2 दिन के साप्ताहिक बंद के बाद आज भारतीय शेयर मार्केट ने खुलते ही लंबी उछाल के साथ शुरुआत की है। सेंसेक्स ने 268 अंक की लम्बी छलांग के साथ दिन की सुरुवात की है तो वहीं बैंक निफ्टी ने 128 अंक, निफ्टी ने 56 अंक की बढ़त के साथ शुरुआत की। आज जिन शेयर्स में अच्छी शुरुवात और तेजी देखी गई उनमें मुख्यता; एचडीएफसी ने की 3 प्रतिशत का इजाफा, टेक महिंद्रा ने मारा 2 प्रतिशत का उछाल ,बजाज ऑटो 252 अंक की छलांग, आइशर मोटर्स ने 63 अंक, वही एशियन पेंट ने 30 अंक, विप्रो ने 9 अंक, टाटा पावर 8 अंक, TVS मोटर कंपनी 11अंक, बजाज होल्डिंग ने 59 अंक की बढ़त के साथ की अच्छी शुरुआत। इसी बीच E-2-E नेटवर्क कंपनी के डायरेक्टर ने एक बोर्ड मीटिंग बुलाई जिसमें कंपनी के निवेशकों को डिविडेंट देने पर चर्चा हुई।
कारोबार के शुरुआती दौर में ही कई शेयर्स में हुई गिरावट, इसमें टाटा कंज्यूमर के निवेशकों को लगा झटका, इसके शेयर में बाजार खुलते ही 9.30 प्रतिशत यानी 103 अंक की गिरावट देखने को मिला, वहीं कोटक महिंद्रा बैंक में हुई 6.67 प्रतिशत की गिरावट, भारत पेट्रोलियम में 3 प्रतिशत की गिरावट, इंडिस्लैंड बैंक में 2.77 प्रतिशत की गिरावट, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन में 2 प्रतिशत की गिरावट और ब्रिटानिया इंडस्ट्री में 1.55 प्रतिशत की गिरावट देखा गया। हालाकि, सोमवार को मार्केट बंद होते-होते कई सारे स्टॉक्स थोड़े बहुत धाराशाही हो गए जिनमें बजाज फाइनेंस में 118 अंक की बड़ी गिरावट हुई, वही अदानी एंटरप्राइज में 64 अंक की गिरावट हुई, इसी तरह कोटक महिंद्रा बैंक में 81 अंक की घटोत्री हुई। कुल मिला जुला कर आज शेयर बाजार ठीक-ठाक ही रहा ।
HDFC बैंक के बोर्ड ने अपनी सहायक कंपनी HDB फाइनेंशियल सर्विसेज के लिए 12,500 करोड़ रुपये के IPO को मंजूरी दे दी है, जो कंपनी द्वारा सार्वजनिक किये जाने की योजना का हिस्सा है। बता दें, इस प्रस्ताव के बारे में बीते महीने जुलाई और सितंबर की घोषणाओं के बाद शनिवार, 19 अक्टूबर शाम को आयोजित बोर्ड मीटिंग के दौरान यह निर्णय लिया गया। IPO में बैंक द्वारा फ्रेश इश्यू और ऑफर फॉर सेल (OFS) दोनों शामिल होंगे। OFS में 10 रुपये के अंकित मूल्य वाले शेयर भी शामिल होंगे, जो कुल मिलाकर 10,000 करोड़ रुपये तक होंगे, हालांकि लागू कानून के तहत इस राशि को संशोधित किया जा सकता है। फ्रेश इश्यू की राशि 2,500 करोड़ रुपये होगी, जिससे IPO का कुल आकार 12,500 करोड़ रुपये हो जाएगा। प्रस्तावित IPO का आकार इसे नॉन-बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनी (NBFC) द्वारा सबसे बड़ा IPO बनाता है। पिछले महीने बजाज हाउसिंग फाइनेंस ने IPO के जरिए 6,560 करोड़ रुपये जुटाए थे।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से नहीं रुकेगा बाल विवाह?
बाल विवाह को गंभीर सामाजिक बुराई बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे रोकने और नियंत्रित करने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। शीर्ष अदालत ने जिला स्तर पर बाल विवाह निधेष अधिकारी (CMDO) को नियुक्त करने को कहा है, जो सिर्फ बाल विवाह को रोकने के लिए काम करेगा। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि देशभर में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक अपने जिले में बाल विवाह को रोकने के लिए जिम्मेदार होंगे, लेकिन यह कहने से परहेज किया कि यह कानून पर्सनल लॉ पर हावी होगा। आपको बता दें, पर्सनल लॉ बाल विवाह को अनुमति देते हैं। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि बच्चों को मिलने वाली सांविधानिक गारंटी के मद्देनजर, हम मौजूदा अधिनियम में कुछ कमियां देखते हैं। पीठ ने आगे कहा, सांविधानिक चुनौती या किसी मामले पर बहस न होने पर हम घोषणा करने से परहेज करते हैं और देश की सरकार को इसका निरीक्छण करने का सुझाव देने तक सीमित रखते हैं।
इस विवादास्पद मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कि क्या बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 विवाह को नियंत्रित करने वाले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे व्यक्तिगत कानूनों पर हावी होगा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र इस मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के परस्पर विरोधी निर्णय प्रदान करने में विफल रहा है जैसा कि दावा किया गया है। पीठ ने कहा कि मामले में फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद केंद्र ने लिखित दलील में कहा है कि यह अदालत निर्देश दे सकती है कि प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट (PCMA) किसी भी व्यक्तिगत कानून से ऊपर हो। सुनवाई के दौरान अदालत ने बताया कि इन कार्यवाहियों में किसी भी पक्ष द्वारा प्रस्तुत की गई दलीलों में परस्पर विरोधी राय का विवरण नहीं दिया गया। बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक 2021 को 21 दिसंबर, 2021 को संसद में पेश किया गया था। जिसके बाद विधेयक को शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी विभाग से संबंधित स्थायी समिति को जांच के लिए भेजा गया था। विधेयक में PCMA में संशोधन करने की मांग की गई थी ताकि विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों पर कानून के प्रभाव को स्पष्ट रूप से बताया जा सके। बता दें, फिलहाल यह मुद्दा संसद के समक्ष विचाराधीन है।
यह अधिनियम दूल्हे और दुल्हन में से किसी एक की भी उम्र विवाह योग्य न होने पर इसे बाल विवाह के रूप में परिभाषित करता है। इस अधिनियम के तहत 18 वर्ष या उससे कम उम्र की बच्चियों और 21 साल या उससे कम उम्र के लड़के को बच्चे के तौर पर संदर्भित किया गया है। बाल विवाह को किसी भी एक पक्ष की ओर से कोर्ट में चुनौती दिए जाने पर यह कानून उसे रद्द करने का अधिकार देता है। इसके अलावा बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट ने भी दिशानिर्देश जारी किया है जो प्रकार है;
1.) केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ समन्वय करके PCMA के तहत मामलों के निपटारे के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतों की स्थापना की व्यवाहरिकता का आकलन करेगी। बाल विवाह मामलों की संवेदनशीलता व विशिष्ट पहलुओं को पहचानते हुए एक विशेष पुलिस इकाई आवश्यक है और इसे राज्यों के गृह मंत्रालय स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट (SJPU) को बाल विवाह रोकथाम ढांचे में एकीकृत करने पर विचार करेंगे।
2.) जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक अपने जिलों में बाल विवाह को सक्रिय रूप से रोकने के लिए जिम्मेदार होंगे। उनके पास उन सभी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने का अधिकार और जिम्मेदारी होगी जो बाल विवाह की सुविधा देते हैं या उसे संपन्न कराते हैं।
3.) अपने अधिकार क्षेत्र में बाल विवाह के मामलों में जानबूझकर कर्तव्य की उपेक्षा करने वाले लोक सेवक के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई की जाए, प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को बाल विवाह को रोकने के लिए एक वार्षिक कार्य योजना विकसित करना होगा।
4.) सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से निर्धारित ढांचे के अनुरूप स्कूली पाठ्यक्रम में व्यापक यौन शिक्षा को एकीकृत करें। इस शिक्षा में बाल विवाह, लैंगिक समानता, प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बाल विवाह के प्रभावों के कानूनी पहलुओं के बारे में स्पष्ट जानकारी शामिल होनी चाहिए।
5.) स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत “खुले में शौच मुक्त गांव” मॉडल से प्रेरित होकर “बाल विवाह मुक्त गांव” पहल शुरू की जानी चाहिए, जिसमें पंचायतों और सामुदायिक नेताओं को बाल विवाह को रोकने और रिपोर्ट करने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
शरीयत के अनुसार मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट, 1937 से संचालित होने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ नाबालिग के साथ शादी की अनुमति देता है। इस कानून में साफ कहा गया है कि प्यूबर्टी यानि बच्चे के लैंगिक तौर पर बड़े होने की उम्र 15 साल मानी जाती है और वयस्कता यानि शारीरिक और बौद्धिक रूप से पूरी तरह विकसित होने की उम्र समान है। साल 1937 के कानून की धारा-2 में प्रावधान है कि सभी विवाह शरीयत के तहत आएंगे, भले ही इसमें कोई भी रीति-रिवाज और परंपरा अपनाई गई हो। यह कानून विवाह, तलाक, विरासत और रखरखाव के मामलों में इस्लामी कानून को लागू करने की मान्यता देता है।
दिल्ली में आने वाला समय काफी गंभीर होने वाला है, दिल्ली में प्रदूषण बेहद खराब स्थिति में पहुंच गया है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) सहित NCR की संबंधित सभी एजेंसियों को GRAP-2 के नियमों को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया गया है। मंगलवार को सबसे ज्यादा खराब हालात आनंद विहार इलाके में रही, यहां AQI 382 दर्ज किया गया। बता दें, बीते कई दिनों से यह इलाका काफी प्रदूषित देखा गया है और इसलिए यहां विशेष नजर भी रखी जा रही है। इसके अलावा दिल्ली में 16 इलाकों को रेड जोन में रखा गया है, जहां की वायु गुणवत्ता संवेदनशील है। आज दिल्ली का अधिकतम तापमान लगभग 33°C (90°F) रहा और न्यूनतम तापमान 22°C (71°F) तक गिरा। इसी वजह से दिल्ली में कई इलाकों के Air Quality Index को ध्यान में रख कर निम्न इलाकों को रेड जोन में शामिल किया गया; जैसे आनद बिहार (382), अशोक विहार (343),द्वारका सेक्टर 8(325), IGI एयरपोर्ट(316),जहांगीरपुरी (355), मुंडका(360), नजफगढ़ (317), नरेला(322), पंजाबी बाग (356), रोहिणी(347), शादीपुर(359)। हालाकि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, सोमवार को दिल्ली के 36 प्रदूषण निगरानी केंद्रों में से 26 जगहों पर AQI 300 से अधिक रहा। सिर्फ 10 जगहों पर AQI 300 से कम यानी खराब श्रेणी में रहा। मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रापिकल मेटेओरोलाजी (IITM) पुणे के एक डाटा के अनुसार, दिल्ली के प्रदूषण में सबसे अधिक भागीदारी 10.96 प्रतिशत वाहनों की रही है।
दिल्ली में GRAP (Graded Response Action Plan) का दूसरा चरण, GRAP-2, तब लागू होता है जब वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) का स्तर "खराब" होता है जिसमें AQI 201-300 के बीच होता है या फिर "बहुत खराब" होता है जिसमें AQI 301-400 के बीच होता है। इस स्तर पर प्रदूषण को कम करने के लिए DPCC के द्वारा कई सख्त कदम उठाए गए हैं, जैसे आज से डीजल से चलने वाले जनरेटर का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है, ताकि प्रदूषण को कम किया जा सके, क्योंकि ये हाई पावर जनरेटर वायु गुणवत्ता को और ज्यादा खराब करते हैं। पार्किंग की लागत बढ़ा दी गई है ताकि लोग निजी वाहनों के उपयोग को कम करें और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा से ज्यादा यूज करें। सभी प्रकार की निर्माण और तोड़-फोड़ की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है और सुनिश्चित किया जा रहा है कि निर्माण स्थलों पर धूल को नियंत्रित करने के उपाय हो। इसके अलावा यातायात पर कड़ी नजर रखी जायेगी और सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी प्रदूषण से जुड़े नियम का पालन करें एवं वाहन से प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से नहीं रुकेगा बाल विवाह?
बाल विवाह को गंभीर सामाजिक बुराई बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे रोकने और नियंत्रित करने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। शीर्ष अदालत ने जिला स्तर पर बाल विवाह निधेष अधिकारी (CMDO) को नियुक्त करने को कहा है, जो सिर्फ बाल विवाह को रोकने के लिए काम करेगा। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि देशभर में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक अपने जिले में बाल विवाह को रोकने के लिए जिम्मेदार होंगे, लेकिन यह कहने से परहेज किया कि यह कानून पर्सनल लॉ पर हावी होगा। आपको बता दें, पर्सनल लॉ बाल विवाह को अनुमति देते हैं। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि बच्चों को मिलने वाली सांविधानिक गारंटी के मद्देनजर, हम मौजूदा अधिनियम में कुछ कमियां देखते हैं। पीठ ने आगे कहा, सांविधानिक चुनौती या किसी मामले पर बहस न होने पर हम घोषणा करने से परहेज करते हैं और देश की सरकार को इसका निरीक्छण करने का सुझाव देने तक सीमित रखते हैं।
इस विवादास्पद मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कि क्या बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 विवाह को नियंत्रित करने वाले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे व्यक्तिगत कानूनों पर हावी होगा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र इस मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के परस्पर विरोधी निर्णय प्रदान करने में विफल रहा है जैसा कि दावा किया गया है। पीठ ने कहा कि मामले में फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद केंद्र ने लिखित दलील में कहा है कि यह अदालत निर्देश दे सकती है कि प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड मैरिज एक्ट (PCMA) किसी भी व्यक्तिगत कानून से ऊपर हो। सुनवाई के दौरान अदालत ने बताया कि इन कार्यवाहियों में किसी भी पक्ष द्वारा प्रस्तुत की गई दलीलों में परस्पर विरोधी राय का विवरण नहीं दिया गया। बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक 2021 को 21 दिसंबर, 2021 को संसद में पेश किया गया था। जिसके बाद विधेयक को शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी विभाग से संबंधित स्थायी समिति को जांच के लिए भेजा गया था। विधेयक में PCMA में संशोधन करने की मांग की गई थी ताकि विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों पर कानून के प्रभाव को स्पष्ट रूप से बताया जा सके। बता दें, फिलहाल यह मुद्दा संसद के समक्ष विचाराधीन है।
यह अधिनियम दूल्हे और दुल्हन में से किसी एक की भी उम्र विवाह योग्य न होने पर इसे बाल विवाह के रूप में परिभाषित करता है। इस अधिनियम के तहत 18 वर्ष या उससे कम उम्र की बच्चियों और 21 साल या उससे कम उम्र के लड़के को बच्चे के तौर पर संदर्भित किया गया है। बाल विवाह को किसी भी एक पक्ष की ओर से कोर्ट में चुनौती दिए जाने पर यह कानून उसे रद्द करने का अधिकार देता है। इसके अलावा बाल विवाह पर सुप्रीम कोर्ट ने भी दिशानिर्देश जारी किया है जो प्रकार है;
1.) केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ समन्वय करके PCMA के तहत मामलों के निपटारे के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक अदालतों की स्थापना की व्यवाहरिकता का आकलन करेगी। बाल विवाह मामलों की संवेदनशीलता व विशिष्ट पहलुओं को पहचानते हुए एक विशेष पुलिस इकाई आवश्यक है और इसे राज्यों के गृह मंत्रालय स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट (SJPU) को बाल विवाह रोकथाम ढांचे में एकीकृत करने पर विचार करेंगे।
2.) जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक अपने जिलों में बाल विवाह को सक्रिय रूप से रोकने के लिए जिम्मेदार होंगे। उनके पास उन सभी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने का अधिकार और जिम्मेदारी होगी जो बाल विवाह की सुविधा देते हैं या उसे संपन्न कराते हैं।
3.) अपने अधिकार क्षेत्र में बाल विवाह के मामलों में जानबूझकर कर्तव्य की उपेक्षा करने वाले लोक सेवक के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक और कानूनी कार्रवाई की जाए, प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को बाल विवाह को रोकने के लिए एक वार्षिक कार्य योजना विकसित करना होगा।
4.) सभी राज्य व केंद्र शासित प्रदेश विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से निर्धारित ढांचे के अनुरूप स्कूली पाठ्यक्रम में व्यापक यौन शिक्षा को एकीकृत करें। इस शिक्षा में बाल विवाह, लैंगिक समानता, प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बाल विवाह के प्रभावों के कानूनी पहलुओं के बारे में स्पष्ट जानकारी शामिल होनी चाहिए।
5.) स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत “खुले में शौच मुक्त गांव” मॉडल से प्रेरित होकर “बाल विवाह मुक्त गांव” पहल शुरू की जानी चाहिए, जिसमें पंचायतों और सामुदायिक नेताओं को बाल विवाह को रोकने और रिपोर्ट करने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
शरीयत के अनुसार मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट, 1937 से संचालित होने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ नाबालिग के साथ शादी की अनुमति देता है। इस कानून में साफ कहा गया है कि प्यूबर्टी यानि बच्चे के लैंगिक तौर पर बड़े होने की उम्र 15 साल मानी जाती है और वयस्कता यानि शारीरिक और बौद्धिक रूप से पूरी तरह विकसित होने की उम्र समान है। साल 1937 के कानून की धारा-2 में प्रावधान है कि सभी विवाह शरीयत के तहत आएंगे, भले ही इसमें कोई भी रीति-रिवाज और परंपरा अपनाई गई हो। यह कानून विवाह, तलाक, विरासत और रखरखाव के मामलों में इस्लामी कानून को लागू करने की मान्यता देता है।