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Breaking News 26 April 2025

1 ) भारत - पाकिस्तान युद्ध तय 

 भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले के बाद पाकिस्तान ने इसे 'युद्ध की कार्रवाई' करार देते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी है। अब पाकिस्तान ने बड़ा कदम उठाते हुए 1972 के ऐतिहासिक शिमला समझौते को भी निलंबित करने की घोषणा कर दी है। गौरतलब है कि मंगलवार को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 28 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई थी। इसके बाद भारत ने 1960 में हुई सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया। इसके जवाब में पाकिस्तान ने बृहस्पतिवार को शिमला समझौते को स्थगित करने का ऐलान कर दिया, जिसने दोनों देशों के बीच दशकों से चले आ रहे द्विपक्षीय संबंधों की नींव रखी थी।

क्या है शिमला समझौता?

शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हस्ताक्षरित हुआ था। 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की करारी हार और बांग्लादेश के जन्म के बाद यह समझौता हुआ था। इस संधि के तहत दोनों देश विवादों को द्विपक्षीय बातचीत से सुलझाने पर सहमत हुए थे और तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से इनकार किया गया था। भारत ने युद्ध के दौरान कब्जाई गई 13,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि पाकिस्तान को लौटाकर शांति और सद्भावना का संदेश दिया था। हालांकि, रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तुरतुक और चालुका जैसे क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में रखा। शिमला समझौते के जरिए 1971 के युद्धविराम रेखा को 'नियंत्रण रेखा' (LOC) का दर्जा मिला, जिसने जम्मू-कश्मीर में यथास्थिति को मजबूती दी थी।

निलंबन के असर

पाकिस्तान के इस कदम से अब नियंत्रण रेखा (LOC) को फिर से 'युद्धविराम रेखा' के तौर पर देखा जा सकता है, जिससे क्षेत्र में एकतरफा सैन्य गतिविधियों के रास्ते खुल सकते हैं। जानकारों के मुताबिक, यह न केवल दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए खतरा है, बल्कि कश्मीर मुद्दे को फिर से अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की पाकिस्तान की कोशिशों को भी बल देगा। भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी के अनुसार, शिमला समझौते का निलंबन पाकिस्तान को कश्मीर मुद्दे पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता तलाशने के लिए मजबूर करेगा। पार्थसारथी ने लाइव मिंट से बातचीत में कहा, "अगर पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र या अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाने का प्रयास करता है, तो यह शिमला समझौते का खुला उल्लंघन होगा।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि शिमला समझौता न केवल द्विपक्षीय वार्ता का आधार था, बल्कि इसने संयुक्त राष्ट्र के पुराने प्रस्तावों को अप्रासंगिक कर दिया था। यदि यह ढांचा टूटता है, तो क्षेत्र में नए प्रकार के कूटनीतिक और सैन्य तनाव पैदा हो सकते हैं।

 

2.)  पाकिस्तान पर भारत का तीन वार ! जाने क्या क्या .....

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए नृशंस आतंकी हमले के ठीक एक दिन बाद भारत ने पाकिस्तान पर कूटनीतिक बम गिरा दिया है। भारत सरकार ने बृहस्पतिवार को ऐलान किया कि 27 अप्रैल से पाकिस्तानी नागरिकों को जारी सभी वीज़ा तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए जाएंगे। इतना ही नहीं, पाकिस्तान में मौजूद भारतीयों को भी जल्द-से-जल्द स्वदेश लौटने की सलाह दी गई है। यह कदम कोई सामान्य प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संकेत है—अब भारत हर हमला सिर्फ सहन नहीं करेगा, उसका जवाब भी देगा। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि यह निर्णय हिंदू पाकिस्तानी नागरिकों को जारी दीर्घकालिक वीज़ा पर लागू नहीं होगा। मेडिकल वीज़ा भी 29 अप्रैल तक वैध रहेंगे। लेकिन इसके बाद, भारत की ज़मीन पर एक भी पाकिस्तानी नागरिक बिना मंजूरी के नहीं रह सकेगा। साफ है — भारत अब सहानुभूति नहीं, सख्ती से बात करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) ने बुधवार को एक के बाद एक बड़े फैसले लिए— पाकिस्तानी सैन्य अताशे को निष्कासित किया गया 1960 की ऐतिहासिक सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया गया। अटारी सीमा को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया। इस फैसले का मतलब साफ है—अब सिर्फ गोलियों का नहीं, पानी का भी हिसाब होगा। विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा "पहलगाम हमले के मद्देनज़र भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों के लिए वीज़ा सेवाओं को निलंबित करने का निर्णय लिया है। सभी मौजूदा वैध वीज़ा 27 अप्रैल से रद्द माने जाएंगे।" साथ ही यह भी कहा गया कि भारत में मौजूद पाकिस्तानी नागरिकों को वीज़ा अवधि समाप्त होने से पहले देश छोड़ देना चाहिए। भारतीय नागरिकों को पाकिस्तान यात्रा से बचने की सख्त सलाह दी गई है। 26/11 के बाद भारत ने पहली बार इतनी व्यापक और बहुआयामी कार्रवाई की है। यह पाकिस्तान के खिलाफ सिर्फ़ एक गुस्से का इज़हार नहीं, बल्कि एक राष्ट्र की गरिमा की रक्षा का संकल्प है। अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय की निगाहें भी भारत के इस निर्णायक रुख पर हैं।

 

3.) पोप फ्रांसिस को अंतिम विदाई देने जुटी दुनिया

 

ईसाई धर्म के सर्वोच्च धार्मिक नेता पोप फ्रांसिस का आज शनिवार, 26 अप्रैल को सेंट पीटर्स स्क्वायर में अंतिम संस्कार किया जा रहा है। 88 वर्ष की आयु में 21 अप्रैल को उनके निधन के बाद से ही वेटिकन सिटी शोक में डूबा है। आज उनके अंतिम दर्शन और विदाई के लिए दुनिया के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु वेटिकन पहुंचे हैं। श्रद्धा और आस्था का ऐसा दृश्य दुर्लभ ही देखने को मिलता है। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी विशेष प्रतिनिधिमंडल के साथ वेटिकन सिटी पहुँच चुकी हैं। भारत सरकार ने पोप फ्रांसिस के सम्मान में 3 दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पोप के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा, "पोप फ्रांसिस को दुनिया आध्यात्मिक साहस, करुणा और मानव सेवा के प्रतीक के रूप में सदैव याद रखेगी। उन्होंने दुनिया भर के गरीबों, वंचितों और पीड़ितों के जीवन में आशा की एक नई किरण जगाई। भारत के लोगों के साथ उनका विशेष स्नेह था।" पोप फ्रांसिस ने 2013 में जब पोप का पदभार संभाला, तब से ही उन्होंने चर्च और दुनिया भर में सुधार और समर्पण की मिसाल पेश की। वे अपने जीवनकाल में गरीबी, अन्याय, भेदभाव और हिंसा के खिलाफ एक बुलंद आवाज बने रहे। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने वेटिकन सिटी को सिर्फ आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों का भी एक जीवंत केंद्र बना दिया।

विश्व भर के दिग्गज नेताओं की मौजूदगी

पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार में 150 से अधिक देशों के प्रतिनिधिमंडल मौजूद हैं। इनमें 50 राष्ट्राध्यक्ष, 10 सम्राट और सैकड़ों अन्य वैश्विक नेता व प्रतिनिधि शामिल हैं। इस ऐतिहासिक मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटेन के प्रिंस विलियम, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, स्पेन के राजा फेलिप VI और रानी लेटिज़िया, ब्राजील के राष्ट्रपति लुईस इनासियो लूला दा सिल्वा जैसी हस्तियाँ वेटिकन में उपस्थित हैं। सेंट पीटर्स स्क्वायर में हजारों बिशप, पादरी और श्रद्धालु सामूहिक प्रार्थना कर रहे हैं। पूरा वातावरण एक अवर्णनीय शांति और श्रद्धा से भरा हुआ है। वेटिकन के चारों ओर सख्त सुरक्षा व्यवस्था भी लागू है, ताकि लाखों की भीड़ के बीच अनुशासन बनाए रखा जा सके।
 पोप फ्रांसिस के निधन को विश्व भर के धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक नेताओं ने एक "युग के अंत" के रूप में देखा है।

 

4.): IPL बनाम रणजी: गावस्कर ने दिखाया भारतीय क्रिकेट का कड़वा सच

दुनिया की सबसे बड़ी क्रिकेट लीग कही जाने वाली इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) हर साल खिलाड़ियों पर करोड़ों रुपये की बारिश करती है। 14 साल के नौजवान से लेकर 43 साल के अनुभवी दिग्गज तक इस मंच पर खेलते हैं और मोटी कमाई करते हैं। IPL 2025 न केवल भारतीय घरेलू खिलाड़ियों को इंटरनेशनल सितारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खेलने का मौका दे रहा है, बल्कि विदेशी खिलाड़ियों की मौजूदगी से उन्हें सीखने का भी सुनहरा अवसर प्रदान कर रहा है। बड़े-बड़े कॉन्ट्रैक्ट्स और भारी-भरकम सैलरी के बीच आईपीएल की चमक साल दर साल बढ़ती ही जा रही है। लेकिन इसी चकाचौंध के बीच भारतीय क्रिकेट के एक दिग्गज ने एक अहम सवाल खड़ा किया है।

भारत के पूर्व कप्तान और दिग्गज बल्लेबाज़ सुनील गावस्कर ने स्पोर्टस्टार के लिए लिखे अपने कॉलम में आईपीएल की तारीफ करते हुए इसके भीतर छिपे एक गंभीर पक्ष को उजागर किया है। गावस्कर ने लिखा, "आईपीएल ने एक बार फिर दिखाया है कि एक शानदार प्रदर्शन किसी अनजान खिलाड़ी को रातों-रात स्टार बना सकता है।" हालांकि उन्होंने इस चमकते मंच की तुलना घरेलू क्रिकेट के सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट रणजी ट्रॉफी से करते हुए गहरी चिंता भी जताई। उनके मुताबिक, "रणजी ट्रॉफी में सालों शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद कई खिलाड़ियों को वह पहचान नहीं मिलती, जो आईपीएल में एक अच्छे सीजन से हासिल हो जाती है।"

गावस्कर ने आगे लिखा कि आईपीएल का एक अच्छा सीजन किसी खिलाड़ी के लिए उतना फायदेमंद साबित हो सकता है, जितना उसका पूरा रणजी करियर भी नहीं दे सकता। उन्होंने इस असंतुलन का कारण आईपीएल की लोकप्रियता, बड़े पैमाने पर प्रसारण और भारी प्रायोजन अधिकारों को बताया। साथ ही इस सच्चाई को भी स्वीकार किया कि आईपीएल की अपार लोकप्रियता जहां नए खिलाड़ियों के लिए अवसर लेकर आती है, वहीं घरेलू क्रिकेट में लगातार पसीना बहाने वाले कई प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के लिए यह स्थिति थोड़ा कड़वा स्वाद भी छोड़ जाती है। गावस्कर के इस बयान ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या भारतीय क्रिकेट में चमक-दमक के पीछे सच्ची प्रतिभा कहीं गुम तो नहीं हो रही?