26 जुलाई 1999 वो दिन जब भारत ने दुनिया को दिखाया कि शांति का मतलब कमजोरी नहीं होता, और जब देश की सरहद पर कोई बेमर्जी दाखिल होता है, तो भारत की चुप्पी का जवाब हिमालय से ऊँचा और गोलियों से तेज होता है। आज 26 जुलाई है, कारगिल विजय दिवस। इस दिन भारत ने आधिकारिक रूप से एलान किया था कि पाकिस्तान की सेना और घुसपैठियों को कारगिल, टोलोलिंग, टाइगर हिल और बटालिक जैसे अहम सामरिक क्षेत्रों से पूरी तरह बाहर कर दिया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हमें कारगिल की कहानी केवल एक “जश्न” के रूप में याद रखनी चाहिए या एक “सुनहरी चेतावनी” के रूप में भी?
कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि में 1998 की लाहौर बस यात्रा और भारत-पाक के बीच शांति वार्ता थी। ठीक उसी वक्त, पाकिस्तान ने एक बेहद संगठित और सुनियोजित साजिश के तहत नियंत्रण रेखा (LOC) पार कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ शुरू कर दी। पाकिस्तान की नियमित सेना, खासकर ‘नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री’ ने मई 1999 तक 16,000 फीट की ऊंचाई वाली चोटियों पर कब्जा जमा लिया था वो इलाके जहां ऑक्सीजन कम, पर भारतीय सेना का इरादा दमदार था। भारतीय सेना ने इसे हल्के में नहीं लिया। मई से जुलाई तक करीब 60 दिनों तक चला 'ऑपरेशन विजय', जिसमें लगभग 200,000 सैनिकों ने भाग लिया। इस अभियान को भारतीय वायुसेना ने ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ के ज़रिए हवाई ताकत से सपोर्ट किया। IAF ने मिग-21, मिराज 2000 जैसे विमान तैनात किए और LOC के भीतर रहकर ही रणनीतिक ठिकानों पर सटीक प्रहार किए। ये भारत की सैन्य नीति के उस सिद्धांत को दर्शाता है जो कहती है: "हम हमला पहले नहीं करते, पर जब करते हैं तो आखिरी तक जाते हैं।"
यह केवल युद्ध नहीं था, यह सैन्य चेतावनी थी , कारगिल युद्ध ने हमें कई रणनीतिक सबक दिए:
1. इंटेलिजेंस फेलियर – इतनी बड़ी घुसपैठ महीनों तक पकड़ में नहीं आना सुरक्षा तंत्र की असफलता को दर्शाता है।
2. सीमा पर सतर्कता – LOC के पहाड़ी क्षेत्रों की निगरानी सिर्फ आंखों से नहीं, तकनीक और इंटेलिजेंस दोनों से होनी चाहिए।
3. सीमित युद्ध, असीम सीखें – कारगिल कोई पारंपरिक युद्ध नहीं था। यह "हाई-एल्टीट्यूड वारफेयर" का असाधारण उदाहरण था, जहां रणनीति, धैर्य और मौसम की मार भी शामिल थी।
4. भारत की कूटनीतिक जीत – अमेरिका, रूस, फ्रांस जैसे देशों ने इस बार भारत के पक्ष में खुलकर बयान दिए। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग पड़ गया।
कभी दौलत के शिखर पर बैठे लोग जब कानून के दरवाज़े पर दस्तक देते हैं, तो सवाल सिर्फ यह नहीं होता कि कितना घपला हुआ,सवाल ये होता है क्या सिस्टम सो रहा था, या सोने दिया गया? मुंबई की सुबहें इस हफ्ते अलार्म की आवाज़ से नहीं,ED की गाड़ियों के सायरन से जगी हैं। और जिन ठिकानों पर कार्रवाई हो रही है, वो किसी गली-कूचे के धंधेबाज़ के नहीं,
अनिल अंबानी जैसे इंडस्ट्रियल टाइटन के ऑफिस और बंगलों के हैं। तीसरे दिन भी ED की टीमें Reliance Anil Dhirubhai Ambani Group के ठिकानों पर जमी हैं। कार्रवाई की शुरुआत गुरुवार सुबह 7 बजे हुई थी, और शनिवार तक ये मिशन बदस्तूर जारी है। शुरुआती जानकारी कहती है कि 2017 से 2019 के बीच YES Bank से रिलायंस समूह को दिए गए लगभग ₹3000 करोड़ के लोन में बड़ा घपला हुआ है। ED को शक है कि ये पैसे लोन के बहाने से निकाले गए और फिर promoter-linked कंपनियों में ट्रांसफर कर दिए गए। सूत्रों की मानें तो ये आंकड़ा ₹24,000 करोड़ तक फैल सकता है क्योंकि अब जांच की परिधि सिर्फ एक लोन तक नहीं रही बल्कि अब हर वो ट्रांजैक्शन, जो रिलायंस समूह से जुड़ा है, डिजिटल डेटा से लेकर ऑफशोर डीलिंग्स तक ED की रडार में है। Reliance Home Finance Ltd. की तरफ से बयान आया है कि YES Bank से जो भी लोन लिए गए, वो क्रेडिट कमेटी की स्वीकृति और उचित प्रक्रिया के तहत थे। लोन पूरी तरह सिक्योर थे, और उन्हें ब्याज समेत चुका दिया गया है, इस समय कोई बकाया नहीं है। लेकिन ED इस तर्क से संतुष्ट नहीं दिख रही।
उसका फोकस इस बात पर है कि कहीं ये प्रक्रिया सिर्फ दिखावे की तो नहीं थी अब सिर्फ घोटाले की बात नहीं, सिस्टम पर सवाल है इस कार्रवाई ने सिर्फ एक कारोबारी को नहीं, बल्कि पूरे कॉरपोरेट सिस्टम और बैंकिंग नेटवर्क को कटघरे में ला खड़ा किया है। क्योंकि अगर ऐसे लोन पास हो सकते हैं, तो इसका मतलब सिर्फ ये नहीं कि एक कंपनी दोषी है बल्कि वो संस्थाएं भी कठघरे में हैं जिन्होंने इसे होने दिया। टीमें सिर्फ कागज़ी बहीखातों की जांच नहीं कर रहीं, बल्कि foreign investments, fund routing, shell companies और पिछले पांच साल के financial operations की गहराई से छानबीन कर रही हैं। हर excel sheet, हर approval email, और हर transaction अब एक मौन गवाह है जो धीरे-धीरे बोलने लगा है। तो आगे क्या होगा । रिलायंस ग्रुप के भीतर और बाहर की गतिविधियों पर नजर है। कॉरपोरेट और राजनीतिक गलियारे दोनों इस केस को लेकर सावधान मुद्रा में हैं। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ेगी, संभव है कि और भी बड़े नाम, नई परतें, और पुरानी खामोश फाइलें खुलें आख़िर में सवाल वही क्या वाकई गलती हुई है, या कहानी कहीं और लिखी जा रही है? और क्या अनिल अंबानी जैसे नामों की फाइलें सिर्फ अब खुलीं हैं, या पहले भी खुल सकती थीं?
वृंदावन की पवित्र हवाओं में इस वक्त कुछ बेचैनी घुली है। मथुरा के गौरी गोपाल आश्रम में बैठे अनिरुद्धाचार्य महाराज के कुछ शब्दों ने नारी जाति की अस्मिता को ठेस पहुंचाई है और इस बार मामला 'कथा' का नहीं, 'विवाद' का है। हम बात कर रहे हैं उसी अनिरुद्धाचार्य महाराज की, जिनकी कथा सुनने लाखों की भीड़ उमड़ती है, जिनके प्रवचनों में धर्म की गंगा बहती है और जिनका नाम श्रद्धा से पहले जुबां पर आता था। मगर इस बार सुर्खियां किसी पुण्य-प्रसंग की नहीं, बल्कि उनके एक 'चरित्र टिप्पणी' वाले वीडियो की वजह से हैं।
हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो में अनिरुद्धाचार्य महाराज कहते हैं "25 साल की अविवाहित लड़कियों का चरित्र ठीक नहीं होता, उनकी शादी 14 साल की उम्र में कर देनी चाहिए।" यह बयान सुनते ही जैसे किसी ने तपते लोहे पर हथौड़ा मार दिया हो।
आस्था टूटती है जब ऐसे वाक्य किसी संत के मुख से निकलते हैं।
महाराज की इन बातों पर सोशल मीडिया में बवंडर उठा। फेसबुक से लेकर ट्विटर तक, महिला संगठनों से लेकर आम गृहिणियों तक, सबने एक स्वर में सवाल उठाए "क्या यही है धर्म की व्याख्या? क्या यही है नारी के प्रति सम्मान?" विवाद गहराया, तो महाराज ने माफ़ी भी मांगी। उन्होंने सफाई दी कि उनका उद्देश्य "पूरी नारी जाति को अपमानित करना नहीं था", बल्कि वो तो बस उन लोगों की बात कर रहे थे जो रिश्तों को हल्के में लेते हैं। लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि क्या 14 साल की उम्र में विवाह की बात करना, 'रिश्तों को गंभीरता से लेने' की शिक्षा है?
अनिरुद्धाचार्य केवल कथावाचक नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर प्रभावशाली नाम हैं। उनके इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लाखों फॉलोअर्स हैं। मथुरा में उनका आलीशान आश्रम है, एयर ट्रैवल, हाई सिक्योरिटी, और लग्ज़री स्टे भी है वहां । रिपोर्ट्स बताती हैं कि उनकी नेट वर्थ कई करोड़ों में है, और देशभर में उनके कथाओं के आयोजन किसी इवेंट शो से कम नहीं होते। लेकिन जब इतना बड़ा मंच और इतने बड़े शब्द हों, तो ज़िम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी होनी चाहिए और जब जुबान फिसले, तो माफ़ी से ज़्यादा आत्मचिंतन ज़रूरी होता है। अनिरुद्धाचार्य का दावा है कि "नारी लक्ष्मी का रूप है", लेकिन जब वही लक्ष्मी अपमानित महसूस करे, जब उसकी उम्र और चरित्र पर सवाल उठाए जाएं, तो शब्दों से नहीं, नज़रिए से माफी मांगनी चाहिए। अंत में… अनिरुद्धाचार्य महाराज की एक गलती ने उनकी संपूर्ण छवि पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।उनकी कथाएं जितनी लोकप्रिय हैं, आज उनकी चुप्पी उतनी ही चुभ रही है।