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Breaking News 22 February 2025

1. KIIT प्रकृति लामसाल के केस में अब तक क्या क्या हुआ !

नेपाल की होनहार छात्रा प्रकृति लामसाल की मौत ने सिर्फ उसके परिवार को नहीं, बल्कि पूरे समाज को झकझोर दिया है। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था, प्रशासन और कॉलेज प्रबंधन की नाकामी का काला अध्याय भी है। आखिर क्यों एक प्रतिभाशाली छात्रा इस हद तक मजबूर हुई कि उसे अपनी जिंदगी खत्म करनी पड़ी? आखिर कब तक युवाओं की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज किया जाता रहेगा?यह कहानी है नेपाल के काठमांडू की रहने वाली प्रकृति लामसाल की। 

कौन थी प्रकृति लामसाल?

नेपाल की राजधानी काठमांडू की रहने वाली प्रकृति लामसाल महज 20 साल की थीं। वह एक होनहार और मेधावी छात्रा थीं, जिनके सपने बड़े थे। स्कूल में वह हमेशा अव्वल आती थीं और उन्हें कंप्यूटर साइंस में गहरी रुचि थी। उन्होंने बी.टेक (कंप्यूटर साइंस) में दाखिला लिया और एक सफल आईटी इंजीनियर बनने की दिशा में कदम बढ़ाए। उनके माता-पिता को गर्व था कि उनकी बेटी एक बेहतरीन संस्थान में पढ़ाई कर रही है और जल्द ही उनका नाम रोशन करेगी। लेकिन 16 फरवरी की रात एक ऐसी घटना हुई जिसने पूरे परिवार को शोक में डुबो दिया। प्रकृति लामसाल अपने हॉस्टल के कमरे में मृत पाई गईं। प्रथम दृष्टया इसे आत्महत्या का मामला बताया गया, लेकिन इसके पीछे की वजहें और परिस्थितियाँ संदिग्ध हैं। यूनिवर्सिटी प्रशासन ने प्रारंभिक जांच में इसे प्रेम प्रसंग से जुड़ा मामला बताया, जिसमें उन्हें किसी छात्र द्वारा मानसिक रूप से प्रताड़ित किए जाने की बात सामने आई। पुलिस की जांच में यह भी सामने आया कि छात्रा को ब्लैकमेल और धमकाने का प्रयास किया गया था। प्रकृति की मां ने बताया कि घटना से कुछ घंटों पहले ही उनकी बेटी से बातचीत हुई थी। वह सामान्य लग रही थी और उसने बताया था कि वह एक कॉलेज फेस्ट में भाग लेने जा रही है। उसने यह भी कहा था कि नेटवर्क की समस्या के कारण कुछ समय के लिए कॉल नहीं ले पाएगी। लेकिन शाम होते-होते केआईआईटी विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने फोन करके तुरंत भुवनेश्वर आने के लिए कहा।
जब तक परिवार वहां पहुंचा, तब तक सबकुछ खत्म हो चुका था। प्रकृति एक अनुशासित छात्रा थी। उसकी एक बैचमेट के मुताबिक, वह पढ़ाई को लेकर बेहद ईमानदार थी और कभी अपनी क्लास मिस नहीं करती थी। उसके चचेरे भाई सिद्धांत सिगडेल ने बताया कि वह आईटी सेक्टर में अपना करियर बनाने के लिए पूरी तरह समर्पित थी। इस मामले ने तब और तूल पकड़ लिया जब कॉलेज प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठे। CCTV फुटेज के आधार पर सामने आया कि 17 फरवरी को कॉलेज के पांच कर्मचारी हॉस्टल पहुंचे और छात्रों को जबरदस्ती वहां से निकालने लगे। जब छात्रों ने जाने में देरी की, तो उन्हें पीटा गया। इस मामले में अब तक 6 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 5 को जमानत मिल गई है। जिनमें विश्वविद्यालय के कर्मचारी और कुछ छात्र भी शामिल हैं। 

प्रदर्शन और छात्रों के प्रति भेदभाव

प्रकृति की मौत के बाद कैंपस में प्रदर्शन तेज हो गए। 19 फरवरी को KIIT के स्टाफ और प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों के साथ बदसलूकी की, जिसके बाद प्रबंधन ने माफी मांगी। लेकिन इस दौरान कॉलेज की प्रोफेसर मंजूषा पांडे का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वे कह रही हैं, "हम 40,000 से ज्यादा स्टूडेंट्स को मुफ्त में खाना खिला रहे हैं और पढ़ा रहे हैं।" वहीं, एक अन्य स्टाफ सदस्य जयंती नाथ ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा, "यह आपके देश के बजट के बराबर है।" इन बयानों से नेपाली छात्रों में भारी नाराजगी फैल गई। मामले की गंभीरता को देखते हुए उच्च शिक्षा विभाग ने कॉलेज प्रशासन को तलब किया है। गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सत्यब्रत साहू के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई गई है, जो आत्महत्या की परिस्थितियों, संस्थान की मनमानी कार्रवाई और छात्रों के खिलाफ भेदभाव की जांच करेगी। इस बीच KIIT प्रबंधन ने दो अधिकारियों को उनके गैर-जिम्मेदाराना बयानों के कारण हटा दिया है और सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है। यह घटना उच्च शिक्षा संस्थानों में सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और प्रशासनिक लापरवाही से जुड़े गहरे सवाल खड़े करती है। यह मामला दर्शाता है कि किस तरह मानसिक उत्पीड़न और प्रशासनिक मनमानी एक होनहार छात्रा की जान ले सकती है। अब देखना होगा कि जांच समिति इस मामले में क्या निष्कर्ष निकालती है और क्या दोषियों को सजा मिलती है या नहीं। ऐसी ख़बरों के लिए देखते रहे ग्रेट पोस्ट न्यूज़।

2. डिजिटल भक्ति का नया युग : मोबाइल में महाकुंभ स्नान 

प्रयागराज के महाकुंभ में इस बार श्रद्धा और स्टार्टअप का ऐसा अनूठा संगम देखने को मिला कि भक्तों के पाप तो धुलें या नहीं, मगर जेबें जरूर हल्की हो गईं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में दीपक गोयल नामक व्यक्ति डिजिटल स्नान की नई परिभाषा गढ़ते नजर आ रहे हैं। उनका दावा है कि जो श्रद्धालु कुंभ में आकर गंगा में डुबकी नहीं लगा सकते, वे अपनी फोटो भेजकर पुण्य के डिजिटल संस्करण का लाभ उठा सकते हैं। बस, व्हाट्सएप पर अपनी तस्वीर भेजिए, 1100 रुपये ट्रांसफर करिए, और आपकी तस्वीर संगम में ‘डुबकी’ लगा लेगी। महाकुंभ को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला कहा जाता है, लेकिन 2025 के इस मेले ने साबित कर दिया कि यह सिर्फ स्नान और साधना का संगम नहीं, बल्कि स्टार्टअप और स्कैम का भी अखाड़ा बन चुका है। अब तक आपने डिजिटल दर्शन और ऑनलाइन पूजा के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या कभी डिजिटल स्नान की कल्पना की थी?

कैसे होता है डिजिटल स्नान?

इंस्टाग्राम पर वायरल हुए एक वीडियो में दीपक गोयल नाम का एक युवक दावा कर रहा है कि वह गंगा किनारे बैठकर लोगों को डिजिटल स्नान करवा रहा है। वह भक्तों को स्क्रीन के इस पार से मंत्रोच्चार के साथ पुण्य बुक करने का मौका नहीं दे रहा, बल्कि एक और दिलचस्प 'टेक्नोलॉजिकल साधना' करवा रहा है। प्रोसेस बिल्कुल सिंपल है सबसे पहले श्रद्धालु उसे व्हाट्सएप पर अपनी फोटो भेजते हैं। फिर वह उनकी तस्वीर का प्रिंट निकालता है।
उसके बाद उस फोटो को गंगाजल में डुबकी लगवाकर स्नान कराता है। पूरी प्रक्रिया का एक वीडियो बनाकर ग्राहक (या कहें भक्त) को भेजता है।

जनता की प्रतिक्रिया: श्रद्धा या धंधा?

यह डिजिटल स्नान का कॉन्सेप्ट सोशल मीडिया पर वायरल होते ही बहस का नया मुद्दा बन गया। कुछ भक्त इसे महान सुविधा मान रहे हैं, तो कुछ लोग इसे सीधे-सीधे श्रद्धा के नाम पर ठगी करार दे रहे हैं। एक यूजर ने नाराजगी जताते हुए लिखा, “गंगा स्नान नहीं, डिजिटल स्कैम! तो दूसरे ने तंज कसा, “अब तो स्वर्ग भी ऑनलाइन बुक हो जाएगा, EMI में मोक्ष मिलेगा? तीसरे ने सीधा सवाल उठाया, "धंधे के नाम पर श्रद्धा से खिलवाड़ क्यों?" हालांकि, कुछ लोग इसे एक सुविधा मानकर पुण्य की ‘होम डिलीवरी’ जैसा अनुभव ले रहे हैं। आखिर, जब डिजिटल दर्शन और ऑनलाइन आरती संभव है, तो डिजिटल स्नान में क्या बुराई है?  यह नया ‘स्नान स्टार्टअप’ एक दिलचस्प सवाल खड़ा करता है क्या धार्मिकता भी अब एक सर्विस मॉडल बन चुकी है .इस पर आपका क्या कहना है कमेंट करे

3. अमेरिका में बड़े पैमाने पर क्यों हो रहा है Deportation ? 

अमेरिका अब अवैध प्रवासियों के लिए एक खुला ‘हंटिंग ग्राउंड’ बन चुका है! ट्रंप प्रशासन ने ऐसा जाल बिछाया है कि जो एक बार फंसा, वह कभी नहीं बच पाएगा। इमीग्रेशन एजेंसियां पूरी ताकत से काम पर लग चुकी हैं। हर गली, हर कोना छाना जा रहा है। निर्वासन की गिनती दिनों-दिन बढ़ रही है, और अब अमेरिका छोड़ने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा। क्या यह अमेरिका का नया चेहरा है, जहां कानून से ज्यादा खौफ राज करेगा? नए आंकड़े बताते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के पहले महीने में कुल 37,660 प्रवासियों को देश से निकाला है। अब सुनिए ट्विस्ट यह आंकड़ा जो बाइडन के आखिरी कार्यकाल के मुकाबले काफी छोटा है। जी हां, बाइडन के कार्यकाल के आखिरी साल में औसतन 57,000 प्रवासियों को हर महीने डिपोर्ट किया गया था। मतलब यह कि जिस ट्रंप ने अवैध प्रवासियों पर सबसे बड़ा एक्शन लेने की कसम खाई थी, वो बाइडन की डिपोर्टेशन स्पीड के सामने फीके पड़ते नजर आ रहे हैं। अब इसमें दिलचस्प बात यह है कि बाइडन को ट्रंप के मुकाबले "लिबरल" माना जाता था, लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। बाइडन के दौर में डिपोर्टेशन की गाड़ी फुल स्पीड में थी, जबकि ट्रंप की गाड़ी स्टार्ट तो हुई, मगर लगता है कि गियर फंस गया है। ट्रंप प्रशासन के एक अधिकारी का कहना है कि बाइडन के कार्यकाल में बड़ी संख्या में अवैध प्रवासियों को सीमा पार करते हुए पकड़ा गया, इसलिए उन्हें डिपोर्ट करना आसान था। मतलब साफ है ट्रंप का बचाव करने वालों का तर्क है कि बाइडन को ‘रेडीमेड’ डिपोर्टेशन मिले थे, जबकि ट्रंप को खुद मेहनत करनी पड़ रही है। लेकिन अब ट्रंप प्रशासन हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा है। उन्होंने ग्वाटेमाला, अल सल्वाडोर, पनामा और कोस्टा रिका से एक नया समझौता किया है, जिसके तहत ये देश दूसरे देशों के निर्वासित लोगों को अपने यहां रखने को तैयार हो गए हैं। इसका मतलब यह हुआ कि आने वाले महीनों में ट्रंप डिपोर्टेशन की संख्या बढ़ा सकते हैं। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले महीनों में अमेरिका में अवैध प्रवासियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई देखने को मिल सकती है। ट्रंप प्रशासन ने निर्वासन की प्रक्रिया को तेज करने के लिए नए रास्ते तलाशे हैं, जिससे डिपोर्टेशन की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (DHS) की प्रवक्ता ट्रिसिया मैकलॉघलिन ने कहा कि बाइडेन प्रशासन के दौरान अवैध प्रवासियों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई थी, जिसकी वजह से अब आंकड़े ज्यादा दिख रहे हैं। हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने अब इस मुद्दे पर कड़े फैसले लेते हुए निर्वासन प्रयासों को गति दी है। सूत्रों के अनुसार, अमेरिका ने ग्वाटेमाला, अल सल्वाडोर, पनामा और कोस्टा रिका के साथ एक अहम समझौता किया है। इस समझौते के तहत ये देश अमेरिका से निकाले गए प्रवासियों को अपने यहां स्थानांतरित करने पर सहमत हो गए हैं। इस रणनीतिक साझेदारी से अमेरिका को अवैध प्रवासियों के निष्कासन में बड़ी सहायता मिलेगी और ट्रंप प्रशासन की आव्रजन नीति को और मजबूती मिलेगी। हालांकि, इस सख्त नीति को लेकर राजनीतिक और मानवाधिकार संगठनों में विरोध के स्वर भी उठ सकते हैं। अगर सिर्फ आंकड़ों की बात करें तो शुरुआती राउंड में बाइडन ने ट्रंप को पछाड़ दिया है। लेकिन अभी मुकाबला बाकी है। ट्रंप का ट्रैक रिकॉर्ड कहता है कि वो धीरे चलते हैं, लेकिन कभी-कभी चौका भी मार देते हैं। अब देखना यह होगा कि अगले कुछ महीनों में ट्रंप अपनी डिपोर्टेशन पॉलिसी को तेज कर पाते हैं या फिर यह भी उनके उन बड़े-बड़े वादों की लिस्ट में जुड़ जाएगा, जिनका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं होता।