उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद देश की राजनीति में अचानक हलचल मच गई है। उन्होंने 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से रिजाइन कर दिया। ये फैसला कई मायनों में चौंकाने वाला था, क्योंकि उपराष्ट्रपति का पद सिर्फ एक फॉर्मेलिटी नहीं बल्कि राज्यसभा की कमान संभालने वाला अहम पद होता है। फिलहाल, नियम के तहत राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन हरिवंश नारायण सिंह ने कार्यवाहक सभापति के तौर पर जिम्मेदारी संभाल ली है। लेकिन ये जिम्मेदारी तब तक की है जब तक नया उपराष्ट्रपति चुनकर नहीं आ जाता।
अब नजरें टिकी हैं उस चुनावी प्रक्रिया पर, जिसमें संसद के दोनों सदनों के सांसद वोटिंग करेंगे और देश को नया उपराष्ट्रपति मिलेगा। चुनाव आयोग को 60 दिनों के अंदर यानी 19 सितंबर से पहले चुनाव करवाना होगा। इस प्रोसेस में कुल 782 सांसद वोट डालने के लिए एलिजिबल हैं, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों शामिल हैं (कुछ सीटें अभी खाली हैं)। किसी भी कैंडिडेट को जीत हासिल करने के लिए कम से कम 392 वोटों की ज़रूरत होगी।
उपराष्ट्रपति का ये चुनाव बिल्कुल आम चुनाव जैसा नहीं होता। इसमें इस्तेमाल होता है प्रो-पोर्शनल रिप्रेजेंटेशन सिस्टम (Proportional Representation System) और सिंगल ट्रांसफरबल वोट (STV) सिस्टम। यानी सांसद किसी एक उम्मीदवार को नहीं, बल्कि सभी को प्रायोरिटी के आधार पर रैंक करते हैं 1, 2, 3...। अगर कोई कैंडिडेट पहले राउंड में जरूरी कोटा नहीं पूरा करता, तो सबसे कम वरीयता वाले को हटाकर उनके वोट सेकंड प्रायोरिटी काउंट के मुताबिक ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। ये प्रोसेस तब तक चलता है जब तक किसी एक कैंडिडेट को जीत के लिए जरूरी आंकड़ा न मिल जाए।
अब बात राजनीति की करें तो ये मुकाबला सिर्फ एक पद का नहीं, बल्कि सत्ता बनाम विपक्ष का भी इम्तिहान है। संसद में फिलहाल NDA गठबंधन के पास अच्छा खासा नंबर है, इसलिए अगर विपक्ष यानी INDIA ब्लॉक समय रहते एकजुट नहीं होता, तो NDA को अपने कैंडिडेट को जिताने में ज़्यादा परेशानी नहीं होगी। लेकिन अगर विपक्ष सभी छोटे दलों और इंडिपेंडेंट्स को साथ लाने में कामयाब रहा, तो ये मुकाबला काफी दिलचस्प हो सकता है।
ये भी ध्यान देने वाली बात है कि उपराष्ट्रपति की भूमिका सिर्फ symbolic नहीं होती। वो राज्यसभा की प्रसीडिंग्स को मॉडरेट करते हैं, और कई बार जब सदन में विवाद या टकराव होता है, तो उन्हें बैलेंस बनाने की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। इसलिए ये देखना जरूरी होगा कि नया चेहरा संसद के माहौल को किस तरह प्रभावित करता है खासकर तब, जब कई बड़े बिल्स और पॉलिसीज चर्चा में आने वाली हैं।
अब इंतजार है चुनाव आयोग की ओर से नोटिफिकेशन जारी होने का। इसके बाद नामांकन, वोटिंग और फिर रिजल्ट की प्रोसेस पूरी होगी। नया उपराष्ट्रपति शपथ लेकर अपना कार्यकाल शुरू करेगा। लेकिन ये चुनाव सिर्फ एक नाम तय करने की प्रक्रिया नहीं है ये एक सियासी मैसेज भी है। क्या विपक्ष अब भी सरकार को चुनौती देने की स्थिति में है? या फिर संसद की दोनों कमानें अब एक ही खेमे के हाथ में जाती दिखेंगी?