सैमसंग लाएगा तीन बार फोल्ड करने वाला स्मार्टफोन,
Samsung हर टेक स्पेशलिस्ट को चौकाने वाला है असल में Samsungसाल 2025 में अपना पहला Tri Fold फोन लॉन्च कर सकता है और यह ग्लोबल मार्केट में लॉन्च होने वाला दुनिया का पहला Tri Fold फोन भी हो सकता है पिछले महीने Huawei ने चीन में दुनिया का पहला तीन बार मुड़ने वाला स्मार्टफोन लॉन्च किया था। पर Huawei Mate XT ग्लोबल मार्किट में लांच नहीं हुआ था , Huawei Mate XT देखने में जितना आकर्षक लगता है, इसने अपनी कीमत से सबसे चौंका दिया है। यह चीन में CNY 19,999 में लॉन्च हुआ था, जो कि भारत में लगभग 2,37,000 रुपए होते हैं। बहुत ज्यादा महंगा होने के बावजूद भी इस ट्रिपल फोल्डेबल स्मार्टफोन को 3 मिलियन से ज्यादा लोगों ने प्री-ऑर्डर किया। और अब, Huawei द्वारा दुनिया को ट्री-फोल्ड टेक्नोलॉजी दिखाने के बाद, ऐसा कहा जा रहा है कि मशहूर ब्रांड सैमसंग भी अपने ट्रिपल फोल्ड फोन पर काम कर रहा है सैमसंग ने पहले ही अलग-अलग फोल्डेबल डिजाइनों के साथ दो प्रोटोटाइप फोन्स को दिखा चुका है जो Flex G और Flex S हैं। ये अब तक बाजार में तो नहीं पहुंचे हैं लेकिन Huawei का Mate XT Ultimate और Tecno का Phantom Ultimate 2 से मिलते-जुलते हैं। टेक्नो का यह डिवाइस एक ट्री-फोल्ड कॉन्सेप्ट फोन है जिसे अगस्त में लॉन्च किया गया था ।
यह स्मार्टफोन कॉन्टेन्ट देखने, मल्टीटास्किंग और यहाँ तक कि गेमिंग के लिए भी बढ़िया है इनमें से एक स्क्रीन का इस्तेमाल कीबोर्ड की तरह भी किया जा सकता है। इसका ट्री-फोल्ड सेटअप लचीलापन देता है, जिससे यूजर्स विभिन्न कार्यों के लिए डिस्प्ले साइज़ को कम-ज्यादा कर सकते हैं, रिपोर्ट के अनुसार, इस फोल्डेबल फोन में इस्तेमाल होने वाले OLED डिस्प्ले के ऑर्डर में साल दर साल 10 प्रतिशत की गिरावट आई है, अब ये देखना होगा कि सैमसंग का ट्रिपल फोल्ड फोन लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा या फिर इसकी सेल में गिरावट देखने को मिलेगी ।
सैमसंग का ये ट्रिपल फोल्ड का फोन जब पूरी तरह से अनफोल्ड होगा, तो इसका डिस्प्ले लगभग 10-12 इंच के करीब हो सकता है, जो एक टैबलेट की तरह काम करेगा। फोल्ड होने पर इसका आकार 6-7 इंच के आसपास हो सकता है। इस फोन का रिज़ॉल्यूशन लगभग 2208 x 1768 पिक्सल के होने की संभावना है, जिससे बेहतरीन पिक्चर क्वालिटी मिलेगी। Samsung Tri-Fold में Snapdragon 8 Gen 2 या Samsung का अपना Exynos चिपसेट होने की संभावना है। यह चिपसेट उच्च प्रदर्शन के साथ-साथ बेहतर बैटरी एफिशिएंसी देगा। 12GB से 16GB रैम के साथ, यह मल्टीटास्किंग के लिए एक शक्तिशाली डिवाइस बन सकता है। इसके अलावा 256GB और 512GB के स्टोरेज विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं, जिनमें से कुछ मॉडल में 1TB तक का स्टोरेज भी शामिल हो सकता है।इसमें ट्रिपल या क्वाड-कैमरा सेटअप होने की संभावना है, जिसमें प्राइमरी सेंसर 50MP का हो सकता है, जबकि अल्ट्रा-वाइड और टेलीफोटो लेंस के साथ बेहतर जूम और विस्तृत एंगल फोटोग्राफी संभव हो सकती है। इस फोन में सेल्फी के लिए 12MP से 16MP का कैमरा हो सकता है जो फोल्डेबल डिजाइन में उपयोगी होगा। और 4K 60fps या अधिक वीडियो रिकॉर्डिंग क्षमता के साथ, यह बेहतरीन वीडियो क्वालिटी प्रदान करेग
अडानी और अम्बानी को भी जिसने पैसे में पछाड़ा
NVIDIA के CEO जेन्सेन हुआंग ने भारत में एआई समिट के दौरान मुकेश अम्बानी,अक्षय कुमार से मुलाक़ात एवं डिस्कशन किया, जिसमे उन्होंने ने एआई के बारे में बताया | हलाकि सबसे बड़ी न्यूज़ ये है की गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां NVIDIA से डरती नजर आ रही हैं, हर कोई इसके बारे में बात कर रहा है, आंकड़ों के मुताबिक जेनसेन की संपत्ति में 71.1 अरब अमेरिकी डॉलर की वृद्धि हुई है। इस तरह 115 अरब अमेरिकी डॉलर की संपत्ति के साथ जेनसेन इस लिस्ट में 12वें नंबर पर पहुंच गए हैं। मुकेश अंबानी 113 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति के साथ 13वें नंबर पर हैं और 107 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति के साथ गौतम अडानी इस लिस्ट में 14वें नंबर पर हैं।एप्पल से लेकर माइक्रोसॉफ्ट तक और गूगल से लेकर मेटा तक आज हर कोई AI के बारे में बात कर रहा है। दुनिया आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के महत्व को समझ रही है और कोई भी कंपनी इस रेस में पिछड़ना नहीं चाहती है । एआई डेवलपिंग के लिए ढेर सारा डाटा लगता है और उस डाटा को स्टोर करने के लिए जरूरत पड़ती है डाटा सेंटर्स की। अब क्योंकि एनवीडिया AI डेवलपमेंट के लिए इस्तेमाल होने वाली चिप्स और डाटा सेंटर्स दोनों बनाने का काम करता है, तो इसलिए हर कोई, इन दिनों एनवीडिया के नाम की माला जपने में लगा हुआ है। दुनिया एआई की जिस दौड़ में आज भाग रही है उसे NVIDIA ने बहुत पहले ही भांप लिया था। यही वजह है कि आज AI चिप के 80% मार्केट पर एनवीडिया का कब्जा है।
पूरी दुनिया में अभी 1 ट्रिलियन से ज्यादा वैल्युएशन वाली सिर्फ 8 कंपनियां हैं जिनमें से 7 अमेरिका की हैं और एक सऊदी अरब की है। इन सात कंपनियों में से एनवीडिया का भी एक नाम है। एनवीडिया की इतनी तेज ग्रोथ के पीछे वजह है इस कंपनी का विजन। कंपनी के फाउंडर और सीईओ जेनसेन हुआंग ने इन चीजों पर साल 2006 में ही काम करना शुरू कर दिया था। जबकि दुनिया ने AI की ताकत को साल 2016 में जाकर समझा। कंप्यूटर एक ऐसा टूल है जो किसी इंसान या कंपनी की प्रोडक्टिविटी को बढ़ा देता है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने इस क्षमता को और भी कई गुना बेहतर कर दिया है। अब क्योंकि AI की डिमांड तेजी से बढ़ रही है तो ऐसे में NVIDIA के पास इतने ज्यादा ऑर्डर्स आ रहे हैं कि वो सप्लाई भी पूरी नहीं कर पा रहा। इसलिए अब हर प्रोडक्ट के प्राइज आसमान पर हैं और इसकी वजह से सीधा फायदा कंपनी को मिल रहा है। यानि कंपनी का प्रॉफिट मार्जिन इस वक्त बहुत ज्यादा है और कॉम्पिटिशन में कोई नहीं है।
एनवीडिया का मुख्य काम कॉम्पलेक्स कंप्यूटिंग के लिए चिप्स बनाना है। कॉम्पलेक्स कंप्यूटिंग में हाई क्वालिटी वीडियो एडिटिंग, हाई रेजोल्यूशन गेमिंग, कंप्यूटर पर आर्किटेक्चर डिजाइनिंग, टेस्ला द्वारा बनाई जाने वाली ऑटो ड्राइव कारें, फिल्मों में इस्तेमाल होने वाले VFX और ग्राफिक डिजाइनिंग जैसे काम शामिल हैं। क्योंकि ऐसे कामों में हेवी ग्राफिक्स का इस्तेमाल होता है, इसलिए इसके लिए कंप्यूटर में सिर्फ CPU (सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट) से काम नहीं चलता। इसके लिए कंप्यूटर में ग्राफिक्स का लोड संभाल सकने वाली चिप का होना जरूरी है और एनवीडिया GPU (ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट) बनाने का काम करती है। अब क्योंकि GPU का इस्तेमाल डाटा सेंटर्स, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) और सॉफ्टवेयर इकोसिस्टम बनाने में भी होता है। तो NVIDIA यह सुविधाएं भी उपलब्ध कराती है। तो कुल मिलाकर जहां भी कम्यूटर पर कोई जटिल टास्क करने होंगे वहां पर NVIDIA की चिप इस्तेमाल करनी पड़ती हैं।
अब एक सवाल यह भी उठता है कि क्या एप्पल, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट और टेस्ला जैसी कंपनियां हमेशा एनविडिया से सेवाएं लेती रहेंगी? जाहिर है कि ये सभी दिग्गज कंपनियां अपने खुद के डाटा सेंटर और ग्राफिक्स चिप बनाने पर काम कर रही हैं। लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डेवलमेंट के लिए उन्हें जिस स्तर की तकनीक चाहिए उसे डेवलप करने में उन्हें कम से कम 5 साल का वक्त लग जाएगा। तब तक दुनिया की इन सबसे बड़ी कंपनियों को NVIDIA से सेवाएं लेते रहना पड़ेगा। संभावना इस बात की ज्यादा है कि जब तक ये सभी कंपनियां इस क्षेत्र में कुछ करेंगी तब तक कॉम्पलेक्स कंप्यूटिंग की दुनिया में NVIDIA कुछ ऐसा रेवोल्यूशन लेकर आ जाएगा जिसकी वजह से इस पर टेक्निकल सेक्टर की कंपनियों की डिपेन्डेंसी बनी रहेगी। यानि एनविडिया को इस क्षेत्र में बढ़त का फायदा हमेशा मिलता रहेगा|
150 से अधिक घुसपैठ की सूचना
कश्मीर में दूसरे राज्यों के श्रमिकों पर पिछले कुछ दिनों में आतंकी हमले लगातार बढ़े हैं। दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल क्षेत्र में गुरुवार सुबह आतंकियों ने उत्तर प्रदेश के बिजनौर के रहने वाले एक श्रमिक को गोली मार दी। सौभाग्यवश वह बच गया, उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। टारगेट किलिंग के अपने मंसूबे नाकाम होते देख आतंकी वहां से भाग निकले। बीते एक सप्ताह में कश्मीर में दूसरे राज्यों के लोगों पर यह तीसरा आतंकी हमला है। इससे पहले 18 अक्टूबर को आतंकियों ने शोपियां में बिहार निवासी अशोक चौहान की हत्या कर दी थी। इसके बाद 20 अक्टूबर को आतंकियों ने गांदरबल में जेड मोड़ सुरंग निर्माण परियोजना से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों के आवासीय शिविर पर हमला किया। इस हमले में सात लोगों की मौत और पांच घायल हुए हैं। गांदरबल में हुए हमले के बाद अब गुलमर्ग हमले ने कश्मीर में नई खतरे की घंटी बजा दी है। लगातार हो रहे इन हमलों के पैटर्न से ये तो स्पष्ट हो गया है कि आतंकी कश्मीर के उन क्षेत्रों को निशाना बनाने की साजिश रच रहे हैं, जो आतंकी हिंसा से अब तक मुक्त माने जाते रहे हैं। यही नहीं, अब आतंकियों द्वारा लद्दाख के द्रास व कारगिल के रास्ते घुसपैठ के नए चैनल खोलने की साजिश रची जा रही है। इससे पूर्व आतंकी जम्मू संभाग के शांत क्षेत्रों को लगातार निशाना बना रहे थे, क्यूंकि इन क्षेत्रों में सुरक्षाबल की तैनाती कश्मीर के अन्य हिस्सों से कम है। खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के अनुसार इन हमलों का तरीका जम्मू संभाग में लगातार हुए हमलों से मेल खाता है। आतंकियों की रणनीति से ये तो स्पष्ट है कि आतंकी अब हमला कर भागने पर काम कर रहे हैं। जेड मोड़ परियोजना को निशाना बनाने का अर्थ यह है कि आतंकी विकास परियोजनाओं को निशाना बना सकते हैं। कारगिल युद्ध के बाद से द्रास और कारगिल के रास्ते आतंकी घुसपैठ लगभग बंद हो चुकी थी और गांदरबल के कंगन से आगे के क्षेत्र भी पूरी तरह शांत हो चुके थे।
एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी के अनुसार, एक वर्ष में लगभग 100 से 150 पाकिस्तानी आतंकी गुरेज सेक्टर से घुसपैठ कर कश्मीर में घुसे हैं। इसी दौरान उत्तरी कश्मीर और दक्षिण कश्मीर में बीते एक वर्ष में लगभग 40 आतंकी मारे भी गए हैं। कुछ आतंकी कश्मीर घाटी में पहले से भी मौजूद हैं। इन आतंकियों पास गुरिल्ला युद्ध में अच्छी ट्रेनिंग होने के साथ अमेरिकी और नाटो सेनाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार भी हैं। ऐसे में कश्मीर, खास तौर पर कारगिल में जिहादी मानसिकता का प्रचार-प्रसार सुरक्षाबलों के लिए आने वाले दिनों में नई चुनौती बन सकता है। पकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान में कट्टरपंथियों की गतिविधियां बढ़ने के साथ आतंकी शिविर भी स्थापित किए जाने की सूचना लगातार सुरक्षा एजेंसियों को मिल रही है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार गुरेज, द्रास, कारगिल पूरे क्षेत्र में घने जंगल और ऊंचे पहाड़ है और आतंकी नियंत्रण रेखा से यहीं से होते हुए सोनमर्ग-गांदरबल के साथ बांडीपोरा, गांदरबल-श्रीनगर और दक्षिण कश्मीर के रास्ते घुसपैठ करने में सफल हो रहे हैं। इन इलाकों में कई प्राकृतिक गुफाएं भी हैं, जो आतंकियों के लिए सुरक्षित ठिकाने का काम करती हैं। यह इलाका अबतक आतंक की छाया से लगभग बाहर रहा है, लेकिन अब आतंकी यहाँ के प्राकृतिक घने जंगल और ऊंचे पहाड़ को घुसपैठ और हमले के बाद छुपने के लिए अपना नया हथियार बना इसका लाभ उठाते दिख रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के रूस में ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने और वहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से द्विपक्षीय मुलाकात से पहले भारत और चीन के बीच LAC यानि लाइन ऑफ एक्चुअल कण्ट्रोल पर पेट्रोलिंग को लेकर समझौता हुआ था। रूस के शहर कजान में बीते दिन हुए BRICKS सिखर सम्मेलन से ठीक पहले भारत और चीन के बीच एक समझौते के बाद दोनों देशों के बीच टेंशन कम होने लगा है। बता दें कि दोनों देशों के बीच हुए समझौते के बाद अब LAC पर डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। दोनों ही देशों के सैनिकों ने बॉर्डर पर जो अस्थायी टेंट और स्ट्रक्चर बनाए थे, उन्हें अब हटाया जाने लगा है, जिसके बाद सीमा पर फिर सबकुछ वैसा ही हो जाएगा, जैसा जून 2020 से पहले था। बता दें कि जून, 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद से यहां तनाव बना हुआ था। कई जगह ऐसी थीं, जहां पेट्रोलिंग रुक गई थी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर में एक कार्यक्रम में कहा था कि 2020 के बाद कई ऐसे इलाके थे, जहां उन्होंने ब्लॉक कर दिया था और हमने उन्हें, लेकिन अब पेट्रोलिंग को लेकर समझौता हो गया है। अब हम वहां तक पेट्रोलिंग कर सकेंगे, जहां 2020 तक करते आ रहे थे। बता दें कि भारत और चीन के रिश्तों के लिहाज से ये समझौता काफी अहम है, ये समझौता कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर हुई बातचीत का नतीजा है। भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि समझौते के बाद LAC पर दोनों देशों के सेनाओं के बीच की झड़प रुक सकेगी। बता दें कि साल 2020 में गलवान में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें भारतीय सेना के कर्नल रैंक के एक अधिकारी समेत 20 भारतीय जवान बलिदान हुए थे।
भारत और चीन के बीच LAC पर पांच जगहों- देपसांग, डेमचोक, गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा हॉट स्प्रिंग में संघर्ष चल रहा था। साल 2020 के बाद कई दौर की बातचीत के बाद तीन फ्रिक्शन पॉइंट- गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा हॉट स्प्रिंग से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट गई थीं। हालांकि, देपसांग और डेमचोक में दोनों देशों की सेनाओं के तैनात रहने से टकराव का खतरा बना हुआ था, लेकिन अब समझौते के बाद सभी फ्रिक्शन पॉइंट यानि टकराव वाली जगहों से भारत और चीन की सेनाएं पीछे हट जाएंगी और यहां साल 2020 के टकराव से पहले की तरह पेट्रोलिंग की जा सकेगी और इससे सीमा पर शांति बनी रहेगी। देपसांग में पेट्रोलिंग करना भारत के लिहाज से इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि काराकोरम पास दौलत बेग ओल्डी पोस्ट से महज 30 किलोमीटर दूर है और पहाड़ियों के बीच ये सपाट इलाका भी है, जिसका इस्तेमाल सैन्य गतिविधि में किया जा सकता है। वहीं, डेमचोक सिंधु नदी के पास पड़ता है और अगर यहां पर चीन का नियंत्रण होता है तो इससे उत्तर भारत के राज्यों में पानी की आपूर्ति पर असर पड़ने का खतरा बनेगा।
भारत और चीन 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करती है। इसे दुनिया की सबसे लंबी विवादित सीमा भी कहा जाता है। ये सीमा तीन सेक्टर्स- ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बांटा गया है. लद्दाख वेस्टर्न सेक्टर में आता है। भारत और चीन के बीच कोई आधिकारिक सीमा नहीं है और इसकी वजह चीन ही है और इसी वजह से विवाद का कोई हल नहीं निकल पाता। चीन, अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर दावा करता है और उसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है. इसी तरह से 2 मार्च 1963 को हुए एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की 5,180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी थी. जबकि, लद्दाख के 38 हजार वर्ग किमी इलाके पर चीन का अवैध कब्जा पहले से ही है. कुल मिलाकर 43,180 वर्ग किमी जमीन पर अभी भी विवाद है। बता दें, भारत और चीन के बीच हुए समझौते के तहत दोनों सेनाओं ने स्टेप बी स्टेप से पीछे हटना शुरू कर दिया है। पूर्वी लद्दाख सेक्टर में डेमचोक और देपसांग में दो बिंदुओं पर भारत और चीन के सैनिक पीछे हट रहे हैं। दोनों पक्षों के बीच हुए समझौतों के अनुसार, भारतीय सैनिकों ने संबंधित क्षेत्रों में लगे उपकरणों को हटाना शुरू कर दिया है। दोनों सेनाओं के अस्थायी टेंट और अस्थायी ढांचों को हटाया जा रहा है।