यह सब ऐसे समय पर हो रहा है जब पिछले ही महीने न्यूयॉर्क में हुई बड़ी बैठक में “दो-राज्य समाधान” की रूपरेखा रखी गई थी जिसका मकसद था इजरायल और फिलिस्तीन दोनों को अलग-अलग स्वतंत्र राष्ट्र बनाना। कई देशों ने वादा किया था कि वे आने वाले 15 महीनों में फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा देंगे। अगस्त की शुरुआत में भी संयुक्त राष्ट्र ने इजरायल को गाज़ा पर पूरा कब्ज़ा करने की योजना से पीछे हटने की चेतावनी दी थी। यानी, दुनिया की बड़ी ताक़तें लगातार बैठकों और प्रस्तावों में जुटी हैं, तारीखें तय कर रही हैं, योजनाएँ बना रही हैं।
लेकिन हकीकत कड़वी है। गाज़ा की गलियों में बच्चे अब भी मलबे के नीचे से निकाले जा रहे हैं, लोग भूख और प्यास से जूझ रहे हैं, और अस्पताल खंडहर में बदल चुके हैं। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय राजनीति भविष्य की शांति की तारीखें तय कर रही है, दूसरी तरफ गाज़ा का वर्तमान मौत और खामोशी में डूबा हुआ है। यही वजह है कि आज सवाल फिर वही खड़ा है क्या संयुक्त राष्ट्र और बड़ी ताक़तें इस संघर्ष को रोकने के लिए सिर्फ बयानबाज़ी करती रहेंगी, या कभी वाकई ऐसा दिन आएगा जब गाज़ा की गलियों में इंसानियत बिना खून से लथपथ हुए साँस ले पाएगी । बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे
रणवीर सिंह का करियर पिछले कुछ सालों से सवालों के घेरे में रहा है। कभी बॉक्स ऑफिस पर झटके, कभी स्टारडम की गिरती पकड़। लोग कहने लगे थे कि रणवीर अब अपनी चमक खो चुके हैं। लेकिन अब मैदान में उतरी है उनकी नई फिल्म ‘धुरंधर’। इस फिल्म ने रिलीज़ से पहले ही तीन बड़े विवादों की मिट्टी गढ़ दी है। सबसे पहले, राहुल गांधी। जी हाँ, कांग्रेस नेता राहुल गांधी का नाम अचानक फिल्म के क्रेडिट्स में ‘Executive Producer’ के तौर पर दिखाई दिया। अब ये वही राहुल गांधी हैं या कोई नामसुध, इस पर फिल्म वालों ने अभी तक चुप्पी साध रखी है। लेकिन सोशल मीडिया को किसने रोका है? वहाँ तो जैसे ही नाम आया, मीम्स और ट्रोल्स की बाढ़ आ गई। कोई मज़ाक बना रहा है, कोई सवाल उठा रहा है और नतीजा ये कि फिल्म बिना खर्च किए हेडलाइन में आ गई। दूसरा विवाद आया पाकिस्तानी झंडे से। शूटिंग की एक तस्वीर वायरल हुई, जिसमें पाकिस्तानी फ्लैग साफ दिखा। अब सेट थाईलैंड का था और झंडा सिर्फ़ कहानी का हिस्सा, लेकिन पब्लिक ने इसे दिल पर ले लिया। लोग बोले “भारत में फिल्म बन रही है या पाकिस्तान की झंडी दिखा रहे हो?” हकीकत ये कि फिल्म एक स्पाय-थ्रिलर है, जिसमें पाकिस्तान का जिक्र होना स्वाभाविक है। मगर सोशल मीडिया का पेट्रोल तो छोटे से चिन्गारी से ही आग पकड़ लेता है। तीसरा विवाद एज-गैप डिबेट। रणवीर की ऑन-स्क्रीन पेयरिंग ने चर्चा छेड़ दी कि बॉलीवुड कब तक हीरो को जवान और हीरोइन को और भी जवान दिखाकर बेचता रहेगा? लोग इस पर बहस कर रहे हैं, लेकिन सच कहें तो ये भी फिल्म की मुफ्त की पब्लिसिटी है। अब आते हैं फिल्म पर। आदित्य धर (जिन्होंने Uri बनाई थी) ने रणवीर को इस बार एक जासूस के किरदार में उतारा है। कहानी 70 के दशक से शुरू होकर मौजूदा वक्त तक फैली होगी। मतलब एक ही किरदार, अलग-अलग जमाने, अलग-अलग हालात। रणवीर सिंह का लुक और उनकी इंटेंसिटी देखकर दर्शकों को पद्मावत का खिलजी याद आ गया। और यही वजह है कि फैंस कह रहे हैं “ये है रणवीर का कमबैक।” स्टारकास्ट में आर. माधवन, अर्जुन रामपाल, अक्षय खन्ना और संजय दत्त जैसे चेहरे हैं। सोचिए, इतने धुरंधर एक्टर्स जब एक स्क्रीन पर भिड़ेंगे, तो माहौल अपने आप भारी हो जाएगा। और रणवीर का जोश अगर इसमें मिल जाए, तो सिनेमाघरों में सीटियाँ बजना तय है। लेकिन असली सवाल ये है ये फिल्म किसकी कहानी है? आधिकारिक तौर पर कोई खुलासा नहीं किया गया। लेकिन इंडस्ट्री के गलियारों में फुसफुसाहट है कि कहानी किसी असली भारतीय जासूस पर आधारित है। कभी नाम अजीत डोभाल का लिया जा रहा है, कभी मेजर मोहित शर्मा का। सच क्या है, ये रहस्य फिल्म के पर्दे पर ही खुलेगा। और शायद यही रहस्य दर्शकों को खींचकर ले भी आए। 5 दिसंबर 2025 यानी वो तारीख जब रणवीर सिंह की किस्मत का फैसला होगा। उसी दिन और भी बड़ी फिल्में रिलीज़ हो रही हैं। ऐसे में ‘धुरंधर’ रणवीर के लिए सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, बल्कि करियर की सबसे बड़ी परीक्षा है। अगर ये चली, तो आलोचक भी मानेंगे कि रणवीर सिंह फिर से बॉलीवुड के मैदान में धुरंधर बनकर लौटे हैं। और अगर नहीं चली, तो यह फिल्म उनके करियर के लिए वही साबित हो सकती है ।