कभी आपने सोचा है कि एक बैनर, एक लाइन, “I Love Mohammad” पूरे देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन सकता है? जी हां, कानपुर से शुरू हुआ मामला आज हैदराबाद, नागपुर, बरेली, काशीपुर, गोधरा और ना जाने कितने शहरों तक फैल चुका है। सड़क से लेकर सोशल मीडिया और अदालत से लेकर संसद तक हर जगह चर्चा है। आइए एक-एक करके समझते हैं पूरा मामला।
कानपुर में बारावफात/मिलाद-उल-नबी का जुलूस निकला। जुलूस में भीड़ थी, जोश था, और अचानक सड़कों पर नज़र आए पोस्टर “I Love Mohammad” लिखे हुए। यह नारा मोहब्बत जताने वाला था या नया ट्रेंड? ये तो पोस्टर बनाने वाले ही जानते होंगे, लेकिन पुलिस को यह कानून-व्यवस्था का मुद्दा लगा।
बस फिर क्या था कानपुर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया। FIR में कुछ नामजद लोग थे और कई अज्ञात। पुलिस का कहना था कि बिना अनुमति ऐसे पोस्टर लगाना कानून का उल्लंघन है। उधर समुदाय के लोग भड़क गए कहने लगे, मोहब्बत जताने पर भी FIR होगी?
कानपुर की FIR की खबर जैसे ही सोशल मीडिया पर गई, #ILoveMohammad ट्रेंड करने लगा। ट्विटर से लेकर इंस्टाग्राम और फेसबुक तक हर जगह लोग मोहम्मद साहब से मोहब्बत जताते वीडियो, फोटो और पोस्ट डालने लगे।
हैदराबाद में जुलूस निकाले गए, लोग बैनर लेकर सड़क पर उतरे।
महाराष्ट्र (लातूर, ठाणे) में “I Love Mohammad” लिखे पोस्टरों के साथ समर्थन मार्च हुए। बरेली और भदोही: बड़े स्तर पर भीड़ जमा हुई। उत्तराखंड (काशीपुर): मामला बिगड़ा। जुलूस के दौरान पुलिस से भिड़ंत हुई, वर्दी फाड़ दी गई। नतीजा गिरफ्तारियाँ हुईं और बुलडोज़र कार्रवाई भी। गुजरात (गोधरा): भीड़ उतरी और प्रशासन ने सख्ती दिखाई। जैसे-जैसे मामले बढ़े, वैसे-वैसे पुलिस ने शिकंजा कसना शुरू किया। कानपुर में शुरुआती FIR दर्ज। काशीपुर: 17 गिरफ्तारियाँ, 88 मामले दर्ज हुए है । बरेली-भदोही-शाहजहांपुर: अलग-अलग जगहों पर अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज। अन्य शहरों में: धारा 144 लगाई गई, जुलूसों पर रोक लगी। पुलिस का कहना है कि ये सब कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। अब जरा सोचिए इतना बड़ा मामला हो और राजनीति चुप बैठ जाए? ऐसा हो ही नहीं सकता। भाजपा और उससे जुड़े कई नेता कहने लगे कि ये नया ट्रेंड सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाला है। दूसरी तरफ़ विपक्ष और मुस्लिम समुदाय का कहना है कि यह केवल धर्म से मोहब्बत जताने का तरीका है, इसमें अपराध कहां है? मीडिया का हाल देखिए कुछ चैनल इसे “धार्मिक प्रेम” बता रहे हैं, तो कुछ “लॉ एंड ऑर्डर की चुनौती”। और सोशल मीडिया? वहाँ तो हर कोई वकील, जज और ज्यूरी बन चुका है।#ILoveMohammad हैशटैग लगातार टॉप ट्रेंड पर हैं।
अब सवाल ये है क्या “I Love Mohammad” कहना अपराध है? क्या यह धार्मिक भावना का इज़हार है या कानून-व्यवस्था से खिलवाड़?
सच्चाई शायद बीच में कहीं है। मोहब्बत जताने में अपराध नहीं, लेकिन भीड़ का उग्र होना और टकराव पैदा करना कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है। यही वजह है कि ये मामला आज पूरे देश का मुद्दा बन चुका है। ऐसे ही लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।
सीतापुर जेल के सन्नाटे में जब बड़े-बड़े फाटक खुले और बाहर निकले समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आज़म ख़ान, तो जैसे यूपी की सियासत में हलचल दौड़ गई। 23 महीने की सलाखों के पीछे की ज़िंदगी, 111 मुक़दमों का बोझ और अदालतों की लंबी-लंबी तारीख़ें ये सब मिलकर आज़म की कहानी को किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से भी ज़्यादा नाटकीय बना देते हैं। कभी रामपुर की सियासत के ‘सुल्तान’, कभी मुलायम सिंह यादव के भरोसेमंद सिपहसालार, और आज? एक ऐसे नेता, जिनके खिलाफ़ फर्जी जन्म प्रमाण पत्र से लेकर ज़मीन पर कब्ज़ा, शत्रु संपत्ति और सरकारी दस्तावेज़ों में हेराफेरी तक के आरोप दर्ज हुए। बेटे अब्दुल्ला के जन्मतिथि विवाद से शुरू हुआ सिलसिला इतना आगे बढ़ा कि 2020 में गिरफ्तारी हुई, पहले रामपुर जेल और फिर सीतापुर का रास्ता दिखाया गया। अदालतों में कभी जमानत मिली, तो कभी नए केस दर्ज होकर रिहाई अटकाई गई। जुर्माने की रकम भी बीच-बीच में रुकावट बनी। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट से हाल में मिली जमानत ने आखिरकार सलाखों का बोझ हटाया और आज़म को आज़ादी दिलाई।
लेकिन असली सवाल यही है क्या यह आज़म का ‘सियासी पुनर्जन्म’ है या फिर सिर्फ़ अदालतों के अगले नोटिस तक की राहत? समाजवादी पार्टी के समर्थकों में इस वक्त जश्न है, नेताओं के बयानों में उम्मीदें हैं, लेकिन विरोधियों की नज़र अभी भी उनके मुकदमों की लंबी कतार पर टिकी है। 111 केसों का बोझ, कई मामलों की सुनवाई अब भी बाकी, और नई धाराओं का खतरा अभी टला नहीं है। दूसरी ओर, सियासी गलियारों में कानाफूसी है क्या आज़म फिर से अखिलेश यादव के साथ खड़े होंगे, या बसपा जैसी पार्टी की ओर रुख करेंगे?
यूपी की राजनीति में आज़म ख़ान की रिहाई सिर्फ़ एक नेता का जेल से बाहर आना नहीं है, बल्कि आने वाले चुनावी मौसम का तापमान मापने वाली घटना है। उनकी रिहाई से समाजवादी खेमे में जोश तो भर गया है, लेकिन जनता और विरोधियों की नज़रें अब इस सवाल पर हैं क्या आज़म दोबारा मैदान में लौटेंगे, या उनकी सियासी गाथा अब कोर्ट-कचहरी की तारीख़ों में ही उलझकर रह जाएगी? ऐसे ही लेटेस्ट खबरों के लिए सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।