उत्तर प्रदेश आतंक रोधी दस्ते (एटीएस) की नोएडा यूनिट और गाजियाबाद पुलिस की संयुक्त टीम ने देर रात पंजाब के अमृतसर जिले के टिम्मोवाल गांव से प्रतिबंधित आतंकी संगठन खालिस्तान कमांडो फोर्स (KCF) के सक्रिय सदस्य मंगत सिंह उर्फ “मंगा” को गिरफ्तार कर लिया। मंगा पर गाजियाबाद पुलिस ने 25,000 रुपये का इनाम घोषित किया हुआ था, और वह पिछले 30 वर्षों से फरार चल रहा था। दिसंबर 2024 में गाजियाबाद कोर्ट ने उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था, लेकिन मंगा हर बार पुलिस की पकड़ से बच निकलने में कामयाब रहा। मंगा का ये सफर 1993 से शुरू हुआ, जब साहिबाबाद थाने में उस पर हत्या की कोशिश (धारा 307 आईपीसी), टाडा एक्ट और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज किए गए। उस समय पुलिस ने उसके कब्जे से असलहा बरामद किया था। 1995 में जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद वह पंजाब से दिल्ली-एनसीआर आ गया और वहीं छिपकर खालिस्तान संगठनों के नेटवर्क में सक्रिय हो गया। गाजियाबाद के विवेकानगर सहित कई इलाकों में लूट-खसोट और वसूली के भी मामले उस पर दर्ज थे, पर पुलिस के लगातार प्रयासों के बावजूद मंगा लापता ही रहा। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, नोएडा एटीएस और गाजियाबाद पुलिस ने पिछले डेढ़ साल से तकनीकी सर्विलांस, मानव नेटवर्क हैंडलिंग और कोरइंटीग्रेशन ऑपरेशन्स के जरिए लगातार छानबीन की। स्थानीय स्तर पर जमा किए गए खुफिया इनपुट ने टीम को अमृतसर में जाकर संदिग्ध गतिविधियों से जोड़ दिया। अंतिम चरण में पुलिस ने अमृतसर के ग्रामीण इलाके में सघन घेराबंदी कर सुबह-सुबह दबिश दी, जिस दौरान मंगा को साक्ष्य के साथ दबोचा गया। गिरफ्तारी के बाद उसके कब्जे से मोबाइल सीपीयू, संदिग्ध साहित्य और असलहा बरामद हुआ है, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि वह अब भी सक्रिय रूप से आतंकी साजिशों में शामिल था। अब मंगा से यूपी एटीएस के फौजदारी जांच केंद्र में गहन पूछताछ की जाएगी। प्राथमिक जांच में उभरने वाले नए सुराग राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपे जाएंगे, जहां आतंकी फंडिंग, संवाद नेटवर्क और उसके अन्य साथियों के बारे में विस्तृत खुलासा हुआ करेगा। तीन दशकों की फरारी के बाद मंगत सिंह की गिरफ़्तारी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि चाहे कोई कितना भी लंबा वक्त क्यों न छिपकर बिताए, कानून की पकड़ से भाग नहीं सकता। आम जनता ने इस कार्रवाई को क़ानून की कार्रवाई की विजय बताया है, जबकि सुरक्षा बलों ने इस सफलता को धैर्य, समर्पण और तकनीकी योग्यता का परिणाम करार दिया है। अब देश की निगाहें मंगा से मिलने वाली जानकारी पर टिकी हैं, जो खालिस्तान जैसे संगठनों की साजिशों के पर्दे खोलेगी और भविष्य में होने वाले आतंकवादी हमलों को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाएगी।
जब साल में दो बार सूरज बेंगलुरु के आसमान में सीधे सिर के ऊपर होता है, तब शहर में “ज़ीरो शैडो डे” नामक अद्भुत प्राकृतिक चमत्कार देखने को मिलता है। इस दौरान ट्रॉपिक ऑफ कैंसर और ट्रॉपिक ऑफ कैप्रिकॉर्न के बीच स्थित किसी भी बिंदु पर खड़ी कोई भी चीज—इंसान हो या सड़क का पोल—अपनी परछाईं नहीं डालती, क्योंकि पृथ्वी की टिल्ट और ऑर्बिट के कारण सूर्य की किरणें बिल्कुल वर्टीकल होती हैं। बेंगलुरु, जो अपने आईटी हब और विज्ञान अनुसंधान के लिए मशहूर है, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, लोकल स्कूल और साइंस मीट‑अप्स के ज़रिए इस दिन को एक मॉडर्न साइंस फेस्टिवल की तरह मनाता है। यहाँ इन्फॉर्मल टॉक्स में सूर्य की मूवमेंट और ग्लोबल लैटीट्यूड की बातें होती हैं, प्रैक्टिकल शैडो सेंसर लाइव डेमो में हाई‑प्रिसिजन क्लॉक्स और मीज़र यंत्रों से परछाईं नापी जाती है, और इंटरएक्टिव वर्कशॉप्स में स्टूडेंट्स DIY मॉडल बना‑बना कर सवाल‑जवाब करते हैं। इस आयोजन से न सिर्फ छात्रों को असाइनमेंट से हटकर असली विज्ञान का अनुभव मिलता है, बल्कि शोधकर्ता, शिक्षक और आम नागरिक एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर जुड़ते हैं, जहाँ लोकल इनोवेशन और स्टार्टअप गैजेट्स भी काफ़ी हाइलाइट होते हैं। चेन्नई, हैदराबाद, विशाखापट्टनम, नागपुर और अहमदाबाद जैसे शहरों में भी यह फेनोमेनन होता है, लेकिन बेंगलुरु की हाई‑टेक बैकग्राउंड और सोशल उत्साह इसे सबसे स्टाइलिश वैज्ञानिक सेलिब्रेशन बनाते हैं।