आईपीएल में कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं जैसे RCB का ट्रॉफी का इंतज़ार और मुंबई इंडियंस का पहला मैच हारने की आदत। आईपीएल 2025 की धुआंधार शुरुआत हो चुकी है। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु ने कोलकाता नाइट राइडर्स को धूल चटा दी। उधर, चेन्नई सुपर किंग्स ने मुंबई इंडियंस को फिर से धो डाला। कहते हैं, बदला लेने का सही समय आ ही जाता है। 2008 में जब KKR ने RCB को आईपीएल के पहले मैच में धोया था, तब शायद बेंगलुरु के फैंस यही सोच रहे होंगे कि "एक दिन आएगा, जब हम भी पलटवार करेंगे!" और आखिरकार 18 साल बाद वो दिन आ ही गया। पहली बार कप्तानी संभाल रहे रजत पाटीदार ने न सिर्फ स्मार्ट फैसले लिए बल्कि बल्ले से भी RCB ब्रांड का प्रदर्शन किया। उन्होंने 16 गेंदों में 34 रन ठोककर साबित कर दिया कि कप्तानी सिर्फ नाम की नहीं, बल्कि "स्मार्ट क्रिकेट" की भी होती है। केकेआर ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 175 रनों का लक्ष्य दिया था, जो दिखने में बड़ा लग रहा था, लेकिन RCB के बल्लेबाजों ने इसे मजाक बना दिया। RCB की शुरुआत ऐसी थी कि लगा ये कोई T20 नहीं, बल्कि पावरप्ले का मैच खेल रहे हों! 6 ओवर में ही स्कोर 80 के पार पहुंच गया। फिल साल्ट ने 31 गेंदों में 56 रन ठोक दिए, जबकि विराट कोहली हमेशा की तरह नाबाद रहे और 36 गेंदों में 59 रन बना डाले। बेंगलुरु ने 16.2 ओवर में ही लक्ष्य हासिल कर मैच अपने नाम कर लिया। मुंबई इंडियंस की बल्लेबाजी ऐसी रही कि लगा वे नेट प्रैक्टिस करने आए हों। पहले ही ओवर में रोहित शर्मा बिना खाता खोले आउट हो गए यानी वही पुरानी कहानी, बस साल बदल गया। सूर्यकुमार यादव ने 26 गेंदों में 29 रन बनाए और "बैठे-बैठे भी थक गए" वाली फिलिंग दी। मुंबई इंडियंस ने जैसे-तैसे 155 रन बनाए, और ये भी दीपक चाहर की 28 रनों की पारी के बदौलत हुआ, वरना 140 भी मुश्किल लग रहा था। चेन्नई की ओर से नूर अहमद ने 4 विकेट और खलील अहमद ने 3 विकेट झटके। लग रहा था कि मुंबई की टीम किसी रियायती सेल में विकेट बांट रही हो 156 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी CSK को शुरुआती झटके जरूर लगे, लेकिन रचिन रविंद्र (65*) और ऋतुराज गायकवाड़ (53) की पारियों ने टीम को संभाल लिया। एमएस धोनी ने आते ही "फिनिशर" वाला काम किया हालांकि उन्होंने सिर्फ दो गेंदें खेलीं, लेकिन फिर भी स्टेडियम में गूंज रही "धोनी! धोनी!" की आवाज़ ने माहौल बना दिया। चेन्नई ने 19.1 ओवर में 6 विकेट के नुकसान पर जीत दर्ज कर ली। आईपीएल 2025 की शुरुआत तो शानदार हुई है। लेकिन इतना तय है कि इस बार भी आईपीएल "इमोशन्स, ड्रामा और क्रिकेट" का तड़का लगाने के लिए पूरी तरह तैयार है!
एक पैरोडी गीत, एक स्टैंड-अप कॉमेडियन, और महाराष्ट्र की राजनीति में उठा बवंडर। कॉमेडियन कुणाल कामरा के एक पैरोडी सॉन्ग ने महाराष्ट्र की सियासत में आग लगा दी है। एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना से लेकर बीजेपी तक भड़क गई है, और अब मामला सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि कानून-व्यवस्था का रूप ले चुका है। कुणाल कामरा ने अपने स्टैंड-अप शो में महाराष्ट्र की राजनीति पर चुटकी ली और एकनाथ शिंदे के शिवसेना से अलग होने पर एक पैरोडी गीत पेश किया। इस गीत में ‘गद्दार’ शब्द का इस्तेमाल किया गया, जो उद्धव ठाकरे गुट का पसंदीदा हथियार रहा है। इस ‘संगीतबद्ध तंज’ से नाराज शिंदे गुट के कार्यकर्ताओं ने मुंबई के यूनिकॉन्टिनेंटल क्लब में जमकर तोड़फोड़ कर दी। यहाँ तक कि बीजेपी नेताओं ने भी कामरा के चेहरे पर कालिख पोतने की अपील कर डाली।
कुणाल कामरा का कहना है कि उन्होंने जो कहा, वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक ही था। कोर्ट ने भी महाराष्ट्र की सियासी उठापटक पर टिप्पणी की थी। शो में उन्होंने कहा "शिवसेना, बीजेपी से बाहर आ गई... फिर शिवसेना, शिवसेना से बाहर आ गई... एनसीपी, एनसीपी से बाहर आ गई। एक वोटर को नौ बटन दे दिए, सब कंफ्यूज हो गए। चालू एक जन (व्यक्ति) ने किया था।" इसके बाद कुणाल कामरा ने पैरोडी गीत पेश किया "ठाणे की रिक्शा, चेहरे पे दाढ़ी, आँखों में चश्मा हाय...एक झलक दिखलाए, कभी गुवाहाटी में छिप जाए...मेरी नजर से तुम देखो, गद्दार नजर वो आए..." इस गीत में गुवाहाटी का जिक्र स्पष्ट संकेत था कि यह हमला सीधे शिंदे पर है, जो 2022 में शिवसेना से बगावत कर अपने विधायकों संग गुवाहाटी के होटल में डेरा डाले हुए थे। कामरा की इस कॉमेडी पर खुद डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "स्टैंड-अप कॉमेडी करने की आज़ादी है, लेकिन वह जो चाहे बोल नहीं सकते। महाराष्ट्र की जनता तय कर चुकी है कि गद्दार कौन है। कुणाल कामरा को माफी माँगनी चाहिए। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।" यानी, सत्ता के गलियारों में ‘कॉमेडी’ अब ‘देशद्रोह’ के बराबर हो गई है? क्या अब कॉमेडियन सरकार की अनुमति लेकर मजाक करेंगे? क्या महाराष्ट्र सरकार का तानाशाही रवैया अब राजनीतिक विरोधियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि कलाकारों को भी निगलने लगा है? कांग्रेस नेता अतुल लोंढे ने सवाल उठाया, "अगर स्टैंड-अप कॉमेडी से इतनी परेशानी है, तो इसे पूरी तरह से बंद कर दीजिए। आप टिप्पणियों से इतना डरते क्यों हैं?" यह वही शिवसेना है, जो कभी विरोध की राजनीति का चेहरा हुआ करती थी। बालासाहेब ठाकरे से लेकर उद्धव ठाकरे तक, उन्होंने सरकारों की नीतियों पर सवाल उठाए। लेकिन अब शिंदे गुट की शिवसेना उसी तर्ज पर चल रही है, जिससे कभी वह लड़ती थी तानाशाही और सेंसरशिप।
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के पांच साल बाद CBI ने अपनी जांच पूरी कर ली है। जांच एजेंसी ने इस हाई-प्रोफाइल केस में किसी भी साजिश या अपराध के सबूत नहीं मिलने की बात कही है। इसके साथ ही CBI ने बॉलीवुड एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती, उनके भाई शौविक चक्रवर्ती और परिवार को पूरी तरह से क्लीन चिट दे दी है। शनिवार (22 मार्च 2025) को दाखिल फाइनल रिपोर्ट में CBI ने यह निष्कर्ष निकाला कि सुशांत की मौत आत्महत्या थी, न कि हत्या। CBI की क्लोज़र रिपोर्ट के अनुसार सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की थी, किसी ने उन्हें मजबूर नहीं किया। रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार को क्लीन चिट दी गई है। कोई आपराधिक षड्यंत्र (क्रिमिनल एंगल) या फाउल प्ले नहीं पाया गया। एम्स फॉरेंसिक टीम ने हत्या की संभावना को खारिज किया और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में जहर या गला घोंटने के कोई संकेत नहीं मिले। सोशल मीडिया चैट्स को अमेरिका भेजकर जांच की गई, लेकिन कोई छेड़छाड़ के सबूत नहीं मिले। CBI की क्लीन चिट के बाद रिया चक्रवर्ती के वकील सतीश मानशिंदे ने कहा कि इस केस में रिया और उनके परिवार को मानसिक और सामाजिक उत्पीड़न सहना पड़ा। उन्होंने कहा कि रिया को 27 दिन जेल में रहना पड़ा, जबकि उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे। वकील ने यह भी खुलासा किया कि केस के दौरान रिया और उनकी कानूनी टीम को लगातार धमकियां मिल रही थीं, लेकिन वे सच्चाई सामने लाने के लिए लड़ते रहे। CBI की क्लोजर रिपोर्ट दाखिल होने के बाद सुशांत सिंह राजपूत के परिवार के पास मुंबई कोर्ट में प्रोटेस्ट पिटीशन दाखिल करने का विकल्प बचा है। अगर परिवार को CBI की रिपोर्ट पर संदेह है, तो वे अदालत में भी अपील कर सकते हैं। 14 जून 2020 को बांद्रा स्थित अपने फ्लैट में मृत पाए गए सुशांत सिंह राजपूत की मौत शुरू में आत्महत्या मानी गई थी, लेकिन जल्द ही इस मामले ने साजिश, ड्रग एंगल और बॉलीवुड के काले सच की चर्चाओं को हवा दे दी। रिया चक्रवर्ती को 'विलेन' बना दिया गया, सोशल मीडिया पर 'जस्टिस फॉर SSR' कैंपेन चला, और कई सवाल उठाए गए। लेकिन अब, पांच साल बाद, CBI ने जांच को समाप्त करते हुए स्पष्ट कर दिया कि सुशांत की मौत आत्महत्या थी, हत्या नहीं। अब सवाल यह है कि क्या यह मामला वाकई खत्म हो गया है, या सुशांत का परिवार कानूनी लड़ाई जारी रखेगा? अदालत का अगला कदम क्या होगा? सच्चाई जो भी हो, लेकिन यह केस भारत की कानूनी, मीडिया और सामाजिक व्यवस्था पर लंबे समय तक असर छोड़ने वाला है।