उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक बयान दिया जिसने मीडिया और सोशल मीडिया दोनों जगह बहस छेड़ दी। योगी जी ने कहा कि “1100 ईस्वी के आस-पास भारत में हिंदुओं की संख्या लगभग 60 करोड़ थी और 1947 आते-आते वह घटकर 30 करोड़ रह गई।” अब सुनने में यह आंकड़ा चौंकाने वाला है। मानो किसी ने एक पूरी सभ्यता का आधा हिस्सा छीन लिया हो। लेकिन सवाल उठता है क्या वाकई इतिहास और जनसंख्या के आँकड़े इस दावे को सही ठहराते हैं ? पहले उस हिस्से पर बात कर लें जिसमें कुछ सच्चाई है। भारत की पहली आधिकारिक जनगणना 1951 में हुई थी। उस समय देश की कुल आबादी लगभग 36 करोड़ थी, जिसमें हिंदुओं की संख्या करीब 30.5 करोड़ यानी लगभग 84% थी। यह डेटा आधिकारिक जनगणना से आता है, इसलिए इसे विवादित नहीं माना जा सकता। इस लिहाज़ से योगी आदित्यनाथ का “1947 में हिंदुओं की संख्या 30 करोड़” वाला दावा तथ्य के करीब है। 1100 ईसवी में क्या उस वक्त हिंदुओं की संख्या 60 करोड़ थी। यहाँ इतिहासकारों और डेमोग्राफ़रों की राय बिल्कुल अलग है। मध्यकालीन इतिहास की पढ़ाई करने वाले रिसर्चर बताते हैं कि 1000–1200 ईस्वी के बीच पूरे भारतीय उपमहाद्वीप (आज का भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका आदि) की कुल जनसंख्या लगभग 8–10 करोड़ के बीच थी। मतलब उस दौर में 60 करोड़ तो पूरी धरती पर भी कहीं-कहीं मुश्किल से रहते थे। ऐसे में सिर्फ हिंदुओं की आबादी 60 करोड़ होना वैज्ञानिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से असंभव है।
रिसर्च क्या कहती है?
Pew Research और भारत की जनगणनाएँ दिखाती हैं कि हिंदुओं की संख्या 1951 में लगभग 30 करोड़ से बढ़कर 2011 में 96 करोड़ तक पहुँच चुकी थी। मध्यकाल के आंकड़े अकादमिक रिसर्च से ही मिलते हैं, क्योंकि उस वक्त जनगणना जैसी प्रणाली नहीं थी। लेकिन हर प्रमुख अध्ययन यही बताता है कि उस दौर की जनसंख्या कुछ करोड़ों से ऊपर नहीं गई थी।यानी “1100 ईस्वी में 60 करोड़ हिंदू” कहना केवल भावनात्मक या राजनीतिक बयान है, न कि रिसर्च पर आधारित।
यह बयान क्यों दिया गया?
अब बड़ा सवाल ऐसा क्यों कहा जा रहा है? राजनीति में अक्सर ऐसे आंकड़े उपयोग किए जाते हैं ताकि जनता को यह एहसास हो कि “देखो, हमें कितना नुकसान हुआ और अब हमें दोबारा उठ खड़ा होना है।” यह बयान सीधे तौर पर हिंदुत्व और पहचान की राजनीति से जुड़ता है। यह संदेश देता है कि “विदेशी आक्रमण और औपनिवेशिक शासन के कारण हिंदुओं की ताकत आधी हो गई।” हालांकि डेटा इस दावे का समर्थन नहीं करता, लेकिन राजनीतिक मंच पर यह बयान लोगों की भावनाओं को छूता है। ऐसे ही लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।
मिसाइलें आमतौर पर ज़मीन से दहाड़ती हैं या समुद्र की गहराइयों से उड़ान भरती हैं। लेकिन इस बार भारत ने दुनिया को चौंकाने का नया तरीका चुना रेल की पटरियाँ। जी हाँ, भारतीय सेना ने अपनी नई पीढ़ी की बैलिस्टिक मिसाइल ‘अग्नि-प्राइम’ को पहली बार रेल-आधारित लॉन्चर से सफलतापूर्वक टेस्ट कर दिया। रेंज इतनी कि नक्शे पर दूर-दूर तक असर । ये कोई छोटी-मोटी मिसाइल नहीं है। ‘अग्नि-प्राइम’ की मारक क्षमता है लगभग 2,000 किलोमीटर। मतलब दिल्ली से छोड़ी जाए तो इस्लामाबाद से लेकर दुबई तक, और पूर्व में बैंकॉक तक इसके घेरे में आता है। यानी एक मिसाइल, कई पड़ोसी देशों पर नज़र रखने की ताकत। यह मिसाइल कैनिस्टर-बेस्ड है। यानी ट्रक हो, रेल हो या कोई और मोबाइल लॉन्चर, कहीं भी फिट कर दो, और किसी भी मौसम में दाग दो। इसमें एडवांस कम्युनिकेशन सिस्टम और सुरक्षा तंत्र लगे हैं। सबसे अहम, यह न्यूक्लियर कैपेबल है। यानी इसमें सिर्फ बारूद नहीं, बल्कि परमाणु क्षमता वाली वारहेड भी ले जाई जा सकती है। भारत अब खास क्लब में । दुनिया में सिर्फ गिने-चुने देशों के पास रेल से मिसाइल दागने की क्षमता है। रूस और अमेरिका ने इस पर पहले काम किया है। अब भारत भी उसी ‘एलिट क्लब’ में एंट्री कर चुका है। फर्क इतना है कि रूस के ‘रेल-बेस्ड मिसाइल’ को लोग ‘न्यूक्लियर ट्रेन’ कहते थे, और भारत ने अब अपनी “अग्नि-ट्रेन” का टिकट कटवा लिया है। इस टेस्ट की जगह का खुलासा नहीं किया गया। DRDO और रक्षा मंत्रालय बस इतना बोले कि यह ‘फुल ऑपरेशनल सीनारियो’ में हुआ और पूरी तरह सफल रहा। यानी किसी नकली माहौल में नहीं, बल्कि वैसा ही सेटअप तैयार किया गया जैसा असल हालात में होता। सीधा मतलब ये मिसाइल अब सिर्फ लैब का सपना नहीं, बल्कि युद्ध के मैदान की हकीकत बन चुकी है। भारत के लिए यह टेस्ट महज़ तकनीकी जीत नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक ‘पावर शो’ भी है। पाकिस्तान के लिए संदेश: अब सड़क पर घूमते लॉन्चर ही नहीं, रेल की पटरियों पर छुपे मिसाइल भी निगाहों से बचकर चल सकते हैं। चीन के लिए संकेत: 2,000 किमी की रेंज में कई अहम शहर और बेस आते हैं। यानी किसी भी ‘एडवेंचर’ का जवाब अब और भी तेजी और सटीकता से दिया जा सकता है। अब यहाँ से बड़े सवाल उठते हैं क्या यह मिसाइल आने वाले वक्त में सेना के बेड़े में शामिल कर दी जाएगी? रेल-आधारित लॉन्चर की तैनाती कहाँ और कैसे होगी? और सबसे अहम क्या ये टेस्ट पड़ोसियों को सिर्फ मैसेज देने के लिए था या आने वाले समय में भारत की मिसाइल नीति का नया चेप्टर खुलने वाला है? ऐसे ही लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।
मिसाइलें आमतौर पर ज़मीन से दहाड़ती हैं या समुद्र की गहराइयों से उड़ान भरती हैं। लेकिन इस बार भारत ने दुनिया को चौंकाने का नया तरीका चुना रेल की पटरियाँ। जी हाँ, भारतीय सेना ने अपनी नई पीढ़ी की बैलिस्टिक मिसाइल ‘अग्नि-प्राइम’ को पहली बार रेल-आधारित लॉन्चर से सफलतापूर्वक टेस्ट कर दिया। रेंज इतनी कि नक्शे पर दूर-दूर तक असर । ये कोई छोटी-मोटी मिसाइल नहीं है। ‘अग्नि-प्राइम’ की मारक क्षमता है लगभग 2,000 किलोमीटर। मतलब दिल्ली से छोड़ी जाए तो इस्लामाबाद से लेकर दुबई तक, और पूर्व में बैंकॉक तक इसके घेरे में आता है। यानी एक मिसाइल, कई पड़ोसी देशों पर नज़र रखने की ताकत। यह मिसाइल कैनिस्टर-बेस्ड है। यानी ट्रक हो, रेल हो या कोई और मोबाइल लॉन्चर, कहीं भी फिट कर दो, और किसी भी मौसम में दाग दो। इसमें एडवांस कम्युनिकेशन सिस्टम और सुरक्षा तंत्र लगे हैं। सबसे अहम, यह न्यूक्लियर कैपेबल है। यानी इसमें सिर्फ बारूद नहीं, बल्कि परमाणु क्षमता वाली वारहेड भी ले जाई जा सकती है। भारत अब खास क्लब में । दुनिया में सिर्फ गिने-चुने देशों के पास रेल से मिसाइल दागने की क्षमता है। रूस और अमेरिका ने इस पर पहले काम किया है। अब भारत भी उसी ‘एलिट क्लब’ में एंट्री कर चुका है। फर्क इतना है कि रूस के ‘रेल-बेस्ड मिसाइल’ को लोग ‘न्यूक्लियर ट्रेन’ कहते थे, और भारत ने अब अपनी “अग्नि-ट्रेन” का टिकट कटवा लिया है। इस टेस्ट की जगह का खुलासा नहीं किया गया। DRDO और रक्षा मंत्रालय बस इतना बोले कि यह ‘फुल ऑपरेशनल सीनारियो’ में हुआ और पूरी तरह सफल रहा। यानी किसी नकली माहौल में नहीं, बल्कि वैसा ही सेटअप तैयार किया गया जैसा असल हालात में होता। सीधा मतलब ये मिसाइल अब सिर्फ लैब का सपना नहीं, बल्कि युद्ध के मैदान की हकीकत बन चुकी है। भारत के लिए यह टेस्ट महज़ तकनीकी जीत नहीं है, बल्कि एक रणनीतिक ‘पावर शो’ भी है। पाकिस्तान के लिए संदेश: अब सड़क पर घूमते लॉन्चर ही नहीं, रेल की पटरियों पर छुपे मिसाइल भी निगाहों से बचकर चल सकते हैं। चीन के लिए संकेत: 2,000 किमी की रेंज में कई अहम शहर और बेस आते हैं। यानी किसी भी ‘एडवेंचर’ का जवाब अब और भी तेजी और सटीकता से दिया जा सकता है। अब यहाँ से बड़े सवाल उठते हैं क्या यह मिसाइल आने वाले वक्त में सेना के बेड़े में शामिल कर दी जाएगी? रेल-आधारित लॉन्चर की तैनाती कहाँ और कैसे होगी? और सबसे अहम क्या ये टेस्ट पड़ोसियों को सिर्फ मैसेज देने के लिए था या आने वाले समय में भारत की मिसाइल नीति का नया चेप्टर खुलने वाला है? ऐसे ही लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।