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Breaking News 25 August 2025

1 ) Big Budget Movies लगातार फेल क्यों हो रही हैं?

इंडियन सिनेमा की सबसे दिलचस्प ट्रैजेडी यह है कि जितनी महंगी फिल्म बनेगी, उतनी बड़ी उम्मीद उससे जोड़ी जाएगी। और अगर वह उम्मीद पूरी न हुई, तो उसे “फ्लॉप” कहकर दफ़ना दिया जाएगा। हाल के उदाहरण हैं ‘War टू’ और ‘Coolie’। दोनों ही फिल्मों ने शुरुआत में धूम मचाई, बड़े-बड़े रिकॉर्ड बनाए। War 2 ने लगभग 326 करोड़ का बिज़नेस किया और Coolie 480 करोड़ पार कर गई। सुनने में यह आंकड़े बहुत बड़े लगते हैं, लेकिन असल खेल तब समझ आता है जब खर्चे और कमाई की किताब खोली जाती है।

आइए समझते है असली गणित क्या है 

सिनेमा हॉल की कमाई का आधा हिस्सा सीधे मल्टीप्लेक्स और डिस्ट्रीब्यूटर्स ले जाते हैं। यानी अगर फिल्म ने 480 करोड़ की नेट कमाई की, तो प्रोड्यूसर तक मुश्किल से 220–240 करोड़ ही पहुंचते हैं। और ध्यान रहे कि फिल्म का बजट ही 400 करोड़ से ज्यादा था, ऊपर से मार्केटिंग और प्रमोशन में 80–100 करोड़ अलग से झोंक दिए जाते हैं। अब आप खुद सोचिए, 480 करोड़ कमाने वाली फिल्म भी घाटे में क्यों मानी जाती है। यही वजह है कि मीडिया हेडलाइन बनाता है “बॉक्स ऑफिस पर बड़ी फिल्म ढेर।” यह कहानी नई नहीं है। पिछले दशक में कई फिल्में इसी गड्ढे में गिरी हैं। ब्रह्मास्त्र 410 Cr बजट, ~430 Cr कमाई  इतनी भारी भरकम VFX और प्रचार के बावजूद पब्लिक को जो चाहिए था वह नहीं मिला। फिर आदिपुरुष 500 Cr बजट, ~450 Cr कमाई जिसमें धार्मिक महाकाव्य को हाई-टेक बनाने की कोशिश उलटी पड़ गई। ठग्स ऑफ हिंदोस्तान, 2.0, साइरा नरसिम्हा रेड्डी सबके पास पैसा था, स्टार थे, लेकिन कहानी का दम नहीं था।
इन फिल्मों का सबक साफ है दर्शक सिर्फ चमक-दमक देखकर टिकट नहीं खरीदता, उसे इमोशन चाहिए, उसे कहानी चाहिए।
हालांकि जब फिल्म सही बैठी तो आसमान भी फाड़ दिया ।उल्टा उदाहरण भी ढेरों हैं। पठान Budget ~250 Cr, Gross 1000+ Cr दर्शक ने कहा, “पैसा वसूल।” RRR Budget ~550 Cr, Gross 1200+ Cr भव्यता के साथ इमोशन का ऐसा संगम, जिसने विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। कांतारा और द कश्मीर फाइल्स छोटा बजट, लेकिन 200+ Cr की कमाई इन फिल्मों ने साबित कर दिया कि पब्लिक कंटेंट पर दांव लगाती है, न कि खर्चे पर। यानी साफ है कि पैसा तभी चलेगा जब वह दिल को छूने वाली कहानी के साथ खर्च किया जाए। भारतीय ऑडियंस का बिहेवियर पिछले दस साल में पूरी तरह बदल गया है।
1. कंटेंट ही राजा है: दर्शक अब सिर्फ बड़े सेट और VFX देखकर संतुष्ट नहीं होता। उसे ऐसा अनुभव चाहिए जो घर बैठे OTT पर न मिल सके।
2. OTT की आदत: महामारी के बाद लोगों ने घर पर फिल्में देखनी सीख लीं। आज थिएटर जाना तभी उचित लगता है जब फिल्म सच में इवेंट-सिनेमा हो।
3. टिकट प्राइस का दबाव: जब एक टिकट 300–400 रुपये की आती है, तो दर्शक सीधे तुलना करता है उनका कहना रहता है कि “इतने में तो नेटफ्लिक्स का सब्सक्रिप्शन आ जाएगा।”
4. फ्रैंचाइज़ थकान: सीक्वेल तभी हिट होंगे जब किरदार जनता के दिल में बैठ जाए। वरना बड़ा नाम भी दर्शक को हॉल तक नहीं खींच सकता। अगर आंकड़ों की तरफ देखें तो यह तस्वीर और भी साफ हो जाती है। 2019 से 2023: इंडियन बॉक्स ऑफिस ने रिकॉर्ड तोड़े। 2023 सबसे बड़ा साल रहा, ₹12,226 करोड़ का ग्रॉस बॉक्स ऑफिस। 2024: सेकंड-बेस्ट रहा, ₹11,833 करोड़ GBO के साथ। लेकिन हिंदी फिल्मों का शेयर 44% से गिरकर 40% रह गया। दक्षिण भारतीय फिल्मों ने हिंदी बेल्ट में भी धूम मचाई, यहाँ तक कि 31% शेयर उन्होंने हिंदी मार्केट से ही खींच लिया। इसका मतलब यह हुआ कि अब पब्लिक के लिए भाषा मायने नहीं रखती। वैल्यू-फॉर-मनी और इमोशनल कनेक्शन ही सबसे अहम है। तो क्यों हर बड़ी फिल्म पर फ्लॉप का ठप्पा लग जाता है? अब मीडिया और पब्लिक दोनों का फोकस ROI (Return on Investment) पर है। अगर फिल्म 400 करोड़ की बनी है तो उम्मीद होती है कि यह 1000 करोड़ कमाए। अगर वह 500 करोड़ पर अटक गई तो हेडलाइन यही बनेगी “बड़ी फिल्म, बड़ा घाटा।” यानी कि आज फिल्म का स्केल ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है। बड़ी बजट वाली फिल्मों का हाल वैसा ही है जैसे चुनाव में नेताओं के वादे। चुनाव से पहले कहते हैं “हम आपको हॉलीवुड जैसा अनुभव देंगे।” लेकिन जब जनता हॉल में पहुँचती है तो मिलता है CGI, लंबी-लंबी बातें और भावनाहीन कहानी। बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे

 

3.) अनिल अंबानी के घर छापा! आखिर क्या है पूरा मामला?

मुंबई की पॉश लोकेशन कफ परेड की सुबह 23 अगस्त को अचानक बदल गई। उस दिन सीविंड नामक ऊँची इमारत पर लोग हैरान थे, क्योंकि यहाँ CBI की टीम पहुँची थी। यह कोई आम तलाशी नहीं थी, बल्कि अनिल अंबानी के घर और उनकी कंपनियों से जुड़ा मामला था। CBI ने FIR दर्ज की है और आरोप लगाया है कि Reliance Communications से जुड़ा ₹2,929 करोड़ का SBI बैंक फ्रॉड हुआ है। हालांकि कई रिपोर्ट्स में यह रकम ₹17,000 करोड़ तक बताई जा रही है। CBI ने मुंबई में कम से कम छह जगह छापेमारी की और डिजिटल डेटा से लेकर दस्तावेज़ तक खंगाले। एजेंसी का बयान था “कुछ तो गड़बड़ है।” इससे पहले Enforcement Directorate (ED) ने भी जुलाई और अगस्त में अनिल अंबानी समूह पर बड़ा एक्शन लिया था। ED ने करीब 35 परिसरों पर छापेमारी की, 50 कंपनियों को जांच के घेरे में लिया और 25 से ज्यादा लोगों से पूछताछ की। मामला था Yes Bank से लिए गए लगभग ₹3,000 करोड़ के लोन फ्रॉड का। आरोप है कि यह लोन सीधे कारोबार में लगाने के बजाय शेल कंपनियों और पेचीदा ट्रांजैक्शन्स के जरिए डायवर्ट किया गया। 5 अगस्त को अनिल अंबानी को समन भेजा गया और उनसे 9 घंटे की लंबी पूछताछ की गई।

ED की रिपोर्ट कहती है कि Reliance Home Finance पर ₹5,901 करोड़, Reliance Commercial Finance पर ₹8,226 करोड़, और Reliance Communications पर ₹4,105 करोड़ का बकाया है। यानी कुल मिलाकर 20 से ज़्यादा बैंकों का पैसा फँसा पड़ा है। इनमें SBI, Yes Bank, Axis Bank, ICICI और HDFC जैसे बड़े नाम शामिल हैं। Reliance Power और Reliance Infrastructure ने बयान जारी कर कहा कि वे एजेंसियों को पूरा सहयोग कर रहे हैं और सभी दस्तावेज़ उपलब्ध करा चुके हैं। उनका दावा है कि ED की हालिया छापेमारी अब पूरी हो चुकी है। लेकिन सवाल यही है कि जब जनता का पैसा अरबों-खरबों की रकम में बकाया हो, तो सिर्फ “सहयोग” से बात खत्म हो सकती है क्या? अब हालात यह हैं कि दोनों एजेंसियाँ CBI और ED सक्रिय हैं और अनिल अंबानी पर कानूनी शिकंजा कसता जा रहा है। एक तरफ ₹3,000 करोड़ का Yes Bank घोटाला, दूसरी तरफ ₹2,929 करोड़ का SBI फ्रॉड। मीडिया रिपोर्ट्स में रकम कहीं ₹17,000 करोड़ तक पहुँच रही है। कभी कारोबारी घरानों की शान माने जाने वाले अंबानी बंधुओं की कहानी आज ग़लत वजहों से सुर्खियों में है। जनता के मन में सवाल गूँज रहा है जब बैंकों का पैसा इस तरह डूबता है, तो नुकसान कौन भरता है? वही आम आदमी, जिसकी जमा पूँजी से ये लोन दिए जाते हैं। CBI ने साफ़ कहा है “कुछ तो गड़बड़ है।” अब देखने वाली बात यह है कि ये गड़बड़ी कब और कैसे सामने आती है, या फिर हमेशा की तरह यह मामला भी सुर्ख़ियों से गायब होकर ठंडे बस्ते में चला जाएगा।बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे

 

Thumbnail: PM मोदी की डिग्री विवाद पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शैक्षणिक डिग्री को लेकर वर्षों से चल रहा विवाद आखिरकार दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के साथ एक निर्णायक मोड़ पर पहुँचा। सोमवार, 25 अगस्त 2025 को अदालत ने दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ा वह आदेश ही खारिज कर दिया जिसमें केंद्रीय सूचना आयोग ने साल 2016 में पीएम मोदी की 1978 बैच की बैचलर ऑफ आर्ट्स (BA) डिग्री से जुड़े रिकॉर्ड सार्वजनिक करने को कहा था। जस्टिस सचिन दत्ता की एकल पीठ ने साफ़ कहा कि शैक्षणिक योग्यता से जुड़ी जानकारी को Personal Information माना जाएगा और यह सूचना अधिकार अधिनियम के तहत तब तक उजागर नहीं की जा सकती जब तक कि इसका बड़ा Larger Public Interest साबित न हो। अदालत ने साफ़ शब्दों में कहा “ऐसी सूचना के प्रकटीकरण से किसी व्यक्ति की निजता का हनन होता है और यह RTI अधिनियम की धारा 8(1)(j) के अंतर्गत संरक्षित है।” साल 2016 में केंद्रीय सूचना आयोग ने आदेश दिया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय 1978 के बैच से जुड़े वे रिकॉर्ड उपलब्ध कराए, जब नरेंद्र मोदी ने BA की पढ़ाई की थी। उस समय विपक्ष, विशेषकर आम आदमी पार्टी, लगातार पीएम की डिग्री पर सवाल उठा रहा था। इसी आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। दिल्ली का यह केस कोई अकेला मामला नहीं है। इससे पहले साल 2023 में गुजरात हाईकोर्ट ने भी इसी तरह का विवाद सुलझाया था। वहाँ CIC ने गुजरात यूनिवर्सिटी को मोदी की मास्टर ऑफ आर्ट्स (MA) डिग्री की जानकारी उजागर करने का आदेश दिया था। लेकिन 1 अप्रैल 2023 को गुजरात हाईकोर्ट ने उस आदेश को खारिज कर दिया। इतना ही नहीं, अदालत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर ₹25,000 का जुर्माना भी ठोक दिया था। अदालत का तर्क भी वही था—डिग्री जैसे शैक्षणिक रिकॉर्ड व्यक्तिगत सूचना है, इसे सार्वजनिक करने की कोई बाध्यता नहीं। डिग्री विवाद सिर्फ RTI तक सीमित नहीं रहा। इस पर राजनीतिक बयानबाज़ी भी अदालत तक पहुँची। 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री की डिग्री पर सवाल उठाने से जुड़े डिफेमेशन केस से छुटकारा माँगा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों को निचली अदालत में ही ट्रायल के ज़रिए तय किया जाएगा। फरवरी 2025 में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय वाले केस में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। और 25 अगस्त 2025 को कोर्ट ने साफ़ कह दिया कि CIC का आदेश टिकाऊ नहीं है। नतीजतन, अब दिल्ली विश्वविद्यालय पर पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करने की कोई बाध्यता नहीं रह गई है। अब स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री मोदी की डिग्री से जुड़ी दोनों प्रमुख याचिकाएँ एक दिल्ली विश्वविद्यालय से BA की और दूसरी गुजरात विश्वविद्यालय से MA की दोनों ही उच्च न्यायालयों में खारिज हो चुकी हैं। अदालतों का रुख साफ़ है: डिग्री व्यक्तिगत सूचना है, RTI के तहत इसका खुलासा नहीं हो सकता। लेकिन इस फैसले के बाद एक बड़ा सवाल राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में गूँज रहा है अगर डिग्री में सब कुछ पारदर्शी है तो फिर इसे दिखाने में हिचक क्यों? विपक्ष का आरोप है कि सरकार और विश्वविद्यालय पारदर्शिता से भाग रहे हैं, जबकि समर्थकों का कहना है कि यह निजता का मामला है और प्रधानमंत्री की डिग्री को बार-बार विवाद का विषय बनाना राजनीति से प्रेरित है यह जिज्ञासा इस सवाल को ज़िंदा रखेगी कि देश की सबसे ऊँची कुर्सी पर बैठे व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता का सच आखिरकार जनता से क्यों छुपाया जा रहा है।बाकी चैनल तो आपको वही दिखाएंगे जो सब जगह मिलेगा… लेकिन यहां मिलेगा आपको वो जो कहीं और नहीं। तो, अगर भीड़ से हटकर सोचना है तो चैनल सब्सक्राइब कर डालिए और जुड़े रहिए हमसे