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Breaking News 27 September

1 ) Trump’s New Tariffs Shake Global Trade

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आज एक बड़े टैरिफ पैकेज की घोषणा की है। यह फैसला 1 अक्टूबर 2025 से लागू होगा और इसका असर सीधे अमेरिका के स्वास्थ्य, उद्योग और उपभोक्ता बाजार पर पड़ेगा। इस पैकेज के सबसे बड़े बिंदु के तहत ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% आयात शुल्क लगाया जाएगा। हालांकि, उन कंपनियों को छूट दी जाएगी जो अमेरिका में उत्पादन संयंत्र (मैन्युफैक्चरिंग प्लांट) का निर्माण शुरू कर चुकी हैं।

किन वस्तुओं पर कितना शुल्क?

ट्रंप प्रशासन ने सिर्फ दवाओं पर ही नहीं, बल्कि कई अन्य वस्तुओं पर भी भारी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है ब्रांडेड/पेटेंटेड दवाएँ: 100% टैरिफ । किचन कैबिनेट्स और बाथरूम वैनिटीज़ पर 50% टैरिफ। अपहोल्स्टर्ड फर्नीचर (सोफा-कुर्सियाँ आदि पर : 30% टैरिफ । हेवी ट्रक पर : 25% टैरिफट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र उठाया गया है। व्हाइट हाउस के अनुसार, अमेरिका दवा उद्योग जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में विदेशी आपूर्ति पर निर्भर नहीं रह सकता। इसके अलावा, इस फैसले का उद्देश्य अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना और कंपनियों को अमेरिका में निवेश के लिए प्रोत्साहित करना है।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

इस फैसले पर यूरोपीय संघ और जापान ने तुरंत प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि उनके साथ हुई बातचीत के अनुसार दवाओं पर 100% शुल्क नहीं लगेगा, बल्कि इसे 15% तक सीमित (capped) रखा जाएगा। यानी ट्रंप की घोषणा हर देश पर समान रूप से लागू नहीं होगी। यह साफ करता है कि आगे चलकर अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों के बीच डील-मेकिंग और बातचीत का दौर जारी रहेगा। अमेरिकी हॉस्पिटल और इंडस्ट्री संगठन पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि इतने ऊँचे टैरिफ से दवाओं की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हो सकती है। इसका सीधा असर मरीजों की जेब और स्वास्थ्य सेवाओं की लागत पर पड़ेगा। दूसरी ओर, यह भी माना जा रहा है कि इस फैसले के चलते कई बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियाँ अमेरिका में नए कारखाने लगाने की तैयारी शुरू कर सकती हैं, ताकि उन्हें टैरिफ से छूट मिल सके।

कानूनी चुनौती

यह पूरा मामला अब कानूनी जाँच के घेरे में भी है। हाल ही में एक अमेरिकी अदालत ने कहा है कि ट्रंप प्रशासन ने IEEPA (International Emergency Economic Powers Act) के तहत अपनी शक्तियों का अतिक्रमण किया है। अब यह विवाद सीधे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाले समय में यह तय करेगा कि ट्रंप के टैरिफ पैकेज की वैधता बरकरार रहती है या इसमें बदलाव करना पड़ता है। ट्रंप का यह फैसला घरेलू और वैश्विक दोनों स्तरों पर बड़ी हलचल पैदा कर रहा है। घरेलू स्तर पर, यह तय होगा कि क्या दवाओं और अन्य वस्तुओं की कीमतें उपभोक्ताओं के लिए बोझ बनेंगी या फिर कंपनियाँ उत्पादन को अमेरिका में शिफ्ट करके इसे संतुलित कर पाएंगी। वैश्विक स्तर पर, यह टैरिफ अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों के बीच नए समझौते, विवाद और सौदेबाजी को जन्म देगा। ऐस ही लेटेस्ट खबरों को देखने के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।

 

2 ) : PM Modi ने महिलाओं के खाते में भेजे 10-10 हज़ार रुपए

बिहार में आज मोदी जी ने महिलाओं को सीधी आर्थिक मदद देकर एक बड़ी योजना की शुरुआत की। मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना के तहत राज्य की 75 लाख महिलाओं को 10-10 हज़ार रुपए उनके खातों में ट्रांसफर किए गए। कुल मिलाकर यह राशि लगभग 7,500 करोड़ रुपए बैठती है। इस कार्यक्रम को बिहार के सभी जिलों, ब्लॉकों और पंचायत स्तर तक लाइव प्रसारित किया गया, जिसे सरकार के अनुसार करीब एक करोड़ महिलाओं ने देखा।

इस योजना का मकसद महिलाओं को स्वरोज़गार की ओर बढ़ाना है। मोदी जी ने साफ कहा कि यह रकम महिलाओं के लिए शुरुआती बीज पूंजी (Seed Money) है, ताकि वे छोटे कारोबार जैसे दुकान, टेलरिंग, पशुपालन या हस्तशिल्प शुरू कर सकें। आगे चलकर अगर महिला का कारोबार सफल रहता है तो सरकार की ओर से 2 लाख रुपए तक की अतिरिक्त मदद भी दी जाएगी। इस योजना को बिहार के सेल्फ हेल्प ग्रुप (SHG) और “लखपति दीदी” प्रोग्राम से जोड़ा गया है। साथ ही इसे “स्वस्थ नारी, सशक्त परिवार” अभियान से भी लिंक किया गया है, जिसके तहत स्वास्थ्य शिविर और ट्रेनिंग प्रोग्राम चलेंगे।

अगर राजनीतिक और सामाजिक डेटा देखें तो बिहार में महिला वोट बैंक हमेशा से अहम भूमिका निभाता आया है। उदाहरण के तौर पर, 2015 विधानसभा चुनाव में महिलाओं की वोटिंग टर्नआउट पुरुषों से ज़्यादा (60% बनाम 53%) रही थी। वहीं, 2020 चुनाव में भी महिला वोटिंग 59% रही और इसका सीधा असर नतीजों पर पड़ा। इससे साफ है कि महिलाएँ बिहार की चुनावी राजनीति में किंगमेकर साबित होती हैं। इसी पृष्ठभूमि में मोदी जी का यह कदम महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

इतिहास गवाह है कि बिहार में महिलाओं को लक्षित करने वाली योजनाओं का असर बड़ा रहा है। 2006 में नीतीश कुमार ने लड़कियों के लिए साइकिल योजना शुरू की थी, जिसने स्कूल में नामांकन दर को दोगुना कर दिया था। इसी तरह केंद्र की उज्ज्वला योजना ने महिलाओं तक सीधी पहुँच बनाकर बीजेपी को राजनीतिक फायदा दिया था। अब मोदी जी की यह योजना उसी सिलसिले का अगला कदम है।

आँकड़े यह भी बताते हैं कि बिहार की लगभग 43% महिलाएँ अभी भी मज़दूरी पर निर्भर हैं और स्वरोज़गार की दर बेहद कम है। इस स्थिति में 10 हज़ार रुपए की सीड मनी का लॉजिक यही है कि महिलाएँ नौकरी पर निर्भर रहने के बजाय अपना छोटा धंधा शुरू करें और परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारें। ऐसे ही लेटेस्ट खबरों को देखने के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।

 

4 ) Why Sonam Wangchuk Arrested?

 जब सत्ता और संघर्ष की आंधी चलती है, तो बर्फ़ धुंधला शीशा बन जाती है, जिसमें चेहरे नहीं, बल्कि शक्लें और शक दिखाई देती हैं। लद्दाख की घाटियों से उठी आवाज सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी की नहीं, बल्कि उस आवाज़ की है जो कहती थी “यह धरती हमारी है, इसका भविष्य भी हमारा होगा।” उस आवाज़ का नाम है सोनम वांगचुक।

गिरफ्तारी क्यों और कैसे हुई?

26 सितंबर 2025 को लद्दाख के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद सोनम वांगचुक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने बयानों से भीड़ को उकसाया, जिसके बाद लद्दाख में प्रदर्शन हिंसक हो गए और चार लोगों की मौत हुई। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत कार्रवाई की, मोबाइल इंटरनेट बंद कर दिया और वांगचुक को जोधपुर की सेंट्रल जेल भेज दिया गया लद्दाख से 1000 किलोमीटर दूर।

सरकार की दलील और जांच

गृह मंत्रालय का कहना है कि वांगचुक ने “उत्तेजक बयान” दिए और हालात बिगड़ने के बाद वे खुद पीछे हट गए। उनकी NGO SECMOL का FCRA लाइसेंस रद्द कर दिया गया। CBI ने उनके संगठनों पर विदेशी फंडिंग में गड़बड़ी की जांच शुरू कर दी। सरकार का तर्क है कि यह सब “राष्ट्रीय सुरक्षा” के मद्देनज़र है।


वांगचुक का पक्ष

गिरफ्तारी से पहले एक इंटरव्यू में वांगचुक ने आरोपों को खारिज किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने हिंसा होते देख लोगों से लद्दाखी और हिंदी में शांति बनाए रखने की अपील की थी। “अगर सोनम वांगचुक जेल में होंगे, तो सरकार के लिए परेशानी और बढ़ सकती है।” उन्होंने साफ़ किया कि अगर कभी उनके खाते में कोई विदेशी लेन-देन आया भी हो, तो वह व्यवसायिक लेन-देन और टैक्स के दायरे में था, NGO के लिए नहीं। लद्दाख के छात्र और स्थानीय लोग इसे केवल गिरफ्तारी नहीं, बल्कि अपनी मांगों की आवाज़ दबाने की कोशिश मान रहे हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि असली लड़ाई राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की संवैधानिक सुरक्षा के लिए है, न कि सिर्फ़ वांगचुक के लिए।

मीडिया और राजनीति

अंतरराष्ट्रीय मीडिया जैसे Reuters और Guardian ने इसे लोकतांत्रिक आवाज़ पर शिकंजा बताया। कांग्रेस और ओमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं ने गिरफ्तारी को दुर्भाग्यपूर्ण और अन्यायपूर्ण कहा। वहीं केंद्र सरकार इसे कानून-व्यवस्था बनाए रखने की ज़रूरत बता रही है। यह लड़ाई सिर्फ सोनम वांगचुक और सरकार के बीच नहीं है। यह सवाल है क्या लद्दाख की बर्फीली घाटियों में उठी आवाज़ें लोकतंत्र की ऊष्मा से पिघलेंगी या सत्ता की सख़्ती से जम जाएंगी? गिरफ्तारी से आंदोलन थमेगा या और तेज़ होगा, इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा। ऐसे ही लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।