अगर आपने सोचा था कि बजट सप्ताह में बाजार खुशियां लेकर आएगा, तो शायद आपको सोमवार की सुबह निराश करेगी। आज शेयर बाजार खुला तो ऐसा लगा मानो सेंसेक्स और निफ्टी ने खुद को मियादी बुखार में डाल लिया हो। खुलते ही बाजार धड़ाम हो गया, निवेशकों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं, और देश भर में सिर्फ एक ही सवाल गूंजा, “ये क्या हो गया?” बीएसई सेंसेक्स (Sensex) ने तो ऐसी छलांग लगाई मानो ओलंपिक का डाइविंग शो चल रहा हो। 578 अंकों का गोता लगाते हुए यह 75,612 के स्तर तक गिर गया। वहीं, निफ्टी (Nifty) भी 160 अंकों की फिसलन के साथ 22,911 तक लुढ़क गया। हालांकि सेंसेक्स ने पिछले बंद स्तर 76,190.46 से गिरते हुए 75,700.43 पर ओपनिंग की और फिर 10 मिनट के भीतर ऐसी फिसलन का प्रदर्शन किया कि हर कोई हैरान रह गया। 75,612 का लेवल छूने के बाद यह ऐसा लगा मानो उसने मैदान छोड़कर पवेलियन लौटने का मन बना लिया हो। वहीँ ऑनलाइन फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो (Zomato) जो कभी अपने IPO के समय हीरो बनी थी, अब 'गिरावट डिलीवरी' में नंबर वन बन गई है। जोमैटो का शेयर 2.78% गिरकर 209.80 रुपये पर कारोबार कर रहा था।
सोचिए, अगर बड़े खिलाड़ियों की हालत खराब हो तो छोटे शेयरों का क्या होगा। अडानी पोर्ट्स, इंडसइंड बैंक और टाटा मोटर्स जैसी दिग्गज कंपनियों के शेयर भी 2% तक गिर गए। यह देखकर ऐसा लगा कि बाजार की गिरावट का खेल 'नो मर्सी मोड' में चल रहा है। मिडकैप और स्मॉलकैप कंपनियों का हाल भी दयनीय रहा। AU बैंक के शेयर ने 7.81% की गिरावट दिखाई, तो IDFC फर्स्ट बैंक ने 7% का घाटा लिया। पेटीएम, जो डिजिटल पेमेंट्स का चेहरा बन चुका है, अब डिजिटल घाटे का प्रतीक बन गया। यह शेयर 5.43% गिरकर बैठा। स्मॉलकैप कंपनियों में तो गिरावट का महोत्सव सा चल रहा था। क्रेडिटएक्स का शेयर 15.61% गिर गया, न्यूजेन ने 10% गिरावट दर्ज़ की और तेजस नेटवर्क 8.90% की गिरावट के साथ मैदान से बाहर होता नजर आया।
शेयर बाजार के विशेषज्ञ कहते हैं कि यह गिरावट बजट से पहले की 'गर्मी' है। बजट में जो घोषणाएं होंगी, उनका असर बाजार पर दिखेगा। तब तक निवेशकों को सलाह है कि धैर्य रखें और शेयरों को बार-बार घूरने की आदत छोड़ दें। जो लोग खरीदारी के मूड में हैं, उनके लिए सलाह है कि इस समय नई खरीदारी करना ऐसा ही है जैसे तूफान के बीच छाता लेकर निकलना। यह गिरावट बजट से पहले के झटकों का हिस्सा है। इसलिए, अगर आपके पोर्टफोलियो की हालत खराब दिख रही है, तो स्क्रीन बंद कर दीजिए। याद रखें, बाजार का मूड कभी भी पलट सकता है।
वक्फ संशोधन विधेयक, 2024 को केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने 8 अगस्त को लोकसभा में पेश किया था। जिसके बाद विपक्ष की मांग पर इसे संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया था। विधेयक का उद्देश्य वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन करना है, ताकि वक्फ संपत्ति के विनियमन और प्रबंधन में आने वाली समस्याओं एवं चुनौतियों का समाधान किया जा सके। वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर सरकार और विपक्ष में आम राय नहीं बनती दिख रही है और यही कारण है की इसे लेकर दोनों ही आमने-सामने है। इस बीच वक्फ संशोधन विधेयक पर संसद द्वारा गठित समिति (JPC) के सदस्यों ने ड्राफ्ट बिल में 572 संशोधनों का सुझाव दिया है। समिति की बैठकों के अंतिम चरण में पहुंचने पर रविवार देर रात भारतीय जनता पार्टी के नेता जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में वक्फ संशोधन विधेयक पर संयुक्त समिति की ओर से संशोधनों की एक कंसोलिडेटेड सूची जारी की गई। समिति आज अपनी बैठक में एक-एक सेक्शन में संशोधनों को लेकर चर्चा करेगी। बिल में संशोधन भाजपा और विपक्ष दोनों के सदस्यों ने पेश किए हैं। संशोधन पेश करने वाले सदस्यों की सूची में भाजपा के किसी भी सहयोगी दल का नाम नहीं है।
वक्फ संशोधन विधेयक पर संसदीय समिति की बैठक (JPC) में शुक्रवार को जमकर हंगामा हुआ था। हंगामा थमता न देख समिति के 10 सांसदों को पूरे दिन के लिए कमेटी की सदस्यता से निलंबित कर दिया गया था। विपक्षी सदस्यों का आरोप है कि उन्हें ड्राफ्ट लॉ में प्रस्तावित बदलावों का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया जा रहा है। निलंबित विपक्षी सांसदों में कल्याण बनर्जी, मोहम्मद जावेद, ए राजा, असदुद्दीन ओवैसी, नासिर हुसैन, मोहिबुल्लाह, एम अब्दुल्ला, अरविंद सावंत, नदीमुल हक और इमरान मसूद शामिल थे। विपक्ष के आरोप पर बोलते हुए समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कहा था कि मुझे लगता है कि पूरा देश विपक्षी सांसदों के गैर जिम्मेदाराना रवाइये को देख रहा है। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को दो महत्वपूर्ण प्रतिनिधिमंडल समिति के समक्ष गवाह के तौर पर आए थे। एक प्रतिनिधिमंडल मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर से था, तो दूसरा प्रतिनिधिमंडल लॉयर्स फॉर जस्टिस का था, जिसमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वकील शामिल थे, सबने अच्छा प्रेजेंटेशन दिया और ये हमारी रिपोर्ट के लिए भी उपयोगी होगा। जगदंबिका पाल ने विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि वो नहीं चाहते थे कि हम मीरवाइज उमर फारूक को सुनें, हमारे सभी सदस्य इससे आहत हैं। हमने बैठक दो बार स्थगित की, लेकिन उन्होंने अपना मन बना लिया था आज बैठक नहीं होने देंगे।
रिलायंस इंडस्ट्री दुनिया का सबसे बड़ा AI डेटा सेंटर बनाने जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्रीज का यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट गुजरात के जामनगर में बनाया जाएगा। रिलायंस ने इस प्रोजेक्ट के लिए NVIDIA के साथ हाथ मिलाया है और इसी के साथ रिलायंस AI सेक्टर में एंट्री मारने जा रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार मुकेश अंबानी AI टेक्नोलॉजी में दुनिया की लीडिंग कंपनी माने जाने वाली Nvidia से सेमीकंडक्टर खरीद रहे हैं। दोनों कंपनियों ने पिछले साल अक्टूबर में भारत में AI इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलप करने के लिए साथ आने का ऐलान किया था। इस मौके पर NVIDIA के CEO जेनसेन हुआंग ने भारत में डोमेस्टिक AI प्रोडक्शन पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि भारत को अपना खुद का AI खुद बनाना चाहिए, जिसपर मुकेश अंबानी ने भी उनकी बात से सहमति जताते हुए भारत के डिजिटल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर की जरुरत पर अपने विचारों को रखा था। अंबानी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका लक्ष्य भारत में सभी के लिए AI को सुलभ बनाना है, जिससे AI सभी के लिए किफायती और उपलब्ध हो सके। इस सेंटर की कुल क्षमता 3 गीगावॉट होगी और दुनिया में इसका कोई मुकाबला नहीं होगा। भारत के टेक लैंडस्केप में ये एक बड़ा कदम होगा और ये आसानी से मौजूदा ग्लोबल बेंचमार्क से बहुत आगे निकल जाएगा। तुलनात्मक तौर पर बात करें तो आज ज्यादातर सबसे बड़े ऑपरेशनल डेटा सेंटर संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित हैं और एक गीगावाट से कम के हैं। बिजनेस पावरहाउस अडानी ग्रुप पहले ही भारत में हाइपर-स्केल डेटा सेंटर का नेटवर्क बनाने की योजना बना रहा है।
AI सेक्टर में मुकेश अंबानी की रणनीति टेलीकॉम सेक्टर में उनके अप्रोच के तरह ही दिखाई दे रही है। रिलायंस JIO ने सस्ती कीमतों पर सर्विस ऑफर करके बाजार में हलचल मचा दिया था। इस बार, इसका उद्देश्य AI मॉडल चलाने के पीछे की कम्प्यूटेशनल प्रोसेस की लागत को कम करना है, जो किसी स्टार्टअप और स्थापित फर्मों के लिए समान रूप से महंगी हो सकती है। रिलायंस इंडस्ट्री द्वारा AI सेक्टर में उठाए जा रहे कदम की टाइमिंग कोई इत्तेफाक नहीं है। दुनियाभर में अमेरिका के माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन और गूगल जैसे टेक जायंट्स AI सर्विसेज की हाई डिमांड को पूरा करने के लिए डेटा सेंटर कैपेसिटी को बढ़ाने पर अरबों डॉलर्स खर्च कर रहे हैं। इस हफ्ते की शुरुआत में ही अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद ट्रम्प सरकार के AI को लेकर किये गए एलान के बाद OpenAI, सॉफ्टबैंक और ओरेकल के संयुक्त ग्रुप ने स्टारगेट नामक एक प्रोजेक्ट के तहत AI इंफ्रास्ट्रक्चर में 500 बिलियन डॉलर तक इन्वेस्ट करने की योजना की घोषणा की थी और इसे लेकर एलोन मुस्क और OpenAI के CEO के बीच नोकझोंक भी देखने को मिला था। बता दें, मौजूदा समय में भारत की टोटल डेटा सेंटर कैपेसिटी अमेरिका की ही तरह एक गीगावाट से कम है और रिलायन्स के इस प्रोजेक्ट में इस कैपेसिटी को तीन गुना करना देश के लिए एक बड़ा माइलस्टोन होगा, जो भविष्य में AI डेवलपमेंट को आगे बढ़ाएगा।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इस साल का महाकुंभ अपने विशेष धार्मिक महत्व के साथ साथ एक और वजह से चर्चा का विषय बन चुका है वह है हवाई टिकटों का बेतहाशा बढ़ना! इस बार महाकुंभ में जितने लोग संगम में डुबकी लगा रहे हैं, उतने ही लोग हवाई किराए को देखकर सिर धुन रहे हैं। दरअसल, विमानन निदेशालय ने देशभर में महाकुंभ के दौरान 81 स्पेशल फ्लाइट्स चलाने का ऐलान किया है, लेकिन क्या आपको यह जानकर हैरानी नहीं हो रही कि इन फ्लाइट्स के किराए ने आसमान छूने की तैयारी कर ली है? जी हां, दिल्ली या मुंबई से प्रयागराज की फ्लाइट्स के टिकट अब 25 हजार से 50,000 रुपये तक जा पहुंचे हैं। महाकुंभ के दौरान दिल्ली से प्रयागराज जाने के लिए एयरलाइन कंपनियां अब फ्लाइट्स का नजारा बदल चुकी हैं। तो क्या यह किराए का बढ़ना एक सामान्य घटना है, या महाकुंभ ने हवाई टिकटों के कारोबारी मायने बदल दिए हैं? महाकुंभ के दौरान देशभर से लोग पवित्र स्नान करने प्रयागराज आ रहे हैं और महाकुंभ के महापर्व में शाही स्नान जैसे दिन आते हैं, जो सबके लिए धार्मिक महत्व रखते हैं।
जब फ्लाइट टिकट के दाम दिल्ली से प्रयागराज के लिए 30 - 40 हजार रुपये तक जा पहुंचे हैं, तो यह न केवल आम श्रद्धालुओं के लिए एक मुसीबत बन गया है, बल्कि एक गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या फ्लाइट कंपनियां महाकुंभ के धार्मिक महत्व का व्यावसायिक फायदा उठा रही हैं? दिल्ली से लंदन के हवाई टिकट का किराया 30,000 रुपये और दिल्ली से सिंगापुर का किराया 25,000 रुपये के आसपास है, लेकिन जब बात आती है प्रयागराज की, तो फ्लाइट का किराया 40,000 रुपये तक पहुंच जाता है! संगम में स्नान के लिए लोगों का तांता लगा हुआ है। अब तक 11 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु यहां पवित्र डुबकी लगा चुके हैं। यकीन मानिए, ये श्रद्धालु न सिर्फ पुण्य कमाने बल्कि एयरलाइन कंपनियों के पैसे भी बढ़ाने के लिए प्रयागराज पहुंचे हैं! उड़ान तो भर ही रहे हैं, लेकिन कीमतें जैसे हवाई चढ़ाई करती जा रही हैं! महाकुंभ का आयोजन एक बड़े स्तर पर होता है और अगर हम इसे धार्मिक आयोजन मानें तो शायद एयरलाइन कंपनियों के लिए यह एक शानदार बिजनेस अवसर बन चुका है। हालांकि, डीजीसीए (Directorate General of Civil Aviation) और सरकार का भी इस पर ध्यान गया है और उन्हें यह चिंता हो रही है कि क्या इस बढ़ते किराए को नियंत्रित किया जा सकता है या नहीं। डीजीसीए ने एयरलाइनों से यह अपील की है कि हवाई टिकटों के किराए को तर्कसंगत बनाया जाए। एयरलाइंस को अपनी फ्लाइट्स में अतिरिक्त क्षमता बढ़ाने के लिए भी कहा गया है। 81 अतिरिक्त उड़ानों की मंजूरी दी गई है, जिससे अब प्रयागराज के लिए कुल 132 उड़ानें हो जाएंगी। लेकिन क्या इससे हवाई टिकटों के दामों पर कोई असर पड़ेगा? जवाब शायद नहीं है!
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के प्रवक्ता विनोद बंसल ने इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि कुछ एयरलाइन कंपनियां यात्री संख्या में बढ़ोतरी का फायदा उठा कर किराए में बेतहाशा बढ़ोतरी कर रही हैं, जो न केवल अनुचित बल्कि अनैतिक है। उन्होंने भारतीय रेलवे की सराहना करते हुए यह भी कहा कि जहां रेलवे ने यात्री सेवा बढ़ाई और किराए को संतुलित रखा है, वहीं एयरलाइन कंपनियां इकोनॉमी क्लास के किराए में 200%-700% तक का इजाफा कर रही हैं। विनोद बंसल की चिंता जायज़ है। महाकुंभ के दिनों में आम श्रद्धालु तो संगम में स्नान करने के लिए आते हैं, लेकिन उनके लिए हवाई टिकट की कीमतें संगम की तुलना में ज्यादा लगने लगी हैं। इस महंगे सफर में कुछ एयरलाइंस ने तो यह तक कह दिया कि "संगम स्नान के लिए आओ, लेकिन बस पैसा साथ लेकर आओ!"
पंजाब के अमृतसर में गणतंत्र दिवस के मौके पर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को तोड़ने और संविधान को जलाने की शर्मनाक घटना ने पूरे राज्य को हिला दिया है। स्वर्ण मंदिर के पास हेरिटेज स्ट्रीट पर हुई इस घटना ने जहां एक ओर दलित समाज में आक्रोश भर दिया, वहीं दूसरी ओर राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। फगवाड़ा, अमृतसर और आसपास के इलाकों में प्रदर्शन हो रहे हैं। दलित समाज ने इसे अपने सम्मान पर हमला बताया है और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। घटना 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के दिन अमृतसर की हेरिटेज स्ट्रीट पर हुई, जहां एक व्यक्ति ने स्टील की सीढ़ी का इस्तेमाल कर डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा को तोड़ने की कोशिश की। उसने संविधान की प्रति को भी आग लगाने की कोशिश की। यह शर्मनाक घटना एक पुलिस स्टेशन के पास हुई, लेकिन पुलिस और प्रशासन की ओर से तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की गई, जिससे जनाक्रोश और बढ़ गया। घटना के बाद फगवाड़ा में दलित समुदाय ने हाईवे पर धरना देकर रोड जाम कर दिया। अमृतसर में भी इस घटना के विरोध में दुकानें बंद रखी गईं। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह न केवल बाबा साहेब बल्कि पूरे दलित समाज का अपमान है। उनका कहना है कि अगर समय रहते दोषियों को सजा नहीं मिली, तो विरोध और तेज होगा।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस घटना को 'बेहद निंदनीय' करार देते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा, "किसी को भी पंजाब की एकता और भाईचारे को नुकसान पहुंचाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। इस घटना में जो भी शामिल होगा, उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी।" मुख्यमंत्री ने प्रशासन को मामले की गहन जांच के निर्देश दिए हैं।
बीजेपी नेता संबित पात्रा ने कहा कि "यह घटना पंजाब में कानून-व्यवस्था की स्थिति को उजागर करती है। जब अंबेडकर की प्रतिमा को तोड़ा जा रहा था, तब पुलिस मूकदर्शक बनी रही। यह शर्मनाक है।" वहीँ पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग ने इसे "गहरी साजिश" करार दिया और उच्च स्तरीय जांच की मांग की। उन्होंने कहा कि "ऐसी घटनाएं समाज को बांटने की कोशिश हैं, जिनका पर्दाफाश होना चाहिए।" पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा कि "इस साजिश के पीछे कौन है, इसका खुलासा होना चाहिए।" इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने इस घटना को दलित समाज का अपमान बताते हुए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "संविधान निर्माता की प्रतिमा तोड़ने की घटना बेहद शर्मनाक है। यह आप सरकार की दलित विरोधी मानसिकता को उजागर करती है। कांग्रेस ने भी बाबा साहेब को कभी वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे।" मायावती ने दिल्ली के मतदाताओं से अपील करते हुए कहा कि वे सिर्फ अंबेडकरवादी पार्टी बसपा को ही समर्थन दें। अब देखने वाली बात यह है कि सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है और दोषियों को कब तक सजा मिलती है। क्या यह मामला दलित समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाने तक ही सीमित रहेगा, या इससे जुड़े बड़े राजनीतिक और सामाजिक बदलाव की ओर संकेत करेगा !
भारतीय तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह ICC मेंस टेस्ट क्रिकेटर ऑफ द ईयर का अवार्ड पाने वाले पहले तेज गेंदबाज बन गए हैं और ऐसा कर उन्होंने इतिहास रच दिया है। बता दें, बुमराह को ICC की तरफ से 2024 का बेस्ट टेस्ट क्रिकेटर चुना गया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के लिए अबतक कुल छह खिलाड़ियों ने इस खास सम्मान को हासिल किया है, जिसमें राहुल द्रविड़, गौतम गंभीर, वीरेंद्र सहवाग, रविचंद्रन अश्विन, विराट कोहली और जसप्रीत बुमराह का नाम शामिल है। बुमराह भारत की तरफ से टेस्ट क्रिकेट के फॉरमेट में खास सम्मान पाने वाले पहले तेज गेंदबाज हैं। भारत की तरफ से पहली बार राहुल द्रविड़ को ICC टेस्ट क्रिकेटर ऑफ द ईयर का अवार्ड मिला था। उन्होंने साल 2004 में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए इस उपलब्धि को अपने नाम किया था। इसके बाद साल 2009 में गौतम गंभीर, 2010 में वीरेंद्र सहवाग, 2016 में रविचंद्रन अश्विन, 2018 में विराट कोहली और बीते साल 2024 में जसप्रीत बुमराह ने अपने शानदार प्रदर्शन से इस अवार्ड को अपने नाम किया है। आपको बता दें, साल 2024 में जसप्रीत बुमराह का टेस्ट क्रिकेट में शानदार प्रदर्शन रहा। बीते साल उन्होंने भारतीय टीम के लिए टेस्ट क्रिकेट में कुल 13 मैच खेले, इस बीच वह 14.92 के औसत से 71 विकेट अपने नाम करने में कामयाब रहे। यही नहीं हाल ही में संपन्न हुए बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में भी उनकी बेहतरीन गेंदबाजी का जलवा देखने को मिला था। पांच मैचों की इस सीरीज में बुमराह ने टीम के लिए 32 विकेट चटकाए थे। टेस्ट क्रिकेटर ऑफ द ईयर का अवार्ड पाने में सबसे आगे ऑस्ट्रेलियाई स्टार बल्लेबाज स्टीव स्मिथ का नाम है। ICC मेंस टेस्ट क्रिकेटर ऑफ द ईयर का अवार्ड दो बार पाने वाले दुनिया के इकलौते बल्लेबाज हैं। स्मिथ ने पहली बार इस खास उपलब्धि को साल 2015 में हासिल किया था, इसके बाद 2017 में भी वो यह अवार्ड अपने नाम करने में कामयाब रहे।
जसप्रीत बुमराह ने एक ओर जहां टेस्ट क्रिकेट के फॉर्मेट में ICC मेंस टेस्ट क्रिकेटर ऑफ द ईयर का अवार्ड अपने नाम किया है। वहीं, दूसरी तरफ भारत की बेटी स्मृति मंधाना ने विमेंस कैटेगरी में अपना जलवा बिखेरा है। स्मृति को वनडे क्रिकेट के फॉर्मेट में ICC की तरफ से साल 2024 की सर्वश्रेष्ठ महिला वनडे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर चुना गया है। भारत की उप-कप्तान ने साल 2024 में अपनी 13 पारियों में 747 रन बनाए थे, जो किसी इस कैलेंडर वर्ष में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। मंधाना ने वनडे क्रिकेटर ऑफ द ईयर का खिताब जीतकर इतिहास बना दिया है। आपको बता दें, स्मृति अपने अब तक के करियर में दूसरी बार वनडे क्रिकेटर ऑफ द ईयर का खिताब जीतने में सफल रही हैं। इसके साथ ही वो ऐसा करने वाली दुनिया की दूसरी महिला क्रिकेटर भी बन गई हैं। वहीं, स्मृति मंधाना ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला क्रिकेटर बन गई हैं। उन्होंने पहली बार वनडे क्रिकेटर ऑफ द ईयर का खिताब साल 2018 के लिए जीता था, अब एक बार फिर वर्ष 2024 के लिए उन्हें इस अवार्ड से सम्मानित किया गया है। बता दें, स्मृति से पहले केवल सूजी बेट्स ऐसी महिला क्रिकेटर रहीं हैं जिन्हें दो बार इस सम्मान से सम्मानित किया गया है। न्यूजीलैंड की खिलाड़ी बेट्स ने साल 2013 और साल 2016 में ICC वनडे क्रिकेटर ऑफ द ईयर का खिताब जीतने का कमाल किया था। स्मृति मंधाना के लिए साल 2024 बेहद ही खास रहा है, इस दौरान वो अपने 13 वनडे पारियों में कुल 747 रन बनाने में सफल रही, जो वनडे क्रिकेट के एक कैलेंडर ईयर में सर्वश्रेष्ठ परफॉर्मेंस का रिकॉर्ड है। भारत की बेटी स्मृति मंधाना ने चमारी अटापट्टू (श्रीलंका), लौरा वोलवॉर्ड और एनाबेल सदरलैंड (ऑस्ट्रेलिया) को पछाड़कर यह खिताब अपने नाम करने में सफलता हासिल की है।
विकी कौशल की मोस्ट अवेटेड फिल्म छावा ने रिलीज से पहले ही विवादों का ज्वालामुखी छेड़ दिया है। फिल्म का ट्रेलर आते ही एक सीन को लेकर महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई। इस विवाद में एमएनएस चीफ राज ठाकरे, शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे और संभाजी महाराज के वंशजों की प्रतिक्रियाओं ने इसे और तूल दे दिया। इस फिल्म में विकी कौशल, छत्रपति संभाजी महाराज की भूमिका निभा रहे हैं, एक लेजिम डांस करते नजर आ रहे हैं। इस सीन ने महाराष्ट्र के राजनीति में हलचल मचा दी है, जिससे फिल्म की रिलीज से पहले ही इसे लेकर तीव्र प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। फिल्म के ट्रेलर का एक विशेष दृश्य, जिसमें विकी कौशल का डांस दिखाया गया है,उन्होंने कई लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाई। संभाजी महाराज को महाराष्ट्र का एक महान योद्धा के रूप में देखा जाता है, और उनके वंशजों ने इस दृश्य को उनकी छवि को आहत करने वाला बताया है। शिवसेना के नेताओं ने भी इस दृश्य की आलोचना की, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि यह किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है। इस बढ़ते विवाद के बीच, फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने विवाद को नियंत्रित करने का निर्णय लिया। उन्होंने एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे से मुलाकात की, जिनसे बातचीत के बाद उन्होंने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। उतेकर ने मीडिया से कहा, "राज ठाकरे एक विद्वान और समझदार व्यक्ति हैं। उनकी सलाह मेरे लिए लाभकारी रही है। मैंने फैसला किया है कि हम फिल्म से वह डांस सीन हटा देंगे, क्योंकि यह संभाजी महाराज की गरिमा के खिलाफ है।" फिल्म को लेकर महाराष्ट्र के बड़े नेताओं की प्रतिक्रिया ने और भी तूल पकड़ा। एकनाथ शिंदे और दादा भूसे जैसे नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस तरह के अपत्तिजनक दृश्य को फिल्म में शामिल करना गलत है। उन्होंने यह भी कहा कि 29 जनवरी को फिल्म को संभाजी महाराज के वंशजों के सामने दिखाया जाएगा, ताकि वे देख सकें कि विवादित दृश्य हटा दिया गया है या नहीं। निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने यह भी बताया कि फिल्म की रिलीज से पहले 29 जनवरी को एक विशेष प्रीमियर शो का आयोजन किया जाएगा, जिसमें इतिहासकार और विशेषज्ञ शामिल होंगे। उनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि फिल्म में कोई भी दृश्य या सामग्री ऐसी न हो, जो महाराज की छवि को आहत करे। उतेकर ने जोर देकर कहा कि डांस सीन से ज्यादा महत्वपूर्ण है संभाजी महाराज की विरासत को सही तरीके से पेश करना।
फिल्म छावा की रिलीज़ डेट 14 फरवरी 2025 निर्धारित की गई है। लेकिन इस विवाद के बाद, यह देखना दिलचस्प होगा कि फिल्म समाज में किस प्रकार की प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करती है। क्या यह फिल्म महाराज की वीरता और गरिमा को सही तरीके से प्रस्तुत कर पाएगी, या यह विवाद इसे उसके वास्तविक उद्देश्य से भटका देगा? इस समय, फिल्म उद्योग के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो यह दर्शाता है कि कला और राजनीति के बीच की रेखाएँ कितनी धुंधली हो सकती हैं। छावा केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक ऐसा सामाजिक और राजनीतिक विमर्श है जो भारतीय समाज के जटिल ताने-बाने को उजागर करता है। यह पूरा विवाद भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है क्या सिनेमा की स्वतंत्रता को राजनीतिक दबाव से नियंत्रित किया जाना चाहिए? क्या यह सही है कि एक फिल्म निर्माता को अपनी कला में बदलाव करना पड़े क्योंकि किसी विशेष दृश्य से कुछ समूहों की भावनाएँ आहत हो रही हैं?