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1 ) SIR को लेकर कन्फ्यूजन हो? तो ये रिपोर्ट जरूर देखो...

उत्तर प्रदेश में इन दिनों SIR फॉर्म को लेकर जो हलचल है, उसे देखकर ऐसा लगता है मानो वोटर लिस्ट नहीं, जनता की नसों का “स्पेशल इंटेंसिव टेस्ट” चल रहा हो। नाम दिया गया है विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण, पर लोगों में चर्चा ऐसे है जैसे कोई “गहन पूछताछ” हो रही हो। BLO घर-घर जा रहे हैं, हाथ में एक फॉर्म और चेहरे पर उतनी ही गंभीरता जितनी किसी इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर की होती है। कहते हैं “नाम, पता, विवरण दीजिए, और सही-सही दीजिए। नहीं तो आगे दिक्कत हो सकती है।” अब ‘दिक्कत’ शब्द का वजन राजनीति में कितना भारी होता है, ये जनता खूब समझती है।

चुनाव आयोग की किताबें कहती हैं SIR बस वोटर लिस्ट को अपडेट करने का रूटीन प्रोसेस है। डुप्लीकेट हटाओ, शिफ्टेड हटाओ, मृत लोग हटाओ ताकि 18+ वाले नए मतदाता ठीक से जुड़ें। कानून में कहीं भी नहीं लिखा कि “जो SIR नहीं भरेगा, उसे वोट नहीं मिलेगा।” लेकिन ज़मीन पर जो बोलचाल चल रही है, वो कानून की नहीं, अनुभव की भाषा है। और अनुभव? वो बिहार वाला।

जी हाँ बिहार! वही बिहार जहाँ 20 साल बाद जब SIR हुआ तो लाखों लोगों ने पाया “नाम कट गया।” करीब 65 लाख नाम ड्राफ़्ट लिस्ट से गायब। किसी का जन्म प्रमाणपत्र नहीं, किसी के पास माता-पिता की citizenship का प्रूफ नहीं, किसी का पता पुराना था, किसी का नया। वहाँ तो लोगों को लगा जैसे वोटर लिस्ट नहीं, डॉक्यूमेंट्स की युद्धभूमि बन गई हो। विरोध हुआ, राजनीति हुई, केस सुप्रीम कोर्ट तक गया। लोग बोलने लगे “ये SIR नहीं, NRC की झलक है।” सरकार ने कहा नहीं, ये बस वोटर लिस्ट सुधार है। लेकिन जनता बोली “जो सूची से गायब हुआ, उसको क्या फर्क पड़ता है कि नाम सुधार से कटा या राजनीति से?” और अब ये अनुभव हवा बनकर यूपी पहुँच गया है। उत्तर प्रदेश में भी BLO फॉर्म थमा रहे हैं। कुछ जगहों पर सिर्फ साधारण वेरिफिकेशन, लेकिन कुछ इलाकों में यह काम चेकिंग मोड में चल रहा है। उदाहरण के लिए लखनऊ का अकबरनगर। यहाँ लगभग 5000 वोटर्स ऐसी कॉलोनी में रहते हैं जिसका स्टेटस प्रशासन की फाइलों में ‘ग़ैर-क़ानूनी बस्ती’ जैसा दर्ज है। वहाँ लोगों को साफ बोला गया “फॉर्म नहीं भरोगे तो नाम कट सकता है।” कानून कुछ कहे, लेकिन ऐसी चेतावनियों से डर वही पैदा होता है जो बिहार में फैला था। CM योगी आदित्यनाथ ने खुद गोरखपुर में SIR फॉर्म भरकर जनता को मैसेज दिया “वोटर लिस्ट सही होनी चाहिए।” लेकिन जनता की दिक्कत ये नहीं कि लिस्ट सही हो, दिक्कत ये है कि कहीं इस ‘सही करने’ की प्रक्रिया में उनका नाम ही गलत न कर दिया जाए। सोचिए एक आदमी अपने घर में 20 साल से रह रहा है। बिजली बिल उसी के नाम। राशन कार्ड उसी पते पर। Aadhaar में वही पता। लेकिन BLO आकर बोले “SIR फॉर्म भरिए, वरना नाम कट सकता है” तो वह आदमी कानून नहीं पढ़ेगा, पिछले महीने बिहार के हेडलाइन पढ़ेगा। और वहीं से डर जन्म लेता है। इस समय यूपी में दो तरह के लोग हैं पहली तरह: जो कहते हैं “भईया फॉर्म भर दो, पेट से क्या निकालना है?”
दूसरी तरह: जो पूछते हैं “जब मेरा रिकॉर्ड पहले से सही है, तो ये नया फॉर्म क्यों?” इन दोनों के बीच खड़ा है वोट देने का अधिकार, जो संविधान में जितना साफ लिखा है, जमीनी हकीकत में उतना ही धुंधला हो जाता है। कागज़ी भाषा में SIR एक साधारण प्रक्रिया है। लोगों की भाषा में SIR “नाम बचाने की प्रक्रिया” है।
सवाल ये नहीं कि SIR असल में क्या है। सवाल ये है कि लोग क्या मान रहे हैं? और लोग मान रहे हैं कि “बिहार में जो हुआ, हमारा नंबर कहीं अगला तो नहीं?” यही सवाल आज उत्तर प्रदेश के गली-नुक्कड़ों में घूम रहा है BLO की फाइलों से भी तेज़, और चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस से भी ज़्यादा असरदार।  SIR न तो पूरी तरह गलत है, न खतरनाक ये सिर्फ वोटर लिस्ट की सफ़ाई का ऑफ़िशियल प्रोसेस है। ऐसे ही डीप ब्रेकडाउन, लेटेस्ट ट्रेडिंग न्यूज के लिए जुड़े रहिए हमसे और सब्सक्राइब करें ग्रेट पोस्ट न्यूज़।

 

2 )  दिल्ली ब्लास्ट : 11 दिन, 11 परतें जानिए अब तक क्या क्या हुआ....

दिल्ली ब्लास्ट के 11 दिन बाद यह केस सीधी-सादी सड़क नहीं, बल्कि कई मोड़ों वाला अंडरग्राउंड टनल सिस्टम बन चुका है। यह प्रॉपर टेरर मॉड्यूल था.... 11 दिन की जांच का आईना... कौन, कहाँ, कैसे पकड़ा गया? आइए जानते हैं 

पहली गिरफ़्तारी हुई आमिर रशीद अली (कश्मीर) से कार उसी के नाम पर रजिस्टर थी। मामले ने पहली बार मोड़ लिया कश्मीर से कनेक्शन महसूस हुआ, उससे मिले फोन डेटा में कुछ नंबर ऐसे थे जो सीधे NIA की हिट-लिस्ट में आते हैं। यहीं से जांच की दिशा बदल गई। दूसरा मोड़ आया ‘व्हाइट-कॉलर टेरर मॉड्यूल’ का खुलासा ...यहां से केस ने अपना सबसे चौंकाने वाला चेहरा दिखाया  टेरर नेटवर्क में डॉक्टर जी हाँ पढ़े-लिखे  ऑपरेशन थिएटर में जान बचाने वाले लोग… जान लेने की साज़िश में फिर गिरफ्तारियाँ हुई पुलवामा से डॉ. मुझम्मिल शकील गणाई की सहारनपुर/अनंतनाग मूल से डॉ. अदील अहमद राथर,  लखनऊ से डॉ. शाहीन सईद उर्फ ‘मैडम सर्जन’ शोपियाँ से  मुफ़्ती इरफ़ान वगाय का NIA ने इनमें से दो के फ़ोन से 42 बम-मेकिंग ट्यूटोरियल वीडियो बरामद किए वीडियो भेजने वाला एक विदेशी हैंडलर यहीं से केस इंटरनेशनल लेवल तक पहुँच गया तीसरा मोड़ आया मनी-लांड्रिंग एंगल और Al-Falah University.... मामला दिलचस्प हुई जब ED ने छापा मारकर पकड़ा Jawad Ahmed Siddiqui  Al-Falah University का चेयरमैन पर उसपर आरोप थे टेरर नेटवर्क को फंडिंग और हवाला चैनल चलाने का शक। अब मेडिकल, धार्मिक, शिक्षा तीन सेक्टर एक ही केस में जुड़ गए ये पहली बार हुआ है।

तो जांच अब कहाँ पहुँच चुकी है? (सबसे लॉजिकल हिस्सा)

NIA की थ्योरी क्या कहती है? NIA के मुताबिक यह कोई “लोन वुल्फ अटैक” नहीं था। यह था लेयर्ड, मल्टी-स्टेट, मल्टी-रोल नेटवर्क जहाँ डॉक्टर लॉजिस्टिक और टेक्निकल सपोर्ट, मुफ़्ती धार्मिक बैकिंग / नेटवर्क सपोर्ट , चेयरमैन फंडिंग , विदेशी हैंडलर तकनीक व गाइडेंस दे रहा था। मतलब कोई छोटा-मोटा गैंग नहीं एक ‘एजुकेटेड टेरर इकोसिस्टम’ फिर जम्मू-कश्मीर में NIA के सबसे बड़े छापे पड़े अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ के हॉस्टलों में मीडिया कार्यालयों में बैंक लॉकरों में जांच एजेंसियों का फोकस था कौन डॉक्टरों को रिक्रूट कर रहा था? कौन विदेश से बम-वीडियो भेज रहा था? किसके कहने पर टारगेट दिल्ली चुना गया? तो अभी तक केस कहाँ फँसा है? यहाँ दिक्कत यहीं है। शुरुआती गिरफ्तारी हो गई, लेकिन असली दिमाग (chief handler) अभी तक सामने नहीं आया। NIA बस इतना कह रही है कि  नेटवर्क बड़ा है, और कुछ नाम जल्द आएंगे तो क्या केस पूरा सॉल्व हुआ? बिल्कुल नहीं क्यों कि  हैंडलर फरार, फंडिंग चैन का पूरा खुलासा नहीं हुआ, कई संदिग्ध राज्यों में फैले हुए हैं, डॉक्टर मॉड्यूल का मास्टरमाइंड कौन ये भी नहीं पता, कार में विस्फोट कैसे एक्टिवेट हुआ रिमोट? टाइमर? मैनुअल? अभी तक फाइनल रिपोर्ट नहीं है। जांच अभी अंडरकवर्स की क्लीनिंग फेज़ में है।

सबसे बड़ा खुलासा क्या है?

इस केस ने पहली बार दिल्ली में यह दिखाया कि टेरर सिर्फ बंदूक वाले लोगों का काम नहीं रह गया है। अब यह लैब कोट, डिग्री और व्हाइट-कॉलर ऑफिस की दुनिया तक घुस चुका है यह दिल्ली ब्लास्ट नहीं इंडिया के ‘इंटेलेक्चुअल टेरर नेटवर्क’ का पहला बड़ा एक्सपोज़र है। तो आगे क्या? NIA जल्द दूसरी बड़ी गिरफ्तारी कर सकती है, FSL की रिपोर्ट आने वाली है, विदेशों से डेटा रिक्वेस्ट भेजी गई है ED फंडिंग रूट पर बड़ा खुलासा कर सकती है डॉक्टरों से लिंक्ड और लोग रडार पर हैं. ऐसे ही खबरों के लिए SUBSCRIBE करे ग्रेट पोस्ट न्यूज.