12 दिनों से लगातार चल रही Iran और Israel की टकराहट अब थमती नज़र आ रही है। American President Donald Trump ने एक three-point ceasefire formula के ज़रिए इस war को रोकने की घोषणा की। लेकिन ground reality कुछ और ही कहती है। ये ceasefire सिर्फ एक ‘संघर्ष विराम’ नहीं, बल्कि एक calculated political intermission लगती है जहां diplomacy और defense strategy एक साथ operate कर रहे हैं। Trump के इस फॉर्मूले के तीन core phases थे पहले Iran 12 घंटे military operations बंद करता, फिर Israel अगले 12 घंटे ceasefire maintain करता और आखिर में 24 घंटे के बाद war को officially end किया जाता। सुनने में smart और balanced लगता है लेकिन practically, ground पर ये formula flawed और risky साबित हुआ। Iran ने 4 बजे (Tehran time) तक attack रोकने की शर्त रखी थी। लेकिन उस वक्त तक missiles उड़ रही थीं, और इज़राइल के cities में sirens बज रहे थे। यानी ceasefire होते हुए भी fire बंद नहीं हुआ। जब एक तरफ शांति की बात हो रही थी, उसी वक्त Tel Aviv में missile attacks हुए जिनमें 4 civilians की मौत confirm हुई। यहां कोई written treaty, no international monitoring, और ना ही किसी neutral mediator का presence था। सीधा-सीधा कहें तो ये ceasefire सिर्फ mic और camera के लिए था। Iran और Israel दोनों ने अपने-अपने तरीके से इसे handle किया, जिससे ये साफ हो गया कि ये सिर्फ एक mutual exhaustion pause था — ना कि कोई lasting peace initiative
इस पूरे scenario में US और Qatar ने mediator की भूमिका निभाई। लेकिन ये mediation genuine थी या सिर्फ geo-political pressure management, ये कहना मुश्किल है। Global oil market disturbance, stock market decline और UN की diplomatic pressure की वजह से ये ceasefire हुआ ना कि किसी moral commitment से। इस ceasefire ने कहीं न कहीं 2003 के India-Pakistan LoC ceasefire की याद दिला दी। जहाँ एक तरफ declared ceasefire होता है, वहीं दूसरी तरफ border skirmishes और covert operations चलते रहते हैं। Same pattern here war formally खत्म, लेकिन tension और mistrust जस का तस। leaders इस ceasefire को 'success' कह सकते हैं, लेकिन ground पर जो families बेघर हुईं, जो बच्चे PTSD झेलेंगे, और जो नागरिक मारे गए उनके लिए ये सिर्फ temporary relief है, permanent healing नहीं। जब तक war की core reason नहीं खत्म होती, तब तक ceasefire सिर्फ एक pause button है stop नहीं।
जब भारत की सीनियर टीम इंग्लैंड की धरती पर अपना दमखम दिखा रही है, वहीं एक और भारतीय टीम अंडर-19 वहां एक नए मिशन पर उतरी है। इस टीम में एक नाम है जो इन दिनों चयनकर्ताओं की निगाह में तेजी से उभर रहा है—वैभव सूर्यवंशी।
वैभव सूर्यवंशी इंग्लैंड दौरे पर भारत की अंडर-19 टीम के साथ पहुंच चुके हैं, जहां 27 जून से 5 मैचों की वनडे सीरीज की शुरुआत होने जा रही है। पहला मुकाबला इंग्लैंड के होव मैदान पर खेला जाएगा। यह वही मैदान है जहां भारत की किसी भी क्रिकेट टीम को अब तक जीत नसीब नहीं हुई है। इस मैदान का नाम भारत के क्रिकेट इतिहास में कुछ खास नहीं रहा है। 1999 के वनडे वर्ल्ड कप में भारत ने मोहम्मद अजहरुद्दीन की कप्तानी में यहां दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मैच खेला था। सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गजों से सजी उस टीम को 4 विकेट से हार का सामना करना पड़ा था। अब 26 साल बाद, भारत के युवा बल्लेबाज़ वैभव सूर्यवंशी उसी मैदान पर इतिहास को बदलने की चुनौती स्वीकार करने जा रहे हैं। अगर भारत इस बार जीत दर्ज करता है, तो यह होव ग्राउंड पर भारत की किसी भी टीम की पहली जीत होगी।
वैभव सूर्यवंशी के अब तक के आंकड़े भले ही बड़े न लगें, लेकिन उनमें संभावनाओं की कमी नहीं है। अब तक खेले गए 3 अंडर-19 वनडे मुकाबलों में उन्होंने 77 रन बनाए हैं, जिसमें 1 अर्धशतक, 5 छक्के और 9 चौके शामिल हैं। यह उनका चौथा अंडर-19 वनडे होगा, और पहली बार वे इंग्लैंड की परिस्थितियों में खुद को साबित करने उतरेंगे। मौजूदा दौरे पर उनकी मानसिकता साफ है—रिकॉर्ड सुधारना और टीम को वो जीत दिलाना जो अब तक कोई नहीं दिला सका। वनडे सीरीज के बाद भारत की अंडर-19 टीम इंग्लैंड में 2 रेड बॉल मैच भी खेलेगी। यहीं से तय होगा कि कौन खिलाड़ी भविष्य की टेस्ट टीम का हिस्सा बनने की काबिलियत रखता है। वैभव के लिए यह दौरा सिर्फ सफेद गेंद के प्रदर्शन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनके समग्र क्रिकेटिंग स्किल्स का लिटमस टेस्ट भी होगा। अब जब एक युवा खिलाड़ी, जिसे घरेलू सर्किट में निरंतर उभरते टैलेंट के रूप में देखा जा रहा है, उस इतिहास को बदलने के लिए मैदान में उतर रहा है—तो उम्मीदें भी बढ़ना लाजमी है।