24 जुलाई की सुबह दक्षिण-पूर्व एशिया की सरहदें बारूद की आवाज़ से थर्रा उठीं। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद अचानक भीषण जंग में तब्दील हो गया। एक मंदिर से शुरू हुआ विवाद अब बम, मिसाइल और लड़ाकू विमानों तक पहुंच चुका है। पर असली सवाल ये है कि क्या ये जंग दो छोटे देशों की आपसी रंजिश है, या फिर इसका रिमोट कंट्रोल किसी महाशक्ति के हाथ में है?
सुबह करीब 7:30 बजे थाईलैंड के सुरिन प्रांत में तैनात सेना ने कंबोडिया का एक ड्रोन सीमा के पास मंडराते हुए देखा। इसी के बाद स्थिति तेजी से बदली। कुछ ही मिनटों में कंबोडियाई सैनिकों ने थाई सीमा में घुसने की कोशिश की। जवाब में थाई सेना अलर्ट हो गई, और महज़ कुछ देर बाद, कंबोडिया ने थाईलैंड की एक सैन्य चौकी पर फायरिंग शुरू कर दी। यह चौकी उस मंदिर के पास स्थित है, जो दोनों देशों के बीच विवाद की जड़ बना हुआ है।
इसके बाद घटनाएं तेजी से आगे बढ़ीं। सुबह 9:40 बजे, कंबोडिया ने थाईलैंड के सिसाकेत प्रांत पर BM-21 Multiple Launch Rocket System से हमला किया। ये रॉकेट्स एक मंदिर के पास और कई रिहायशी इलाकों में गिरे। इसके चलते भारी तबाही हुई और कई नागरिक हताहत हुए। कुछ ही समय बाद सुरिन प्रांत के काप चोएंग क्षेत्र पर एक और रॉकेट दागा गया, जिसमें तीन नागरिकों की मौके पर ही मौत हो गई। सुबह 10:48 बजे थाई वायुसेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए छह F-16 फाइटर जेट्स युद्ध में उतार दिए और कंबोडिया के भीतर टारगेटेड स्ट्राइक्स की शुरुआत कर दी।
अब तक इस संघर्ष में कम से कम 14 लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें सैनिक और आम नागरिक दोनों शामिल हैं। सीमा के नज़दीकी थाई स्कूलों में बच्चों को बंकरों में भेजा जा रहा है। सीमावर्ती गांवों में भगदड़ है और सैकड़ों लोग पलायन कर चुके हैं। दोनों देशों की सेनाएं पूरी ताकत से आमने-सामने हैं, और बॉर्डर पूरी तरह से सील कर दिया गया है।
इस संघर्ष की चिंगारी कोई नई नहीं है। दोनों देशों के बीच ता मुएन थोम मंदिर को लेकर वर्षों से विवाद चला आ रहा है। यह मंदिर 11वीं सदी का एक हिंदू मंदिर है जो थाई-कंबोडिया सीमा पर स्थित है। यह न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि कंबोडिया के टूरिज्म सेक्टर का एक अहम केंद्र भी है। इसी मंदिर और उसके आस-पास के क्षेत्र को लेकर पहले भी 2011 और 2015 में झड़पें हो चुकी हैं, लेकिन इस बार मामला कहीं ज्यादा गंभीर है।
इस लड़ाई को केवल दो देशों की सीमाई झड़प कहना गलत होगा। दरअसल, यह एक छुपी हुई प्रॉक्सी वॉर है, जिसमें चीन और अमेरिका के हित टकरा रहे हैं। थाईलैंड लंबे समय से अमेरिका का सामरिक साझेदार रहा है। उसके पास अमेरिकी F-16 फाइटर जेट्स, आधुनिक हथियार प्रणाली और इंटेलिजेंस सपोर्ट है। दूसरी ओर, कंबोडिया चीन का सबसे करीबी सहयोगी है। चीन कंबोडिया को हथियार देता है, इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करता है और सैन्य ट्रेनिंग भी प्रदान करता है।
खास बात यह है कि चीन का महत्वाकांक्षी ‘One Belt One Road’ प्रोजेक्ट दोनों देशों से होकर गुजरता है। ऐसे में चीन को इस क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को कम करना है, और वह इसके लिए कंबोडिया को मोहरे की तरह इस्तेमाल कर रहा है। हालाँकि चीन ने दोनों पक्षों से शांति की अपील की है, लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट्स बताती हैं कि कंबोडिया को हथियार और समर्थन भी चीन ही दे रहा है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि कंबोडिया की सेना थाईलैंड से सैन्य स्तर पर बेहद कमजोर है। ऐसे में उसकी तरफ से जंग छेड़ना तभी संभव है, जब उसे किसी बड़ी शक्ति का सहयोग मिल रहा हो। और उस शक्ति का नाम है – चीन। इससे ये बात साफ होती जा रही है कि इस संघर्ष के पीछे एक बड़ा रणनीतिक खेल खेला जा रहा है।
आने वाले दिनों में यह युद्ध शांत हो भी जाए, तब भी दोनों देशों के संबंधों में दरार और अविश्वास बना रहेगा। क्षेत्रीय स्थिरता खतरे में है। साथ ही दोनों देशों को अपने रक्षा बजट में भारी बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है। दक्षिण-पूर्व एशिया की राजनीति अब सिर्फ सीमाओं पर नहीं, बल्कि सुपरपावर के एजेंडे पर लड़ी जा रही है।
इस समय जब पूरी दुनिया जलवायु संकट, आर्थिक मंदी और वैश्विक अस्थिरता से जूझ रही है, ऐसे में एशिया में इस तरह की लड़ाई केवल स्थानीय संकट नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय नीति और शक्ति संतुलन के लिए बड़ा खतरा है। इस जंग में जो दिख रहा है, उससे ज़्यादा खतरनाक है जो नज़र नहीं आ रहा।
किसी भी देश की असल तस्वीर उसके स्कूलों से झलकती है—जहाँ मासूम आँखों में सपने पलते हैं और हर दीवार पर भविष्य की एक उम्मीद टंगी होती है। राजस्थान के झालावाड़ में जो हुआ, वो सिर्फ हादसा नहीं था… वो एक पूरी पीढ़ी के प्रति हमारी संवेदनहीनता की चीखती हुई गवाही है। राजस्थान के झालावाड़ जिले के मनोहरथाना क्षेत्र के पीपलोदी गांव में शुक्रवार की सुबह राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की छत अचानक भरभराकर गिर गई। उस वक्त कक्षा में करीब 60 बच्चे मौजूद थे। मलबे में दबने से 7 मासूम बच्चों की जान चली गई और 17 बच्चे घायल हो गए। घायलों को नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्रों में भर्ती कराया गया है, जिनमें कई की हालत गंभीर बताई जा रही है। पुलिस अधीक्षक अमित कुमार ने जानकारी देते हुए बताया कि 10 बच्चों को झालावाड़ जिला अस्पताल रेफर किया गया है, और कुछ बच्चों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है यह हादसा अचानक नहीं हुआ। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने पिछले कई दिनों से शिक्षकों को बताया था कि छत से प्लास्टर गिर रहा है, दीवारें दरक रही हैं। लेकिन उनकी बातों को या तो अनदेखा किया गया या हल्के में लिया गया। जब तक सिस्टम चेता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस लापरवाही के चलते प्रशासन ने विद्यालय के पांच शिक्षकों को निलंबित कर दिया है। लेकिन सवाल ये है कि क्या निलंबन से सात जानें वापस लौट सकती हैं? क्या भविष्य में ऐसे हादसों से बचने के लिए सिर्फ "एक्शन" काफी है घटना के बाद गांव के लोगों में अफरा-तफरी मच गई। बच्चे चीख रहे थे, माता-पिता बदहवासी में स्कूल की ओर भागे, और जो मिला, वही मलबा हटाने लगा। छत गिरने के बाद का दृश्य किसी त्रासदी से कम नहीं था—धूल से भरे शरीर, खून से लथपथ मासूम चेहरे और टूटे बस्ते, जो कभी सपनों से भरे होते थे। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने घटना पर शोक जताया और कहा, "झालावाड़ में स्कूल भवन गिरने की खबर अत्यंत दुखद है। ईश्वर मृतकों को शांति दे और घायलों को शीघ्र स्वस्थ करें।" वहीं मौजूदा शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने हादसे की ज़िम्मेदारी सीधे पिछली सरकार पर डाल दी। उन्होंने कहा कि “कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में स्कूलों की कोई मरम्मत नहीं हुई। हम अब चरणबद्ध तरीके से स्कूलों की मरम्मत करवा रहे हैं।” मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस घटना को "हृदयविदारक" बताया और अधिकारियों को निर्देश दिए कि घायलों के इलाज में कोई कोताही न हो गंभीर सवाल जो अनदेखे हैं: सरकारी स्कूलों की स्थिति आज भी इतनी दयनीय क्यों है?क्या हर बार किसी हादसे के बाद ही मरम्मत होगी? जिन बच्चों की जान गई, क्या उनका कोई दोष था कि वो सरकारी स्कूल में पढ़ते थे? इन सवालों का जवाब देने वाला कोई नहीं है, क्योंकि इन सवालों से राजनीति की बिल्डिंग हिलने लगती है, और शायद वो भी किसी दिन गिर जाए।