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Breaking News 23 December 2024

1.) चीन की जासूसी एजेंसी का दुनियाभर में जाल

 

अपनी बढ़ती ताकत के साथ चीन दुनिया में एक सैन्य शक्ति के रूप में उभरा है। अब चीन की इसी बढ़ती ताकत के साथ उसकी खुफिया गतिविधियां भी दुनिया में बढ़ी है। चीन की दूसरे देशों के अंदर बढ़ती गतिविधियों को लेकर पूरी दुनिया में तनाव की स्थिति बनती नजर आ रही है। आपको बता दें, चीन के लिए खुफिया गतिविधियां सिर्फ जासूसी या निगरानी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि चीन की एक दूसरी ताकत दुनियाभर में उसको लेकर हो रही चर्चाओं और उसके प्रोपेगैंडा के प्रबंधन, नरेटिव कण्ट्रोल और मैनेजमेंट का काम करती है। चीन की इस ताकत का नाम है यूनाइटेड फ्रंट वर्किंग डिपार्टमेंट (UFWD) और उसकी इसी ताकत को आज से करीब आठ दशक पहले इसके संस्थापक माओ जेदॉन्ग ने चीन का जादुई हथियार तक करार दिया था। अब चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग दूसरे देशों में चीनी प्रभाव और गुडविल को भढ़ाने के लिए इस जादुई हथियार का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने में जुटे हैं। आपको बता दें, यूनाइटेड फ्रंट का एक बड़ा काम विदेशी मीडिया में चीन के बारे में परिप्रेक्ष्य को आकार देने का भी है। यह संस्थान अपने संपर्कों के जरिए विदेश में चीनी सरकार के आलोचकों को निशाना बनाता है और चीन के बड़े और प्रभावी चेहरों को अपने प्रोपेगैंडा में भी शामिल करता है। इतना ही नहीं यह संस्थान दुनियाभर में चीन के बारे में होने वाली चर्चाओं को प्रभावित करने और संवेदनशील मुद्दों पर नजरिया तय कराने का भी काम करता है। ताइवान के लिए चीन के अभियानों से लेकर तिब्बत और शिनजियांग में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर भी यह एजेंसी दुनिया में चर्चाओं को प्रभावित करने में जुटी है। चीन के यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट को लेकर पश्चिमी देशों में हंगामा मचा हुआ है, इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हाल ही में ब्रिटिश राजघराने के सदस्य प्रिंस एंड्रयू से एक कथित चीनी जासूस के नजदीकी रिश्तों को लेकर खुलासा हुआ है।

क्या है यूनाइटेड फ्रंट वर्किंग डिपार्टमेंट?

चीन के इस विभाग को यूनाइटेड फ्रंट के नाम से भी जाना जाता है और यह कम्युनिस्ट गठबंधन का एक इंक्लूसिव स्वरूप रहा है। बता दें, चीन में दशकों तक चले गृह युद्ध में कम्युनिस्ट पार्टी की जीत के पीछे इस यूनाइटेड फ्रंट की अहम भूमिका रही थी। इसीलिए कम्युनिस्ट देश कहे जाने वाले चीन के सर्वोच्च नेता माओ जेदॉन्ग ने इसे एक जादुई हथियार तक करार दिया था। साल 1949 में गृह युद्ध खत्म होने के साथ जब कम्युनिस्ट पार्टी का शासन शुरू हुआ तब यूनाइटेड फ्रंट की गतिविधियां कई क्षेत्रों में बंट गईं। हालांकि, चीन में शी जिनपिंग के सत्ता में आते ही पिछले एक दशक में यूनाइटेड फ्रंट फिर से एक नए और शसक्त रूप में उभरा है। विशेषज्ञों की मानें तो शी जिनपिंग ने यूनाइटेड फ्रंट को उसी तरह फिर तैयार करने का काम किया है, जिस तरह कभी वह माओ के समय में काम करती थी। लिहाजा यूनाइटेड फ्रंट के जरिए चीनी राष्ट्रपति सभी सामाजिक ताकतों को चीन के हित के लिए जोड़ने के काम में लगे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि चीन के बाकी खुफिया तंत्र से उलट UFWD सही मायनों में उतनी खुफिया भी नहीं है जितना इसे दुनियाभर में प्रचारित किया जाता है। हालांकि, इसकी खुद की बकायदा एक वेबसाइट तक है, जिस पर इसकी गतिविधियों को भी लगातार अपडेट किया जाता है। इसके काम का दायरा और इसकी पहुंच के बारे में काफी बातें पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, UFWD की ज्यादातर गतिविधियां घरेलू स्तर पर हैं। हालांकि, इसकी कुछ गतिविधियां विदेशी स्तर पर चीनी लोगों के साथ संपर्क रखना और उन्हें समय समय पर काम के लिए इस्तेमाल करना भी है।

 

2.) ICC के फैसले से पकिस्तान में क्यों फैला हुआ है मातम? 

 

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानि ICC के कार्यकारी बोर्ड ने बीते दिन गुरुवार को पुष्टि की है कि साल 2027 तक ICC इवेंट्स में भारत और पाकिस्तान के बीच खले जाने वाले सभी मैच किसी न्यूट्रल वेन्यू पर खेले जाएंगे, जिसमें अगले साल होने वाली चैंपियंस ट्रॉफी 2025 भी शामिल है। अब ICC के इस फैसले के बाद मानो पकिस्तान में भूचाल सा आ गया है, क्यूंकि अगले साल खेले जाने वाली चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी पकिस्तान कर रहा है। भारत ने खराब रिश्तों और पकिस्तान में बढ़ती राजनीतिक हिंसा और आतंकी घटनाओ के कारण अपने खिलाड़ियों को पकिस्तान भेजने से मना कर दिया था। भारत का कहना था ICC चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी पकिस्तान के साथ किसी और देश में करे या भारत के मैचों को किसी न्यूट्रल देश में आयोजित किया जाए, लेकिन भारत के इस प्रस्ताव का पकिस्तान विरोध कर रहा था और ICC से कह रहा था की चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी पकिस्तान अकेले ही करेगा। अब ICC के हाथों मुँह की खाने के बाद पाकिस्तान के पूर्व विकेटकीपर बल्लेबाज राशिद लतीफ ने कहा है कि भारत की जीत और पाकिस्तान की हार की कहानी से ध्यान हट जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि दोनों देशों का अपना घरेलू खेल न्यूट्रल स्थान पर खेलना भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए आर्थिक रूप से हानिकारक है, क्यूंकि इसके आयोजन से तीसरे देश की कमाई होगी।

चैंपियंस ट्रॉफी पर पकिस्तान की अपने ही देश में किरकिरी

अगले साल खेले जाने वाली चैंपियंस ट्रॉफी 2025 के सभी मैच भारत इसकी मेजबानी करने वाले देश पकिस्तान में न खेलकर किसी न्यूट्रल वेन्यू पर खेलेगा और अब ICC के फैसले को लेकर पकिस्तान में मातम फैला हुआ है और पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड की अपने ही देश में किरकिरी हो रही है। पकिस्तान के लोगों का कहना है कि ICC के नियमों के अनुसार, यह समझौता साल 2017 के चैंपियंस ट्रॉफी के बाद किया जाना चाहिए था क्योंकि पाकिस्तान ने साल 2016 में भारत का दौरा किया था। साल 2023 में भी पाकिस्तान ने भारत का दौरा किया और वनडे विश्व कप में भी खेला और अब हम चाहते हैं कि पाकिस्तान और भारत दोनों एक-दूसरे के देशों का दौरा करें और खेलें। साल 2023 का एशिया कप बाहर आयोजित किया गया था और दोनों देश एक-दूसरे के साथ खेलने से बच रहे हैं। पाकिस्तान पहले ही दो बार भारत का दौरा कर चुका है, इसलिए पाकिस्तान के लोगों का मानना है की इंडियन टीम को भी क्रिकेट खेलने पकिस्तान आना चाहिए। बता दें, तनावपूर्ण राजनीतिक संबंधों के कारण, भारत और पाकिस्तान केवल विश्व कप और एशिया कप जैसे अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में ही आमने-सामने होते हैं. दोनों के बीच आखिरी सीरीज 2012-13 में आयोजित की गई थी जब पाकिस्तान ने पांच मैचों की टेस्ट सीरीज के लिए भारत का दौरा किया था।