मध्य-पूर्व में छिड़ा युद्ध अब सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं रहा। 13 जून को शुरू हुआ ईरान और इज़राइल का टकराव अब वैश्विक मंच पर बदल चुका है और इसकी आग में अमेरिका भी कूद चुका है। रविवार रात को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐतिहासिक और खतरनाक निर्णय लेते हुए ईरान के फोर्डो, नतांज और इस्फहान स्थित परमाणु ठिकानों पर सैन्य हमले के आदेश दिए। यह कार्रवाई न केवल सैन्य रणनीति बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और वैश्विक स्थिरता के लिए एक निर्णायक मोड़ बन गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हमले के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा “ईरान पिछले 40 वर्षों से अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ घृणा, आतंक और अराजकता फैला रहा है। इस घृणा की कीमत हजारों अमेरिकियों और इज़रायली नागरिकों ने चुकाई है। लेकिन अब ये चुप्पी टूट चुकी है। अमेरिका अब मूकदर्शक नहीं रहेगा।” ट्रंप ने कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करना अब अनिवार्य था। उनके शब्दों में “हमने ईरान की उन सुविधाओं पर हमला किया है जहाँ वो गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित कर रहा था। फोर्डो अब अस्तित्व में नहीं है। हम शांति चाहते हैं, लेकिन कमजोरी से नहीं, शक्ति से।” राष्ट्रपति ने संकेत दिया कि यदि ईरान ने अब भी हमले बंद नहीं किए और समझौते की राह नहीं अपनाई, तो भविष्य के हमले कहीं अधिक "विनाशकारी और निर्णायक" होंगे।
ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन (AEOI) ने इस हमले की पुष्टि करते हुए अमेरिका पर संप्रभुता और अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन का आरोप लगाया है। ईरानी विदेश मंत्रालय ने कहा “यह हमला IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) के सहयोग से किया गया। इसका मतलब है कि निरीक्षण की आड़ में हमारे खिलाफ जासूसी हुई। यह विश्वासघात है।” IAEA ने फिलहाल इस पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है। लेकिन यदि ईरान के आरोपों में सच्चाई है, तो यह एजेंसी की तटस्थता और वैश्विक परमाणु संतुलन की पूरी प्रक्रिया को संदेह के घेरे में डाल देगा। इज़राइल ने अमेरिका का समर्थन किया: "ताकत से ही शांति आती है" इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका की कार्रवाई को "आवश्यक और साहसिक" बताया। उन्होंने कहा “मैं और राष्ट्रपति ट्रंप मानते हैं कि शांति शक्ति से आती है। कमजोरी, इस क्षेत्र में विनाश को बुलावा देती है। ईरान का परमाणु हथियार कार्यक्रम अब समाप्त होना ही चाहिए।” इज़राइली रक्षा बलों ने भी कहा कि वे अमेरिका के साथ पूर्ण समन्वय में हैं, और यदि ईरान कोई प्रतिउत्तर करता है, तो उसे "ऐसे परिणामों का सामना करना होगा जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की होगी।"
अमेरिकी हमले के कुछ ही घंटों बाद ईरान ने भी प्रतिउत्तर देना शुरू कर दिया। ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने इज़राइल के प्रमुख शहर तेल अवीव और उसके आस-पास के इलाकों में मिसाइल और ड्रोन हमले किए। रिपोर्ट्स के अनुसार, एक बड़े अस्पताल को सीधे निशाना बनाया गया, जिसमें दर्जनों नागरिक घायल हुए हैं। ईरान की संसद के स्पीकर ने इस हमले को “पहला जवाब” बताया और चेताया कि “तेल अवीव, हाइफा और नेगेव अब हमारे रडार पर हैं। अब फैसले युद्ध के मैदान पर होंगे, कूटनीति की मेज़ पर नहीं।” हमलों के ठीक बाद, ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर अपनी रणनीति को राजनीतिक रंग देते हुए पोस्ट किया “ईरान को फिर से महान बनाना अब वैश्विक लक्ष्य होना चाहिए। अगर ईरानी शासन अपने नागरिकों को उनकी पूरी क्षमता तक पहुँचाने में विफल रहता है, तो सत्ता परिवर्तन एक विकल्प हो सकता है। MIGA!” यह नारा न केवल ट्रंप की पूर्व ‘Make America Great Again’ रणनीति की प्रतिध्वनि है, बल्कि ईरान में शासन परिवर्तन की खुली धमकी भी मानी जा रही है जो अमेरिका की पारंपरिक विदेश नीति से एक खतरनाक विचलन है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब दो खेमों में बंट चुका है। रूस, चीन, तुर्की और ईरान समर्थित गुट इस हमले को "एकतरफा आक्रामकता" करार दे रहे हैं। वहीं अमेरिका, इज़राइल, फ्रांस और ब्रिटेन इसे "सुरक्षा की आवश्यकता" कह रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में रूस और चीन ने आपात बैठक की मांग की है और अमेरिका के खिलाफ प्रस्ताव लाने की योजना बना रहे हैं। भारत ने अब तक स्थिति पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन दक्षिण एशिया में तनाव की आशंका गहराने लगी है। एक बड़ा सवाल: क्या यह तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत है? जैसे-जैसे परमाणु ठिकानों पर बम गिरते हैं और राजधानी शहरों में धमाके होते हैं, दुनिया अब सवाल पूछ रही है क्या यह विश्व युद्ध की ओर पहला कदम है? अगले कुछ दिन निर्णायक होंगे। या तो यह आग बुझाई जाएगी, या फिर यह पूरा मध्य-पूर्व और संभवतः पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लेगी।
मध्य पूर्व में बढ़ते सैन्य तनाव का सीधा प्रभाव अब ग्लोबल इक्विटी मार्केट्स पर स्पष्ट दिखने लगा है। सोमवार को अमेरिका द्वारा ईरान के तीन प्रमुख न्यूक्लियर साइट्स Fordow, Natanz और Isfahan पर एयरस्ट्राइक्स के बाद भारतीय शेयर बाजार में तेज़ गिरावट दर्ज की गई। BSE Sensex दिनभर के उतार-चढ़ाव के बाद 511 अंक टूटकर 81,896.79 पर बंद हुआ, जबकि NSE Nifty 140 अंकों की गिरावट के साथ 24,971.90 पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान सेंसेक्स 931 अंक तक गिर गया था जो दर्शाता है कि investor sentiment पर geopolitical risks का असर कितना गहरा है। IT, FMCG और ऑटो सेक्टर सबसे अधिक दबाव में दिखे। Infosys, TCS, Mahindra & Mahindra और Hindustan Unilever जैसे blue-chip stocks में notable correction देखने को मिला। वहीं Trent, BEL, Bajaj Finance और Kotak Mahindra जैसे कुछ शेयरों ने बाजार को कुछ हद तक संभालने की कोशिश की। एशियाई बाजारों में South Korea का KOSPI और Japan का Nikkei 225 गिरावट के साथ बंद हुए। हालांकि Shanghai Composite और Hang Seng में हल्की बढ़त दर्ज की गई। मध्य सत्र में यूरोपीय बाजार भी red territory में ट्रेड करते नज़र आए। अमेरिकी बाजार भी शुक्रवार को दबाव में रहे थे। बाजार की गिरावट में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की भूमिका अहम रही। Brent crude 0.49% उछलकर $77.39 प्रति बैरल तक पहुंच गया। इसने global inflation expectations और Indian import bill दोनों को लेकर चिंताओं को और गहरा कर दिया है। गुरुवार और शुक्रवार को हुई FII activity ने थोड़ी राहत जरूर दी। ₹7,940 करोड़ की खरीदारी से यह संकेत मिला कि विदेशी निवेशक अभी भी भारत की लंबी अवधि की ग्रोथ स्टोरी पर भरोसा बनाए हुए हैं। निवेशकों के लिए आने वाले हफ्ते volatile रहने वाले हैं ।